किसानों को नहीं पड़ेगी पराली जलाने की ज़रूरत, जानिए क्या हैं तरीके और कैसे पराली है मिट्टी के लिए वरदान
पराली दे सकती है कई समस्याओं से निज़ात
पराली जलाना न सिर्फ़ पर्यावरण के लिए हानिकारक है, बल्कि ये मिट्टी की उर्वरता को भी कम करता है। ऐसे में इस समस्या से निज़ात पाने के लिए किसानों को पराली के वैकल्पिक इस्तेमाल के बारे में जानकारी देना ज़रूरी है। ICAR ने पराली के कुछ वैकल्पिक इस्तेमाल बताए हैं, जानिए इनके बारे में।
हर साल पराली जलाने के कारण वायु प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। किसान को अगली फसल की बुवाई के लिए मजबूरी में पराली जलानी पड़ती है। पराली यानी कि धान व अन्य फसलों की कटाई के बाद खेत में बची हुई जड़ व फसल के अवशेष, जिसे दूसरी बुवाई से पहले साफ करना ज़रूरी होता है। हमारे देश में फसल अवशेषों का प्रबंधन भी एक गंभीर समस्या है। ऐसे में वैज्ञानिक हर दिन नई खोज कर रहे हैं ताकि पराली व अन्य फसल अवशेषों का सही प्रबंधन करके पर्यावरण को होने वाली हानि से बचाया जा सके। पराली की समस्या से निज़ात पाने के लिए उसका कई अन्य तरीकों से इस्तेमाल किया जा सकता है। इसे खाद, जैविक खेती और बिजली बनाने में उपयोग में लाया जा सकता है।

पराली से तैयार जैविक खाद
फसल के अवशेषों से बेहतरीन जैविक खाद तैयार की जा सकती है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली ने खाद बनाने के लिए वायुवीय विधि ईज़ाद की है। इस विधि में एक कृषि मशीन के ज़रिए कचरे के ढेर को पलटा जाता है, ताकि जैव विघटन और हवा का संचार तेज़ गति से होकर खाद जल्दी तैयार हो सके। अवशेषों के ढेर को पलटने से पहले उसमें पर्याप्त नमी सुनिश्चिक की जाती है फिर 3-4 बार पलटा जाता है। ये खाद 3-4 महीने में तैयार हो जाती है और इसका रंग चाय की पत्ति की तरह हो जाता है। इसके इस्तेमाल से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और फसल की गुणवत्ता में भी सुधार होता है।

संरक्षण खेती में इस्तेमाल
संरक्षण खेती में लगभग 30 प्रतिशत फसल अवशेषों का इस्तेमाल किया जा सकता है। दरअसल, इस तरह की खेती में पिछली फसल के अवशेषों को मिट्टी के ऊपर बिछा दिया जाता है और जुताई करके इसे मिट्टी में मिलाया जाता है। जल्दी विघटन के लिए सुपर फॉस्फेट का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। मिट्टी में इसे मिलाने से मिट्टी के पोषक तत्वों में वृद्धि होती है। कई रिसर्च से ये भी साबित हुआ है कि गेहूं का भूसा, कपास का डंठल, गन्ने की सूखी पत्तियां, धान के पुआल आदि का कुछ मात्रा में खेत में ही रीसाइक्लिंग करने से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है।
मशरूम उत्पादन
मशरूम उत्पादन में धान की पुआल और गेहूं के भूसे का इस्तेमाल किया जाता है। मशरूम को मिट्टी में नहीं उगाया जाता, बल्कि उसे फसल के अवशेषों पर ही उगाया जाता है। मशरूम उत्पादन में कृषि अवशेषों के इस्तेमाल से उनके प्रबंधन की एक बड़ी समस्या हल हो जाती है।

उर्जा व उद्योग में इस्तेमाल
आपको जानकर शायद हैरानी होगी कि फसल अवशेषों के इस्तेमाल से देश में 17,000 मेगावट से अधिक बिजली का उत्पादन किया जा सकता है। पंजाब में बायोमास पॉवर लिमिटेड ने धान के पुआल से चलने वाला पावर प्लांट बनाया है। इस कंपनी का पटियाला में 12 मेगावट का प्लांट चल रहा है। फसल के अवशेष और गन्ने का रस निकालने के बाद बचे अवशेष का उपयोग ऊर्जा बनाने में किया जा सकता है, साथ ही फसल के अवशेषों का इस्तेमाल कागज उद्योग में भी किया जा सकता है।
फसल अवशेषों का प्रयोग खाली पड़ी भूमि या फसल दोनों में पलवार के रूप किया जा सकता है। खड़ी फसल में फसल अवशेषों का उपयोग उस समय पर किया जाता है, जब पौधों की ऊंचाई लगभग 8-10 सेंटीमीटर हो जाए। पौधों के अवशेष समान रूप से फसल की पंक्तियों के बीच बिछा देने चाहिए। इस क्रिया में 4 टन भूसा प्रति हैक्टर काफी होता है। धान, गेहूं, जौ, ज्वार, बाजरा आदि का भूसा और मक्का, अरहर, नारियल व केले की सूखी पत्तियां, सूखी घास आदि को फसल की पंक्तियों के बीच बिछाकर पलवार के रूप में फसल अवशेषों का उपयोग कर सकते हैं।
पराली का पलवार के रूप में इस्तेमाल
पलवार के रूप में फसल अवशेषों के प्रयोग से मिट्टी व फसल से पानी का वाष्प बनकर उड़ने वाले पानी के नुकसान को रोका जा सकता है। खरपतवारों की रोकथाम की जा सकती है और मिट्टी का तापमान भी कंट्रोल किया जा सकता है। फसल अवशेषों का पलवार के रूप प्रयोग करने से सूर्य की तेज रोशनी भी सीधे मिट्टी के सम्पर्क में नहीं आती। ये मिट्टी में नमी को बनाए रखने में मददगार होता है। इससे फसल के पौधे आसानी से उग सकते हैं और मृदा की जल क्षमता भी बढ़ती है।

ये भी पढ़ें: बिहार की ये महिला पराली से बना रही Best Out Of Waste, कृषि कचरे का किया क्रिएटिव इस्तेमाल
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या kisanofindia.mail@gmail.com पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

ये भी पढ़ें:
- सरोगेसी यानी भ्रूण स्थानांतरण तकनीक (Embryo transfer technology) से हुआ देश के पहले मारवाड़ी घोड़े का जन्मदेश में घोड़ों की संख्या में पिछले कुछ सालों में बहुत कमी आई है। इसीलिए वैज्ञानिक घोड़ों, खासकर देसी नस्ल के घोड़ों की संख्या बढ़ाने की दिशा में लगातार काम कर रहे हैं। इसी कड़ी में उन्हें भ्रूण स्थानांतरण तकनीक से एक बड़ी सफ़लता मिली है।
- रोटरी डिस्क ड्रिल (Rotary Disc Drill) – फ़सल कटाई के बाद पराली और अवशेष प्रबंधन का कारगर और दमदार उपकरणउत्तर भारत में फ़सल अवशेषों या पराली जलाना एक गंभीर समस्या है, जिससे मिट्टी और पर्यावरण दोनों को नुकसान होता है। इस समस्या से निपटने के लिए ICAR ने रोटरी डिस्क ड्रिल (RDD) मशीन बनाई है। इसकी मदद से बिना पराली जलाए, फ़सलों की सीधी बुवाई की जा सकती है।
- Mushroom Processing: कैसे होती है मशरूम की व्यावसायिक प्रोसेसिंग? जानिए घर में मशरूम कैसे होगा तैयार?मशरूम उत्पादक किसान यदि ख़ुद अपनी मशरूम का सेवन करना चाहें तो वो क्या करें? इन किसानों के लिए शहरों से प्रोसेस्ड मशरूम को ख़रीदकर लाना और फिर उसका इस्तेमाल करना व्यावहारिक नहीं होता। इसीलिए, यदि वो अपने घरों में ही मशरूम की प्रोसेसिंग करना सीख लें तो अपनी निजी ज़रूरतों के अलावा वो रिश्तेदारों और मेहमानों वग़ैरह को भी प्रोसेस्ड मशरूम मुहैया करवा सकते हैं।
- जानिए क्यों महाराष्ट्र की इस महिला किसान को लोगों ने दिया ‘लेडी प्लांट डॉक्टर’ का ख़िताब!महाराष्ट्र के अहमद नगर ज़िले की रहने वाली कविता प्रवीण जाधव का शुरू से ही खेती के प्रति लगाव था। उन्होंने किसानों की उत्पादकता को बढ़ाने और उन्हें लाभ पहुंचाने के लिए कई अहम कदम उठाए। आज उनके साथ कई महिला किसान जुड़ी हुई हैं।
- जानिए, क्यों अनुपम है बायोचार (Biochar) यानी मिट्टी को उपजाऊ बनाने की घरेलू और वैज्ञानिक विधि?बायोचार के इस्तेमाल से मिट्टी के गुणों में सुधार का सीधा असर फसल और उपज में नज़र आता है। इससे किसानों की रासायनिक खाद पर निर्भरता और खेती की लागत घटती है। लिहाज़ा, बायोचार को किसानों की आमदनी बढ़ाने का आसान और अहम ज़रिया माना गया है।
- कपास की खेती में फायदेमंद है स्पॉट फर्टिलाइज़र एप्लीकेटर का इस्तेमालकपास एक महत्वपूर्ण व्यवसायिक फसल है, जिससे किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। कपड़ा उद्योग के लिए तो कपास कच्चा माल प्रदान करता ही है, साथ ही इसके बीज से तेल भी बनाया जाता है। कपास की मांग हमेशा बाज़ार में बनी रही है, ऐसे में किसान स्पॉट फर्टिलाइज़र एप्लीकेटर का इस्तेमाल करके इसका उत्पादन बढ़ा सकते हैं।
- सब्ज़ी नर्सरी (Vegetable Nursery): असम के किसान जयंती मेधी ने मिट्टी रहित सब्ज़ियों की पौध तैयार कर खड़ा किया सफल नर्सरी उद्योगयदि रोपण सामग्री उच्च गुणवत्ता वाली हो तो सब्ज़ी नर्सरी में सब्ज़ियों की फसल भी अच्छी होती है। अपने इलाके में लोगों को बेहतरीन रोपण सामग्री मुहैया कराने के लिए जयंती मेधी ने एक अनोखा प्रयोग किया और बिना मिट्टी के ही विभिन्न सब्ज़ियों की पौध तैयार कर सफल उद्यम स्थापित कर लिया।
- चौलाई की खेती (Amaranth Cultivation): चौलाई की ये 10 उन्नत किस्में देती हैं अच्छी पैदावार, कई पोषक तत्वों से भरपूरचौलाई को औषधीय पौधा भी माना जाता है। ये इकलौता ऐसा पौधा है जिसमें सोने (gold) का अंश पाया जाता है। इसका जड़, तना, पत्ती और फल सभी उपयोगी हैं। चौलाई की खेती कर रहे किसानों के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने इसकी कई किस्में ईज़ाद की हैं। आइए आपको बताते हैं उन किस्मों के बारे में।
- Amla Processing: आज आंवले की खेती के ‘मार्केटिंग गुरु’ हैं कैलाश चौधरी, ज़ीरो से शुरू किया था सफ़रकैलाश चौधरी पिछले 6 दशक से खेती कर रहे हैं। आंवले की खेती ने उन्हें देश-दुनिया में पहचान दी है। कैलाश चौधरी कहते हैं खेती से बड़ा और कोई काम नहीं है। इसमें अपार संभावनाएं हैं।
- Vegetable Nursery: सब्जियों की नर्सरी में इनोवेटिव तकनीक का इस्तेमाल, मणिपुर के इस युवा ने ईज़ाद किया तरीकासब्जियों के बीज बहुत नाज़ुक होते हैं और उन्हें अधिक देखभाल की ज़रूरत होती है। इसलिए अधिकांश सब्जियों की पौध पहले नर्सरी में तैयार की जाती है, फिर खेत में उन्हें लगाया जाता है। मणिपुर के एक किसान ने नर्सरी में गुणवत्तापूर्ण सब्जियोंकी पौध तैयार करने के लिए एक नई तकनीक ईज़ाद की है, जिससे उनका मुनाफा बढ़ गया। सब्जियों की नर्सरी में कैसे ये तकनीक कारगर हो सकती है, जानिए इस लेख में।
- Kathiya Wheat Farming: गेहूँ की खेती से चाहिए ज़्यादा कमाई तो अपनाएँ कठिया गेहूँ की किस्मेंसेहत के प्रति जागरूक लोगों के बीच कठिया गेहूँ की माँग तेज़ी से बढ़ रही है, क्योंकि इसमें ‘बीटा कैरोटीन’ पाया जाता है। बाज़ार में भी किसानों को कठिया गेहूँ का उचित दाम मिलता है। इस तरह, कठिया गेहूँ, अपने उत्पादक किसानों को भी आर्थिक रूप से मज़बूत बनाने में अहम भूमिका निभाता है। इसीलिए ज़्यादा से ज़्यादा किसानों को चाहिए कि यदि वो गेहूँ पैदा करें तो उन्हें कठिया किस्में को ही प्राथमिकता देनी चाहिए।
- Azolla Cultivation: अजोला की खेती पशुओं के साथ ही धान की फसल के लिए भी है फ़ायदेमंदअजोला पशुओं के लिए बेहतरीन हरा चारा है, जिसे किसान आसानी से उगा सकते हैं। अजोला को उगाना बहुत आसान है। बस इसके लिए पानी की ज़रूरत होती है। इसके अलावा किसी तरह के खाद या उर्वरक की कोई ज़रुरत नहीं होती है। ये अपने आप दोगुना होता रहता है। अजोला की खेती कैसे किसानों के लिए फ़ायदेमंद हो सकती है, देखिए प्लांट प्रोटेक्शन की सब्जेक्ट मैटर स्पेशलिस्ट हिना कौशर से खास बातचीत।
- चौलाई की खेती (Amaranth Cultivation): छोटी जोत वाले किसानों के लिए क्यों है फ़ायदेमंद? जानिए इससे जुड़ी अहम बातेंचौलाई से मिलने वाले साग (सब्ज़ी) और दाना (अनाज) दोनों ही नकदी फसलें हैं। चौलाई के खेती में ज़्यादा पानी की ज़रूरत नहीं होती। चौलाई की खेती के लिए प्रति एकड़ करीब 200 ग्राम बीज की ज़रूरत पड़ती है। जानिए चौलाई की खेती से जुड़ी ऐसी कई जानकारियां।
- Kitchen Garden: अतिथि पोपली 25 सालों से किचन गार्डन में उगा रहीं सब्ज़ियां और जड़ी-बूटियांशहर में जगह की कमी के चलते जो लोग अपने बागवानी का शौक पूरा नहीं कर पातें, वो अतिथि पोपली से सीख ले सकते हैं। जो पिछले 25 सालों से गमले और घर के सामने की छोटी सी जगह में सब्ज़ियां और जड़ी-बूटियां उगा रही हैं।
- Sesame Cultivation: गर्मियों में तिल की खेती करना किसानों के लिए क्यों फ़ायदेमंद?आमतौर पर तिल की खेती को मुनाफ़े का सौदा नहीं माना जाता है, क्योंकि इसमें पैदावार कम होती है, लेकिन तिल की खेती यदि उन्नत तरीके से की जाए तो यह किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। उन्नत किस्म के बीजों के साथ गर्मियों के मौसम में तिल की खेती करना अच्छा रहेगा, क्योंकि यह मौसम तिल के लिए उपयुक्त होता है।
- Top 10 Desi Cow Breeds: गौपालन से जुड़े हैं तो जानिए देसी गाय की 10 उन्नत नस्लों कोउन्नत नस्ल की देसी गायों को पालने पर दूध का उत्पादन अन्य देसी गायों के मुक़ाबले अधिक होता है। ज़ाहिर है, इससे आपकी आमदनी भी बढ़ेगी। एक बात का ध्यान ज़रूर रखें। हर क्षेत्र के हिसाब से कौन सी देसी गाय उन्नत नस्ल की है, इसकी पूरी जानकारी लेने के बाद ही उस नस्ल को पालें।
- सूखा प्रभावित क्षेत्रों के लिए फूट ककड़ी की खेती क्यों है फ़ायदेमंद? 45-48 डिग्री में भी उग जाएपिछले कुछ साल में फूट ककड़ी की उन्नत किस्मों के विकास और नई तकनीक के प्रयोग से फूट ककड़ी की खेती में इज़ाफा हुआ है। अगर व्यावसायिक तौर पर किसान इसकी खेती कर उत्पाद तैयार करते हैं तो ये अतिरिक्त आमदनी का अच्छा स्रोत बन सकती है।
- Lady Finger Varieties: भिंडी की 10 उन्नत किस्में, जिसे लगाकर किसान कर सकते हैं लाखों की कमाईभिंडी की खेती हर मिट्टी और मौसम में होती है लेकिन दोमट मिट्टी जिसका पीएच मान 6 से 6.8 हो, और गर्म जलवायु हो तो सबसे अच्छी पैदावार होती है।
- प्लास्टिक मल्चिंग तकनीक फल-सब्ज़ी की खेती में लागत घटाने का बेजोड़ नुस्ख़ा हैप्लास्टिक मल्चिंग तकनीक की वजह से एक बार सिंचाई करने के बाद खेतों में ज़्यादा वक़्त तक नमी बनी रहती है। इस तकनीक में रोपे गये या अंकुरित हुए नन्हें पौधों के तनों के आसपास का हिस्सा प्लास्टिक से ढका होने की वजह से खरपतवार नहीं पनप पाते। लिहाज़ा, इन्हें निकालने या नष्ट करने के लिए न तो गुड़ाई-निराई की श्रम की लागत आती है और ना ही खरपतवार-नाशक रासायनिक दवाईयों की ज़रूरत पड़ती है। दूसरी ओर, परम्परागत खेती में ज़मीन की जिस उर्वरा शक्ति को खरपतवार हथिया लेते हैं वो ताक़त प्लास्टिक मल्चिंग तकनीक की वजह से ज़मीन में ही बनी रहती है और उस फसल के पौधों के ही काम आती है, जिसकी खेती को किसान ने चुना है।
- Millets Farming: मोटे अनाज की खेती के ज़रिये करें जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का मुक़ाबलाहरित क्रान्ति के तहत जैसे-जैसे गेहूँ और धान की पैदावार बढ़ी वैसे-वैसे भारतीय थालियों से पौष्टिक मोटे अनाजों से बने व्यंजन और इसकी प्रति व्यक्ति खपत घटती चली गयी। आम तौर पर धान के मुक़ाबले मोटे अनाजों की पैदावार कम है। लेकिन देश के कुछ ज़िलों में वर्षा आधारित मोटे अनाजों की खेती की उपज धान से बेहतर है। इसीलिए जलवायु अनुकूलन और अनाज उत्पादन बढ़ाने के लिए मोटे अनाज की खेती आज के वक़्त की मांग है।