फसल न्यूज़

लाल भिंडी की खेती red lady finger
न्यूज़, फल-फूल और सब्जी, फसल न्यूज़, भिंडी, सब्जियों की खेती

लाल भिंडी की खेती मिश्रीलाल राजपूत के लिए बनी मुनाफ़े का ज़रिया, सामान्य भिंडी से 3-4 गुना ज़्यादा दाम

लाल भिंडी का पौधा 40 से 45 दिनों में फल देना शुरू कर देता है। फसल चार से पाँच महीने में तैयार हो जाती है। लाल भिंडी की खेती एक एकड़ के रकबे से 50 से 60 क्विंटल की पैदावार किसान को मिल सकती है।

मुंजा घास (Munja Grass)
न्यूज़, अन्य खेती, औषधि, फसल न्यूज़, विविध

मुंजा घास (Munja Grass) की खेती कैसे बन सकती है अतिरिक्त आमदनी का ज़रिया? साथ ही हैं कई फ़ायदे

मुंजा घास नदियों, सड़कों, हाईवे, रेलवे लाइनों और तालाब के किनारे खाली जगह पर कुदरती रुप से उग आती है। यह घास भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के सूखा ग्रस्त क्षेत्रों में पायी जाती है। किसान इसको आसानी से लगा सकते हैं।

Sea Buckthorn Berry: हिमालयन बेरी सी बकथॉर्न
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Sea Buckthorn Berry: हिमालयन बेरी की व्यावसायिक खेती लद्दाख में जल्द होगी शुरू, कहलाता है वंडर प्लांट

वैज्ञानिकों को क़रीब दो दशक पहले हिमालयन बेरी ‘सी बकथॉर्न’ की अद्भुत ख़ूबियों का पता चला। इसने हिमाचल के स्पिति ज़िले के किसानों की ज़िन्दगी बदल दी, क्योंकि इसका पेड़ ऐसी जलवायु में ही पनपता है जहाँ तापमान शून्य से नीचे रहता हो। ‘सी बकथॉर्न’ को दुनिया का सबसे फ़ायदेमन्द फल माना गया है।

मखाने की खेती mithila makhana GI tag
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मखाने की खेती: मिथिला मखाने को मिला जीआई टैग, डॉ. अभिषेक प्रताप सिंह से जानिए खेती की कौन सी तकनीकें बेहतर

बिहार में मखाने की खेती करने वाले किसानों के लिए खुशखबरी है। मिथिलांचल मखाना को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल गई है। इसके तहत मिथिलांचल मखाना को भौगौलिक संकेतक (GI) टैग मिला है।

धान की खेती paddy farming
टेक्नोलॉजी, दाल, धान, फसल न्यूज़, फसल प्रबंधन, मक्का

धान की खेती में नुकसान उठा रहे किसानों के लिए क्या हैं उन्नत विकल्प? जानिए ICAR-ATARI डायरेक्टर डॉ. यूएस गौतम से

जुलाई माह में बहुत से ज़िलों में बारिश नहीं होने के कारण धान की खेती काफ़ी प्रभावित हुई। किसानों को हो रहे इस नुकसान से बचाव के लिए ICAR के संस्थान एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी एप्लीकेशन रिसर्च इंस्टीट्यूट कानपुर (अटारी) के डायरेक्टर डॉ. यूएस गौतम ने कुछ सुझाव दिए हैं। जानिए क्या हैं वो सुझाव।

जलवायु परिवर्तन का कृषि पर प्रभाव climate change impact on agriculture
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जलवायु परिवर्तन की वजह से घट रहा फसल उत्पादन, निपटने के लिए क्या है तैयारी? जानिए कृषि विशेषज्ञों से

कृषि पर पड़ते जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को देखते हुए किसान ऑफ़ इंडिया ने भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के एग्रोनामी डीविज़न के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. राजीव कुमार सिंह और केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ एच. एस.सिहं से ख़ास बातचीत की।

rajasthan farmer lemon variety ( रावलचंद पंचारिया नींबू की किस्म)
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नींबू की नई किस्म: राजस्थान के इस किसान ने ईज़ाद की संतरे जितनी बड़ी Lemon Variety, एक पौधे से 10 पौधे बनाये

किसान ऑफ़ इंडिया से बातचीत में रावलचंद पंचारिया ने बताया कि उन्हें नींबू की नई किस्म को तैयार करने में चार से पांच साल का वक़्त लगा।

सीएम योगी आदित्यनाथ प्राकृतिक खेती yogi adityanath on natural farming
प्राकृतिक खेती, कृषि संस्थान, जैविक/प्राकृतिक खेती, न्यूज़, फसल न्यूज़, सक्सेस स्टोरीज

सीएम योगी आदित्यनाथ ने प्राकृतिक खेती पर दिया ज़ोर, यूपी कृषि अनुसंधान परिषद के 33 वें स्थापना दिवस कही कई अहम बातें

लखनऊ स्थित उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद (UPCAR) के 33वें स्थापना दिवस के अवसर पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित कार्यक्रम में प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी वर्चुअली उपस्थित रहे।

खरीफ़ फसलों की MSP for kharif crops
फसल न्यूज़, न्यूज़

MSP for Kharif Crops: खरीफ़ फसलों की MSP में बढ़ोतरी का ऐलान, जानिए कितना बढ़ा न्यूनतम समर्थन मूल्य

अनुराग ठाकुर ने बढ़ी हुई खरीफ़ फसलों की MSP का ऐलान करते हुए कहा कि सरकार कई फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य के दायरे में लेकर आई है। कृषि बजट भी बढ़कर 1 लाख 26 हजार करोड़ रुपये  हो गया है।

नैनो तरल यूरिया (Nano liquid Urea)
उर्वरक, न्यूज़, प्रॉडक्ट लॉन्च, फसल न्यूज़

पीएम मोदी ने किया IFFCO नैनो तरल यूरिया प्लांट का उद्घाटन, एक बोरी यूरिया की ताकत एक बोतल में समाई

आमतौर पर यूरिया की 45 किलोग्राम की एक बोरी का इस्तेमाल एक एकड़ की फसल के लिए किया जाता है। जबकि यही काम नैनो तरल यूरिया की 500 मिलीलीटर की बोतल से दोगुनी कुशलता से हो जाता है। यूरिया की बोरी का दाम 267 रुपये है तो नैनो लिक्विड यूरिया की आधा लीटर की बोतल की कीमत 240 रुपये है। नैनो तरल यूरिया की सिर्फ़ 2 मिलीलीटर मात्रा का एक लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना होता है और पूरी फसल के दौरान नैनो तरल यूरिया का सिर्फ़ दो बार छिड़काव करने की ज़रूरत पड़ती है।

धान संग मछली पालन ( rice fish farming )
कृषि उपज, टेक्नोलॉजी, तकनीकी न्यूज़, धान, न्यूज़, फसल न्यूज़, फसल प्रबंधन, मछली पालन

धान की खेती के साथ मछली पालन, जानिए इस तकनीक के फ़ायदे

इस तकनीक के तहत धान की खेती के लिए जमा पानी में ही मछली पालन किया जाता है। धान संग मछली पालन प्रणाली में धान के खेत में जहां मछलियों को चारा मिलता है, वहीं मछली द्वारा निकलने वाले वेस्ट पदार्थ धान की फसल के लिए जैविक खाद का काम करते हैं।

Basmati Rice बासमती धान की खेती
कृषि उपज, कृषि वैज्ञानिक, टेक्नोलॉजी, धान, न्यूज़, फसल न्यूज़, फसल प्रबंधन

Basmati Rice: बासमती धान की खेती में खाद, उर्वरक, सिंचाई और खरपतवार का कैसे करें प्रबंधन? जानिए कृषि वैज्ञानिक डॉ. रितेश शर्मा से

डॉ. रितेश शर्मा ने कहा कि बासमती धान की परम्परागत प्रजातियों में अपेक्षाकृत कम नाइट्रोजन की ज़रूरत होती है। उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी की जांच और फसल की मांग के आधार पर आवश्यकतानुसार करना चाहिए। ऐसी ही बासमती धान की खेती से जुड़ी अहम जानकारियां जानिए डॉ. रितेश शर्मा से।

ब्रोकली की खेती Broccoli farming
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ख़रीदार मिल जाएं तो ब्रोकली की खेती में है ज़बरदस्त मुनाफ़े की गारंटी, Broccoli का दाम फूल गोभी से कई गुना महंगा

ब्रोकली काफ़ी हद्द तक फूल गोभी की तरह ही है। लेकिन सीज़न में जहाँ फूल गोभी का दाम कौड़ियों के भाव हो जाता है, वहीं ब्रोकली की कीमत 30 से 50 रुपये प्रति किलोग्राम तक मिल जाती है। अलबत्ता, ये कीमतें तभी आकर्षिक लगेंगी जब बाज़ार में ब्रोकली को खरीदार मिल जाएँ। इसीलिए ब्रोकली की खेती में हाथ आज़माने से पहले बाज़ार की नब्ज़ पर परखना बहुत ज़रूरी है।

Basmati Rice: बासमती धान की खेती
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Basmati Rice: बासमती धान की खेती के लिए कैसे तैयार करें उन्नत नर्सरी? डॉ. रितेश शर्मा से जानिए उन्नत तकनीकों के बारे में

बासमती धान की खेती के लिए अच्छी जलधारण क्षमता वाली चिकनी या मटियार मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है। नर्सरी में बीज बोने से पहले कुछ बातों का ध्यान रखना भी ज़रूरी है। ऐसी ही कई महत्वपूर्ण बिंदुओं के बारे में मेरठ के मोदीपुरम स्थित बासमती एक्सपोर्ट डेवलपमेंट फाउंडेशन के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. रितेश शर्मा ने किसान ऑफ़ इंडिया से ख़ास बातचीत की।

सफ़ेद मूसली के लिए खेत की तैयारी
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सफ़ेद मूसली या सतावर की खेती करें और कमायें बढ़िया मुनाफ़ा

यदि सूझबूझ के साथ और वैज्ञानिक तरीके से सफ़ेद मूसली या सतावर की खेती की जाए तो ये फसल किसान को खुशहाल बना सकती है। बाज़ार में उम्दा मूसली का दाम 1000-1500 रु. प्रति किलोग्राम तक मिल सकता है। मझोले किस्म की फसल का दाम 700-800 रु. प्रति किलो और हल्की किस्म का दाम 200-300 रु. प्रति किलोग्राम तक मिलता है। सफ़ेद मूसली की उन्नत खेती पर प्रति एकड़ लागत करीब 5-6 लाख रुपये बैठती है और यदि उपज का दाम औसतन 1.2 लाख रुपये प्रति क्विंटल भी मिला और यदि प्रति एकड़ औसत उपज करीब 15 क्लिंटल भी रही तो उपज का दाम करीब 18 लाख रुपये बैठेगा। इसमें से लागत घटा दें तो किसान को प्रति एकड़ 10-12 लाख रुपये का शुद्ध मुनाफ़ा मिलेगा।

madhya pradesh jairam gaikwad जैविक खेती
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जैविक खेती (Organic Farming): किसान जयराम गायकवाड़ के टॉप 5 बिज़नेस मॉडल्स, सालाना है 35 लाख रुपये का मुनाफ़ा

मध्य प्रदेश के बैतूल ज़िले के रहने वाले प्रगतिशील किसान जयराम गायकवाड़ अपनी कुल 30 एकड़ ज़मीन में से 10 एकड़ ज़मीन पर परंपरागत यानी जैविक खेती करते हैं। आज वो जिस मुकाम पर हैं, वो उनकी 22 साल की मेहनत का परिणाम है। कैसे उन्होंने अपने फ़ार्म मॉडल को तैयार किया? क्या उनके अनुभव रहे? जानिए इस लेख में।

मोटे अनाज की खेती Coarse Grain Farming
कृषि उपज, न्यूज़, फसल न्यूज़

Coarse Grains Farming: मोटे अनाज की खेती है किसानों के लिए लाभकारी, परम्परागत अनाज से कुपोषण की समस्या होगी दूर

धान और गेहूँ की तुलना में परम्परागत मोटे अनाज काफ़ी कम पानी और खाद से उग जाते हैं। कम उपजाऊ भूमि में भी इसकी अच्छी पैदावार और लाभकारी दाम मिल जाता है। मोटे अनाज की खेती में महँगे रासायनिक खाद और कीट नाशकों की ज़रूरत नहीं पड़ती। ये पर्यावरण के बेहद अनुकूल होते हैं और पोषक आहारों की दुनिया में तो परम्परागत मोटे अनाजों और भी बेजोड़ हैं।

ganoderma mushroom गैनोडर्मा मशरूम
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गैनोडर्मा मशरूम: डॉ. अलंकार सिंह से जानिए कम लागत में कैसे करें Ganoderma Mushroom की खेती, 3 से 10 हज़ार रुपये प्रति किलो भाव

कृषि विज्ञान केंद्र, पिथौरागढ़ के सब्जेक्ट मैटर स्पेशलिस्ट डॉ. अलंकार सिंह ने किसान ऑफ़ इंडिया से ख़ास बातचीत में बताया कि कैसे किसानों की आमदनी बढ़ाने के लक्ष्य में गैनोडर्मा मशरूम मदद कर सकता है। जानिए इस मशरूम की ख़ासियत और बाज़ार

retractable roof polyhouse technology ( पॉलीहाउस टेक्नोलॉजी )
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जानिए क्या है ‘रिट्रैक्टेबल रूफ़ पॉलीहाउस’ तकनीक (Polyhouse Technique), खेती को बनाए और फ़ायदेमंद

यह तकनीक जैविक खेती के लिए भी अनुकूल है। देश के सभी 15 विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों में रिट्रैक्टेबल रूफ़ पॉलीहाउस तकनीक उपयोगी होगी, जो किसानों को गैर-मौसमी फसलों की खेती करने में मदद करेगा, जिससे वो उच्च मूल्य और आय प्राप्त कर सकते हैं।

मशरूम की खेती कैसे करें?
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मशरूम की खेती (Mushroom Farming) से कश्मीरी किसान की बढ़ी आमदनी, जानें कैसे?

मशरूम के एक बैग में औसतन 2 किलोग्राम तक मशरूम उत्पादन होता है। मशरूम की खेती को प्रोत्साहन देने के लिए कश्मीर में सरकार की ओर से सब्सिडी भी मिलती है। मशरूम की खेती का एक और फायदा है तुरंत नगद भुगतान।

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