मूंग-उड़द की फसल को हानिकारक रोग-कीटों से कैसे बचाएं? जानिए पौध सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ. रूद्र प्रताप सिंह से
सही समय पर हो प्रबंधन तो फसल को नुकसान से बचाया जा सकता है
मूंग-उड़द की फसल को प्रमुख रोगों एवं हानिकारक कीटों से कैसे बचाया जाए, इस पर किसान ऑफ़ इंडिया की कृषि विज्ञान केन्द्र आजमगढ़ के पौध सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ. रूद्र प्रताप सिंह से विशेष बातचीत।
उड़द एवं मूंग, भारत में पुरानी और कम समय में कम लागत में उगाई जाने वाली फसल है। इनकी खेती लगभग सभी राज्यों में की जाती है। इस समय खरीफ़ की उड़द एवं मूंग की फसलें खेतों में खड़ी होंगी। इन फसलों पर कई रोगों और हानिकारक कीटों का प्रकोप होता है। इन रोगों और हानिकारक कीटों की सही पहचान करके उचित समय पर नियंत्रण कर लिया जाये तो, उपज का काफ़ी भाग नष्ट होने से बचाया जा सकता है। उड़द एवं मूंग के प्रमुख रोगों एवं हानिकारक कीटों के नियंत्रण पर कृषि विज्ञान केन्द्र आजमगढ़ के पौध सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ. रूद्र प्रताप सिंह ने किसान ऑफ़ इंडिया को विस्तार से जानकारी दी।
फली छेदक कीट नियंत्रण उपाय
पौध सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ. रूद्र प्रताप सिंह ने बताया कि उड़द और मूंग के हानिकारक कीटों में फली छेदक कीट सबसे हानिकारक कीट है। इसकी सुंडियां पहले उड़द एवं मूंग की पत्तियों को खाती हैं। बाद में जैसे ही फलियां बनना शुरू होती हैं, तो फलियों को भेदकर उनके विकसित हो रहे दाने को खा जाती हैं। उन्होंने बताया कि फली छेदक कीट की रोकथाम के लिए 5 फेरोमेन ट्रैप प्रति हेक्टेयर लगाने चाहिए। इसके अलावा, चिड़ियों के रहने के लिए 60-70 डंडियां प्रति हेक्टेयर लगानी चाहिए। इसका फ़ायदा ये होगा कि चिड़ियां इन कीटों को अपने आहार के रूप में खाती हैं।
इस कीट के जैविक नियंत्रण के लिए नीम आधारित उत्पादों जैसे-नीम बाण, नीम गोल्ड, अचूक, निमिन आदि की 3 से 4 मिलीलीटर मात्रा को प्रति लीटर पानी या नीम बीज सत की 5 मिलीलीटर मात्रा को प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
फली छेदक कीट के रासायनिक नियंत्रण के लिए इण्डाक्साकार्व 15.8 फ़ीसदी ई.सी. की एक मिलीलीटर दवा का प्रति लीटर पानी या स्पाइनोसैड 45 प्रतिशत एस.पी. की 1 मिलीलीटर दवा को प्रति 2 लीटर पानी में मिलाकर फसल मे फूल आने और 50 प्रतिशत फली आने पर छिड़काव करना चाहिए।
माहूं कीट की कैसे करें रोकथाम?
डॉ. रूद्र प्रताप सिंह के अनुसार, माहूं के शिशु एवं प्रौढ़, पत्तियों एवं फूलों का रस चूसते हैं। इससे पत्तियां सिकुड़ जाती हैं और फूल मुड़ने लगते हैं एवं गिर जाते हैं। फलस्वरूप फलियां कम लगती हैं। जैविक नियंत्रण के लिए नीम आधारित उत्पादों जैसे-नीम बाण, नीम गोल्ड की 3-4 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी या नीम बीज सत की 5 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
रासायनिक नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोरोपिड 17.8 प्रतिशत एस.एल. की 3 मिलीलीटर मात्रा को प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए।
सफेद मक्खी कीट क्या है निवारण?
पौध सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ. सिंह ने बताया कि सफेद मक्खी के शिशु एवं प्रौढ, दोनों ही पौधों की पत्तियों एवं कोमल तनों से रस चूसकर फसल को हानी पहुंचाते हैं।यह कीट पीला मोजैक रोग वाइरस को अधिक फैलाता है, जिससे पत्तियां पीली पड़कर सूखने लगती हैं। प्रभावित पौधे से उत्पादन नहीं मिल पाता है।
इस कीट के जैविक नियंत्रण के लिए नीम बाण या निमिन की 3 से 4 मिलीलीटर मात्रा को प्रति लीटर पानी या नीम बीज सत की 5 मिलीलीटर मात्रा को प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। रासायनिक नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोरोपिड 17.8 प्रतिशत एस.एल. की 3 मिलीलीटर दवा को 10लीटर पानी में मिलाकार छिड़काव करना चाहिए
उड़द एवं मूंग के प्रमुख रोग
पीला मोजेक रोग की कैसे करें रोकथाम?
पौध सुरक्षा विशेषज्ञ के अनुसार, उड़द एवं मूंग में पीला मोजेक रोग के कारण फसल को काफ़ी नुकसान होता है। इसे पीला चितेरी रोग भी कहते हैं। यह एक वायरस जनित रोग है, जो सफेद मक्खी द्वारा फैलता है। रोगी पौधो की पत्तियों पर पीले सुनहरे चकत्ते पाये जाते हैं। रोग की उग्र अवस्था में पूरी पत्ती पीली पड़ जाती है। इस रोग से ग्रसित पौधों में पुष्प एवं फलियां स्वस्थ्य पौधों की अपेक्षा कम लगती हैं। ज़्यादा प्रकोप होने पर फलियां या तो नहीं बनती अथवा बहुत छोटी बनती हैं। दाने सिकुड़कर छोटे हो जाते हैं। यह रोग मूंग की फसल में सफेद मक्खी से फैलता है। इस रोग के निवारण के लिए ऑक्सीडेमिथेन मिथाइल या डाइमेथोएट को पानी में घोलकर आवश्यकतानुसार छिड़काव करना चाहिए।
लीफ़ स्पाट रोग क्या है निवारण
डॉ. रूद्र प्रताप सिंह ने बताया कि पत्तियों का धब्बा रोग भी उड़द एवं मूंग का एक फफूंद जनित रोग है। पत्तियों पर भूरे रंग के गोलाई लिए हुए कोणिय धब्बे बनते हैं, जिसमें बीच का भाग हल्के राख के रंग का या हल्का भूरा तथा किनारा लाल बैंगनी रंग का होता है। ये धब्बे तनों पर भी पाये जा सकते हैं। रोगी पौधों की पत्तियां फूल लगने के समय गिर जाती हैं। रोग की उग्र अवस्था में फलियों पर धब्बों के बनने से उनका रंग काला पड़ जाता है। बीज भी सिकुड़कर हल्के बनते हैं। लीफ़ स्पाट रोग के नियंत्रण के लिए क्लोरोथैलोनील 75 प्रतिशत डब्ल्यू.पी. की 2 ग्राम दवा का प्रति लीटर पानी या कैब्रियोटांप 60 प्रतिशत डब्ल्यू.जी. की 1 ग्राम दवा का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर 2 से 3 छिड़काव 10 दिनों के अन्तराल पर करना चाहिए।
पत्ती मोड़क यानी लीफकर्ल रोग की कैसे करे रोकथाम?
डॉ. सिंह ने बताया कि उड़द एवं मूंग में लीफरकर्ल रोग में पत्तियां सामान्य से अधिक वृद्धि और बाद में इनमें पतियां मुड़ने लगती हैं। ये पत्तियां छूने पर सामान्य पत्तियों से अधिक मोटी तथा खुरदुरी होती हैं। इस रोग का प्रसार माहूं कीट के द्वारा होता है। प्रसार करने वाले माहूं कीट को इमिडाक्लोरोपिड 17.8 प्रतिशत एस.एल. की 3 मिलीलीटर दवा को प्रति 10 लीटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए।
समेकित कीट एवं रोग प्रबंधन
खेत की ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई करनी चाहिए। रोग अवरोधी प्रजातियों की बुवाई चाहिए। खेत को खरपतवारों से मुक्त रखना चाहिए, जिससे कीटों रोगों को संरक्षण न प्राप्त हो सके। बीजों को हमेशा उपचारित करके बोना चाहिए। इमिडाक्लोप्रिड 5 ग्राम प्रति किलो की दर से और एक ग्राम कारबाडज़िम प्रति किलो की दर से बीज को उपचारित कर कीट और रोगों को नियंत्रण किया जा सकता है। उड़द के साथ मक्का, ज्वार, बाजरा की सह फसली खेती करनी चाहिए। कीट व रोग से प्रभावित पौधों को उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए।
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