सॉफ़्टवेयर इंजीनियर ने बनाई देसी गायों की बड़ी गौशाला, ऐसे करें देसी गायों की पहचान
देसी गायों को कम फ़ायदेमंद मानकर ज़्यादातर मवेशी पालकों ने जर्सी नस्ल की राह अपनाई, लेकिन इस सॉफ़्टवेयर इंजीनियर ने बदल दी सोच
पशुपालक ऐसे मवेशियों को पालना पसंद करते हैं, जिन्हें पालने में लागत कम से कम हो और मुनाफ़ा अधिक मिले। अच्छे वातावरण का असर देसी गायों की दूध देने की क्षमता पर पड़ता है, ऐसे में हेता डेयरी ने देसी गायों की बड़ी गौशाला बना इनकी अहमियत सबके सामने रखी है।
भारत में पशुपालन मुख्य तौर पर दुग्ध उत्पादन के लिए ही किया जाता है। दूध की खुदरा बिक्री से लेकर प्रोसेसिंग तक लाखों पशुपालकों की आय का ज़रिया है। वैसे तो हमारे देश में भैंस, बकरी, ऊंट का दूध भी मिलता है, लेकिन गाय के दूध की मांग सबसे ज़्यादा रहती है। पशुपालक ऐसे मवेशियों को पालना पसंद करते हैं, जिन्हें पालने में लागत कम से कम हो और मुनाफ़ा अधिक मिले। ऐसी ही गायों की तीन देसी नस्ल के बारे में हम आपको इस लेख में बताएंगे।
कैसे हुई हेता डेयरी की शुरुआत
गाजियाबाद के सिकंदरपुर गांव के रहने वाले असीम सिंह रावत ने अपने गौशाला में 750 से ज़्यादा देसी गाय पाली हुई हैं। इन देसी गायों का पशुधन देश ही नहीं विदेश भी जाता है। उनका ये फ़ार्म हेता डेयरी के नाम से जाना जाता है। 15 साल तक बतौर सॉफ़्टवेयर इंजीनियर की नौकरी करने वाले असीम आज देसी गायों के पालन के मामले में एक मिसाल बन गए हैं। बतौर इंजीनियर महीने की चार पांच लाख की सैलरी लेने वाले असीम रावत ने अपने पैशन को चुनते हुए हेता डेयरी की शुरुआत की। उन्होंने अपनी सारी बचत इस डेयरी को खड़ा करने में लगा दी।
ऐसे करें शुद्ध देसी नस्ल गाय की पहचान
इस हेता डेयरी में गिर, साहीवाल और थारपारकर जैसी देसी नस्ल की गाय हैं। असीम रावत किसान ऑफ़ इंडिया से खास बातचीत में बताते हैं कि कई लोग शुद्ध नस्ल बोलकर मिश्रित नस्ल की गाय बेच देते हैं। ऐसे में इनकी पहचान कैसे करनी चाहिए, इसकी जानकारी होना बेहद ज़रूरी है। हर नस्ल की गाय की अपनी पहचान होती है।
साहीवाल गाय- दूध देने की अच्छी क्षमता
साहीवाल गाय का जिक्र करते हुए असीम रावत बताते हैं कि साहीवाल गाय की मांग न सिर्फ देश के कई राज्यों में रहती है, बल्कि विदेशों में भी साहीवाल नस्ल ने ख्याति प्राप्त की है। इस गाय की विशेषता है कि इनका रंग गहरा भूरा होता है, कोई दाग इसमें नहीं होता। कोई दाग होता भी है तो पेट के नीचे होता है। पेट के पास से चमड़ी ढीली होती है। छोटा सिर और छोटे सींग होते हैं। कद काठी में यह भारी और छोटी होती है।
साहीवाल गाय की दूध देने की क्षमता अच्छी होती है। ये स्वभाव से शांत मिजाज़ की होती हैं। इनसे दूध निकालने की प्रक्रिया आसान होती है। इनके पोषक तत्व का जिक्र करते हुए असीम रावत बताते हैं कि ये मौसमी चारा खाती हैं। इन्हें चारे के रूप में मक्का, ज्वार,जौ, गेंहू का भूसा, चुकंदर, अंकुरित चारा दिया जाता है। हेता डेयरी में चारा चौबीस घंटे दिया जाता है। असीम रावत बताते हैं कि शुद्ध नस्ल की साहीवाल गाय की बाज़ारी कीमत लगभग 3 लाख तक हो सकती है। इन गायों से A-2 दूध मिलता है, जो सेहत का खजाना कहा जाता है। A-2 गुणवत्ता का दूध आसानी से पच जाता है। जिन लोगों को लैक्टोज से एलर्जी होती है, उनके लिए भी ये दूध अच्छा होता है।
थारपारकर गाय- रेगिस्तान क्षेत्र में भी रहने की क्षमता
थारपारकर गाय का रंग शुद्ध सफेद होता है। इनके पेट के नीचे की खाल लटकी होती है। सिंग की बनावट गोल होती है। थारपारकर के बहुत लंबे सिंग नहीं होते, जो इसे दूसरी नस्लों से अलग करते हैं। इस गाय को लेकर एक रिसर्च है कि ये रेगिस्तान क्षेत्र में भी रह सकती है। चारे को लेकर इनकी कोई विशेष ज़रुरत नहीं होती। इनको मौसमी जो मिलता है, वो ये चूसकर खा लेती हैं। आनुवंशिक रूप से ये गाय सेहतमंद मानी जाती है। ऐसे में इन्हें जितना ज़्यादा और अच्छा चारा मिलेगा ये उतना अच्छा बढ़ती हैं। कद काठी में ये साहिवाल की तरह ही होती है, इसलिए इसे सफेद साहिवाल भी कहा जा सकता है।
गिर गाय- ब्राजील की अर्थव्यवस्था को दी उछाल
गिर नस्ल की गाय देसी गाय नस्लों में सबसे मशहूर है। मुख्य रूप से गुजरात में पाए जाने वाली ये गाय राजस्थान, महाराष्ट्र में भी पाई जाती है। मध्य प्रदेश, हरियाणा, उत्तर प्रदेश से लेकर यह नस्ल ब्राजील तक फेमस है। इनके कान की बनावट झुमके की तरह होती है। इनका माथा उलटे तवे की तरह होता है। इनके सिंग सर से नीचे की ओर जाते हुए ऊपर की तरफ उठते हैं। इनका रंग भूरा होता है, जिसमें सफेद धब्बे होते हैं। ये एकदम भूरे रंग की नहीं होती। एकदम सफेद भी नहीं होती। इनमें कोई न कोई धब्बे ज़रूर होते हैं।
असीम रावत बताते हैं कि गिर की मांग काफ़ी तेजी से बढ़ी है। ब्राजील ने गिर समेत कई नस्ल की गायों पर बड़ा काम किया है। ब्राजील की अर्थव्यवस्था को स्थिर करने में इन देसी गायों की बड़ी भूमिका है। 200 साल पहले जहाज़ों में ब्राजील से लोग भारत आए और गिर गाय को अपने साथ ले गए। उन्होंने जेनेटिकली गिर गाय पर काम किया। गिर को बतौर नस्ल और बेहतर बनाया, जिससे इनकी दूध देने की क्षमता में इज़ाफ़ा हुआ। गिर गाय दिन में दो लीटर से लेकर 16 लीटर तक दूध दे देती हैं।
असीम रावत बताते हैं कि अगर मादा गिर अच्छा दूध देती है तो संभावना रहती है कि उसका बछड़ा भी अच्छा दूध देगा। गिर नंदी का DNA का जो हिस्सा बछड़े में आया है वो दूध की गुणवत्ता को खराब नहीं करेगा, लेकिन इसकी गारंटी नहीं रहती। वहीं गिर नंदी की भी गिर गाय की तरह समान विशेषताएं होती है। गिर नंदी लेते समय ये ज़रूर ध्यान रखें कि वो दिखने में पौरुष कद काठी प्रवृत्ति की हो। अच्छे नंदी की पहचान करना बहुत ज़रूरी है। असीम रावत बताते हैं कि गिर नंदी अगर आपको भावनगर के गिर के ब्रीडर प्रदीप सिंह से मिल जाए तो इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता। उनके पास बेहतर और पुरानी नस्लें हैं। इनकी कीमत काफ़ी होती है। गिर नंदी की कीमत 15 लाख तक भी पहुंच जाती है। गिर नंदी को पालन के लिए उसके पोषण का ध्यान रखने की ज़रूरत होती है। उसके विकास के लिए प्रचुर मात्रा में प्रोटीन देना चाहिए।
बछड़ों के रखरखाव का ऐसे रखें ख्याल
हेता डेयरी में बछड़ों के रखरखाव पर भी खास ध्यान दिया जाता है। असीम रावत बताते हैं कि उन्हें बछड़ों के लिए वैक्सीनेशन की ज़रूरत नहीं पड़ती। वैक्सीनेशन तब ज़रूरी होता है जब आपकी गायों का बाहर आना-जाना काफ़ी हो, वो बाहर घूमने जाती हों, लेकिन हेता पूरी तरह से बंद है। हेथा में अंदर ही काफ़ी जगह है, जहां वो आराम से घूम सकती हैं। साथ ही बछड़ों में ध्यान देने की ज़रूरत है कि आप उसे सही मात्रा में दूध दें। बछड़ों को दो थन का दूध मिलन चाहिए।
गायों को दें तनाव मुक्त वातावरण
असीम रावत कहते हैं कि इन देसी गाय का गौमूत्र और गोबर का इस्तेमाल आयुर्वेदिक दवाई बनाने में होता है। देसी गायों का पालन करना एक बेहतरीन विकल्प है, क्योंकि इनके पशुधन को कई तरह से इस्तेमाल में लाया जा सकता है। वहीं गायों को खुले मैदान में रखना चाहिए। जैसे इंसान तनाव मुक्त वातावरण पसंद करता है, वैसा ही स्वभाव इन देसी गायों का भी होता है, जिन्हें ऐसा ही वातावरण पसंद होता है।
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