मछली के साथ बत्तख पालन यानी दोगुना लाभ, एक्सपर्ट एनएस रहमानी से जानिए कैसे शुरू करें Fish cum Duck farming
Fish cum Duck farming से दोगुना लाभ कमाने का तरीका जानिए
मछली के साथ बत्तख पालन व्यवसाय को लेकर किसान ऑफ़ इंडिया ने उत्तर प्रदेश स्थित मत्स्य विभाग, वाराणसी के उप निदेशक एनएस रहमानी से ख़ास बातचीत की।
आज के समय मे खेती के साथ किसान आय बढ़ाने के लिए कई सह-व्यवसायों को अपनाते हैं। इन व्यवसायों से वह अपनी आर्थिक स्थिति को मज़बूत करते हैं। आज हम आपको मछली के साथ बत्तख पालन के बारे में बताने वाले हैं। बहुत से लोगों के लिए बेशक ही ये नया व्यवसाय हो, लेकिन यह उनके लिए लाभकारी व्यवसाय हो सकता है, जो मछली पालन करते हैं। मछली के साथ बत्तख पालन व्यवसाय को लेकर किसान ऑफ़ इंडिया ने उत्तर प्रदेश स्थित मत्स्य विभाग, वाराणसी के उप निदेशक एनएस रहमानी से ख़ास बातचीत की।
खेती और इससे जुड़े व्यवसायों में हर वक्त कुछ न कुछ अपडेट होता रहता है। बहुत सारी नई चीज़े सामने आती हैं। लेकिन कुछ पद्धतियां ऐसी हैं, जो बहुत पुराने ज़माने से चली आ रही हैं और मॉडर्न रिसर्च में भी उन्हें सही पाया गया है। इसमें मछली के साथ बत्तख पालन (Fish cum Duck farming) भी है। इसे अपनाकर मछली पालक दोहरा लाभ ले सकतें है।

बत्तख-मछली एक दूसरे के साथी
मत्स्य विभाग, वाराणसी के उप निदेशक एनएस रहमानी बताते हैं कि अक्सर आपने देखा होगा तालाब में जहां भी पानी की उपलब्धता होती है, वहां आपको बत्तखों का झुंड देखने को मिल जाएगा। अगर मछली पालन के साथ बत्तख पालन किया जाए तो दोनों ही व्यवसाय को एक-दूसरे से सहयोग मिलता है और उत्पादन लागत में काफ़ी कमी आती है।
मछली के आहार पर आपको लगभग 75 प्रतिशत कम खर्च आएगा। दूसरी तरफ़ बत्तख तालाब की गंदगी को खाकर उसकी साफ़-सफ़ाई कर देते हैं। बत्तखों के पानी में तैरने से तालाब का ऑक्सीज़न लेवल भी बढ़ता है। इससे मछलियो की अच्छी बढ़वार भी होती है।

यह भी पढ़ें: Ornamental Fish Farming: सजावटी मछली पालन का वैज्ञानिक तरीका अपनाया, इस युवक की आमदनी में हुआ इज़ाफ़ा
मछली के साथ बत्तख पालन व्यवसाय करने की तकनीक
अगर मछली पालन के साथ बत्तख पालन करना चाहते हैं तो बारहमासी तालाबों का चयन किया जाता है, जिसकी गहराई कम से कम 1.5 मीटर से 2 मीटर होनी चाहिए। 2 स्क्वायर फ़ीट प्रति बत्तख की जगह के अनुसार, तालाब के ऊपर या किसी किनारे आवास बना सकते हैं। बत्तख दिन में तालाबों में घूमते हैं और रात में उन्हें आवास की ज़रूरत होती है। तालाब पर बांस, लकड़ी से बत्तख का बाड़ा बनाना चाहिए। बाड़े हवादार और सुरक्षित होने चाहिए।
बत्तखो में ‘इंडियन रनर’ अच्छी प्रजाति मानी जाती है। अंडों के लिए ‘खाकी कैम्पबेल’ सबसे अच्छी प्रजाति मानी जाती है। इनसे सालभर में लगभग 250 तक अंडे मिल जाते हैं। आमतौर पर बत्तखें 24 सप्ताह की उम्र में अंडे देना शुरू कर देती हैं। बत्तखें 2 साल तक अंडे देती हैं। अगर एक एकड़ का तालाब है तो आसानी से 250 से 300 बत्तख पाल सकते हैं।

बत्तख का आहार प्रबंधन
उपनिदेशक एनएस रहमानी आगे जानकारी देते हैं कि आहार पर आपको लगभग 30 प्रतिशत कम खर्च आएगा। बत्तख को 120 ग्राम दाना रोज देना ज़रूरी होता है, लेकिन मछली के साथ बत्तख पालन में 60-70 ग्राम दाना देकर आहार की मात्रा पूरी कर सकते हैं। इसके अलावा, बत्तख के पानी में तैरने से पानी का ऑक्सीजन लेवल मेंटेन रहता है, जो मछलियों के लिए बहुत ज़रूरी है। साथ ही बत्तख के बीट से मछलियों को भोजन मिल जाता है, यानी उनके आहार पर भी कम खर्च होता है।
उन्होंने बताया कि मछलियों को भोजन में सरसों की खली, धान की भूसी, मिनरल मिक्स्चर, घास बरसीम, जई, सब्जी का छिलका और बाज़ार में तैयार फ़ीड देनी चाहिए। इन सबको आप बोरे में बंडल बनाकर आधा तालाब में डूबोकर लटका सकते हैं।

मछली पालन तकनीक
एनएस रहमानी ने कहा कि जब मछली पालन के साथ बत्तख पालन करना हो तो तालाब में मछली के स्पॉन नहीं डालने चाहिए क्योंकि बत्तख उन्हें खा सकते हैं। आपको नुकसान होगा। इसलिए एक एकड़ तालाब में 4 से 5 हज़ार फिंगरलिंग डालनी चाहिए। इसमें अलग-अलग प्रजाति की मछलियां शामिल हैं। इन प्रजातियों का भी एक ख़ास अनुपात आपको ज़्यादा फ़ायदा दिला सकता है। अलग-अलग प्रजाति की मछलियां तालाब के अंदर अलग-अलग स्तरों पर मौजूद भोजन पर पलती हैं।
मछली के साथ बत्तख पालन से दोगुना लाभ
डॉ. रहमानी ने बताया कि 6 से 9 महीने के अंदर एक से 1.5 किलो वजन तक की मछलियां हो जाती हैं। एक एकड़ तालाब क्षेत्र में 20 से 25 क्विंटल मछली का उत्पादन हो जाता है, जिससे 5 से 6 लाख रुपये का शुद्ध मुनाफ़ा कमाया जा सकता है। वहीं दूसरी तरफ़ बत्तख पालन से सालाना 3 से 4 लाख रूपये मुनाफ़ा अर्जित किया जा सकता है।

अपने देश की बात करें तो बत्तख पालन अंडा और मीट के लिए पूर्वी भारत के पूरे इलाक़े में काफ़ी प्रचलित व्यवसाय है। बत्तख पालन करने वाले किसान बत्तख के अंडे पूर्वी भारत के राज्यो में भेजकर अच्छा लाभ कमा सकते हैं।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या kisanofindia.mail@gmail.com पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

ये भी पढ़ें:
- Gerbera Farming: जरबेरा फूल की खेती से इन ग्रामीण महिलाओं ने शुरू किया अपना बिज़नेस, जानिए इस फूल की ख़ासियतजरबेरा फूल ने उड़ीसा के गंजम ज़िले की महिला किसानों की ज़िंदगी किस तरह से बदल दी और उन्हें आजीविका का साधन दिया, जानिए इस लेख में।
- Millets Farming: बाजरे की खेती में रिज फेरो तकनीक का इस्तेमाल किया, उत्पादन भी बढ़ा और आमदनी भीआमतौर पर किसी भी फसल की अच्छी खेती के लिए अच्छी बरसात ज़रूरी है, मगर बाजरे की खेती कम बरसात वाली जगह में ज़्यादा फलती-फूलती है। बाजरे की फसल गर्म इलाकों और कम पानी वाली जगहों पर अच्छी तरह होता है।
- जानिए कैसे मांगुर मछली पालन छत्तीसगढ़ के किसानों के लिए बेहतरीन आमदनी का ज़रिया बन रहा हैमीठे पानी की मांगुर मछली की बाज़ार में काफ़ी मांग है और ये पौष्टिक तत्वों से भी भरपूर होती है। ऐसे में मांगुर मछली पालन और इसकी हैचरी यानी बीज उत्पादन से किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं।
- Blue Oyster Mushroom: जानिए ब्लू ऑयस्टर मशरूम की खेती करने का सरल तरीका और लागत-मुनाफ़े का गणितपौष्टिक गुणों से भरपूर होने के कारण मशरूम की मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इससे किसानों को कम लागत में अतिरिक्त आमदनी का एक अच्छा ज़रिया मिल गया है। मशरूम की एक नई किस्म हैं ब्लू ऑयस्टर मशरूम जिसे बहुत ही कम लागत के साथ आसानी से उगाकर अच्छा मुनाफ़ा कमाया जा सकता है।
- जैविक खाद: कभी रासायनिक खाद का इस्तेमाल करने वाले रंजीत सिंह ने क्यों चुनी Organic Fertilizers की राह? जानिए कैसे बनाएं खादजैविक खाद बनाने के लिए सबसे ज़रूरी है देसी गायों को पालना। गाय का गोबर और मूत्र जैविक खेती के आवश्यक तत्व हैं। गाय के गोबर की खाद खेतों के लिए बेहतरीन पोषण का काम करती है, वहीं गोमूत्र का इस्तेमाल कीटनाशकों के रूप में होता है। वो खेती में नये प्रयोग भी करते हैं और अपने अनुभवों के ज़रिये इसे बेहतर बनाने के लिए सलाह-मशविरा भी देते हैं।
- उन्नत कृषि तकनीक: आर्थिक तंगी के चलते नहीं कर पाए 12वीं के बाद पढ़ाई, अब 8 लाख रुपये तक की आमदनीज़्यादा ज़मीन और सारी सुविधाओं के बावजूद भी किसानों को यदि खेती से पर्याप्त आमदनी नहीं हो पाती है, तो इसकी वजह है उन्नत तकनीक की कमी। उन्नत कृषि तकनीक के इस्तेमाल से ही राजस्थान के एक किसान ने सफलता की ऐसी मिसाल पेश की है, कि अब उनकी गिनती अपने इलाके के प्रगतिशील किसानों में होती है।
- एकीकृत कृषि: झूम खेती पर निर्भर थे किसान, सही तकनीक के इस्तेमाल से मिली तरक्कीमिज़ोरम के आदिवासी इलाकों में खेती की पारंपरिक तकनीक यानी झूम खेती लोकप्रिय है, मगर इससे न सिर्फ़ मिट्टी की उर्वरता कम होती है, बल्कि वनस्पतियों को जलाने से पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता है। ऐसे में एकीकृत कृषि प्रणाली (IFS) मिज़ोरम के किसानों के लिए उम्मीद की नई किरण बनकर उभरी है।
- औषधीय पौधे सिरोपिजिआ बल्बोसा के बारे में जानते हैं आप? इसकी खेती के कई फ़ायदेशहरीकरण, जागरुकता की कमी और वनस्पतियों के दोहन के कारण कई महत्वपूर्ण वनस्पतियां लुप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी हैं। इन्हीं में से एक है सिरोपिजिआ बल्बोसा। औषधिय गुणों से भरपूर इस पौधे की खेती से जैव विविधता को बचाए रखा जा सकता है।
- बायोफ्लॉक मछली पालन तकनीक से Fish Farming करना हुआ आसान, कम पानी कम जगह में बढ़िया उत्पादनमछली पालन अतिरिक्त आमदनी का अच्छा ज़रिया है, लेकिन जिन इलाकों में अच्छी बरसात नहीं होती वहां नदी, तालाब व जलाशयों में मछली पालन करने में कठिनाई आती है। ऐसी जगहों के लिए बायोफ्लॉक मछली पालन तकनीक अच्छा विकल्प है।
- सेब की नर्सरी चलाने वाले पवन कुमार ने अपनाई रूटस्टॉक मल्टीप्लीकेशन तकनीक, चार गुना बढ़ी आमदनीपारंपरिक रूटस्टॉक वाले सेब के पौधों की मांग घटने से हिमाचल के रहने वाले पवन कुमार गौतम का सेब की नर्सरी का उद्योग डगमगा गया था, मगर इस तकनीक ने उन्हें नई राह दिखाई। जानिए क्या है रूटस्टॉक मल्टीप्लीकेशन तकनीक।
- गन्ने की खेती में करें प्राकृतिक हार्मोन्स का इस्तेमाल, पाएँ दो से तीन गुना ज़्यादा पैदावार और कमाईइथ्रेल और जिबरैलिक एसिड जैसे पादप वृद्धि हार्मोन्स के इस्तेमाल से सिंचाई और अन्य पोषक तत्वों की ज़रूरत भी कम पड़ती है। हालाँकि, यदि सिंचाई और पोषक तत्व भरपूर मात्रा में मिले तो पैदावार अवश्य ज़्यादा होता है, लेकिन इससे खेती की लागत बेहद बढ़ जाती है। गन्ने की पैदावार कम होने का दूसरा प्रमुख कारण कल्लों का अलग-अलग समय पर बनना भी है। यदि कल्लों का विकास एक साथ हो तो वो परिपक्व भी एक साथ होंगे तथा उनका वजन भी ज़्यादा होगा, उसमें रस की मात्रा और मिठास भी अधिर होगी। लिहाज़ा, गन्ने की खेती में यदि कल्ले बेमौत मरने से बचा जाएँ तभी किसान को फ़ायदा होगा।
- मोती की खेती में लागत से लेकर सीप तैयार करने तक, आमदनी का गणित जानिए ‘किसान विद्यालय’ चलाने वाले संतोष कुमार सिंह सेसंतोष कुमार कहते हैं कि किसी और काम को करते हुए आप मोती की खेती (Pearl Farming) की शुरुआत कर सकते हैं। फिर चाहे आप पहले से कोई नौकरी कर रहे हों, डेयरी बिज़नेस में हों या किसी और फ़ील्ड में काम कर रहे हों।
- जानिए सब्जियों की खेती में दिल्ली से हिमाचल गया युवा कैसे बना मिसाल, अच्छी नौकरी छोड़ी अपनाई खेतीसब्ज़ियों की खेती अगर सही तरीके से और वैज्ञानिकों की सलाह से की जाए तो इससे अच्छा मुनाफ़ा कमाया जा सकता है। हिमाचल प्रदेश के किसान रमेश कुमार इसकी बेहतरीन मिसाल हैं, जिन्होंने नौकरी छोड़ खेती को पेशा बनाया।
- एकीकृत कृषि को अपनाकर आप कैसे ले सकते हैं फ़ायदा? रिटायर्ड फौजी का रहे लाखों की कमाईअगर इंसान में कुछ करने की चाहत हो, तो उम्र या हालात कोई मायने नहीं रखते। इसकी बेहतरीन मिसाल हैं जम्मू-कश्मीर के रिटायर्ड फौजी नसीब सिंह, जो 78 साल की उम्र में भी खेती और उससे जुड़ी गतिविधियों से लाखों की कमाई कर रहे हैं।
- अनार की फसल पर लगने वाले बैक्टीरियल ब्लाइट रोग का ऐसे किया प्रबंधन, अनार उत्पादकों की बढ़ी आमदनीफलों में अनार काफी महंगा मिलता है और सेहत के लिए बहुत अच्छा माना जाता है। यह खून बढ़ाने में मददगार है। कर्नाटक के तुमकुरू जिले में अनार की अच्छी पैदावार होती है, मगर पिछले कुछ सालों से यहां के किसान अनार में लगने वाले बैक्टीरियल ब्लाइट रोग से परेशान है जिससे फसल की बहुत हानि होती है। मगर कृषि विज्ञान केंद्र ने अब इसका भी हल निकाल लिया।
- Potato Planter Machine: पोटैटो प्लांटर मशीन क्यों है आलू की खेती में फ़ायदेमंद? जानिए इसकी ख़ासियत और दामपहले हाथ से ही आलू की बुवाई की जाती थी, जो किसानों के लिए एक धीमी और चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया हुआ करती थी। अब एडवांस पोटैटो प्लांटर की मदद से आलू की बुवाई की प्रक्रिया सहज हो गई है।
- Poultry Farming: मुर्गी पालन के लिए चुनी उन्नत नस्ल, जानिए कैसे अंडमान के इन किसानों की तकदीर बदल रहा ‘वनराजा’कई ऐसे किसान हैं, जिनके पास खेती के लिए ज़मीन नहीं है या बहुत कम ज़मीन हैं, तो उनके लिए मुर्गी पालन आमदनी का बेहतरीन ज़रिया है। लेकिन इसके लिए सही नस्ल और वैज्ञानिक तकनीक की जानकारी ज़रूरी है।
- Makhana Farming: मखाने की खेती आप कई तरह से कर सकते हैं, जानिए इससे जुड़ी सभी बातेंमखाने की खेती के लिए गर्म मौसम और पानी की भरपूर उपलब्धता ज़रूरी है, तभी तो तालाब और पोखर वाले इलाके में इसकी खूब खेती होती है। इसकी खेती की कई उन्नत तकनीकें कृषि संस्थानों ने सुझाई हैं। क्या हैं वो तकनीकें? जानिए इस लेख में।
- परवल की खेती (Pointed Gourd): जानिए परवल की उन्नत किस्मों के बारे में, बाज़ार में अच्छा चल रहा परवल का भावपरवल की खेती के प्रति किसानों का रुझान बढ़ा है। इसका उपयोग मुख्य रूप से सब्जी, अचार और मिठाई बनाने के लिए किया जाता है। क्या इसका दाम है? देश के अलग-अलग हिस्सों में कैसे इसकी खेती जाती है? परवल की खेती से जुड़ी है कई अहम बातों के बारे जानिए।
- वैज्ञानिक सूअर पालन में किन बातों का ध्यान रखना बेहद ज़रूरी? Pig Farming में झारखंड का ये युवा बना मिसालकम लागत में अधिक मुनाफ़ा कमाने का अच्छा ज़रिया है सूअर पालन, मगर पारंपरिक तरीका अपनाने पर इस व्यवसाय से अधिक लाभ नहीं होता। यदि आप बढ़िया मुनाफ़ा चाहते हैं तो झारखंड के इस युवा की तरह वैज्ञानिक तरीके से सूअर पालन का व्यवसाय करें।