रेशम कीट पालन (Sericulture): इन किसानों की माली हालत थी बेहद खराब, जानिए कैसे रेशम उत्पादन से बदली ज़िंदगी
सब्सिडी से शुरू किया रेशम कीट पालन, रेशम उत्पादन विभाग का मिला पूरा सहयोग
सितंबर 2017 में किसानों ने नई तकनीक की बदौलत रेशम कीट पालन की शुरुआत की। गरीबी और जल संसाधनों की कमी के कारण टमाटर, हरी मिर्च, मूंगफली और आम की फसल अच्छी गुणवत्ता वाली नहीं होती थी। इस कारण फसल की कीमत भी अच्छी नहीं मिलती थी, जिससे किसानों की माली हालत बेहद खराब हो गई। कुछ किसान आजीविका के लिए आसपास के शहर जाकर मज़दूरी करने लगे।
आंध्र प्रदेश के अनंतपुरमू ज़िले में चोविटिवंका थांडा नाम से एक बस्ती है। यहाँ के किसान रेशम कीट पालन व्यवसाय अपनाने से पहले बेहद गरीबी में जीवन यापन कर रहे थे। कैसे रेशम उत्पादन से इन किसानों की ज़िंदगी में बदलाव आया? कैसे Sericulture ने आंध्र प्रदेश के इस गांव की तस्वीर ही बदल दी? जानिए इस लेख में।
सब्ज़ियों की खेती से नहीं होता था मुनाफ़ा
गरीबी और जल संसाधनों की कमी के कारण टमाटर, हरी मिर्च, मूंगफली और आम की फसल अच्छी गुणवत्ता वाली नहीं होती थी। इस कारण फसल की कीमत भी अच्छी नहीं मिलती थी, जिससे किसानों की माली हालत बेहद खराब हो गई। कुछ किसान आजीविका के लिए आसपास के शहर जाकर मज़दूरी करने लगे।
रेशम कीट पालन के लिए प्रोत्साहन
चोविटिवंका थांडा सहित आसपास के कई ऐसे गाँव थे, जहां किसानों की दशा एक जैसी थी। किसानों की आर्थिक स्थित में सुधार हो इसके लिए अनंतपुर रेशम उत्पादन विभाग के संयुक्त निदेशक ने अन्य अधिकारियों के साथ गांवों का दौरा किया। रेशम कीट पालन के लिए उपलब्ध संसाधनों का जायज़ा लिया और उसकी संभावना तलाशी। पहले चरण में रेशम कीट पालन को लेकर किसानों को लेकर जानकारी दी गई। जागरूकता कार्यक्रम चलाए गए। अनंतपुर रेशम उत्पादन विभाग के संयुक्त निदेशक ने किसानों को कई सरकारी योजनाओं के बारे में बताया। हर तरह की विभागीय मदद का वादा किया। जागरुकता कार्यक्रम की बदौलत किसान रेशम कीट पालन के लिए प्रोत्साहित हुए।

सब्सिडी से शुरू किया रेशम कीट पालन
शहतूत की खेती के लिए 22 हज़ार 500 रुपये, रेशम कीट पालन रेयरिंग हाउस बनाने के लिए अनुसूचित जनजाति के किसानों को 1.80 लाख रुपये, अनुसूचित जाति के किसानों को 1.70 लाख रुपये और अन्य जाति के किसानों के लिए 22,950/- रुपये की सब्सिडी को मज़ूरी दी गई। साथ ही शेड निर्माण के लिए 22, 950 रुपये और बरामदा बनाने के लिए 22, 500 रुपये की सब्सिडी मुहैया कराई गई। इसके अलावा, 30 किसानों को आंध्र प्रगति ग्रामीण बैंक की नुठीमदुगु शाखा की ओर से प्रति किसान एक लाख रुपये का लोन दिया गया। किसानों के लिए 3 दिन की स्किल ट्रेनिंग कार्यक्रम का आयोजन किया गया। उन्हें नई तकनीक और सेरीकल्चर से जुड़े विभिन्न पहलुओं की भी जानकारी दी गई।

सेरीकल्चर ने बदली तस्वीर
सितंबर 2017 में किसानों ने नई तकनीक की बदौलत सेरीकल्चर की शुरुआत की। चोविटिवंका थांडा बस्ती की 3 महिला किसानों ने मलबेरी कोकून की बंपर फसल प्राप्त की। इन महिलाओं ने बीवोल्टाइन डबल हाइब्रिड किस्म की खेती की। उन्हें 80 किलोग्राम से अधिक कोकून प्राप्त हुआ, जिससे 1 लाख रुपये से ज़्यादा की कमाई हुई। इनकी सफलता को देखकर अन्य 50 किसानों ने भी सेरीकल्चर अपनाने का फैसला किया।

महिला किसान अलिवेलम्मा नाइक का कहना है कि उन्होंने 2 एकड़ में शहतूत का बगीचा बनाया। रेशम कीट के 250 अंडे (Disease Free Layings, DFLs) पाले। इससे 212 किलो शहतूत कोकून प्राप्त हुआ। इसे बेचकर उन्हें करीबन 1,06,000 रुपये की आमदनी हुई। अपनी इस सफलता से वह बहुत खुश हैं और वैज्ञानिकों का शुक्रिया अदा करती हैं। इसी तरह थुलसम्मा नाम की एक और महिला किसान ने पहले एक एकड़ में शहतूत की खेती की। इससे उन्हें 65 हज़ार रुपये प्राप्त हुए, फिर उन्होंने 2.5 एकड़ में मलबेरी लगाना शुरू किया।

शहतूत की सफल खेती कर रही महिला किसानों का कहना है कि कड़ी मेहनत और सही योजना बनाकर सेरीकल्चर में आप साल में 10 फसल प्राप्त कर सकते हैं, इसलिए रेशम कीट पालन को छोड़े नहीं।
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