Ganoderma Cultivation Part 3: गैनोडर्मा मशरूम की एक बीजाई से कैसे मिलता है तीन बार फ़सल कटाई का मौका?
गैनोडर्मा की खेती में ‘ऑटोक्लेव’ की कमी को कौन सा घरेलू नुस्ख़ा दूर करेगा?
गैनोडर्मा मशरूम का उत्पादन निजर्मीकृत (sterilized) माध्यम पर कार्बनिक या जैविक विधि से किया जाता है। इससे फ़सल को बीमारियाँ और कीड़े-मकोड़े से सुरक्षित रखना आसान होता है।
गैनोडर्मा की बढ़वार धीमी होती है, लेकिन बीजाई के 3 से 5 सप्ताह में इसकी फ़सल परिपक्व हो जाती है। इसकी उपज पाने के लिए गैनोडर्मा मशरूम को घुमाकर तोड़ लेते हैं। इसे सुखाकर और इसका पाउडर बनाकर, इसका लम्बे समय तक इस्तेमाल कर सकते हैं। गैनोडर्मा के फल को तोड़ने के लिए इन्हें उखाड़कर या प्रूनिंग शीयर्स, स्केटियर, क्लिपिंग कैंची से जड़ से काट लें।
तोड़ने के बाद इस उपज को 7 से 10 दिनों तक छायादार जगह में सुखाएँ और फिर ओवेन या ऑटोक्लेव में 60 डिग्री सेल्सियस पर 4 घंटे तक सूखाकर गैनोडर्मा में नमी के स्तर को 9-10 प्रतिशत तक लाने के बाद पॉलीपैक्स में सील करके सूखी जगह पर भंडारित करना चाहिए। तोड़ते वक़्त गैनोडर्मा मशरूम में क़रीब 60 प्रतिशत नमी होती है। इसीलिए सुखाने पर एक किलोग्राम उपज से 400 ग्राम सूखा गैनोडर्मा प्राप्त होता है।
गैनोडर्मा की एक बीजाई से मिलती है तीन फ़सल
पहली फ़सल की तोड़ाई के बाद शुरुआती दौर का वातावरण फिर से दोहराना चाहिए। इसका मतलब ये है कि कमरे का तापमान फिर से 30 डिग्री सेल्सियस और नमी का स्तर 90 प्रतिशत से ऊपर रखने के अलावा ताज़ा हवा और प्रकाश की उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिए। इसी तरह, पिनिंग के बाद की क्रियाओं को भी हू-ब-हू पूरा किया जाता है। इससे गैनोडर्मा की एक बीजाई (spawning) से तीन बार पैदावार (flush) मिलती है और इसका एक फ़सल-चक्र सम्पन्न होता है।

बीमारियाँ तथा कीड़े मकोड़े
गैनोडर्मा का उत्पादन निजर्मीकृत (sterilized) माध्यम पर कार्बनिक या जैविक विधि से किया जाता है। इससे फ़सल को बीमारियाँ और कीड़े-मकोड़े से सुरक्षित रखना आसान होता है। फिर भी गैनोडर्मा के उत्पादन कक्ष में साफ़-सफ़ाई का भी पूरा ध्यान रखना चाहिए। इसी तरह, उत्पादन कक्ष में छनी हुई (फिल्टर्ड) हवा का प्रवाह होना चाहिए। इसके लिए खिड़की-दरवाज़ों पर महीन जाली लगी होनी चाहिए। दरअसल, गैनोडर्मा पर रासायनिक कवकनाशी का प्रयोग वर्जित है, इसीलिए यदि उत्पादन कक्ष में कोई बीमारी या कीड़े-मकोड़े आ गये तो पैदावार को फेंकने की नौबत आ सकती है।
यदि एकाध कीड़े उत्पादन कक्ष में दिखें तो पीले-बल्ब-ट्रैप (yellow bulb trap) का इस्तेमाल करना चाहिए। इस तकनीक में एक दीवार पर 1 मीटर x 0.5 मीटर की पालीशीट पर कोई तेल लगाकर दीवार पर टाँग दें और उसके ऊपर एक 15 वॉट का पीला बल्ब लटका दें। मक्खियाँ और कीड़े पीली रोशनी की ओर आकर्षित होते हैं और शीट पर लगे तेल में चिपक जाते हैं।
कभी-कभी प्लास्टिक बैग में रखे गये बुरादे के मिश्रण या माध्यम पर कवकजाल के पूरा फैलने से पहले ही हरा फफूँद (ग्रीन मोल्ड्स) का लक्षण दिखायी दे सकता है। यदि ऐसा हो तो पूरे प्लास्टिक बैग को ही उत्पादन कक्ष से बाहर निकालकर कहीं दूर ज़मीन में गाड़ देना चाहिए। ध्यान रहे कि गैनोडर्मा पर किसी कीटनाशक का इस्तेमाल करने से उसकी गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है। इसकी जाँच के दौरान कमी मिलने पर ख़रीदार पूरे उत्पाद को ही बेकार बताकर रिजेक्ट (रद्द) कर देता है।
गैनोडर्मा की प्रोसेसिंग और मार्केटिंग
गैनोडर्मा मशरूम की प्रोसेसिंग के लिए इसके फलों के पिंड या गुच्छे को अच्छी तरह से सुखाकर और कूट-पीसकर इसका पाउडर बनाया जाता है। कई कम्पनियाँ व्यावसायिक उत्पाद के रूप में इसके पाउडर से कैप्सूल बनाती हैं और बाज़ार में 1,100 से 1,300 रुपये प्रति 100 कैप्सूल की दर से और 1,150 से 1,350 रुपये प्रति 50 ग्राम का पाउडर के रूप में बेचती हैं।
गैनोडर्मा मशरूम के पाउडर को पानी में घोलकर भी पी सकते हैं। एक कप पानी में लेमन ग्रास डालकर उसमें थोड़ा शहद और गैनोडर्मा मशरूम पाउडर मिलाकर इसे ग्रीन टी की तरह भी पी सकते हैं। इससे साबुन, क्रीम और टूथपेस्ट भी बनाये जाते हैं। गैनोडर्मा के बीजों का उत्पादन करने वाली महिला समूहों को भी बढ़िया आर्थिक लाभ हासिल होता है। उद्यानिकी विभाग भी आसानी से इसका उत्पादन और प्रचार-प्रसार कर सकते हैं।

गैनोडर्मा का बीज उत्पादन
गैनोडर्मा के बीज (स्पॉन) या मास्टर कल्चर, मास्टर या मदर स्पॉन उत्पादन ठीक उसी तरह से किया जाता है जैसे मशरूम की अन्य प्रजातियों का स्पॉन गेहूँ के दाने से भी बन सकता है। कई देशों में गैनोडर्मा के स्पॉन को लकड़ी के बुरादे पर भी बनाते हैं। प्रयोगशालाओं में गैनोडर्मा के बीजों को तैयार करने के लिए ऑटोक्लेव (या ब्यालर+रिटार्ट), लेमिनारफ्लो (क्लीन एयर स्टेशन) और बी.ओ.डी. इन्क्यूबेटर जैसी सुविधाओं या उपकरणों की ज़रूरत पड़ती है। इन उपकरणों को जुटाना साधारण किसानों के लिए बेहद मुश्किल है। लिहाज़ा, आमतौर पर किसानों को गैनोडर्मा के उच्च गुणवत्ता वाले स्पॉन को प्रमाणिक संस्थाओं से ही ख़रीदने की सलाह दी जाती है।
ऑटोक्लेव की प्रक्रिया का महत्व
‘ऑटोक्लेव’ मशीन काफ़ी हद तक प्रेशर कुकर जैसी होती है। इसके इस्तेमाल से अस्पतालों में सर्ज़री के औज़ारों को संक्रमण मुक्त बनाया जाता है। ऑटोक्लेव मशीन में लकड़ी के टुकड़ों को काग़ज़ में लपेटकर रखा जाता है। ऑटोक्लेव की प्रक्रिया से लकड़ियों के लट्ठों या उन्हें पोषण देने वाले माध्यम को निजर्मीकृत किया जाता है। गैनोडर्मा की खेती में चूँकि किसी भी तरह की दवाई और कवकनाशक के इस्तेमाल की मनाही है, इसीलिए पैदावार को किसी भी ख़तरे से बचाने के लिए ऑटोक्लेव प्रक्रिया की भूमिका बेहद अहम हो जाती है। निजर्मीकरण की प्रक्रिया के लिए वैज्ञानिकों ने उन किसानों के लिए घरेलू नुस्ख़ा भी विकसित किया है, जिसकी बात इसी लेख में हम आगे करेंगे।
निजर्मीकृत का घरेलू नुस्ख़ा
कृषि विज्ञान केन्द्र, पिथौड़ागढ़ के वैज्ञानिक डॉ. अलंकार सिंह का कहना है कि गैनोडर्मा मशरूम की खेती के लिए यदि ‘ऑटोक्लेव’ मशीन सुलभ नहीं हो तो एक लीटर पानी और दो मिलीलीटर फॉर्मलिन के घोल में रात भर लड़की के टुकड़ों को रखना चाहिए। अगले दिन इन्हीं लड़की के टुकड़ों को प्रति लीटर पानी में गेहूँ से बनायी गयी ‘मॉल्ट एक्सट्रैक्ट’ की 0.5 मिलीलीटर मात्रा को मिलाकर बनाये गये एक अन्य घोल में उबाला जाता है। फिर ठंडा होने के बाद लकड़ियों को पॉलिथिन में बाँधकर 45-50 डिग्री सेल्सियस तापमान के लिए धूप में रखा जाता है। इसे सौरीकरण (Solarization) कहते हैं।
इससे लकड़ियों के लट्ठों या उन्हें पोषण देने वाला माध्यम पूरी तरह से जीवाणुरहित या निजर्मीकृत हो जाता है। बुरादा विधि में भी माध्यम को निजर्मीकृत करने के लिए लट्ठों जैसी ही प्रक्रिया को अपनाया जाता है। बुरादा वाले माध्यम के मिश्रण को भी क़रीब 20 घंटे तक पानी में भींगाकर गलाया जाता है। फिर पानी निथारकर इसकी नमी के स्तर को क़रीब 65 प्रतिशत रखा जाता है। फिर इसे घरेलू निजर्मीकृत प्रक्रिया से गुजारा जाता है और बाक़ी प्रक्रिया को वैसे ही पूरा करते हैं, जैसा कि ऊपर बताया गया है।
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‘मॉल्ट एक्सट्रैक्ट’ का घरेलू उत्पादन
गेहूँ के मॉल्ट एक्सट्रैक्ट के घरेलू उत्पादन के लिए सबसे पहले उसके दानों को अंकुरित करें। फिर अंकुरित दानों को गर्म हवा से सुखाने पर यही गेहूँ का माल्ट (Malt) बन जाता है। इस माल्ट में पर्याप्त पानी डालकर इसे तब तक चूल्हे पर गर्म करें जब तक कि इससे निकलने वाला झागदार पदार्थ गाढ़ा हो जाए। इस द्रव को ठंडा होने पर झानकर शीशी में भर लें। यही मॉल्ट एक्सट्रैक्ट है। माल्टन (Malting) से ऐसे एंजाइम पैदा होते हैं जो अन्न में मौजूद स्टार्च (माड़) को शर्करा (glucose) तथा प्रोटीन के ऐसे स्वरूप में बदल देते हैं जिससे खमीर (yeast) या सिरका आसानी से बन जाता है।
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