बहुपरत खेती को बहुफ़सली या बहुस्तरीय खेती या मल्टीलेयर फ़ार्मिंग भी कहते हैं। ये ऐसी एकीकृत कृषि प्रणाली है जो पानी, खाद और मिट्टी के सकल उपयोग और प्रति इकाई में अधिकतम पैदावार प्राप्त करने के सिद्धान्त पर आधारित है। इसमें एक ही खेत से एक फ़सल के लिए ज़रूरी उर्वरक और सिंचाई से साल में 4-5 फ़सलों की पैदावार हासिल की जा सकती है। यही वजह है कि बहुपरत खेती से कम लागत में ज़मीन की प्रति इकाई से ज़्यादा उत्पादकता और उच्च आर्थिक लाभ प्राप्त होता है।
बहुपरत खेती की तकनीक को छोटे और सीमान्त किसानों के लिए स्थायी विकास का ज़रिया भी माना गया है, क्योंकि इससे ज़्यादा मुनाफ़ा के अलावा बेहतर खाद्य और पोषण सुरक्षा हासिल होती है। खेती का ये तरीका, कृषि के सभी कारकों यानी पानी, भूमि, खाद, वायु, सौर विकिरण जैसी बुनियादी चीज़ों के उपयोग और उत्पादकता में सुधार करता है। इसमें खरपतवार का प्रकोप भी कम झेलना पड़ना है।
बहुपरत खेती की विशेषताएँ
बहुपरत खेती, ऐसे छोटे, सीमान्त और प्रगतिशील किसानों के बीच ज़्यादा लोकप्रिय है जो ख़ुद उन्नत खेती करते हैं यानी जो खेतीहर मज़दूरों पर निर्भर नहीं हैं। इसे फल-सब्जी वाली बाग़वानी वाली फ़सलों और वृक्षारोपण आधारित फ़सलों के लिए बेहद उपयोगी पाया गया है। ये कृषि प्रणाली ख़ास तौर पर नारियल, सुपारी, कॉफ़ी, अदरक, पत्तेदार सब्जियों और काजू की फ़सलों के मामले में अत्यधिक सफल और टिकाऊ साबित होती है।
सामान्य या परम्परागत खेती में आमतौर पर किसानों की पूरी निर्भरता मौसम चक्र पर रहती है। इसीलिए मौसमी फ़सलों की खेती सबसे ज़्यादा प्रचलित है। लेकिन मौसमी खेती पर मौसमी उतार-चढ़ाव और आपदाओं का भारी दुष्प्रभाव भी पड़ता है। अक्सर किसानों को खड़ी फ़सल में नुकसान होने या अत्यधिक पैदावार की वजह से बाज़ार में लाभकारी दाम नहीं मिलने की समस्या झेलनी पड़ती है। ऐसी चुनौतियों का सामना करने में बहुपरत खेती बेहद मददगार साबित होती है, क्योंकि इस खेती में बाज़ार की माँग के अनुसार फ़सल उगाना आसान होता है।
बहुपरत खेती के लिए उपयुक्त फ़सलें
कृषि विशेषज्ञों ने बहुपरत खेती के लिए निम्न फ़सल समूहों को बेहद उपयुक्त पाया है:
- नारियल + कॉफी + काली मिर्च
- नारियल + केला + कॉफी
- आम + अमरूद + लोबिया
- नारियल + कटहल + कॉफी + पपीता + अनन्नास
- अरहर + मूँगफली + तिल
- अरहर + चावल (उपभूमि) + काला चना
- गन्ना + सरसों + आलू
- भिंडी + मूली + क्लस्टर बीन + चुकंदर
- पालक + मूली + प्याज़
- लौकी + रतालू + ककड़ी + फूल गोभी
- मक्का + मूँग + मूँगफली
ये भी पढ़ें – मल्टीलेयर फ़ार्मिंग: खेती में चमकानी है किस्मत तो अपनाएं Multilayer Farming, जानिए इसके बारे में
बहुपरत खेती का मूल सिद्धान्त
- वैज्ञानिक, पारिस्थितिक और आर्थिक सिद्धान्तों के अनुसार फ़सलों का विविधीकरण
- उत्पादकता प्रणाली को अधिकतम करके ज़्यादा लाभ पाना
- खेती के संसाधनों का उच्च दक्षता के साथ उपयोग करना
- अधिकतम लाभ के लिए सघन निवेश प्रणाली का उपयोग
- कृषि संसाधनों और पर्यावरण की दीर्घकालिक स्थिरता
बहुपरत खेती के विविध लाभ
- मिट्टी, पानी, खाद, श्रम जैसे खेती के अनिवार्य संसाधनों का प्रभावी उपयोग।
- जलवायु आधारित नुकसान को कम करना।
- मिट्टी की सेहत और उपजाऊपन को बढ़ाना।
- मिट्टी की नमी को वाष्पीकरण से होने वाले नुकसान में कमी लाकर सिंचाई का भरपूर इस्तेमाल करके पानी की बचत करना।
- खेत के प्रति इकाई क्षेत्रफल से ज़्यादा आमदनी हासिल करना।
- अनेक ऑफ़-सीजन फ़सलों की पैदावार करके पूरे साल अच्छी आमदनी और रोज़गार पाना।
- श्रम से अधिकतम उत्पादकता प्राप्त करना।
- मिट्टी के पोषक तत्वों को तेज़ और ज़्यादा बारिश में बहकर निकल जाने से बचाना तथा मिट्टी के कटाव और भूस्खलन जैसी आपदाओं का प्रभावी रोकथाम करना।
- विभिन्न गहराई पर पायी जाने वाले मिट्टी की नमी का भरपूर इस्तेमाल सुनिश्चित करना।
- फ़सल दर फ़सल मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों का इज़ाफ़ा करना।
- खरपतवार पर प्रभावी नियंत्रण करना।
- बाज़ार में किसी एक ही उपज की भरमार के ख़िलाफ़ आंशिक गारंटी हासिल करना।
- फ़सल पर कीटों और रोगों के प्रकोप को कम करना।
- ऐसी सूक्ष्म जलवायु परिस्थितियाँ विकसित करना जो क्रमागत फ़सलों की बेहतर उत्पादकता सुनिश्चित करे।
बहुपरत खेती के लिए आवश्यक क़दम
फ़सल और खेत का चयन: इस खेती के लिए चुनी जाने वाली फ़सलों की ऊँचाई और परिपक्वता अवधि अलग-अलग होनी चाहिए। इसके लिए उपजाऊ मिट्टी वाले वर्गाकार या आयताकार खेतों को अच्छा माना जाता है। खेत में जुताई के वक़्त FYM (Farmyard manure) कम्पोस्ट मिलाना चाहिए और कम्पोस्टिंग की प्रक्रिया को हमेशा अपनाना चाहिए। खेत में जुताई के दौरान ही एक अच्छी बीज क्यारी तैयार करना चाहिए।
बीजाई और सिंचाई: फ़सलों के लिए उच्च गुणवत्ता वाले शुद्ध, व्यवहारिक और ज़्यादा उपज देने वाले बीजों को ही चुनना चाहिए। इसे बीजजनित और मिट्टीजनित रोगों से मुक्त रखने बीजोपचार करना चाहिए। बहुपरत खेती में सिंचाई का ख़ास ध्यान रखना चाहिए। इसमें पानी न ज़्यादा हो और ना ही कम। इसके लिए औसत सिंचाई ही सबसे बढ़िया होती है।
ये भी पढ़ें – ऑर्गेनिक मल्टीलेयर फ़ार्मिंग (Multi Layer Farming) करने के लिए आईटी इंजीनियर ने छोड़ी जॉब, जानिए उनकी मार्केटिंग स्ट्रेटिजी
खाद और उर्वरक: खाद और उर्वरक के इस्तेमाल से पहले ये ध्यान रखना चाहिए कि बहुपरत खेती में जिन फ़सलों को लगाया गया है उनकी पोषक तत्वों की आवश्यकता अलग-अलग होती है। इसलिए, ‘बेसल डोज’ ज़्यादा पसन्द की जाती है। बेसल डोज का मतलब मिट्टी में डाली जाने वाली सभी किस्म की प्राथमिक खाद से होता है। इसके मित्र जीवाणु और मित्र फफूँद खाद भी शामिल होते हैं। खाद के रूप में खेतों में निर्मित कम्पोस्ट (FYM) के अलावा नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश का सन्तुलित इस्तेमाल होना चाहिए।
निराई-गुड़ाई और रोग प्रबन्धन: मल्टी-लेयर फार्मिंग में हाथ से की जाने वाली निराई-गुड़ाई और सिकलिंग विधि बहुत उपयोगी साबित होती है। इसके लिए खरपतवारनाशी का भी उपयोग कर सकते हैं। कीटों और रोगों से निपटने के लिए उपयुक्त कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है।
कटाई और पैकेजिंग: फ़सल तैयार होने पर उसके उसके लाभकारी हिस्सों का सुरक्षित ढंग से ऐसा भंडारण करना चाहिए जिससे बाज़ार में उसका बढ़िया दाम मिल सके। विभिन्न फ़सलों के लिए जिस तरह की पैकेजिंग उपयुक्त हो, उसी हिसाब से उपज को तैयार करके बाज़ार भेजना चाहिए।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।
ये भी पढ़ें:
- Greenhouse Farming Techniques: ग्रीनहाउस खेती क्या है? सब्सिडी से लेकर प्रशिक्षण तक जानें सब कुछइतिहास की किताबों के अनुसार, रोमन किंग टाइबेरियस ककड़ी जैसी दिखने वाली सब्जी रोज़ खाते थे, रोमन किसान सालभर इसे उगाते थे, जिससे वो सब्जी उनकी खाने की प्लेट में हमेशा रहे। ये सब्जी ग्रीनहाउस तकनीक के ज़रिये ही उगाई जाती थी।
- Modern Farming Methods: खेती की आधुनिक तकनीकें जिसे अपनाकर किसान कर सकते हैं सफ़ल खेतीआज के इस मॉर्डन युग में तकनीक का इस्तेमाल हर क्षेत्र में बढ़ा है, ऐसे में भला कृषि कैसे इससे पीछे रह सकती है। आधुनिक तकनीकों से लेकर उपकरणों तक के इस्तेमाल ने किसानों के लिए खेती को न सिर्फ आसान बना दिया है, बल्कि इसे अधिक मुनाफे का सौदा बना दिया है।
- Rice Bran Oil vs Sunflower Oil: जानिए राइस ब्रान ऑयल-सनफ्लॉवर ऑयल में अंतर और ख़ूबियों के साथ इसका बाज़ारराइस ब्रान ऑयल को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार नेफेड के फोर्टिफाइड ब्रैन राइस ऑयल को ई-लॉन्च किया है।राइस ब्रैन ऑयल की मार्केटिंग सभी नेफेड स्टोर्स और ऑनलाइन प्लेटफार्म पर हो रही है।वहीं साल 2024-2032 के दौरान इंडियन सनफ्लावर ऑयल मार्केट 7 फीसदी की CAGR प्रदर्शित करेगा।
- Lemongrass: जानिए लेमनग्रास की खेती में जुड़ी अहम बातें प्रोफ़ेसर डॉ. पंकज लवानिया से, उत्पादन से लेकर प्रोसेसिंग तकबुंदेलखंड जैसे इलाके में जहां पानी की समस्या है और बड़ी मात्रा में ज़मीन बंजर पड़ी रहती है, लेमनग्रास की खेती यहां के किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है। इसकी खेती कम पानी में भी आसानी से की जा सकती है।
- Eucalyptus Farming: सफेदा की क्लोनल किस्मों से किसान कर सकते हैं बढ़िया कमाई, जानिए खेती की तकनीकसफेदा की खेती लकड़ी के लिए की जाती है। इसकी लकड़ी का उपयोग बड़े सामान की लदाई करने वाली पेटियां बनाने के साथ ही ईंधन, फर्नीचर, हार्डबोर्ड और पार्टिकल बोर्ड बनाने में किया जाता है। इसकी मांग हमेशा ही रहती है।
- कैसे औषधीय पौधों की खेती पर किसानों की मदद करता है ये कृषि विश्वविद्यालय, प्रोफ़ेसर विनोद कुमार से बातचीतबुंदेलखंड के किसानों को पारंपरिक खेती के अलावा औषधीय पौधों की खेती के लिए प्रेरित करने के मकसद से झांसी के रानी लक्ष्मीबाई कृषि विश्वविद्यालय में औषधीय पौधों का उद्यान बनाया गया है।
- Aeroponic Technique से बंद कमरे में केसर की खेती, हिमाचल के गौरव ने इंटरनेट से सीख कर शुरू किया केसर उत्पादनगौरव Aeroponic Technique से केसर की खेती करते हैं। इस तकनीक में बंद कमरे में केसर को उगाते हैं। बंद कमरे में कश्मीर के वातावरण को बनाने की कोशिश करते हैं। ये तकनीक मिट्टी रहित होती है।
- Soil Health Management: मिट्टी की जांच से जुड़ी ये बातें जानते हैं आप? मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन कितना ज़रूरी?आपने वो कहावत तो सुनी ही होगी कि नींव मज़बूत होगी, तभी तो मज़ूबत इमारत बनेगी। ठीक इसी तरह मिट्टी की सेहत अच्छी रहेगी, तभी तो अधिक उपज प्राप्त होगी। रसायनों के बढ़ते इस्तेमाल से मिट्टी की उपजाऊ शक्ति लगातार घट रही है, ऐसे में इसकी सेहत बनाए रखने के लिए मृदा प्रबंधन बहुत ज़रूरी… Read more: Soil Health Management: मिट्टी की जांच से जुड़ी ये बातें जानते हैं आप? मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन कितना ज़रूरी?
- Crop Rotation Strategies: खेती में फसल चक्र की कितनी अहम भूमिका? डॉ. राजीव कुमार सिंह ने दिया IFS Model का उदाहरणखेती से अधिक मुनाफा कमाने के लिए किसानों को इसकी कुछ बुनियादी नियमों के बारे में पता होना चाहिए। जैसे कि फसल चक्र। ये मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार और उत्पादन बढ़ाने के लिए बहुत ज़रूरी है, मगर बहुत से किसान इस नियम को भूलकर लगातार एक ही फसल उगा रहे हैं जिससे उन्हें नुकसान उठाना पड़ रहा है।
- क्या हैं Urban Farming Trends? कैसे शहरी खेती बन रही कमाई का ज़रिया?जब शहरों में लोग अपने शौक से थोड़ा आगे बढ़कर घर की छत, बालकनी, कम्यूनिटी गार्डन और घर के नीचे की जगह या घर के अंदर की खाली जगह में वर्टिकल गार्डन बनाकर खेती करने लगते हैं, तो इसे ही शहरी खेती कहा जाता है।
- Integrated Pest Management: क्यों एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM तकनीक) फसलों के लिए है ज़रूरी? जानिए विशेषज्ञ सेखेती की लागत को कम करने और इसे ज़्यादा लाभदायक बनाने के लिए प्रमाणित व उपचारित बीजों का इस्तेमाल, सही मात्रा में उर्वरकों के उपयोग और सिंचाई की उचित व्यवस्था के साथ ही एकीकृत कीट प्रबंधन यानि Integrated Pest Management भी ज़रूरी है।
- Agriculture Equipment : Bed Maker Machine किसानों के लिए है कितनी उपयोगी और मिलेगी कितनी Subsidy?मल्टी पर्पस Bed Maker Machine किसानों के समय की बचत करने के साथ-साथ उनकी आमदनी बढ़ाने में मदद करती है।
- Fish Farming Business: मछली पालन व्यवसाय से जुड़ी अहम जानकारी, जानिए क्या है विशेषज्ञों और अनुभवी मछली पालकों की राय?मछली पालन उद्योग का असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा है। देश के मछुआरों और मछली पालन उद्योग एक बड़े सेक्टर के रूप में उभर कर आया है। भारतीय मत्स्य पालन की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 1980 के दशक में जो मछली उत्पादन 36 फ़ीसदी था, वो बढ़कर आज के वक्त में 70 फ़ीसदी पर पहुंच गया है। जानिए मछली पालन से जुड़े अहम बिंदुओं के बारे में।
- Ragi Crop: रागी की फसल से क्या-क्या तैयार किया जा सकता है? रागी की खेती से जुड़ी अहम जानकारीरागी की फसल (Ragi Crop) मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में सबसे ज़्यादा खेती होती है। केरल, कर्नाटक राज्यों में इसे मुख्य भोजन के रूप में खाया जाता है।
- Sindoor Plant: सिंदूर की खेती कैसे होती है? सिंदूर के पौधे से क्या-क्या बनता है और कहां से लें ट्रेनिंग?आपने अभी तक कई चीज़ों की खेती के बारे में सुना होगा, लेकिन क्या कभी सिंदूर की खेती के बारे में सुना है? कम ही लोग जानते हैं कि सिंदूर का पौधा भी होता है, जिससे ऑर्गेनिक लाल रंग का सिंदूर बनता है। साथ ही और कई उत्पाद बनाए जाते हैं। जानिए सिंदूर का पौधा कैसे उगाया जाता है और सिंदूर की खेती से जुड़ी अहम जानकारियां सीधा एक्सपर्ट से।
- Agriculture Drone क्या है? कृषि ड्रोन में सब्सिडी के लिए कौन सी योजनाएं चलाई जा रही हैं?Agriculture Drone की खरीद के लिए महिला समूह को ड्रोन की कीमत का 80 प्रतिशत या अधिकतम 8 लाख रुपये तक की मदद दी जा रही है। योजना के तहत SC-ST, छोटे व सीमांत, महिलाओं और पूर्वोत्तर राज्यों के किसानों को ड्रोन का 50 प्रतिशत या अधिकतम 5 लाख रुपये अनुदान दिया जा रहा है।
- कैसे महुआ के उत्पाद बनाकर महिलाओं के इस समूह ने कमाल किया है? Bastar Foods आज बना ब्रांडमहुआ एक तरह का फूल है जिसमें बहुत ही तेज़ महक होती है, आमतौर पर इसे शराब बनाने के लिए जाना जाता है, लेकिन अब इससे कई तरह की स्वादिष्ट और हेल्दी चीज़ें बनाई जा रही हैं। जानिए कैसे महुआ के उत्पाद (Mahua Products) बनाकर बस्तर की गुलेश्वरी ठाकुर और उनकी टीम ने इससे लाखों का बिज़नेस खड़ा कर दिया है।
- अगरवुड पेड़ की खेती (Agarwood Farming): सोने-हीरे से भी ज़्यादा महंगी अगरवुड की लकड़ी!अगरवुड पेड़ की खेती में एक एकड़ में 400 से 450 पौधे लग सकते हैं। 12 फ़ीट चौड़ाई और 10 फ़ीट लंबाई की दूरी पर पौधे को रोपना चाहिए। अगरवुड प्लांट की कीमत 200 रुपए होती है।
- Rose Varieties: छत पर उगा दी गुलाब की 150 किस्में, जानिए Terrace Gardening की टिप्स अनिल शर्मा सेफूलों की सुंदरता भला किसे आकर्षित नहीं करती, मगर हर कोई इसे घर में उगा नहीं पाता है। क्योंकि इसमें मेहनत लगती है, मगर झांसी के अनिल शर्मा ने अपने शौक को पूरा करने के लिए एक दो नहीं, बल्कि छत पर 700 गमले लगाए हुए हैं। जानिए उनसे गुलाब की किस्मों से लेकर Terrace Gardening के टिप्स।
- Hybrid Tomato Varieties In India: हाइब्रिड टमाटर की इन 10 उन्नत किस्मों की खेती कितनी फ़ायदेमंद?भारत में उच्च उपज वाली टमाटर की किस्मों (High Yield Tomato Varieties In India) की खेती से किसान अच्छा लाभ ले सकते हैं। कृषि वैज्ञानिकों की ओर से ऐसी कई किस्में तैयार की गई हैं। पढ़िए ऐसी ही किस्मों में से उन 10 हाइब्रिड टमाटर की किस्मों के बारे में जो टमाटर की अच्छी उपज देने के लिए जानी जाती है।