बीज उत्पादन: पद्मश्री किसान चंद्रशेखर सिंह किसानों तक पहुंचा रहे उन्नत किस्म के बीज, 15-20 फ़ीसदी बढ़ती है पैदावार
उन्नत बीजों पर पिछले 35 साल से कर रहे काम
फसल तभी अच्छी होगी जब बीज उन्नत किस्म के और अच्छी गुणवत्ता वाले होंगे। इस बात को किसान चंद्रशेखर सिंह अच्छी तरह से समझते हैं, तभी तो वह नए किस्म के बीजों पर 30-35 सालो से रिसर्च कर रहे हैं। बीज उत्पादन करके किसानों को उन्नत बीज उपलब्ध कराने की दिशा में काम कर रहे हैं।
जैसे मज़बूत इमारत के लिए नींव का मज़बूत होना ज़रूरी है, वैसे ही अच्छी फसल के लिए उन्नत किस्म के बीज ज़रूरी है। अच्छे बीज होंगे तो पैदावार अपने आप 20-25 फ़ीसदी अधिक होगी। किसानों को उन्नत किस्म के बीज प्राप्त हों, इसके लिए वाराणसी के किसान चंद्रशेखर सिंह लगातार बीजों पर रिसर्च का काम कर रहे हैं। उन्नत बीजों की खोज में लगे हुए हैं। उत्तर प्रदेश के 50 से अधिक ज़िलों में इनके बीज़ों की मांग है। अपने प्रयोगों और सफर के बारे में चंद्रशेखर सिंह ने किसान ऑफ इंडिया के संवाददाता गौरव मानराल से ख़ास बात की।
मिल चुका है पद्मश्री सम्मान
वाराणसी के राजातालाब, टड़िया के रहने वाले किसान चंद्रशेखर सिंह ने बताया कि नए किस्म के बीजों पर वह 30-35 साल से रिसर्च का काम कर रहे हैं। उनके द्वारा विकसित धान की 8 किस्में और गेहूं की एक किस्म भारत सरकार द्वारा रजिस्टर्ड हो चुकी है। कृषि क्षेत्र में योगदान के लिए 2021 में उन्हें पद्मश्री से भी सम्मानित किया जा चुका है। बाज़ार में अच्छी पैदावार देने वाली नई किस्म के बीजों की उपलब्धता सुनिश्चित करके वह किसानों की मदद करते हैं।
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धान की किस्में
चंद्रेशखर द्वारा ईज़ाद की गई धान की कुछ उन्नत किस्मों में शामिल हैं-
खुशबू 100- यह खुशबूदार है और 120 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। वाराणसी के आसपास के इलाकों में किसान इसे बहुत पसंद करते हैं। इसका चावल खाने में स्वादिष्ट होता है।
वसुंधरा दामिनी- इसमें 14-16 क्विंटल प्रति बीघा पैदावार मिलती है और फसल 130-135 दिन में तैयार हो जाती है।
मणिरत्नम- लाल चावल, जिसे चंद्रशेखर ने मणिरत्नम नाम दिया है। यह किस्म बहुत ही पौष्टिक होती है। उनका कहना है कि इसमें आयरन और प्रोटीन की भरपूर मात्रा होती है। यह शुगर के मरीज़ों के लिए भी फ़ायदेमंद है।
अरहर की उन्नत किस्म पर कर रहे काम
चंद्रशेखर का कहना है कि वह अरहर की उन्नत किस्म वसुंधरा बादशाह पर भी काम कर रहे हैं। यह अधिक पैदावार देने वाली किस्म है, जो 30-32 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन देती है। यह 230 दिन में पककर तैयार हो जाती है।
बीज़ों पर रिसर्च क्यों शुरू किया?
चंद्रशेखर सिंह बताते हैं कि वह किसान परिवार से हैं और उन्होंने वकालत की हुई है। उनके पिताजी भी खेती करते थें तो लिहाज़ा खेती-किसानी से लगाव था। वो कुछ अलग करना चाहते थे। उन्होंने खेती के दौरान ही अच्छी किस्म के बीजों को छांटना शुरू कर दिया।
उन्होंने कहा कि बीज अच्छे होंगे तो 15-20 फ़ीसदी उत्पादन बढ़ जाता है। हर किसान अपना उत्पादन बढ़ाना चाहता है। किसानों तक उन्नत बीज पहुंचाने के लिए उन्होंने सीड प्रोसेसिंग प्लांट लगाया, जिससे गांव के सैंकड़ों लोगों को रोज़गार मिला। चंद्रशेखर का कहना है कि उनका शुरू से ही सपना था कि रोज़गार के लिए उन्हें कहीं बाहर न जाना पड़े और अपने साथ ही अन्य लोगों को भी वह रोज़गार मुहैया कराना चाहते थें। इसलिए गांव में ही सीड प्रोसेसिंग प्लांट लगवाया।
बीजों की कीमत
अपनी रिसर्च की हुई किस्मों को वह 60 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचते हैं। सुगंधित धान 80-100 रुपये और लाल चावल के बीज 150 रुपये किलो तक बिकते हैं। अरहर भी 150 रुपये प्रति किलो की दर से बेचते हैं। इससे अच्छी गुणवत्तापूर्ण फसल मिलती है।
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