Green Manure Crops: हरी खाद वाली फसलें कौन सी हैं और कितने प्रकार की होती हैं?
खेती में हरी खाद का मतलब उन सहायक फसलों से है, जिन्हें खेत के पोषक तत्वों को बढ़ाने के मकसद से उगाया जाता है। ये मिट्टी की साथ-साथ फसलों को भी कई लाभ देती हैं।
खेती में हरी खाद का मतलब उन सहायक फसलों से है, जिन्हें खेत के पोषक तत्वों को बढ़ाने के मकसद से उगाया जाता है। ये मिट्टी की साथ-साथ फसलों को भी कई लाभ देती हैं।
बायोचार के इस्तेमाल से मिट्टी के गुणों में सुधार का सीधा असर फसल और उपज में नज़र आता है। इससे किसानों की रासायनिक खाद पर निर्भरता और खेती की लागत घटती है। लिहाज़ा, बायोचार को किसानों की आमदनी बढ़ाने का आसान और अहम ज़रिया माना गया है।
गोवा के तटीय इलाकों की मिट्टी में नमक अधिक होने यानी लवणीय मिट्टी होने की वजह से धान की उपज बहुत कम होती थी, जिसका हल वैज्ञानिकों ने एक बायो फॉर्मूलेशन की खोज करके ढूंढ़ निकाला। नमक वाली मिट्टी में सुधार से अच्छी दान की पैदावार ली जा सकती है।
अब तक हम भारत की 29 प्रतिशत ज़मीन को अनुपादक बना चुके हैं या उसकी उत्पादन क्षमता नष्ट कर चुके हैं। देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 32.87 करोड़ हेक्टेयर में से क़रीब 9.64 करोड़ हेक्टेयर ज़मीन की मिट्टी अपक्षरित हो चुकी है। इसका मतलब है कि ऐसी ज़मीन की मृदा की ऊपरी उर्वर परत इतनी नष्ट हो चुकी है वो खेती के लायक नहीं रही।
प्रकाश संश्लेषण के तहत धूप, हवा, पानी और मिट्टी से प्राप्त पोषक तत्वों के बीच रासायनिक क्रियाएँ करके पौधे अपना भोजन पकाते या निर्मित करते हैं। मिट्टी से पौधों को 16 पोषक तत्वों की सप्लाई होती है। किसी भी फ़सल का अच्छा विकास और खेती से होने वाले लाभ का दारोमदार इन्हीं पोषक तत्वों पर होता है।
बंजर भूमि या मरुस्थलीकरण की समस्या भारत में भी तेज़ी से बढ़ रही है। देश की मरुस्थलीय भूमि अब बढ़ते-बढ़ते 30 फ़ीसदी हो चुकी है। देश की कुल अनुपजाऊ भूमि का 82 प्रतिशत हिस्सा राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक, झारखंड, ओडीशा, मध्य प्रदेश और तेलंगाना राज्यों में पाया जाता है। लिहाज़ा, इन्हीं राज्यों में मिट्टी को बंजर से उपजाऊ बनाने का काम सबसे ज़्यादा करने की ज़रूरत है।
सरकारी लैब में मिट्टी की जाँच मुफ़्त होती है और Soil Health Card दिया जाता है। इसे फ़सल बुआई के वक़्त ही करवाना ज़रूरी नहीं है, बल्कि किसी भी वक़्त करवा सकते हैं। आमतौर पर तीन-चार साल के अन्तराल पर मिट्टी की जाँच करवाकर विशेषज्ञों की राय के मुताबिक़ मिट्टी का उपचार ज़रूर करना चाहिए।
लवणीय मिट्टी में सोडियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम या उनके क्लोराइड और सल्फ़ेट ज़्यादा मात्रा में होते हैं। ये सभी तत्व पानी में घुलनशील होते हैं। इन्हीं घुलनशील लवणीय तत्वों की सफ़ेद पपड़ी खेत की मिट्टी की ऊपरी सतह पर बन जाती है। लवणीय मिट्टी का प्रकोप अक्सर ऐसी ज़मीन पर नज़र आता है जहाँ जलभराव की समस्या होती है।
किसान अपना खुद का मिट्टी जांच केंद्र शुरू कर सकते हैं। इस ख़ास मशीन के बारे में किसान ऑफ़ इंडिया ने बात की हार्वेस्टो ग्रुप के डायरेक्टर हर्ष दहिया से।
मृदा स्वास्थ्य जांच की आधुनिक तकनीक में इमेज़ एनालिसिस के जरिये कम समय में मिट्टी की सेहत की सटीक जानकारी किसानों को मिल सकती है।
रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल न कर जैव उर्वरक यानी बायो फ़र्टिलाइज़र (Biofertilizer) का इस्तेमाल करने से एक साथ कई मुश्किलें हल होंगी। फसल के हिसाब से जैव उर्वरक का चयन कर सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया ने मध्य प्रदेश के सागर स्थित कृषि विज्ञान केन्द्र की कृषि वैज्ञानिक डॉ. ममता सिंह से जैव उर्वरकों के इस्तेमाल को लेकर ख़ास बातचीत की।
आजकल रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों के इस्तेमाल से मिट्टी अधिक प्रदूषित हो रही है। उसकी उपज क्षमता कम होती जा रही है। ऐसे में हर 3 साल में मिट्टी की जांच ज़रूरी है। कृषि वैज्ञानिक डॉ. नीरज रजवाल से जानिए कैसे की जाती है मिट्टी की जांच।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) में एग्रोनॉमी डीवीज़न के कृषि वैज्ञानिक डॉ. प्रवीन कुमार उपाध्याय ने फसलों में पोषक तत्व प्रबंधन से जुड़ी कई महत्वपूर्ण जानकारियां बताईं।
World Soil Day 2021 पर संयुक्त राष्ट्र ने चेताया है कि अब वक़्त आ गया है मिट्टी की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए इस दिशा में कई कड़े कदम उठाएं जायें। नमक के अंधाधुंध इस्तेमाल से ज़मीन की उत्पादकता घट जाती है, जिससे वो बंजर होती चली जाती हैं।
Story Courtesy: UN News
भारत में विदेशी फलों की बढ़ती मांग किसानों की आय दोगुनी करने का अच्छा अवसर बन सकती है। स्वास्थ्य को लेकर विशेष गुणों के कारण इन फलों को लोग देसी फलों की तुलना में ज्यादा कीमत पर खरीद रहे हैं। इसे देखते हुए भारतीय कृषि वैज्ञानिक ये शोध कर रहे हैं कि किन फलों के लिए किस तरह की मिट्टी और जलवायु ज्यादा अनुकूल हो सकती है।
मिट्टी परीक्षण के लिहाज़ से इसका नमूना लेना बेहद महत्वपूर्ण होता है। यदि नमूना सही ढंग से लिया जाए तभी जाँच का नतीज़ा सही मिलेगा और मिट्टी के उपचार का सही तरीका भी तय हो पाएगा। मिट्टी का परीक्षण बुआई के एक महीना पहले कराना चाहिए।
Organic Farming – मटका खाद १०० प्रतिशत शुद्ध जैविक खाद है। इसका इस्तेमाल करने से पौधे अच्छे से बढ़ते हैं। मटका खाद भी दूसरी जैविक खादों की तरह ही हजार रुपए से भी कम खर्च में हमारे आसपास मौजूद चीजों से ही तैयार हो जाती है। एक मटका खाद एक बीघा के लिए काफी होती है।
नीम की खाद सौ प्रतिशत प्राकृतिक है, जिसके कारण इसे सभी फसलों, फलों और सब्जियों के लिए उपयोगी माना गया है। यह पौधों में पोषक तत्व को बढ़ाती है। इसके प्रयोग से नेमाटोड और अन्य कीटों से सुरक्षा होती है।