जानिए कैसे कंद वर्गीय फसल अरारोट की खेती से किसान ले सकते हैं लाभ, क्या हैं इसके फ़ायदे?
अरारोट से तैयार होते हैं कई खाद्य उत्पाद
अरारोट की खेती के लिए रेतिली दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। पौधों के विकास के लिए तापमान 25-30 डिग्री सेंटीग्रेट होना चाहिए।
अरारोट की खेती (Arrowroot Cultivation): अरारोट को देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नाम से जाना जाता है। इसे तीखुर, तवाखीर, पलुवा, टीवक्कुर नाम से भी जानते हैं। ये हल्दी प्रजाति का पौधा है, जिसकी जड़ें सफेद होती हैं। सफेद होने के कारण इसे सफेद हल्दी भी कहा जाता है। इसकी जड़ों से कपूर जैसी गंध आती है, इसलिए जंगल में भी इसके पौधों को आसानी से पहचाना जा सकता है।
30-60 सेंटीमीटर लंबे इसके पौधों में तना नहीं होता है। इसकी पत्तियां भाले की तरह नुकुली और लंबी होती हैं। इसके फूल पीले रंग के होते हैं, जिसका इस्तेमाल गुलदस्ते बनाने में किया जाता है। यानी किसान अगर अरारोट की खेती करते हैं तो वो फूल बेचकर अतिरिक्त कमाई कर सकते हैं।
अरारोट के आटे का इस्तेमाल खाने के लिए किया जाता है। इसके लिए इसकी जड़ों का प्रसंस्करण करके पाउडर निकाला जाता है। अरारोट की खेती से भी किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं, क्योंकि बाज़ार में इसके आटे की कीमत 200 रुपये प्रति किलो के करीब है।
अगर आप भी अरारोट की खेती करने की सोच रहे हैं, तो जान लीजिए इससे जुड़ी कुछ अहम बातें।
मिट्टी और जलवायु
अरारोट कंद वर्गीय फसल है यानी ज़मीन के अंदर उगने वाली। इसकी खेती के लिए रेतिली दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। पौधों के विकास के लिए तापमान 25-30 डिग्री सेंटीग्रेट होना चाहिए। इसकी जड़ों के विकास के लिए थोड़ी छायादार और खुली जगह का होना ज़रूरी है।

रोपाई का तरीका
रोपाई से पहले खेत तैयार करना ज़रूरी है। इसके लिए मई महीने में कम से कम दो बार खेत की जुताई करें। जुताई करने से मिट्टी में मौजूद जीवाश्म खत्म हो जाते है। फिर प्रति हेक्टेयर 10-15 टन गोबर की खाद मिलाकर पाटा चला दें। चूंकि ये कंदवर्गीय फसल है इसलिए हमेशा खेत की गहरी जुताई करके पलेवा करना ज़रूरी है। समतल की गई मिट्टी में 30-35 सेंटीमीटर के अंतराल पर 20-25 गहरी नालिया बनाकर रोपाई की जाती है। रोपाई के लिए राइज़ोम यानी प्रकंद का इस्तेमाल किया जाता है।
रोपाई से पहले प्रकंदों को कार्बेन्डाजिम या बाविस्टीन फंफूदीनाशक से उपचारित कर लेना चाहिए। इससे इनके सड़ने की संभावना नहीं रहती। रोपाई के लिए अप्रैल-मई का महीना उपयुक्त होता है। ध्यान रहे रोपाई के बाद सिंचाई करने की ज़रूरत नहीं होती है। इसके अलावा, रोपाई के बाद 30-40 दिन बाद निराई-गुड़ाई भी ज़रूरी है।
कंदों की खुदाई और बाज़ार में कीमत
कंद करीब 7-8 महीने में तैयार हो जाते हैं। अक्टूबर-नवंबर में इसकी पत्तियां सूखने लगती हैं तो समझ जाइए कि कंद खुदाई के लिए तैयार हैं। फिर छोटी कुदाल से इन्हें खोदकर निकाला जाता है और छाया में सुखाया जाता है। बाज़ार में कंद 25-30 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिकते हैं। एक हेक्टेयर से 30-40 क्विंटल कंद प्राप्त होते हैं। इस हिसाब से 1,20,000 रुपये में इन्हें बेचकर अगर लागत निकाल दें तो 80,900 रुपये का शुद्ध लाभ होगा। जबकि अरारोट का आटा 200 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिकता है।
कैसे तैयार होता है आटा?
कंद को प्रसंस्करण करके अरारोट का पाउडर बनाया जाता है। सबसे पहले कंद को अच्छी तरह धो लिया जाता है, फिर किसी पत्थर पर रखकर घिसा जाता है या किसी भारी चीज़ से कुचला जाता है जिससे गाढ़ा द्रव निकलता है जो स्टार्च होता है। इस स्टार्च को पानी से 2-3 बार धो लेना चाहिए ताकि सारी गंदगी निकल जाए। फिर स्टार्च को जमने के लिए छोड़ दिया जाता है और 24 घंटे बाद हिलाकर दोबारा धोया जाता है।
ऐसा 6 दिन तक किया जाता है और 7वें दिन इसे ट्रे में रखकर धूप में सुखाया जाता है, जिससे इसके क्रिस्टल तैयार होते हैं। फिर इन्हें पीसकर आटा बनाया जाता है जो पैकिंग करके बाज़ार में भेजा जाता है। 1 किलो आटे के लिए 10 किलो कंद की ज़रूरत होती है।

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