सूरजमुखी ऐसी तिलहनी फ़सल है जिसकी खेती दुनिया में बड़े पैमाने पर होती है। इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि सूरजमुखी में हरेक किस्म की मिट्टी और जलवायु में फलने-फूलने की क्षमता पायी जाती है। इसे सिंचाई के लिए कम पानी की ज़रूरत होती है, क्योंकि इसमें सूखा सहनशीलता का गुण होता है। सूरजमुखी की खेती को कम लागत में तथा आसानी से किया जा सकता है। सूरजमुखी के बीजों से उच्च गुणवत्ता वाला खाद्य तेल प्राप्त होता है। इसीलिए बाज़ार में इसकी उपज बहुत आसानी से तथा अच्छे दाम पर बिकती है।
पूरे साल हो सकती है सूरजमुखी की खेती
सूरजमुखी का तेल ग्रामीण कोल्हू या घानी से भी आसानी से निकाला जा सकता है। लिहाज़ा, किसानों के पास सीधे इसका तेल निकालकर बेचने और ज़्यादा दाम पाने का विकल्प भी होता है। इसकी खेती पूरे साल यानी ख़रीफ़, रबी और जायद जैसे सभी मौसम में की जा सकती है। लेकिन मौसम के हिसाब से इसकी फ़सल के पकने का समय अलग-अलग होता है। जैसे ख़रीफ़ वाली सूरजमुखी 80 से 90 दिनों में तैयार होती है तो रबी वाली 105 से 130 दिनों में और जायद वाली उपज 110-115 दिनों में मिलती है।
तिलहनी फ़सलों के लिहाज़ से दुनिया में सोयाबीन और मूँगफली के बाद तीसरा स्थान सूरजमुखी का ही है। लेकिन भारत में मूँगफली, सरसों और सोयाबीन के बाद सूरजमुखी को चौथा स्थान हासिल है। सूरजमुखी में 45 से 50 प्रतिशत तक तेल पाया जाता है। इसके तेल का रंग हल्का पीला और ख़ुशबूदार होता है। यह विटामिन ए, डी और ई का अच्छा स्रोत है। सूरजमुखी के दानों को कच्चा और भूनकर भी खाया जाता है।
हृदय रोगियों के लिए सर्वोत्तम खाद्य तेल
सूरजमुखी के तेल में क़रीब 64 फ़ीसदी लिनोलिक अम्ल पाया जाता है, जो मनुष्य के हृदय में कोलेस्ट्राल को कम करने में सहायक होता है। इसीलिए हृदय रोगियों के लिए सूरजमुखी के तेल को उत्तम माना गया है। सूरजमुखी की खली में 40 से 44 प्रतिशत प्रोटीन होता है। इसीलिए इसे मुर्गियों और पशुओं के लिए भी उत्तम आहार माना जाता है। इस खाद्य तेल का इस्तेमाल ‘बेबी फूड’ और सौन्दर्य प्रसाधनों के निर्माण में भी होता है।
जलवायु
सूरजमुखी की फ़सल पर धूप का ख़ूब असर पड़ता है। इसके पौधों को जमाव के समय सर्दी जैसा तापमान, जमाव के बाद से लेकर पकने की अवस्था तक गर्मियों और भरपूर धूप वाले साफ़ मौसम की आवश्यकता होती है। पौधों में फूल आने के वक़्त यदि वातावरण में नमी ज़्यादा हो, या बारिश हो जाए या ज़्यादा वक़्त तक खेतों पर बादल छाये रहे तो सूरजमुखी के फूलों में दाना बनने प्रक्रिया पर बुरा असर पड़ता है। इसी तरह, बीजों के पकने की अवस्था में यदि तापमान ज़्यादा रहने लगे तो बीजों में लिनोलिक अम्ल की मात्रा घट जाती है।
मिट्टी और खेत की तैयारी
सूरजमुखी की खेती के लिए सबसे बढ़िया मिट्टी दोमट होती है। इसका pH मान 6.5 से 8.5 के बीच होना चाहिए। उदासीन, गहरी, अच्छी जल निकासी वाली और सिंचाई की उत्तम सुविधा वाले खेतों में मूरजमुखी की शानदार पैदावार मिलती है। हल्की मिट्टी वाले खेतों में 1 या 2 गहरी जुताई तथा दो जुताई हैरो से करके खेत को खरपतवार रहित बना लेना चाहिए। मध्यम और भारी मिट्टी वाले खेतों में बारिश के बाद हैरो से 2-3 जुताई करके खेत को समतल करने के बाद ही सूरजमुखी की बुआई के लायक मानना चाहिए।
बुआई का समय
सूरजमुखी की बुआई भले ही पूरे साल हो सकती है लेकिन ऐसे समय में बुआई नहीं करें जब फूल और दाने बनते समय ज़्यादा बारिश होने या तापमान भी 38° सेल्सियस से अधिक रहने की सम्भावना हो। इसीलिए ख़रीफ़ की फ़सल के लिए जून के आख़िरी हफ़्ते से लेकर जुलाई के अन्तिम सप्ताह तक बुआई कर लेनी चाहिए। रबी की फ़सल के लिए अक्टूबर से नवम्बर तक का वक़्त बुआई के लिए उपयुक्त होता है, तो जायद की फ़सल के लिए जनवरी के अन्तिम सप्ताह से लेकर फरवरी के आख़िरी हफ़्ते तक बुआई कर लेनी चाहिए।
बीज की मात्रा और इसका चयन
सूरजमुखी की उत्तम खेती के लिए भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद के वैज्ञानिकों ने क़रीब दर्ज़न भर उन्नत बीजों के विकसित किया है। बीजों के इन प्रजातियों को संकुल और संकर किस्मों के रूप में बाँटा गया है और देश के अलग-अलग राज्यों के लिए अलग-अलग नस्लों की सिफ़ारिश की है। किसानों के चाहिए कि सूरजमुखी की खेती में बढ़िया मुनाफ़ा पाने के लिए वो अपने इलाके लिए प्रस्तावित बीजों का ही चयन करें। रही बात बीज-दर की तो इसके बाद वैज्ञानिकों का मानना है कि सूरजमुखी की संकुल किस्मों के लिए 10 से 12 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और संकर किस्मों के लिए क़रीब 6 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीजों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
सूरजमुखी की संकुल और संकर प्रजातियाँ तथा उनके लिए प्रस्तावित इलाका | ||
प्रदेश | संकर प्रजातियाँ | संकुल प्रजातियाँ |
महाराष्ट्र | MSFH 8, KBSH 1, MSFH 17, LSH 1, LSH 3, PAC 36, PAC 1091, MLHFH 47, KBSH 4, DRSH 1 और LSFH 35 | मॉडर्न, सूर्या, LS 11, DRSF 108, DRSF 113, TAS 82 और LS 8 |
कर्नाटक | ज्वालामुखी, सनजीन 85, MSFH 8, MLHFH 47, KBSH 44, DRSH 1, MSFH 17, PAC 36, PAC 1091 और DSH 1 | मॉडर्न, NAUSUF 7, DRSF 108 और DRSF 113, |
तमिलनाडु | MSFH 8, KBSH 1, MSFH 17, ज्वालामुखी, सनजीन 85, PAC 36, PAC 1091, TCSH 1, MLHFH 47, KBS 44 और SH 416 | मॉडर्न, NAUSUF 7, को 1, को 2, DRSF 108, DRSF 113 और KOSFV 5 |
आन्ध्र प्रदेश | APSH 11, MSHF 8, KBSH 1, MSFH 17, ज्वालामुखी, सनजीन 85., PAC 36, PAC 1091, KBSH 44, SH 416, DRSH 1 और NDSH 1 | मॉडर्न, NAUSUF 7, DRSF 108 और DRSF 113 |
पंजाब | KBSH 1, ज्वालामुखी, सनजीन 85, PAC 36, PSFH 67, PSFH 118, KBSH 44 और DRSH 1 | मॉडर्न, DRSF 108 और DRSF 113 |
हरियाणा | KBSH 1, ज्वालामुखी, सनजीन 85, PAC 36, KBSH 44, DRSH 1 और HSFH 848 | मॉडर्न, DRSF 108 और DRSF 113 |
गुजरात | KBSH 1, ज्वालामुखी, सनजीन 85, PAC 36, PAC 1091, MLHFH 47, KBSH 44, SH 41 और DRSH 1 | GAUSUF 15, NAUSUF 7, मॉडर्न, DRSF 108 और DRSF 113 |
अन्य राज्य | KBSH 1, ज्वालामुखी, सनजीन 85, PAC 36, PAC 1091, KBSH 44 और DRSH 1 | NAUSUF 7, मॉडर्न, DRSF 108 और DRSF 113 |
सूरजमुखी का बीजोपचार और बुआई
खेत को तैयार करने और अपने इलाके के अनुरूप उपयुक्त बीजों की प्रजातियों का चयन करने के बाद पंक्तिबद्ध बुआई करनी चाहिए। लेकिन बुआई से पहले बीजोपचार भी बेहद ज़रूरी है। शीघ्र जमाव और सूखे से बचाव के लिए बुआई से पहले सूरजमुखी के बीजों को 12-14 घंटे साफ़ पानी में भिगोने के बाद छायादार जगह में सुखाना चाहिए। बीजजनित बीमारियों से बचाव के लिए थीरम या कैप्टॉन की 2-3 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम के हिसाब से तथा पाउडरी मिल्ड्यू रोग से बचाव के लिए मेटालाक्सिल की 6 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए। दीमक और अन्य कीटों से बचाव के लिए बुआई से पहले इमिडाक्लोप्रिड की 5-6 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए।
बुआई के वक़्त खेत में कतार से कतार के बीच की दूरी 60 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 30 सेंटीमीटर रखना चाहिए। ध्यान रहे कि कम अवधि में पकने वाली संकर प्रजातियों के लिए बुआई के वक़्त कतार से कतार की दूरी 45 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 30 सेंटीमीटर रखना ज़्यादा फ़ायदेमन्द साबित होता है। बुआई के बाद जब बीजों के अंकुरण होकर पौधों का जमाव होने लगे तो ध्यान रखना चाहिए कि पौधों की सघनता ज़्यादा नहीं हो। इससे पैदावार प्रभावित हो सकती है। यदि पौधों का जमाव ज़्यादा घना लगे तो 10-12 दिनों बाद उनके बीच की दूरी को समायोजित कर देना चाहिए।
सूरजमुखी की खेती में खाद और उर्वरक
शीघ्र बढ़ने और ज़्यादा तेल का उत्पादन वाली तिलहनी फ़सल होने के कारण सूरजमुखी को पर्याप्त पोषक तत्व देना बहुत ज़रूरी है। इसके लिए बुआई से 2-3 सप्ताह पहले खेत में 8-10 टन गोबर की सड़ी हुई खाद अथवा कम्पोस्ट खाद का प्रयोग करना चाहिए। इसके अलावा प्रति हेक्टेयर 80-90 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फॉस्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश भी देना आवश्यक है। नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा बुआई के समय प्रयोग करें। शेष नाइट्रोजन की मात्रा को टॉप ड्रेसिंग के रूप में बुआई के 30 और 45 दिनों बाद समान मात्रा में प्रयोग करें।
सूरजमुखी की खेती में सिंचाई
ख़रीफ़ मौसम वाली सूरजमुखी को सिंचाई की कोई ख़ास आवश्यकता नहीं होती। लेकिन सूखा पड़ने की दशा में फूल आने और दाने बनने की अवस्था में सिंचाई का इन्तज़ाम अवश्य करें। रबी और जायद में बुआई से पहले पलेवा करें ताकि बीजों का अच्छा और समान मात्रा में जमाव हो सके। रबी की फ़सल में आमतौर पर तीन-चार बार सिंचाई का ज़रूरत पड़ती है, जबकि जायद की फ़सल में 10-15 दिनों पर सिंचाई करनी चाहिए।
सूरजमुखी की खेती में परपरागण का महत्व
सूरजमुखी की खेती में अच्छी पैदावार पाने के लिए सही वक़्त पर परपरागण होने का विशेष महत्व है। आमतौर पर परपरागण का काम भौरों और मधुमक्खियों के माध्यम से होता है। लेकिन जिस इलाके में प्रकृति के इन परपरागणकर्मियों की कमी हो, वहाँ किसानों के हाथ से परपरागण की क्रिया पूरी करनी चाहिए। इसके लिए किसानों को फूलों के अच्छी तरह से खिलने पर हाथों में दस्ताने पहनकर या किसी मुलायम रोयेंदार कपड़े को सूरजमुखी के फूल के मुंडक पर चारों ओर धीरे-धीरे घुमाना चाहिए। पहले फूल के किनारे वाले भाग पर फिर बीच के भाग पर कृत्रिम परपरागण का ये काम सुबह 7:30 बजे तक कर लेना चाहिए।
सूरजमुखी की खेती में खरपतवार नियंत्रण
सूरजमुखी की फ़सल को जमाव से 60 दिनों तक खरपतवारों से मुक्त रखना आवश्यक है। इसके लिए बुआई के 18-20 दिनों बाद 15 दिनों के अन्तराल पर हाथ से निराई-गुड़ाई करें। फ़सल की लम्बाई जब 60-70 सेंटीमीटर हो जाए तो पौधों पर मिट्टी चढ़ाने का काम करना चाहिए। खरपतवारों के रासायनिक नियंत्रण के लिए पेंडीमेथालीन 1 किलोग्राम अथवा एलाक्लोर 1-1.5 किलोग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर का 600 से 700 लीटर पानी में घोल बनाकर बुआई के 1 से 2 दिन बाद छिड़काव करें।
सूरजमुखी की खेती में रोग और कीट प्रबन्धन
- रस्ट की समस्या: जल भराव की आशंका वाले खेतों में सूरजमुखी की फ़सल को लगाने से बचना चाहिए। फिर भी यदि किसी वजह से फ़सल में पानी लगने की समस्या देखें तो डाईथेन एम-45 अथवा डाईथेन जेड-78 प्रति 25 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर 15 दिनों के अन्तराल पर छिड़काव करें। इसके लिए बीजोपचार के वक़्त भी रस्ट की समस्या से रोकथाम की कोशिश की जाती है और कैप्टॉन अथवा थीरम 3 ग्राम प्रति किलोग्राम अथवा कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज दर के हिसाब से इस्तेमाल किया जाता है।
- अल्टरनेरिया ब्लाइटः इस रोग से बचाव के लिए रोगाणु मुक्त बीजों से बहुत फ़ायदा होता है। इसके अलावा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से फ़सल चक्र अपनाने से भी बहुत सुरक्षा मिलती है।
- डाउनी मिल्ड्यू: रोगरोधी संकर प्रजातियों की बुआई करें। बीजों को मेटालॉक्सिल 6 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित करके बुआई करें।
सूरजमुखी की खेती में कीट नियंत्रण | |
कीट का प्रकार | प्रबन्धन |
कट वर्म | सिंचाई के साथ क्लोरोपाइरीफॉस का 3.75 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। |
केपिटूलम बोरर | इस कीट के अंडों और लार्वा को एकत्रित कर नष्ट कर देना चाहिए। साइपरमेथ्रीन (0.005 प्रतिशत) दवा का 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। |
टोबेको केटरपिलर | इस कीट के अंडों और लावों को एकत्रित करके नष्ट कर देना चाहिए। |
बिहार हेयर केटरपिलर हरा सेमीलूपर | डाईक्लोरवास (0.05 प्रतिशत) अथवा फेनीट्रोथियान (0.05 प्रतिशत) दवा का 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। |
लीफ हॉपर | खेत और मेड़ की साफ़-सफाई रखें। फास्फोमिडान (0.03 प्रतिशत) अथवा डाईमेथोएट (0.03 प्रतिशत) दवा को 500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। अथवा, मेलाथियोन (5 प्रतिशत) अथवा क्यूनालफॉस (5 प्रतिशत) की दर से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर दवा का प्रयोग करें। |
सूरजमुखी की कटाई और मड़ाई
सूरजमुखी के बीजों में नमी की मात्रा 20 प्रतिशत अथवा मुंडकों का पिछला भाग पीला भूरा रंग का हो जाए तब मुंडकों की कटाई करनी चाहिए। काटने के पश्चात मुंडकों को छाया में सुखा लें। इसके बाद डंडे अथवा थ्रेसर से इसकी मड़ाई की जा सकती है। बीजों का भंडारण करते समय नमी की मात्रा 10 प्रतिशत से कम रहनी आवश्यक है।
सूरजमुखी की पैदावार
खेती की उन्नत तकनीकें अपनाकर यदि सूरजमुखी की खेती की जाए तो असिंचित इलाकों में इसकी पैदावार 12-15 क्विंटल तथा सिंचित इलाकों में 20-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की शानदार उपज प्राप्त होती है। इसीलिए सूरजमुखी को खेती को ज़्यादा से ज़्यादा अपनाना किसानों के लिए बढ़िया मुनाफ़े का सौदा साबित होता है।
ये भी पढ़ें- फूलों की खेती: मारूफ़ आलम ख़ान ने गन्ना बेल्ट में उगा डाले रजनीगंधा और ग्लैडियोलस (Gladiolus) के फूल
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।
ये भी पढ़ें:
- Potato Varieties: आलू की 10 बेहतरीन किस्में, जिन्हें उगाने से बढ़ सकती है कमाईये आलू की खुदाई का मौसम है। वैसे हमारे देश के कई इलाकों में तो पूरे साल आलू की पैदावार होती है। यदि आप भी आलू की खेती कर रहे हैं और इससे अपनी आमदनी बढ़ाना चाहते हैं, तो आलू की कुछ खास किस्मों की खेती करें जिसमें पैदावर अधिक होती है।
- Fish Farming RAS Technique: मछली पालन की RAS तकनीक कैसे काम करती है? 30 गुना बढ़ सकता है उत्पादन!Fish Farming RAS Technique: बड़े स्तर पर अगर कोई मछली पालन करने की सोच रहा है तो मछली पालन की RAS तकनीक का इस्तेमाल कर सकते हैं। बशर्ते इसकी पूरी जानकारी हो। जानिए RAS तकनीक में कितना खर्चा लगता है और क्या हैं इससे जुड़े अहम फ़ैक्टर्स।
- Lady Finger Varieties: भिंडी की 10 उन्नत किस्में, जिसे लगाकर किसान कर सकते हैं लाखों की कमाईभिंडी की खेती हर मिट्टी और मौसम में होती है लेकिन दोमट मिट्टी जिसका पीएच मान 6 से 6.8 हो, और गर्म जलवायु हो तो सबसे अच्छी पैदावार होती है।
- Greenhouse Farming Techniques: ग्रीनहाउस खेती क्या है? सब्सिडी से लेकर प्रशिक्षण तक जानें सब कुछइतिहास की किताबों के अनुसार, रोमन किंग टाइबेरियस ककड़ी जैसी दिखने वाली सब्जी रोज़ खाते थे, रोमन किसान सालभर इसे उगाते थे, जिससे वो सब्जी उनकी खाने की प्लेट में हमेशा रहे। ये सब्जी ग्रीनहाउस तकनीक के ज़रिये ही उगाई जाती थी।
- Modern Farming Methods: खेती की आधुनिक तकनीकें जिसे अपनाकर किसान कर सकते हैं सफ़ल खेतीआज के इस मॉर्डन युग में तकनीक का इस्तेमाल हर क्षेत्र में बढ़ा है, ऐसे में भला कृषि कैसे इससे पीछे रह सकती है। आधुनिक तकनीकों से लेकर उपकरणों तक के इस्तेमाल ने किसानों के लिए खेती को न सिर्फ आसान बना दिया है, बल्कि इसे अधिक मुनाफे का सौदा बना दिया है।
- Rice Bran Oil vs Sunflower Oil: जानिए राइस ब्रान ऑयल-सनफ्लॉवर ऑयल में अंतर और ख़ूबियों के साथ इसका बाज़ारराइस ब्रान ऑयल को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार नेफेड के फोर्टिफाइड ब्रैन राइस ऑयल को ई-लॉन्च किया है।राइस ब्रैन ऑयल की मार्केटिंग सभी नेफेड स्टोर्स और ऑनलाइन प्लेटफार्म पर हो रही है।वहीं साल 2024-2032 के दौरान इंडियन सनफ्लावर ऑयल मार्केट 7 फीसदी की CAGR प्रदर्शित करेगा।
- Lemongrass: जानिए लेमनग्रास की खेती में जुड़ी अहम बातें प्रोफ़ेसर डॉ. पंकज लवानिया से, उत्पादन से लेकर प्रोसेसिंग तकबुंदेलखंड जैसे इलाके में जहां पानी की समस्या है और बड़ी मात्रा में ज़मीन बंजर पड़ी रहती है, लेमनग्रास की खेती यहां के किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है। इसकी खेती कम पानी में भी आसानी से की जा सकती है।
- Eucalyptus Farming: सफेदा की क्लोनल किस्मों से किसान कर सकते हैं बढ़िया कमाई, जानिए खेती की तकनीकसफेदा की खेती लकड़ी के लिए की जाती है। इसकी लकड़ी का उपयोग बड़े सामान की लदाई करने वाली पेटियां बनाने के साथ ही ईंधन, फर्नीचर, हार्डबोर्ड और पार्टिकल बोर्ड बनाने में किया जाता है। इसकी मांग हमेशा ही रहती है।
- कैसे औषधीय पौधों की खेती पर किसानों की मदद करता है ये कृषि विश्वविद्यालय, प्रोफ़ेसर विनोद कुमार से बातचीतबुंदेलखंड के किसानों को पारंपरिक खेती के अलावा औषधीय पौधों की खेती के लिए प्रेरित करने के मकसद से झांसी के रानी लक्ष्मीबाई कृषि विश्वविद्यालय में औषधीय पौधों का उद्यान बनाया गया है।
- Aeroponic Technique से बंद कमरे में केसर की खेती, हिमाचल के गौरव ने इंटरनेट से सीख कर शुरू किया केसर उत्पादनगौरव Aeroponic Technique से केसर की खेती करते हैं। इस तकनीक में बंद कमरे में केसर को उगाते हैं। बंद कमरे में कश्मीर के वातावरण को बनाने की कोशिश करते हैं। ये तकनीक मिट्टी रहित होती है।
- Soil Health Management: मिट्टी की जांच से जुड़ी ये बातें जानते हैं आप? मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन कितना ज़रूरी?आपने वो कहावत तो सुनी ही होगी कि नींव मज़बूत होगी, तभी तो मज़ूबत इमारत बनेगी। ठीक इसी तरह मिट्टी की सेहत अच्छी रहेगी, तभी तो अधिक उपज प्राप्त होगी। रसायनों के बढ़ते इस्तेमाल से मिट्टी की उपजाऊ शक्ति लगातार घट रही है, ऐसे में इसकी सेहत बनाए रखने के लिए मृदा प्रबंधन बहुत ज़रूरी… Read more: Soil Health Management: मिट्टी की जांच से जुड़ी ये बातें जानते हैं आप? मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन कितना ज़रूरी?
- Crop Rotation Strategies: खेती में फसल चक्र की कितनी अहम भूमिका? डॉ. राजीव कुमार सिंह ने दिया IFS Model का उदाहरणखेती से अधिक मुनाफा कमाने के लिए किसानों को इसकी कुछ बुनियादी नियमों के बारे में पता होना चाहिए। जैसे कि फसल चक्र। ये मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार और उत्पादन बढ़ाने के लिए बहुत ज़रूरी है, मगर बहुत से किसान इस नियम को भूलकर लगातार एक ही फसल उगा रहे हैं जिससे उन्हें नुकसान उठाना पड़ रहा है।
- क्या हैं Urban Farming Trends? कैसे शहरी खेती बन रही कमाई का ज़रिया?जब शहरों में लोग अपने शौक से थोड़ा आगे बढ़कर घर की छत, बालकनी, कम्यूनिटी गार्डन और घर के नीचे की जगह या घर के अंदर की खाली जगह में वर्टिकल गार्डन बनाकर खेती करने लगते हैं, तो इसे ही शहरी खेती कहा जाता है।
- Integrated Pest Management: क्यों एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM तकनीक) फसलों के लिए है ज़रूरी? जानिए विशेषज्ञ सेखेती की लागत को कम करने और इसे ज़्यादा लाभदायक बनाने के लिए प्रमाणित व उपचारित बीजों का इस्तेमाल, सही मात्रा में उर्वरकों के उपयोग और सिंचाई की उचित व्यवस्था के साथ ही एकीकृत कीट प्रबंधन यानि Integrated Pest Management भी ज़रूरी है।
- Agriculture Equipment : Bed Maker Machine किसानों के लिए है कितनी उपयोगी और मिलेगी कितनी Subsidy?मल्टी पर्पस Bed Maker Machine किसानों के समय की बचत करने के साथ-साथ उनकी आमदनी बढ़ाने में मदद करती है।
- Fish Farming Business: मछली पालन व्यवसाय से जुड़ी अहम जानकारी, जानिए क्या है विशेषज्ञों और अनुभवी मछली पालकों की राय?मछली पालन उद्योग का असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा है। देश के मछुआरों और मछली पालन उद्योग एक बड़े सेक्टर के रूप में उभर कर आया है। भारतीय मत्स्य पालन की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 1980 के दशक में जो मछली उत्पादन 36 फ़ीसदी था, वो बढ़कर आज के वक्त में 70 फ़ीसदी पर पहुंच गया है। जानिए मछली पालन से जुड़े अहम बिंदुओं के बारे में।
- Ragi Crop: रागी की फसल से क्या-क्या तैयार किया जा सकता है? रागी की खेती से जुड़ी अहम जानकारीरागी की फसल (Ragi Crop) मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में सबसे ज़्यादा खेती होती है। केरल, कर्नाटक राज्यों में इसे मुख्य भोजन के रूप में खाया जाता है।
- Sindoor Plant: सिंदूर की खेती कैसे होती है? सिंदूर के पौधे से क्या-क्या बनता है और कहां से लें ट्रेनिंग?आपने अभी तक कई चीज़ों की खेती के बारे में सुना होगा, लेकिन क्या कभी सिंदूर की खेती के बारे में सुना है? कम ही लोग जानते हैं कि सिंदूर का पौधा भी होता है, जिससे ऑर्गेनिक लाल रंग का सिंदूर बनता है। साथ ही और कई उत्पाद बनाए जाते हैं। जानिए सिंदूर का पौधा कैसे उगाया जाता है और सिंदूर की खेती से जुड़ी अहम जानकारियां सीधा एक्सपर्ट से।
- Agriculture Drone क्या है? कृषि ड्रोन में सब्सिडी के लिए कौन सी योजनाएं चलाई जा रही हैं?Agriculture Drone की खरीद के लिए महिला समूह को ड्रोन की कीमत का 80 प्रतिशत या अधिकतम 8 लाख रुपये तक की मदद दी जा रही है। योजना के तहत SC-ST, छोटे व सीमांत, महिलाओं और पूर्वोत्तर राज्यों के किसानों को ड्रोन का 50 प्रतिशत या अधिकतम 5 लाख रुपये अनुदान दिया जा रहा है।
- कैसे महुआ के उत्पाद बनाकर महिलाओं के इस समूह ने कमाल किया है? Bastar Foods आज बना ब्रांडमहुआ एक तरह का फूल है जिसमें बहुत ही तेज़ महक होती है, आमतौर पर इसे शराब बनाने के लिए जाना जाता है, लेकिन अब इससे कई तरह की स्वादिष्ट और हेल्दी चीज़ें बनाई जा रही हैं। जानिए कैसे महुआ के उत्पाद (Mahua Products) बनाकर बस्तर की गुलेश्वरी ठाकुर और उनकी टीम ने इससे लाखों का बिज़नेस खड़ा कर दिया है।