Bio-pesticides: खेती को बर्बादी से बचाना है तो जैविक कीटनाशकों का कोई विकल्प नहीं

जैविक कीटनाशकों में ‘एक साधे सब सधे’ वाली ख़ूबियाँ होती हैं। इसका मनुष्य, मिट्टी, पैदावार और पर्यावरण पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता और फ़सल के दुश्मन कीटों तथा बीमारियों से भी क़ारगर रोकथाम हो जाती है। इसीलिए, जब भी कीटनाशकों की ज़रूरत हो तो सबसे पहले जैविक कीटनाशकों को ही इस्तेमाल करना चाहिए।

जैविक कीटनाशक

खेती की कमाई बढ़ाने के लिए किसानों को कीटनाशकों का इस्तेमाल करना ही पड़ता है। विज्ञान की प्रगति के साथ अनेक रासायनिक कीटनाशक भी विकसित हुए। लेकिन कालान्तर में ये साबित हुआ कि जहरीले रासायनिक कीटनाशकों से फ़सल को जितनी राहत मिली, उससे कहीं ज़्यादा दुष्प्रभाव खेत की मिट्टी, उपज की गुणवत्ता, वातावरण और मानव स्वास्थ्य पर पड़ा। इसकी मुख्य वजह ये थी कि किसानों ने रासायनिक कीटनाशकों का सन्तुलित नहीं बल्कि अन्धाधुन्ध इस्तेमाल किया।

जहरीले रसायनों से मुक्ति तभी सम्भव है जबकि किसानों के पास इसका व्यावहारिक विकल्प आसानी से उपलब्ध हो। इसी तथ्य को ध्यान में रखकर भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद के वैज्ञानिकों ने अनेक जैविक कीटनाशक विकसित किये हैं। इनमें ‘एक साधे सब सधे’ वाली ख़ूबियाँ होती हैं। जैविक कीटनाशकों का मनुष्य, मिट्टी, पैदावार और पर्यावरण पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता है और फ़सल के दुश्मन कीटों तथा बीमारियों से भी क़ारगर रोकथाम हो जाती है।

दरअसल, जैविक कीटनाशकों की उत्पत्ति प्रकृति के अद्भुत ‘भोजन-चक्र’ यानी food chain की प्रेरणा से होती है। प्रकृति के भोजन चक्र में मनुष्य के अलावा जंगल का राजा यानी शेर, बाघ, चीता वग़ैरह सबसे ऊपर हैं। ये ऐसे प्राणी हैं जो किसी अन्य प्राणी का भोजन नहीं बनते हैं। बाक़ी बचे लाखों-करोड़ों किस्म के प्राणी किसी ना किसी का भोजन बनते हैं। इसी सिद्धान्त को ध्यान में रखकर वैज्ञानिक जैविक कीटनाशक के रूप में ऐसे प्राणियों की पहचान करते हैं जो फ़सलों पर हमला करने वाले कीटों और बीमारियों के असली तत्व को अपना भोजन बनाते हैं। प्रस्तुत लेख में 6 प्रमुख जैविक कीटनाशकों के बारे में संक्षिप्त और उपयोगी जानकारियाँ हैं। उम्मीद है कि किसानों की ओर से ज़्यादा से ज़्यादा जैविक कीटनाशकों को अपनाने की कोशिश ज़रूर की जाएगी।

1. ट्राइकोडर्मा

ट्राइकोडर्मा एक फफूँदीनाशक है और बाज़ार में 1 प्रतिशत WP तथा 2 प्रतिशत WP के फ़ॉर्मूलेशन में आसानी से उपलब्ध रहता है। ट्राइकोडर्मा के कवक तन्तुओं की ये विशेषता है कि ये फ़सलों को नुकसान पहुँचाने वाले हानिकारक कवकों के तन्तुओं के अन्दर जाकर अथवा उसके ऊपर रहकर उसी का रस चूसने लगते हैं। इसके अलावा ये एक विशिष्ट प्रकार का रसायन भी छोड़ते हैं जो बीजों के चारों ओर सुरक्षा दीवार बनाकर उनकी हानिकारक फफूँदों से रक्षा करते हैं। ट्राइकोडर्मा, बीजों के अच्छे अंकुरण के लिए भी उत्तरदायी होते हैं। इसीलिए इसके इस्तेमाल से पहले अथवा बाद रासायनिक उत्पादों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। यह विभिन्न प्रकार की फ़सलों, फलों तथा सब्जियों जैसे- धान, कपास, गेहूँ, गन्ना, पपीता, आलू आदि में जड़-सड़न, तना-सड़न, झुलसा जैसे रोगों में बहुत प्रभावीशाली साबित होता है।

प्रयोग विधि: ट्राइकोडर्मा से बीजशोधन के लिए इसकी 4 ग्राम मात्रा लेकर प्रति किलोग्राम बीज दर से बीज उपचार कर बुआई करनी चाहिए। पौधे तैयार करते समय इसकी 5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर, पौधे की जड़ उसमें डुबोकर शोधित या उपचारित करने के बाद प्रयोग करना चाहिए। ट्राइकोडर्मा से मिट्टी उपचारित करने के लिए इसकी 2.5 किलोग्राम मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से क़रीब 70 से 80 किलोग्राम गोबर की खाद में मिलाकर पर्याप्त नमी के साथ क़रीब 10 दिनों तक छाया में सुखाकर, बुआई से पहले अन्तिम जुताई पर इस्तेमाल करना चाहिए। फ़सल में फफूँदजनित रोगों के नियंत्रण के लिए 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से क़रीब 500 लीटर पानी में घोल का आवश्यकता अनुसार 15 दिनों के अन्तराल पर छिड़काव करना चाहिए।

जैविक कीटनाशक organic bio-pesticides
तस्वीर साभार: kvknorthgoa

 

Kisan of india facebook

2. स्यूडोमोनास

स्यूडोमोनास, एक जीवाणु आधारित फफूँद और जीवाणुनाशक है। ये बाज़ार में मुख्यतः 0.5 WP फ़ॉर्मूलेशन में मिलता है। इसके इस्तेमाल के 15 दिनों बाद फ़सल पर किसी भी रासायनिक जीवाणुनाशक का प्रयोग नहीं करना चाहिए। विभिन्न प्रकार की फ़सलों के जड़ तथा तना सड़न, उकठा, गन्ने का लाल सड़न, जीवाणु झुलसा आदि जीवाणु तथा फफूँदीजनित रोगों के नियंत्रण के लिए बहुत प्रभावी है। इसका प्रयोग प्रमुखता से बीजशोधन तथा पौधे के विभिन्न रोगों के नियंत्रण में होता है।

प्रयोग विधि: स्यूडोमोनास से बीज उपचारित करने के लिए इसकी 10 ग्राम मात्रा को 15 से 20 मिलीमीटर पानी में मिलाकर प्रयोग में लाते हैं। तैयार घोल की ये मात्रा एक किलोग्राम बीज को उपचारित करने के लिए पर्याप्त होता है। उपचारित बीज को छाया में सुखाकर प्रयोग करना चाहिए। पौधों को स्यूडोमोनास से उपचारित करने के लिए इसकी 50 ग्राम मात्रा को एक लीटर पानी में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए। इस घोल का इस्तेमाल छिड़काव के लिए भी किया जा सकता है, ताकि मिट्टी से सम्बन्धित रोगों से भी बचाव किया जा सके।

जैविक कीटनाशक organic bio-pesticides
तस्वीर साभार: kvknorthgoa

ये भी पढ़ें: नीम का पेड़ क्यों है सर्वश्रेष्ठ जैविक कीटनाशक (Organic Pesticide), किसान ख़ुद इससे कैसे बनाएँ घरेलू दवाईयाँ?

 3. ब्यूबेरिया बैसियाना

ब्यूबेरिया बैसियाना एक प्रकार का फफूँद आधारित जैविक कीटनाशक है। ये विभिन्न फ़सलों में लगने वाले फलबेधक, चूषक कीट, दीमक, सफ़ेद गिडार तथा पत्ती-लपेटक आदि कीटों से रोकथाम करता है। वातावरण में ज़्यादा नमी और गर्मी होने पर ब्यूबेरिया बैसियाना अत्यधिक प्रभावकारी साबित होता है। यह बाज़ार में 1 प्रतिशत WP तथा 1.15 प्रतिशत WP के फ़ॉर्मूलेशन में उपलब्ध है।

प्रयोग विधि: ब्यूबेरिया बैसियाना से मिट्टी को उपचारित करने के लिए इसकी 2.5 किलोग्राम मात्रा को 70 से 80 किलोग्राम गोबर की खाद में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करते हैं। इसके अतिरिक्त खड़ी फ़सल में कीटों से बचाव के लिए इसकी 2.5 किलोग्राम मात्रा को क़रीब 400 से 500 लीटर पानी के साथ घोल बनाकर एक हेक्टेयर की दर से छिड़काव कर सकते हैं।

जैविक कीटनाशक organic bio-pesticides
तस्वीर साभार: kvknorthgoa

4. मेटाराइजियम ऐनीसोप्ली

मेटाराइजियम ऐनीसोप्ली भी एक फफूँद आधारित जैविक कीटनाशक है। ये 1.15 प्रतिशत तथा 1.5 प्रतिशत WP फ़ॉर्मूलेशन के साथ बाज़ार में मिलता है। यह फल-लपेटक, सफ़ेद गिडार, फलीबेधक, रस चूषक कीट तथा मिट्टी में रहने वाले अनेक कीटों से सुरक्षा देने में बेहद प्रभावशाली होता है। इसके इस्तेमाल से 15 दिनों पहले तथा बाद किसी भी तरह के रासायनिक कीटनाशक का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

प्रयोग विधि: ब्यूबेरिया बैसियाना की तरह मेटाराइजियम ऐनीसोप्ली की भी 2.5 किलोग्राम मात्रा लेकर 70 से 80 किलोग्राम गोबर की खाद में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए। खड़ी फ़सल में 2.5 किलोग्राम मात्रा को 400 से 500 लीटर पानी में घोलकर आवश्यकतानुसार 15 दिनों के अन्तराल पर शाम के वक़्त मेटाराइजियम ऐनीसोप्ली का छिड़काव करना भी बेहद प्रभावशाली साबित होता है।

जैविक कीटनाशक organic bio-pesticides
तस्वीर साभार: ICAR

5. बैसिलस थुरिजेसिस

बैसिलस थुरिजेसिस, एक कीटाणु आधारित जैविक कीटनाशक है। ये सब्ज़ियों, फ़सलों तथा फलों में लगने वाले लेपिडॉप्टेरा परिवार के कीटों जैसे- फलीबेधक, पत्ती खाने वाले कीट तथा पत्ती लपेटक कीटों की रोकथाम में बेहद लाभकारी साबित होती हैं। इस जैविक कीटनाशक के इस्तेमाल के पहले या बाद के 15 दिनों तक किसी भी रासायनिक कीटनाशक का प्रयोग कतई नहीं करना चाहिए। बैसिलस थुरिजेसिस की शेल्फ लाइफ एक साल तक होती है यानी ये उत्पादन के समय से लेकर साल भर तक असरदायक बना रहता है।

प्रयोग विधि: 400 से 500 लीटर पानी में जैविक कीटनाशक बैसिलस थुरिजेसिस की 0.5 ग्राम से 1.0 किलोग्राम मात्रा का घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से आवश्यकतानुसार 15 दिनों के अन्तराल पर शाम के वक़्त में छिड़काव करना चाहिए

6. न्यूक्लियर पॉली हाइड्रोसिस (NPV)

न्यूक्लियर पॉली हाइड्रोसिस यानी NPV, एक वायरस आधारित जैविक कीटनाशक है। इसका इस्तेमाल ख़ासतौर पर विभिन्न प्रकार की सूंडियों पर काबू पाने के लिए किया जाता है। चने तथा तम्बाकू की फ़सल में सूंडी नियंत्रण में NPV, एक बहुत ज़बरदस्त जैविक कीटनाशक साबित होता है। लेकिन इसकी एक सीमा ये है कि चने की सूंडी से बना हुआ NPV ही चने पर हमलावर सूंडियों पर क़ारगर है जबकि तम्बाकू वाली सूंडियों से बना NPV भी उसी की सूंडी पर नियंत्रण के लिए प्रभावी साबित होती है। अपनी ही सूंडी से बनने वाले NPV हानिकारक पत्तियों और फली को खाने लगती है तथा कुछ समय बाद पीली पड़कर अन्त में काली हो जाती है। इसके अन्दर एक ख़ास प्रकार का रसायनिक द्रव होता है, जिससे NPV को फिर से बनाया जा सकता है। NPV से प्रभावित सूंडियाँ पौधे की ऊपरी पत्तियों अथवा टहनियों से लटकती हुई नज़र आती हैं।

प्रयोग विधि: सूडियों के नियंत्रण के लिए 250 से 300 लार्वा समतुल्यांक (Larva Equivalent) को 400 से 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से खड़ी फ़सल में आवश्यकतानुसार 15 दिनों के अन्तराल पर छिड़काव करना चाहिए।

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

मंडी भाव की जानकारी
 

ये भी पढ़ें:

 

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top