रासायनिक खेती की जगह जैविक खेती की ओर बढ़ रहे किसान, हो रहा है मुनाफा

Organic farming in hindi सब्जियों की उपज के लिए ज्यादातर रासायनिक खादों का इस्तेमाल करते हैं। इसका कारण ये रहता […]

Indian farmer doing organic farming benefits in hindi

Organic farming in hindi सब्जियों की उपज के लिए ज्यादातर रासायनिक खादों का इस्तेमाल करते हैं। इसका कारण ये रहता है कि खेती में कीड़े नहीं लगे और उपज भी अच्छी और जल्दी हो जाए लेकिन रासायनिक खेती बेहद हानिकारक होती है। इससे हमारी सेहत पर सीधा असर पड़ता है। लेकिन देश का अन्नदाता धीरे-धीरे अपनी फसल को बेहतर बनाने में जुटा हुआ है। जिससे देश में अनाज की कमी न हो पाए।

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छत्तीसगढ़ के किसान कर रहे हैं शुरुआत

जैविक खेती की पहल छत्तीसगढ़ में कांकेर जिले के दुर्गूकोंदल ब्लाक स्थित गोटूलमुंडा ग्राम की गई है। जहां में देखने को मिल रहा है। यहां करीब 450 से ज्यादा किसानों ने जैविक खेती को अपनी आजीविका बनाया है। क्षेत्र में 9 तरह के सुगंधित धान चिरईनखी, विष्णुभोग, रामजीरा, बास्ताभोग, जंवाफूल, कारलगाटो, सुंदरवर्णिम, लुचई, दुबराज के अलावा कोदो, कुटकी, रागी और दलहन-तिलहन फसलों का भी उत्पादन किया जा रहा है।

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जैविक खेती का उद्देश्य

किसानों ने जैविक खेती का पहल पर्यावरण की सुरक्षा, मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने और अच्छी गुणवत्ता की फसलों के लिए की है। गोटूलमुंडा गांव के किसानों ने 2016-17 में जैविक खेती की शुरुआत की। जिसमें कृषि विभाग ने भी सहयोग दिया। जैविक खेती को किसानों ने ‘स्वस्थ्य उगाएंगे और स्वस्थ्य खिलाएंगे’ नाम दिया और इसी सोच के साथ 6 गांवों के करीब 200 किसानों ने ’किसान विकास समिति’ का गठन कर लिया। और इस तरह गांव में एक नए तरीके की खेती का शुभारंभ हुआ। किसानों की जैविक खेती को देखते हुए जिला प्रशासन ने सहयोग दिया और समिति को हरित क्रांति योजना, कृषक समरिद्धि योजना और मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना जैसी योजनाओं से जोड़कर प्रशिक्षण के साथ बाकी सुविधाएं मुहैया कराई।

कैसे हुई जैविक खेती की शुरुआत

शुरुआत में समिति के सभी किसानों ने आपस में बातचीत कर रणनीति बनाई। फिर अपनी-अपनी जमीन पर एक सामान फसल लगाना शुरू किया। फसल के लिए खाद भी किसानों ने खुद तैयार की। समिति के किसानों ने खाद के लिए गाय के गोबर, पेड़-पौधों के हरे पत्तों और धान के पैरा को जलाने की बजाय इसे एक साथ मिलाकर डिकंपोज करके खाद बनाया। इसके बाद कीटों से रक्षा के लिए किसानों ने रासायनिक कीटनाशक का इस्तेमाल नहीं किया बल्कि जैविक कीटनाशक करंज, सीताफल, नीलगिरी, लहसून, मिर्ची जैसे पौधों का इस्तेमाल किया। इनकी कड़वाहट ने कीटों को फसलों से दूर रखा। जिसका दुष्प्रभाव पौधों और जमीन पर भी नहीं पड़ा।

ऐसे की मुश्किल आसान

किसी भी फसल के लिए पानी बहुत जरुरी होता है। ऐसे में जैविक खेती के लिए चुनौती पानी था। पानी के लिए गांव के नाले को पंप से जोड़ा गया। वहीं कहीं ट्यूबवेल की खुदाई करवाई गई। जिससे इलाके में पानी की किल्लत दूर हो गई। फसल कटने के बाद किसान उसे समिति में इकट्ठा कर एक साथ बाजार में या सरकार को बेच देते हैं। इस तरह जैविक खेती का ये तरीका सबसे अलग और बेहतरीन है।

आपको बता दें गोटूलमुंडा के किसानों को प्रति एकड़ धान की जैविक खेती में लागत करीब 4 हजार रूपए आता है। जिसमें 10 से 12 क्विंटल धान का उत्पादन होता है वहीं रासायनिक खेती में यही लागत 8 से 9 हजार के बीच है और उत्पादन 17 से 18 क्विंटल का होता है। लेकिन रासायनिक खेती की बजाय जैविक खेती सुरक्षित है क्योंकि रासायनिक खेती से लोगों के स्वास्थ्य पर असर पड़ता है।

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