मिट्टी की सेहत (Soil Health): दुनिया भर में ‘बंजर होती धरती’ बनी मानवता के लिए सबसे बड़ी चुनौती
रोकथाम नहीं हुई तो 60 साल में पूरे भारत की मिट्टी के बंजर होने का ख़तरा
अब तक हम भारत की 29 प्रतिशत ज़मीन को अनुपादक बना चुके हैं या उसकी उत्पादन क्षमता नष्ट कर चुके हैं। देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 32.87 करोड़ हेक्टेयर में से क़रीब 9.64 करोड़ हेक्टेयर ज़मीन की मिट्टी अपक्षरित हो चुकी है। इसका मतलब है कि ऐसी ज़मीन की मृदा की ऊपरी उर्वर परत इतनी नष्ट हो चुकी है वो खेती के लायक नहीं रही।
किसानों समेत सभी भारतवासियों को इस ख़तरे से बेहद सावधान रहने की ज़रूरत है कि जिस रफ़्तार से देश भर की मिट्टी की ऊपरी और उपजाऊ परत का नुकसान हो रहा है, उस हिसाब से अगले 60 वर्षों में ही यानी साल 2080-85 तक पूरे देश में उपजाऊ मिट्टी वाली खेत ख़त्म हो जाएँगे और भारत बंजर ज़मीन वाला देश बन जाएगा! ये तथ्य बेहद डरावने हैं, लेकिन पूरी तरह से वैज्ञानिक हैं। ये हमें बताते हैं कि आधुनिक विकास की आपाधापी में हम पर्यावरण को जैसा नुकसान पहुँचा रहे हैं उसका अंज़ाम कब और किस रूप में हमारी आने वाली पीढ़ियों को झेलना पड़ेगा?
ये भी पढ़ें – Soil Health: बंजर भूमि की विकराल होती चुनौती और इसका मुक़ाबला करने के उपाय
ताज़ा आँकड़ा ये है कि अब तक भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 32.87 करोड़ हेक्टेयर में से क़रीब 9.64 करोड़ हेक्टेयर ज़मीन की मिट्टी अपक्षरित हो चुकी है। अपक्षरित मिट्टी का मतलब है कि देश के इतने क्षेत्रफल की मृदा की ऊपरी उर्वर परत इतनी नष्ट हो चुकी है वो खेती के लायक नहीं रह गयी है। दूसरे शब्दों में कहें तो अब तक हम 29 प्रतिशत ज़मीन को अनुपादक बना चुके हैं, उसकी उत्पादन क्षमता को नष्ट कर चुके हैं।

बंजर बनी दुनिया की 40% भूमि
उपजाऊ मिट्टी के नष्ट होने की प्रवृत्ति का प्रभाव सिर्फ़ भारत तक ही सीमित नहीं है। ये चुनौती भी विश्वव्यापी है। वस्तुतः वैश्विक तौर पर तो बंजर होती भूमि का दायरा कहीं ज़्यादा भयानक तरीके से विकराल हो रहा है। विश्व खाद्य संगठन और जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क समझौता यानी United Nations Framework Convention on Climate Change (UNFCCC) की ओर से जारी ‘ग्लोबल लैंड आउटलुक रिपोर्ट’ के अनुसार, वैश्विक स्तर पर 40 प्रतिशत से ज़्यादा उपलब्ध भूमि अनुर्वर यानी बंजर हो चुकी है।
ये भी पढ़ें – जीवाणु खाद (Bio-Fertilizer) अपनाकर बदलें फ़सलों और खेतों की किस्मत
रिपोर्ट ने चेतावनी दी है कि यदि मिट्टी की उपजाऊ क्षमता को बहाल करने की दिशा में मानवता ने युद्धस्तर पर क़दम नहीं उठाये तो वो दिन दूर नहीं जब दुनिया की आधी आबादी को गम्भीर खाद्यान्न संकट से जूझना होगा। इसकी मुख्य वजह ये भी है कि हाल ही विश्व की आबादी 8 अरब की संख्या को पार कर चुकी है। 12 साल पहले ये 7 अरब थी और उससे भी 12 साल पहले थी 6 अरब।
ये भी पढ़ें – Bio-Pesticides: खेती को बर्बादी से बचाना है तो जैविक कीटनाशकों का कोई विकल्प नहीं
भूख और पोषण का वैश्विक संकट
अब यदि 11-12 साल का ही वक़्त इंसान को 8 से 9 अरब तक पहुँचने में लगे तो 2035 के आसपास दुनिया की आबादी 9 अरब होगी तो 2045-46 के आसपास 10 अरब। ऐसी बढ़ती आबादी का पेट भरने के लिए वैश्विक स्तर पर जितने खाद्यान्न उत्पादन की अपेक्षा होगी उसे खेती-योग्य उपजाऊ ज़मीन के सिकुड़ते क्षेत्रफल से पूरा करना बेहद कठिन होता चला जाएगा। इसीलिए विशेषज्ञों ने वैश्विक स्तर पर आधी आबादी के लिए भोजन और कुपोषण के संकट की चेतावनी दी है।

विशेषज्ञों के अनुसार, उपजाऊ मिट्टी वाले खेतों के बंजर के रूप में तब्दील होने के लिए भूमि का अतिशय दोहन, परम्परागत कृषि पद्धतियों में रासायनिक उर्वरकों का बढ़ता इस्तेमाल, खनन और वनों की कटाई आदि कारक ज़िम्मेदार हैं। चुनौती ये भी है कि यदि मौजूदा रफ़्तार से ही बंजर-विस्तार जारी रहा तो न सिर्फ़ मानव आहार शृंखला चरमरा जाएगी बल्कि धरती की जैव-विविधता में भी ऐसा पतन होगा कि अनेक महत्वपूर्ण जीव-जन्तुओं की प्रजातियाँ लुप्त हो जाएँगी।
ऐसी रिपोर्टों और विभिन्न स्तरों पर हुए वैज्ञानिक अध्ययनों को देखते हुए ही तमाम अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों ने मृदा क्षरण को रोकने तथा बंजर भूमि को उपजाऊ बनाने की दिशा में अनेक पहल भी की हैं। इनमें ग्रामीण स्तर पर रासायनिक उर्वरकों से मुक्त जैविक खेती और प्राकृतिक कृषि पद्धतियों को अपनाने के अतिरिक्त शहरी वृक्षारोपण में बढ़ोतरी तथा वनों की कटाई को सख़्ती से रोकने जैसे उपाय शामिल हैं। किसानों को भी मिट्टी की सेहत का ख़्याल अपने परिजनों के स्वास्थ्य की तरह ही रखना चाहिए।

ये भी पढ़ें – खेती से कमाई बढ़ाने में बेहद मददगार है मिट्टी की जाँच
मिट्टी की सेहत के लिए भारतीय प्रयास
भारत में भी मिट्टी की सेहत का ख़्याल रखने से जुड़ी कोशिशों को ख़ूब प्रोत्साहन दिया जा रहा है। यहाँ मृदा स्वास्थ्य कार्ड (Soil Health Card) योजना को भी बंजर होती धरती की समस्या से निपटने की दिशा में उठाये गये बेहद महत्वपूर्ण क़दम की तरह देखा गया है तो भूजल पुनर्भरण यानी ground water recharging जैसी नीति का सम्बन्ध भी ज़मीन की उर्वरा के संरक्षण के लिए बेहद ज़रूरी है। ऐसे प्रयासों से सूखा, बाढ़, जंगल की आग, रेतीली आँधी तथा धूल आदि प्रदूषण सम्बन्धी समस्याओं की कुछ हद तक रोकथाम सम्भव है।
ये भी पढ़ें – रोशा घास (Palmarosa Farming): बंजर और कम उपयोगी ज़मीन पर रोशा घास की खेती से पाएँ शानदार कमाई
वैश्विक स्तर पर संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में सदस्य राष्ट्रों ने भी एक अरब हेक्टेयर अपक्षरित भूमि या बंजर ज़मीन को सुधारने का निर्णय लिया है। भारत में वर्ष 2030 तक 2.6 करोड़ हेक्टेयर अपक्षरित भूमि को सुधारने के लक्ष्य पर काम किया जा रहा है। सम्पूर्ण भू-सुधार योजना का लक्ष्य मिट्टी में जैविक तत्वों और सूक्ष्म जीवाणुओं की मात्रा में निरन्तर वृद्धि करना है। इसीलिए भारत में शून्य बजट कृषि पद्धतियों या ज़ीरो बजट नेचुरल फॉर्मिंग (ZBNF) को अपनाने पर काफ़ी ज़ोर दिया जा रहा है। टिकाऊ खेती के इस तरीके के प्रति किसानों में जागरूकता बढ़ाने के लिए देश भर में कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या kisanofindia.mail@gmail.com पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

ये भी पढ़ें:
- सरोगेसी यानी भ्रूण स्थानांतरण तकनीक (Embryo transfer technology) से हुआ देश के पहले मारवाड़ी घोड़े का जन्मदेश में घोड़ों की संख्या में पिछले कुछ सालों में बहुत कमी आई है। इसीलिए वैज्ञानिक घोड़ों, खासकर देसी नस्ल के घोड़ों की संख्या बढ़ाने की दिशा में लगातार काम कर रहे हैं। इसी कड़ी में उन्हें भ्रूण स्थानांतरण तकनीक से एक बड़ी सफ़लता मिली है।
- रोटरी डिस्क ड्रिल (Rotary Disc Drill) – फ़सल कटाई के बाद पराली और अवशेष प्रबंधन का कारगर और दमदार उपकरणउत्तर भारत में फ़सल अवशेषों या पराली जलाना एक गंभीर समस्या है, जिससे मिट्टी और पर्यावरण दोनों को नुकसान होता है। इस समस्या से निपटने के लिए ICAR ने रोटरी डिस्क ड्रिल (RDD) मशीन बनाई है। इसकी मदद से बिना पराली जलाए, फ़सलों की सीधी बुवाई की जा सकती है।
- Mushroom Processing: कैसे होती है मशरूम की व्यावसायिक प्रोसेसिंग? जानिए घर में मशरूम कैसे होगा तैयार?मशरूम उत्पादक किसान यदि ख़ुद अपनी मशरूम का सेवन करना चाहें तो वो क्या करें? इन किसानों के लिए शहरों से प्रोसेस्ड मशरूम को ख़रीदकर लाना और फिर उसका इस्तेमाल करना व्यावहारिक नहीं होता। इसीलिए, यदि वो अपने घरों में ही मशरूम की प्रोसेसिंग करना सीख लें तो अपनी निजी ज़रूरतों के अलावा वो रिश्तेदारों और मेहमानों वग़ैरह को भी प्रोसेस्ड मशरूम मुहैया करवा सकते हैं।
- जानिए क्यों महाराष्ट्र की इस महिला किसान को लोगों ने दिया ‘लेडी प्लांट डॉक्टर’ का ख़िताब!महाराष्ट्र के अहमद नगर ज़िले की रहने वाली कविता प्रवीण जाधव का शुरू से ही खेती के प्रति लगाव था। उन्होंने किसानों की उत्पादकता को बढ़ाने और उन्हें लाभ पहुंचाने के लिए कई अहम कदम उठाए। आज उनके साथ कई महिला किसान जुड़ी हुई हैं।
- जानिए, क्यों अनुपम है बायोचार (Biochar) यानी मिट्टी को उपजाऊ बनाने की घरेलू और वैज्ञानिक विधि?बायोचार के इस्तेमाल से मिट्टी के गुणों में सुधार का सीधा असर फसल और उपज में नज़र आता है। इससे किसानों की रासायनिक खाद पर निर्भरता और खेती की लागत घटती है। लिहाज़ा, बायोचार को किसानों की आमदनी बढ़ाने का आसान और अहम ज़रिया माना गया है।
- कपास की खेती में फायदेमंद है स्पॉट फर्टिलाइज़र एप्लीकेटर का इस्तेमालकपास एक महत्वपूर्ण व्यवसायिक फसल है, जिससे किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। कपड़ा उद्योग के लिए तो कपास कच्चा माल प्रदान करता ही है, साथ ही इसके बीज से तेल भी बनाया जाता है। कपास की मांग हमेशा बाज़ार में बनी रही है, ऐसे में किसान स्पॉट फर्टिलाइज़र एप्लीकेटर का इस्तेमाल करके इसका उत्पादन बढ़ा सकते हैं।
- सब्ज़ी नर्सरी (Vegetable Nursery): असम के किसान जयंती मेधी ने मिट्टी रहित सब्ज़ियों की पौध तैयार कर खड़ा किया सफल नर्सरी उद्योगयदि रोपण सामग्री उच्च गुणवत्ता वाली हो तो सब्ज़ी नर्सरी में सब्ज़ियों की फसल भी अच्छी होती है। अपने इलाके में लोगों को बेहतरीन रोपण सामग्री मुहैया कराने के लिए जयंती मेधी ने एक अनोखा प्रयोग किया और बिना मिट्टी के ही विभिन्न सब्ज़ियों की पौध तैयार कर सफल उद्यम स्थापित कर लिया।
- चौलाई की खेती (Amaranth Cultivation): चौलाई की ये 10 उन्नत किस्में देती हैं अच्छी पैदावार, कई पोषक तत्वों से भरपूरचौलाई को औषधीय पौधा भी माना जाता है। ये इकलौता ऐसा पौधा है जिसमें सोने (gold) का अंश पाया जाता है। इसका जड़, तना, पत्ती और फल सभी उपयोगी हैं। चौलाई की खेती कर रहे किसानों के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने इसकी कई किस्में ईज़ाद की हैं। आइए आपको बताते हैं उन किस्मों के बारे में।
- Amla Processing: आज आंवले की खेती के ‘मार्केटिंग गुरु’ हैं कैलाश चौधरी, ज़ीरो से शुरू किया था सफ़रकैलाश चौधरी पिछले 6 दशक से खेती कर रहे हैं। आंवले की खेती ने उन्हें देश-दुनिया में पहचान दी है। कैलाश चौधरी कहते हैं खेती से बड़ा और कोई काम नहीं है। इसमें अपार संभावनाएं हैं।
- Vegetable Nursery: सब्जियों की नर्सरी में इनोवेटिव तकनीक का इस्तेमाल, मणिपुर के इस युवा ने ईज़ाद किया तरीकासब्जियों के बीज बहुत नाज़ुक होते हैं और उन्हें अधिक देखभाल की ज़रूरत होती है। इसलिए अधिकांश सब्जियों की पौध पहले नर्सरी में तैयार की जाती है, फिर खेत में उन्हें लगाया जाता है। मणिपुर के एक किसान ने नर्सरी में गुणवत्तापूर्ण सब्जियोंकी पौध तैयार करने के लिए एक नई तकनीक ईज़ाद की है, जिससे उनका मुनाफा बढ़ गया। सब्जियों की नर्सरी में कैसे ये तकनीक कारगर हो सकती है, जानिए इस लेख में।
- Kathiya Wheat Farming: गेहूँ की खेती से चाहिए ज़्यादा कमाई तो अपनाएँ कठिया गेहूँ की किस्मेंसेहत के प्रति जागरूक लोगों के बीच कठिया गेहूँ की माँग तेज़ी से बढ़ रही है, क्योंकि इसमें ‘बीटा कैरोटीन’ पाया जाता है। बाज़ार में भी किसानों को कठिया गेहूँ का उचित दाम मिलता है। इस तरह, कठिया गेहूँ, अपने उत्पादक किसानों को भी आर्थिक रूप से मज़बूत बनाने में अहम भूमिका निभाता है। इसीलिए ज़्यादा से ज़्यादा किसानों को चाहिए कि यदि वो गेहूँ पैदा करें तो उन्हें कठिया किस्में को ही प्राथमिकता देनी चाहिए।
- Azolla Cultivation: अजोला की खेती पशुओं के साथ ही धान की फसल के लिए भी है फ़ायदेमंदअजोला पशुओं के लिए बेहतरीन हरा चारा है, जिसे किसान आसानी से उगा सकते हैं। अजोला को उगाना बहुत आसान है। बस इसके लिए पानी की ज़रूरत होती है। इसके अलावा किसी तरह के खाद या उर्वरक की कोई ज़रुरत नहीं होती है। ये अपने आप दोगुना होता रहता है। अजोला की खेती कैसे किसानों के लिए फ़ायदेमंद हो सकती है, देखिए प्लांट प्रोटेक्शन की सब्जेक्ट मैटर स्पेशलिस्ट हिना कौशर से खास बातचीत।
- चौलाई की खेती (Amaranth Cultivation): छोटी जोत वाले किसानों के लिए क्यों है फ़ायदेमंद? जानिए इससे जुड़ी अहम बातेंचौलाई से मिलने वाले साग (सब्ज़ी) और दाना (अनाज) दोनों ही नकदी फसलें हैं। चौलाई के खेती में ज़्यादा पानी की ज़रूरत नहीं होती। चौलाई की खेती के लिए प्रति एकड़ करीब 200 ग्राम बीज की ज़रूरत पड़ती है। जानिए चौलाई की खेती से जुड़ी ऐसी कई जानकारियां।
- Kitchen Garden: अतिथि पोपली 25 सालों से किचन गार्डन में उगा रहीं सब्ज़ियां और जड़ी-बूटियांशहर में जगह की कमी के चलते जो लोग अपने बागवानी का शौक पूरा नहीं कर पातें, वो अतिथि पोपली से सीख ले सकते हैं। जो पिछले 25 सालों से गमले और घर के सामने की छोटी सी जगह में सब्ज़ियां और जड़ी-बूटियां उगा रही हैं।
- Sesame Cultivation: गर्मियों में तिल की खेती करना किसानों के लिए क्यों फ़ायदेमंद?आमतौर पर तिल की खेती को मुनाफ़े का सौदा नहीं माना जाता है, क्योंकि इसमें पैदावार कम होती है, लेकिन तिल की खेती यदि उन्नत तरीके से की जाए तो यह किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। उन्नत किस्म के बीजों के साथ गर्मियों के मौसम में तिल की खेती करना अच्छा रहेगा, क्योंकि यह मौसम तिल के लिए उपयुक्त होता है।
- Top 10 Desi Cow Breeds: गौपालन से जुड़े हैं तो जानिए देसी गाय की 10 उन्नत नस्लों कोउन्नत नस्ल की देसी गायों को पालने पर दूध का उत्पादन अन्य देसी गायों के मुक़ाबले अधिक होता है। ज़ाहिर है, इससे आपकी आमदनी भी बढ़ेगी। एक बात का ध्यान ज़रूर रखें। हर क्षेत्र के हिसाब से कौन सी देसी गाय उन्नत नस्ल की है, इसकी पूरी जानकारी लेने के बाद ही उस नस्ल को पालें।
- सूखा प्रभावित क्षेत्रों के लिए फूट ककड़ी की खेती क्यों है फ़ायदेमंद? 45-48 डिग्री में भी उग जाएपिछले कुछ साल में फूट ककड़ी की उन्नत किस्मों के विकास और नई तकनीक के प्रयोग से फूट ककड़ी की खेती में इज़ाफा हुआ है। अगर व्यावसायिक तौर पर किसान इसकी खेती कर उत्पाद तैयार करते हैं तो ये अतिरिक्त आमदनी का अच्छा स्रोत बन सकती है।
- Lady Finger Varieties: भिंडी की 10 उन्नत किस्में, जिसे लगाकर किसान कर सकते हैं लाखों की कमाईभिंडी की खेती हर मिट्टी और मौसम में होती है लेकिन दोमट मिट्टी जिसका पीएच मान 6 से 6.8 हो, और गर्म जलवायु हो तो सबसे अच्छी पैदावार होती है।
- प्लास्टिक मल्चिंग तकनीक फल-सब्ज़ी की खेती में लागत घटाने का बेजोड़ नुस्ख़ा हैप्लास्टिक मल्चिंग तकनीक की वजह से एक बार सिंचाई करने के बाद खेतों में ज़्यादा वक़्त तक नमी बनी रहती है। इस तकनीक में रोपे गये या अंकुरित हुए नन्हें पौधों के तनों के आसपास का हिस्सा प्लास्टिक से ढका होने की वजह से खरपतवार नहीं पनप पाते। लिहाज़ा, इन्हें निकालने या नष्ट करने के लिए न तो गुड़ाई-निराई की श्रम की लागत आती है और ना ही खरपतवार-नाशक रासायनिक दवाईयों की ज़रूरत पड़ती है। दूसरी ओर, परम्परागत खेती में ज़मीन की जिस उर्वरा शक्ति को खरपतवार हथिया लेते हैं वो ताक़त प्लास्टिक मल्चिंग तकनीक की वजह से ज़मीन में ही बनी रहती है और उस फसल के पौधों के ही काम आती है, जिसकी खेती को किसान ने चुना है।
- Millets Farming: मोटे अनाज की खेती के ज़रिये करें जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का मुक़ाबलाहरित क्रान्ति के तहत जैसे-जैसे गेहूँ और धान की पैदावार बढ़ी वैसे-वैसे भारतीय थालियों से पौष्टिक मोटे अनाजों से बने व्यंजन और इसकी प्रति व्यक्ति खपत घटती चली गयी। आम तौर पर धान के मुक़ाबले मोटे अनाजों की पैदावार कम है। लेकिन देश के कुछ ज़िलों में वर्षा आधारित मोटे अनाजों की खेती की उपज धान से बेहतर है। इसीलिए जलवायु अनुकूलन और अनाज उत्पादन बढ़ाने के लिए मोटे अनाज की खेती आज के वक़्त की मांग है।