जानिए तितली मटर की खेती कैसे किसानों को दे सकती है दोहरा लाभ, साथ ही मिट्टी भी बने उपजाऊ
जानिए तितली मटर की खेती करने का उन्नत तरीका
बंजर भूमि जहां कोई फसल नहीं उग सकती, वहां तितली मटर की खेती करना फ़ायदेमंद है। इसकी खेती न सिर्फ़ बंजर भूमि को उपजाऊ बनाती है, बल्कि ये पशुओं के लिए पौष्टिक चारा भी प्रदान करती है।
तितली मटर भारत की प्रमुख दलहनी फसल है। इसकी खेती हरी फली के लिए की जाती है, फलियों का इस्तेमाल सब्ज़ी बनाने के लिए किया जाता है, जबकि सूखी फलियां दाल और बीज बनाने के काम आती हैं। इसकी मुलायम पत्तियां और तना पशुओं के लिए पौष्टिक चारा होती है। तितली मटर की खेती कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, पंजाब, असम, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, बिहार और उड़ीसा में की जाती है। तितली मटर पशुओं के लिए पौष्टिक चारा प्रदान करती है। इसका चारा पशु बहुत चाव से खाते हैं। इसकी पत्तियां चौड़ी और मुलायम होती हैं। तितली मटर एक आयुर्वेदिक औषधीय पौधा है, जिसका इस्तेमाल सदियों से आयुर्वेदिक दवा बनाने में किया जाता है। तितली मटर की उन्नत खेती करके किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं।

बंजर भूमि को उपजाऊ बनाती तितली मटर की खेती
तितली मटर का पौधा ज़मीन पर बेल की तरह फैलता है। ये मिट्टी के संरक्षण में मदद करता है। इसकी ख़ासियत है कि ये सूखे और गर्म इलाकों में भी फलता-फूलता है। इसके अलावा, ये पौधा बाकी दलहनी फ़सलों की तुलना में जल्दी बढ़ता है।
चारागाह में इसके बीज को उन्नत किस्म के घासों के बीज के साथ मिलाकर बुआई करने से चारागाह की उत्पादकता बढ़ा सकते हैं। ये बंजर भूमि में नाइट्रोजन और कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ाकर उसे उपजाऊ बनाती है। इसकी खेती से कुछ सालों बाद ही बंजर भूमि खेती लायक हो जाती है। इसके चारे को पशु भी बड़े चाव से खाते हैं, क्योंकि ये स्वादिष्ट और पौष्टिक होता है।

तितली मटर की खेती- जलवायु और मिट्टी
तितली मटर की खेती के लिए नम और ठंडी जलवायु की ज़रूरत होती है। इसके बीजों को अंकुरित होने के लिए 20 से 22 डिग्री सेल्सियस तापमान की ज़रूरत होती है, जबकि पौधों के विकास के लिए 10 से 18 डिग्री सेल्सियस तापमान होना चाहिए। तितली मटर की खेती 60 से 80 सेंटीमीटर तक सालाना बारिश वाले स्थानों पर भी की जा सकती है। ये रबी सीज़न की फ़सल है। तितली मटर की खेती रेतीली मिट्टी से लेकर गहरी जलोढ़ दोमट और भारी काली मिट्टी तक में की जा सकती है। इसकी खेती के लिए मिट्टी की जल निकासी क्षमता अच्छी होनी चाहिए।
खेत की तैयारी
तितली मटर की खेती से अच्छी फ़सल के लिए फ़सल की कटाई के बाद सीड बेड तैयार करना होगा, जिसके लिए 1-2 जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बना लें। इससे पुरानी फ़सल के अवशेष पूरी तरह से खत्म हो जाते हैं। जुताई के बाद प्रति हेक्टेयर 10-15 टन गोबर की खाद मिट्टी में मिलाएं। इसके बाद देसी हल या कल्टीवेटर से 2-3 जुताई करनी चाहिए। बुवाई के समय खेत में नमी का होना ज़रूरी है। बीजों की बुवाई से पहले राइजोबियम से उपचारित करें।

फसल की बुवाई और कटाई
इसकी अगेती किस्म की रोपाई अक्टूबर से नवंबर महीने में की जाती है, जबकि पछेती किस्मों की बुवाई नवंबर में की जाती है। तितली मटर की बुवाई अगर सब्ज़ी के लिए की गई है, तो इसकी फसल जनवरी के मध्य से फरवरी के अंत तक फलियां देने लगती हैं। मटर की फलियां 10-12 दिन के अंतर पर तोड़ लेनी चाहिए।
दाने के लिए बोई गई फ़सल आमतौर पर 115-125 दिन में पककर तैयार हो जाती है। तितली मटर से हरी फलियों की पैदावार 80-120 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त हो जाती है। जबकि फलियां तोड़ने के बाद 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हरा चारा प्राप्त हो जाता है। दाना 15-22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त हो जाता है, जबकि 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक भूसा प्राप्त हो जाता है।
तितली मटर की खेती किसानों के लिए फ़ायदेमंद है, क्योंकि इससे फलियां, बीज, चारा, भूसा सब कुछ मिल जाता है।
ये भी पढ़ें- Soil Health: बंजर भूमि की विकराल होती चुनौती और इसका मुक़ाबला करने के उपाय
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या kisanofindia.mail@gmail.com पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

ये भी पढ़ें:
- औषधीय पौधे गिलोय की खेती किसानों के लिए अच्छी आमदनी का बड़ा ज़रिया, ले सकते हैं ट्रेनिंग और सब्सिडीगिलोय बेल की तरह फैलने वाला एक पौधा है। गिलोय की खेती में ज़्यादा मेहनत और खर्च नहीं है। आयुर्वेदिक औधषि बनाने वाली कंपनियों में इसकी बहुत मांग है। सेहत के लिए बेहद गुणकारी गिलोय को आप आसानी से अपने घर के बाहर भी उगा सकते हैं। खेत में मेड़ बनाकर या दूसरे पेड़ों के आसपास भी इसे आसानी से उगाया जा सकता है।
- Gerbera Farming: जरबेरा फूल की खेती से इन ग्रामीण महिलाओं ने शुरू किया अपना बिज़नेस, जानिए इस फूल की ख़ासियतजरबेरा फूल ने उड़ीसा के गंजम ज़िले की महिला किसानों की ज़िंदगी किस तरह से बदल दी और उन्हें आजीविका का साधन दिया, जानिए इस लेख में।
- Millets Farming: बाजरे की खेती में रिज फेरो तकनीक का इस्तेमाल किया, उत्पादन भी बढ़ा और आमदनी भीआमतौर पर किसी भी फसल की अच्छी खेती के लिए अच्छी बरसात ज़रूरी है, मगर बाजरे की खेती कम बरसात वाली जगह में ज़्यादा फलती-फूलती है। बाजरे की फसल गर्म इलाकों और कम पानी वाली जगहों पर अच्छी तरह होता है।
- जानिए कैसे मांगुर मछली पालन छत्तीसगढ़ के किसानों के लिए बेहतरीन आमदनी का ज़रिया बन रहा हैमीठे पानी की मांगुर मछली की बाज़ार में काफ़ी मांग है और ये पौष्टिक तत्वों से भी भरपूर होती है। ऐसे में मांगुर मछली पालन और इसकी हैचरी यानी बीज उत्पादन से किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं।
- Blue Oyster Mushroom: जानिए ब्लू ऑयस्टर मशरूम की खेती करने का सरल तरीका और लागत-मुनाफ़े का गणितपौष्टिक गुणों से भरपूर होने के कारण मशरूम की मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इससे किसानों को कम लागत में अतिरिक्त आमदनी का एक अच्छा ज़रिया मिल गया है। मशरूम की एक नई किस्म हैं ब्लू ऑयस्टर मशरूम जिसे बहुत ही कम लागत के साथ आसानी से उगाकर अच्छा मुनाफ़ा कमाया जा सकता है।
- जैविक खाद: कभी रासायनिक खाद का इस्तेमाल करने वाले रंजीत सिंह ने क्यों चुनी Organic Fertilizers की राह? जानिए कैसे बनाएं खादजैविक खाद बनाने के लिए सबसे ज़रूरी है देसी गायों को पालना। गाय का गोबर और मूत्र जैविक खेती के आवश्यक तत्व हैं। गाय के गोबर की खाद खेतों के लिए बेहतरीन पोषण का काम करती है, वहीं गोमूत्र का इस्तेमाल कीटनाशकों के रूप में होता है। वो खेती में नये प्रयोग भी करते हैं और अपने अनुभवों के ज़रिये इसे बेहतर बनाने के लिए सलाह-मशविरा भी देते हैं।
- उन्नत कृषि तकनीक: आर्थिक तंगी के चलते नहीं कर पाए 12वीं के बाद पढ़ाई, अब 8 लाख रुपये तक की आमदनीज़्यादा ज़मीन और सारी सुविधाओं के बावजूद भी किसानों को यदि खेती से पर्याप्त आमदनी नहीं हो पाती है, तो इसकी वजह है उन्नत तकनीक की कमी। उन्नत कृषि तकनीक के इस्तेमाल से ही राजस्थान के एक किसान ने सफलता की ऐसी मिसाल पेश की है, कि अब उनकी गिनती अपने इलाके के प्रगतिशील किसानों में होती है।
- एकीकृत कृषि: झूम खेती पर निर्भर थे किसान, सही तकनीक के इस्तेमाल से मिली तरक्कीमिज़ोरम के आदिवासी इलाकों में खेती की पारंपरिक तकनीक यानी झूम खेती लोकप्रिय है, मगर इससे न सिर्फ़ मिट्टी की उर्वरता कम होती है, बल्कि वनस्पतियों को जलाने से पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता है। ऐसे में एकीकृत कृषि प्रणाली (IFS) मिज़ोरम के किसानों के लिए उम्मीद की नई किरण बनकर उभरी है।
- औषधीय पौधे सिरोपिजिआ बल्बोसा के बारे में जानते हैं आप? इसकी खेती के कई फ़ायदेशहरीकरण, जागरुकता की कमी और वनस्पतियों के दोहन के कारण कई महत्वपूर्ण वनस्पतियां लुप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी हैं। इन्हीं में से एक है सिरोपिजिआ बल्बोसा। औषधिय गुणों से भरपूर इस पौधे की खेती से जैव विविधता को बचाए रखा जा सकता है।
- बायोफ्लॉक मछली पालन तकनीक से Fish Farming करना हुआ आसान, कम पानी कम जगह में बढ़िया उत्पादनमछली पालन अतिरिक्त आमदनी का अच्छा ज़रिया है, लेकिन जिन इलाकों में अच्छी बरसात नहीं होती वहां नदी, तालाब व जलाशयों में मछली पालन करने में कठिनाई आती है। ऐसी जगहों के लिए बायोफ्लॉक मछली पालन तकनीक अच्छा विकल्प है।
- सेब की नर्सरी चलाने वाले पवन कुमार ने अपनाई रूटस्टॉक मल्टीप्लीकेशन तकनीक, चार गुना बढ़ी आमदनीपारंपरिक रूटस्टॉक वाले सेब के पौधों की मांग घटने से हिमाचल के रहने वाले पवन कुमार गौतम का सेब की नर्सरी का उद्योग डगमगा गया था, मगर इस तकनीक ने उन्हें नई राह दिखाई। जानिए क्या है रूटस्टॉक मल्टीप्लीकेशन तकनीक।
- गन्ने की खेती में करें प्राकृतिक हार्मोन्स का इस्तेमाल, पाएँ दो से तीन गुना ज़्यादा पैदावार और कमाईइथ्रेल और जिबरैलिक एसिड जैसे पादप वृद्धि हार्मोन्स के इस्तेमाल से सिंचाई और अन्य पोषक तत्वों की ज़रूरत भी कम पड़ती है। हालाँकि, यदि सिंचाई और पोषक तत्व भरपूर मात्रा में मिले तो पैदावार अवश्य ज़्यादा होता है, लेकिन इससे खेती की लागत बेहद बढ़ जाती है। गन्ने की पैदावार कम होने का दूसरा प्रमुख कारण कल्लों का अलग-अलग समय पर बनना भी है। यदि कल्लों का विकास एक साथ हो तो वो परिपक्व भी एक साथ होंगे तथा उनका वजन भी ज़्यादा होगा, उसमें रस की मात्रा और मिठास भी अधिर होगी। लिहाज़ा, गन्ने की खेती में यदि कल्ले बेमौत मरने से बचा जाएँ तभी किसान को फ़ायदा होगा।
- मोती की खेती में लागत से लेकर सीप तैयार करने तक, आमदनी का गणित जानिए ‘किसान विद्यालय’ चलाने वाले संतोष कुमार सिंह सेसंतोष कुमार कहते हैं कि किसी और काम को करते हुए आप मोती की खेती (Pearl Farming) की शुरुआत कर सकते हैं। फिर चाहे आप पहले से कोई नौकरी कर रहे हों, डेयरी बिज़नेस में हों या किसी और फ़ील्ड में काम कर रहे हों।
- जानिए सब्जियों की खेती में दिल्ली से हिमाचल गया युवा कैसे बना मिसाल, अच्छी नौकरी छोड़ी अपनाई खेतीसब्ज़ियों की खेती अगर सही तरीके से और वैज्ञानिकों की सलाह से की जाए तो इससे अच्छा मुनाफ़ा कमाया जा सकता है। हिमाचल प्रदेश के किसान रमेश कुमार इसकी बेहतरीन मिसाल हैं, जिन्होंने नौकरी छोड़ खेती को पेशा बनाया।
- एकीकृत कृषि को अपनाकर आप कैसे ले सकते हैं फ़ायदा? रिटायर्ड फौजी का रहे लाखों की कमाईअगर इंसान में कुछ करने की चाहत हो, तो उम्र या हालात कोई मायने नहीं रखते। इसकी बेहतरीन मिसाल हैं जम्मू-कश्मीर के रिटायर्ड फौजी नसीब सिंह, जो 78 साल की उम्र में भी खेती और उससे जुड़ी गतिविधियों से लाखों की कमाई कर रहे हैं।
- अनार की फसल पर लगने वाले बैक्टीरियल ब्लाइट रोग का ऐसे किया प्रबंधन, अनार उत्पादकों की बढ़ी आमदनीफलों में अनार काफी महंगा मिलता है और सेहत के लिए बहुत अच्छा माना जाता है। यह खून बढ़ाने में मददगार है। कर्नाटक के तुमकुरू जिले में अनार की अच्छी पैदावार होती है, मगर पिछले कुछ सालों से यहां के किसान अनार में लगने वाले बैक्टीरियल ब्लाइट रोग से परेशान है जिससे फसल की बहुत हानि होती है। मगर कृषि विज्ञान केंद्र ने अब इसका भी हल निकाल लिया।
- Potato Planter Machine: पोटैटो प्लांटर मशीन क्यों है आलू की खेती में फ़ायदेमंद? जानिए इसकी ख़ासियत और दामपहले हाथ से ही आलू की बुवाई की जाती थी, जो किसानों के लिए एक धीमी और चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया हुआ करती थी। अब एडवांस पोटैटो प्लांटर की मदद से आलू की बुवाई की प्रक्रिया सहज हो गई है।
- Poultry Farming: मुर्गी पालन के लिए चुनी उन्नत नस्ल, जानिए कैसे अंडमान के इन किसानों की तकदीर बदल रहा ‘वनराजा’कई ऐसे किसान हैं, जिनके पास खेती के लिए ज़मीन नहीं है या बहुत कम ज़मीन हैं, तो उनके लिए मुर्गी पालन आमदनी का बेहतरीन ज़रिया है। लेकिन इसके लिए सही नस्ल और वैज्ञानिक तकनीक की जानकारी ज़रूरी है।
- Makhana Farming: मखाने की खेती आप कई तरह से कर सकते हैं, जानिए इससे जुड़ी सभी बातेंमखाने की खेती के लिए गर्म मौसम और पानी की भरपूर उपलब्धता ज़रूरी है, तभी तो तालाब और पोखर वाले इलाके में इसकी खूब खेती होती है। इसकी खेती की कई उन्नत तकनीकें कृषि संस्थानों ने सुझाई हैं। क्या हैं वो तकनीकें? जानिए इस लेख में।
- परवल की खेती (Pointed Gourd): जानिए परवल की उन्नत किस्मों के बारे में, बाज़ार में अच्छा चल रहा परवल का भावपरवल की खेती के प्रति किसानों का रुझान बढ़ा है। इसका उपयोग मुख्य रूप से सब्जी, अचार और मिठाई बनाने के लिए किया जाता है। क्या इसका दाम है? देश के अलग-अलग हिस्सों में कैसे इसकी खेती जाती है? परवल की खेती से जुड़ी है कई अहम बातों के बारे जानिए।