बकरी पालन व्यवसाय से मुनाफा कमाने के लिए ज़रूरी है थनैला रोग से बचाव

थनैला रोग एक संक्रामक बीमारी है, जो गाय, भैंस और बकरी जैसे दुधारु पशुओं में होती है। इस बीमारी की वजह से पशुओं के दूध देने की क्षमता बहुत कम या पूरी तरह से बंद हो जाती है, जिससे पशुपालकों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। बकरी पालन कर रहे पशुपालक किन सावधानियों को अपनाकर थनैला रोग से अपने पशुओं का बचाव कर सकते हैं, पढ़िए इस लेख में।

Mastitis in Goats - थनैला रोग

बकरियों को ग्रामीण भारत की ATM कहा जाता है। साथ ही शहरों में बकरी पालन को व्यावसायिक तौर पर कइयों ने अपनाया है। बकरी पालन के आधुनिक तरीकों को अपनकार कई युवाओं स्वरोजगार खड़ा किया है। साथ ही कइयों को रोज़गार देने के अवसर भी पैदा किए हैं।

थनैला रोग जिसे मैस्टाइटिस भी कहा जाता है, वायरस, बैक्टीरिया, फंगस, यीस्ट, माइक्रोप्लाज़मा जैसे कई जीवाणुओं के कारण होता है। ये जीवाणु पशुओं में थनों के रास्ते शरीर में घुसते हैं। इसलिए इसे थनैला रोग कहा जाता है। अगर समय रहते इसका उपचार न किया जाए, तो पशुओं के दूध देने की क्षमता बहुत कम या पूरी तरह से खत्म हो जाती है। इस रोग के उपचार के लिए पशुपालकों को इसके लक्षणों और बचाव के तरीके के बारे में जानकारी होना ज़रूरी है।

थनैला रोग की पहचान

बकरियों में थनैला रोग की पहचान उसके लक्षणों के आधार पर की जा सकती है। इस बीमारी से ग्रसित होने पर बकरियों के दूध के रंग में बदलाव होने लगता है। दूध कम होता है, स्वाद बदल जाता है, थनों में सूजन और लालिमा, थनों के ऊपर की त्वचा का तापमान ज़्यादा  हो जाना, भूख कम लगना, लगड़पान जैसे कई लक्षण दिखते हैं।

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तस्वीर साभार: backyardgoats

कैसे फैलता है रोग?
कई बार मेमनों की सांस लेने वाली नली में संक्रमण हो जाता है। ऐसे में जब वो दूध पीते हैं तो संक्रमण थनों में प्रवेश कर जाता है। इसके अलावा, थनों में चोट या घाव लगने से भी जीवाणु थनों में प्रवेश करके संक्रमण फैला देते हैं। अगर बकरियों के खाने-पीने की चीज़ों में या पालन-पोषण में किसी तरह का बदलाव किया जाए तो उससे भी संक्रमण हो सकता है। इसके साथ ही अगर उन्हें संतुलित आहार नहीं मिलता है, तो उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।

थनैला रोग से बचाव के उपाय

बकरियों को थनैला रोग से बचाने के लिए पशुपालक ICAR  की ओर से सुझाए गए इन उपायों को आज़मा सकते हैं। इन उपायों का ज़िक्र हम नीचे कर रहे हैं:

स्ट्रिप कप का इस्तेमाल- थनैला रोग की जांच के लिए पशुओं के शुरुआती दूध को स्ट्रिप कप के ऊपर डाल दिया जाता है। अगर कप के जाली के ऊपर कुछ अंश बच जाता है, तो समझा जाता है कि थनैला रोग है।

प्री टिट कप का प्रयोग- बकरियों का दूध निकालने से पहले थनों को पोटैशियम परमैंगनेट के एक प्रतिशत घोल से धोकर साफ कपड़े से पोंछने के बाद दूध निकालना चाहिए।

पोस्ट टिट डिप कप का इस्तेमाल- दूध निकालने से पहले हाथों को अच्छी तरह से साफ कर लें और थनैला रोग से ग्रसित पशु का दूध सबसे आखिर में निकालें। दूध निकालने के बाद थनों के ऊपर ग्लिसरीन और बीटाडीन 1 और 5 की मात्रा का घोल बनाकर लगाएं। ये घोल दूध निकलने वाली जगह पर ही लगाएं।

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तस्वीर साभार: uab.cat

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इन बातों का भी रखें ध्यान

  • रोगग्रस्त बकरी के बच्चों को स्वस्थ पशुओं से दूर रखना चाहिए।
  • बकरियों के रहने की जगह और आसपास साफ-सफाई रखें।
  • उनका आवास हवादार होना चाहिए।
  • फर्श सूखा और साफ होना चाहिए।
  • रोज़ाना थनों की अच्छी तरह सफाई करें।
  • एक पशु का दूध निकालने के बाद हाथ अच्छी तरह से धोएं।
  • पशु के थनों को समय-समय पर देखते रहें। कोई गांठ या दूध में थक्के दिखने पर तुरंत पशुचिकित्सक से संपर्क करें।

थनैला रोग हो जाने पर इसका इलाज बहुत खर्चीला है और इससे दूध उत्पादन पर बहुत असर पड़ता है जिससे पशुपालकों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है, इसलिए इससे बचाव के उपायों को अपनाना ज़रूरी है।

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