विदेशी सब्ज़ियों की खेती से कैसे हो सकती है अच्छी कमाई, जानिए सोनीपत के प्रगतिशील किसान राजेश से

विदेशी सब्ज़ियों की खेती कर हरियाणा के किसान राजेश ने वैज्ञानिक तरीके से लाखों की कमाई की, जो किसानों के लिए प्रेरणा बन चुके हैं।

विदेशी सब्ज़ियों की खेती Exotic Vegetables farming

किसान खेती को अगर व्यवसाय की तरह करें और लीक से हटकर फसलें उगाएं यानी पारंपरिक फसलो से इतर कुछ विदेशी फल, फूल और सब्ज़ियों की खेती करें तो अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। इसकी जीती-जागती मिसाल हैं हरियाणा के सोनीपत जिले के रहने वाले किसान राजेश। जो पिछले 15 से भी अधिक साल से विदेशी सब्ज़ियों की खेती कर रहे हैं। वो अपने खेत में 10 से 12 तरह की चाइनीज़ सब्ज़ियों का उत्पादन करते हैं और उसे दिल्ली की आज़ादपुर मंडी में पहुंचाते हैं जो एशिया की सबसे बड़ी सब्ज़ी मंडी है।

वो अपने खेत में ब्रोकली, रेड कैबेज, ब्रसेल्स स्प्राउट्स, सेलरी, लीक जैसे 10 से भी अधिक प्रकार की चाइनीज़ सब्ज़ियों का उत्पादन करते हैं। ये खेती वो वैज्ञानीक तरीके से करते हैं और पूरे क्षेत्र में योजनाबद्ध तरीके से फसलें लगाते हैं। इन सब्ज़ियों की बुवाई सर्दियों में की जाती है और हर साल 2-3 बार फसल ली जाती है। कैसे करते हैं वो विदेशी सब्ज़ियों की खेती और मार्केटिंग, इससे जुड़ी कई अहम जानकारी उन्होंने साझा की किसान ऑफ इंडिया के संवाददाता सर्वेश बुंदेली से।

10 से 12 प्रकार की विदेशी सब्ज़ियों की खेती का उत्पादन (Cultivation and production of 10 to 12 types of exotic vegetables)

चाइनीज़ व्यंजनों में कुछ खास तरह की सब्ज़ियों का इस्तेमाल होता है, जो काफी हेल्दी भी होती है। इन सब्ज़ियों के उत्पादन से किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं, क्योंकि दिनों-दिन चाइनीज़ व्यंजनों की मांग जिस तरह से बढ़ रही है, उसे देखते हुए साफ है कि आने वाले समय में इन सब्ज़ियों की मांग भी बढ़ेगी।

विदेशी सब्ज़ियों के उत्पादन में देसी सब्ज़ियों से अधिक मुनाफा होता है तभी तो हरियाणा के सोनीपत जिले के रहने वाले प्रगतिशील किसान राजेश पिछले 15-20 साल से इन सब्ज़ियों का उत्पादन कर रहे हैं। राजेश बताते हैं कि उनके खेत में 10 से 12 प्रकार की फसलें लगी हुई है, जिसमें मुख्य है ब्रोकली, चाइनीज़ कैबजे, ब्रुसेल्स स्प्राउट्स, सेलरी, रेड कैबेज, पार्सले, लीक, रैडीचियो, केल, बोकचॉय आदि। वो बड़े पैमाने पर इसकी खेती कर रहे हैं, कुल 13 एकड़ में उन्होंने विदेशी सब्ज़ियां लगाई हुई हैं।

विदेशी सब्ज़ियों की खेती कब करते हैं बुवाई? (When do we sow cultivation of exotic vegetables?)

ये विदेशी सब्ज़ियां सर्दियों के मौसम में अच्छी तरह उगती हैं। राजेश बताते हैं कि वो अधिकांश फसलों की नर्सरी जनवरी में तैयार करते हैं और फरवरी में खेत में पौधों को ट्रांसप्लांट करते हैं। इन सब्ज़ियों के लिए गर्मियों का मौसम सही नहीं है, क्योंकि अधिक तापमान ये सहन नहीं कर पाती हैं, इसलिए गर्मियों के 3-4 महीने छोड़कर वो बाकी पूरे साल इनका उत्पादन करते हैं।

राजेश पूरे वैज्ञानिक तरीके से खेती कर रहे हैं। उनके खेत में क्यारी से क्यारी और पौधों से पौधों के बीज उचित दूरी का ध्यान रखा गया है जिससे फसल की वृद्धि अच्छी तरह होती है। वो इन फसलों के बीज दिल्ली से लाते हैं और फसल तैयार हो जाने के बाद इसे बेचने के लिए दिल्ली की आज़ादपुर मंडी पहुंचाते हैं, जो एशिया की सबसे बड़ी सब्ज़ी मंडी है।

विदेशी सब्ज़ियों की खेती कमाई और पौष्टिकता में है आगे (Cultivation of exotic vegetables is ahead in income and nutrition)

विदेशी सब्ज़ियां न सिर्फ कमाई, बल्कि पौष्टिकता के मामले में भी देसी सब्ज़ियों से आगे हैं। राजेश का कहना है कि देसी सब्ज़ियों के मुकाबले इन फसलों से कमाई अच्छी होती है और इसमें पोषक तत्व भी अधिक होते हैं।

विदेशी सब्ज़ियों की खेती से कैसे हो सकती है अच्छी कमाई, जानिए सोनीपत के प्रगतिशील किसान राजेश से

पूरे साल विदेशी सब्ज़ियों की खेती से कमाई की तरकीब (A way to earn money by growing exotic vegetables throughout the year)

पूरे साल फसलों का उत्पादन होता रहे ये सुनिश्चित करने के लिए फसलों को उनके तैयार होने के समय के हिसाब से थोड़ा आगे पीछे लगाया जाता है। राजेश बताते हैं कि हर फसल के तैयार होने का समय अलग-अलग होता है। कोई फसल 3 महीने में तैयार हो जाती है, तो किसी को तैयार होने में 2 महीने लगते है और कोई 1 महीने में तैयार हो जाती है। जैसे ब्रोकोली 60-62 दिन में तैयार होती है। वहीं बोकचॉय 38-42 दिन में तैयार हो जाती है। इसका इस्तेमाल सूप बनाने में किया जाता है और कीमत भी ठीक मिल जाती है। कभी 10 रुपए किलो बिकती है तो कभी 50 रुपए किलो भी बिक जाती है।

विदेशी सब्ज़ियों की खेती के लिए कौन सी खाद का करते हैं इस्तेमाल (Which fertilizer is used for the cultivation of exotic vegetables)

किसी भी फसल की अच्छी वृद्धि के लिए उसे सही मात्रा में सही समय पर सही खाद देना ज़रूरी होती है। राजेश कहते हैं कि वो फसलों में डीएपी और यूरिया के साथ हे कुछ टॉनिक आदि भी डालते हैं जिससे उनका विकास ठीक तरह से हो। वो बताते हैं कि ट्रैक्टर से खेत की जुताई के बाद बेड बनाते हैं और फिर पौधों की रोपाई की जाती है, जिससे उनके बीच उचित दूरी बनाए रखने में मदद मिलती है।

कैसे किया विदेशी सब्ज़ियों का रुख? (How did you turn to exotic vegetables?)

राजेश के पिता भी खेती ही करते थे। वो बताते हैं कि शुरुआत में तो वो लोग देसी फसले ही उगाते थे, फिर एक दिन उनके पिता जी किसी मशरूम फार्म वाले के पास गए तो उसने ब्रोकली लगाने की सलाह दी। तो ब्रोकोली उगाई और उसे मंडी में पहुंचाया, धीरे-धीरे उसकी बिक्री बढ़ी और मांग बढ़ने लगी। फिर उन लोगों ने दूसरी सब्ज़ियां भी उगाना शुरू कर दिया।

इस तरह से विदेशी सब्ज़ियों की उनकी खेती शुरू हुई। राजेश का कहन है कि गांव के किसान अगर कुछ अलग हटकर फसलों की खेती करें, तो अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। साथ वो बताते हैं कि विदेशी सब्ज़ियों की कीमत अधिक मिलती है तो कभी-कभार अगर नुकसान भी हुआ तो किसान झेल जाता है, देसी सब्ज़ियों में एक तो पहले ही कम कीमत मिलती है और उसमें अगर नुकसान हो गया तो किसान की कमर टूट जाती है।

विदेशी सब्ज़ियों की खेती से लागत और आमदनी (Cost and income from cultivation of exotic vegetables)

राजेश बताते हैं कि सालाना विदेशी सब्ज़ियों की खेती में उन्हें 35 से 34 लाख की लागत आती है और 10 लाख तक का मुनाफा हो जाता है। वो बताते हैं कि सर्दियों के मौसम में इन फसलों को खाद की ज़रूरत नहीं होती है। मगर बाकी मौसम में खाद-पानी ज़्यादा लगता है जिससे लागत थोड़ी अधिक आती है, लेकिन तो सब्ज़ियों की कीमत भी अच्छी मिल जाती है, तो वो लागत वसूल हो जाती है। उन्हें लगता है कि आगे चलकर विदेशी सब्ज़ियों की मांग और बढ़ेगी, तो इसकी खेती किसानों के लिए फायदेमंद है।

राजेश का कहना है कि उन्हें देखकर कई और किसानों ने इसकी शुरुआत की और कुछ उनके पास सलाह के लिए भी आते हैं, जिसने भी चायनीज़ सब्ज़ियों का उत्पादन शुरू किया, उन्हें इससे मुनाफा ही हुआ है। तो किसान भाइयों के लिए अच्छी कमाई का ये एक बेहतरीन विकल्प हो सकता है।

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