पद्मश्री सम्मानित बाटा कृष्ण साहू से जानिए मछली पालन के गुर

मछली पालन की शुरुआत के लिए बाटा कृष्ण साहू ने पट्टे पर तालाब लिया था। कृषि विज्ञान केंद्र और आईसीएआर ने उनकी पूरी मदद की।

बाटा कृष्ण साहू मछली पालन ( Bata Krushna Sahoo fish farming )

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में पद्म पुरस्कार विजेताओं को सम्मानित किया। इन्हीं में से एक हैं बाटा कृष्ण साहू जो ‘बाटा बाबू’ के नाम से मशहूर हैं । उन्हें मछली पालन में उच्च योगदान के लिए देश के चौथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्मश्री से नवाज़ा गया। अस्सी के दशक में बाटा कृष्ण साहू ने मछली पालन की शुरुआत की। उन्होंने नई तकनीकों को अपनाकर मछली पालन के क्षेत्र में कई उपलब्धियां हासिल की हैं।

बाटा कृष्ण साहू ( Bata Krushna Sahoo )
तस्वीर साभार: President of India (Twitter)

किसान ऑफ़ इंडिया से खास बातचीत में बाटा कृष्ण साहू ने इस सम्मान के मिलने पर अपनी खुशी ज़ाहिर की और आगे भी इस क्षेत्र को बढ़ावा देने की दिशा में काम करते रहने की बात कही। 

बाटा कृष्ण साहू मछली पालन ( Bata Krushna Sahoo fish farming )

 

पट्टे पर तालाब खरीदकर शुरू किया मछली पालन

ओडिशा के खुर्दा ज़िले के सरकाना गांव के रहने वाले 71 साल के बाटा कृष्ण साहू ने जब मछली पालन की शुरुआत की, तो उन्हें इसके बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं थी। उन्होंने ICAR- सेंट्रल इंस्टिट्यूट ऑफ़ फ़्रेशवॉटर एक्वाकल्चर और कृषि विज्ञान केंद्र के सहयोग से मछली पालन की बारीकियां जानी। 1986 में बाटा कृष्ण साहू ने अपने गाँव में 0.3 एकड़ का एक तालाब पट्टे पर लिया। तीन साल के लिए पट्टे पर लिए इस तालाब के लिए उन्होंने 12 हज़ार रुपये चुकाये।

वैज्ञानिकों की सलाह को ध्यान में रखकर किया मछली पालन

उन्होंने इस तालाब में 40 से 80 ग्राम वजनी 4 हज़ार लार्वा डाले । इन मछली के बच्चों को आहार में गेहूं के आटे, चावल की भूसी और मूंगफली के तेल को मिलाकर तैयार किया गया चारा खिलाया। ये सब उन्होंने वैज्ञानिकों की सलाह के बाद ही किया। जनवरी 1987 में उन्हें 600-800 ग्राम वजन वाली लगभग 1.3 से 1.4 टन मछलियों का पहला उत्पादन मिला। इन मछलियों को उन्होंने स्थानीय बाज़ार में बेच दिया।

बाटा कृष्ण साहू मछली पालन ( Bata Krushna Sahoo fish farming )
सांकेतिक तस्वीर

पद्मश्री सम्मानित बाटा कृष्ण साहू से जानिए मछली पालन के गुरएक साल के अंदर ही मुनाफ़े के साथ वापस आ गया पैसा

इसके बाद पट्टे पर लगाई गई राशि के अलावा, उन्होंने 13 हज़ार रुपये का और निवेश किया। पट्टे की रकम से लेकर लगाया गया सारा पैसा एक साल के अंदर ही उन्हें वापस मिल गया। 12 हज़ार रुपये का सीधा मुनाफा हुआ।

बीज उत्पादन की ऐसे हुई शुरुआत

हर साल वो दूर-दराज इलाकों के विक्रेताओं से स्पॉन यानी बीज खरीदकर लाते थे। इससे होता ये था कि आने-जाने में लंबा वक़्त लगने के कारण तालाब में मछलियों की मृत्यु दर ज़्यादा थी। इसके बाद उन्होंने खुद ही बीज उत्पादन में उतरने का फैसला किया। 1988 में साहू ने हापा प्रजनन पद्धति (Hapa breeding method) से अपने तालाब के पास ही अच्छी गुणवत्ता वाले कार्प स्पॉन का उत्पादन करना शुरू कर दिया। इसमें खुर्दा स्थित कृषि विज्ञान केंद्र ने उनकी पूरी मदद की।

बाटा कृष्ण साहू मछली पालन ( Bata Krushna Sahoo fish farming )
तस्वीर साभार: National Fisheries Development Board

बीज के उत्पादन में क्यों है ज़्यादा मुनाफ़ा?

पहले बैच में 4 लाख स्पॉन का उत्पादन हुआ। फिर उन्हें 60 दिनों के लिए तालाब में छोड़ दिया गया। अच्छे चारे से लेकर साहू ने इनके रखरखाव पर खासा ध्यान दिया। इसका नतीजा ये रहा कि दो महीने के अंदर ही कुछ मछलियों के बच्चों को बेचकर 8 हज़ार तक की आमदनी हुई। बस फिर क्या, साहू समझ चुके थे कि छोटे तालाबों में मछली के बीज का उत्पादन करना मछली पालन की तुलना में ज़्यादा फ़ायदेमंद है।

पद्मश्री सम्मानित बाटा कृष्ण साहू से जानिए मछली पालन के गुर
सांकेतिक तस्वीर

पद्मश्री सम्मानित बाटा कृष्ण साहू से जानिए मछली पालन के गुरICAR-CIFA की कई तकनीकों को अपनाया

आईसीएआर-सेंट्रल इंस्टिट्यूट ऑफ़ फ़्रेशवॉटर एक्वाकल्चर द्वारा विकसित की गई कई तकनीकों की टेस्टिंग भी बाटा कृष्ण साहू फ़ार्म में हुई। उन्होंने ICAR-CIFA और कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा ईज़ाद की गई कई तकनीकों जैसे कार्प ब्रीडिंग, बीज उत्पादन, ब्रूड पालन और ग्रो-आउट कल्चर को अपनाया।

बीज उत्पादन के लिए फ़ार्म में दो हेचरी

बाटा कृष्ण साहू ने अपने फ़ार्म पर 150 से 200 मीटर की दूरी पर दो कार्प हेचरी भी बनवाईं। इनमें स्पॉन, फ्राई, देसी-विदेशी कार्प, सुनहरी मछलियों ( Golden Fish ) का उत्पादन शुरू किया। हर सीज़न में इन दोनों हैचरी में लगभग 160-200 मिलियन स्पॉन और पांच मिलियन कार्प का उत्पादन होता है।

2017 में उन्होंने नेशनल फिश फ़ार्मर्स ब्रूड बैंक से जयंती रोहू मछली और कतला मछली के ब्रूडर खरीदे और तब से वे उन्नत किस्म के बीज का उत्पादन कर रहे हैं। साहू पहले ऐसे हेचरी के मालिक हैं, जिन्होंने एनएफएफबीबी (National Fresh Water Fish Brood Bank) के साथ एमओयू साइन किया हुआ है।

बाटा कृष्ण साहू मछली पालन ( Bata Krushna Sahoo fish farming )
तस्वीर साभार: National Fisheries Development Board

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