भांग के मटेरियल से बनी बिल्डिंग, क्वालिटी सीमेंट से भी बेहतर, जानिए कैसे

भांग के बिल्डिंग मटेरियल से अब आपके नए घर का निर्माण हो सकता है। यह बात साबित कर दिखाई है […]

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भांग के बिल्डिंग मटेरियल से अब आपके नए घर का निर्माण हो सकता है। यह बात साबित कर दिखाई है उत्तराखंड की नम्रता कंडवाल और उनकी टीम ने। आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय की ओर से आयोजित ग्लोबल हाउसिंग टेक्नोलॉजी चैलेंज में नम्रता की ने शीर्ष पांच में जगह बनायी है। इस चैलेंज की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाइट हाउस प्रोजेक्ट्स के साथ की। नम्रता भांग के बीज और रेशे से दैनिक उपचार की चीज़ें बनाती हैं। इसी रिसर्च के क्रम में उन्होंने भांग के पौधे से बिल्डिंग मटेरियल बनाने का भी ईजाद किया।

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नम्रता उत्तराखंड के पौड़ी जिले के कंडवाल गाँव की रहने वाली हैं। दिल्ली में आर्किटेक्ट की पढ़ाई के बाद वो अपने गाँव वापस लौट आयीं। यहीं अपने पति गौरव दीक्षित और भाई दीपक कंडवाल के साथ मिलकर इंडस्ट्रियल हेम्प पर रिसर्च करने वाले स्टार्टअप गोहेम्प एग्रोवेंचर्स की शुरूआत की।

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नम्रता बताती हैं कि, “भांग का पूरा पौधा काफी उपयोगी होता है। इसके बीज से निकलने वाले तेल से औषधियां बनती हैं। इसके अलावा इससे बहुत सारे उपयोगी सामान भी बनते हैं। भांग के पौधे से बिल्डिंग मटेरियल बनाने पर हम रिसर्च कर रहे थे। भांग की लकड़ी, चूने और कई तरह के मिनरल्स को मिलाकर बिल्डिंग इंसुलेशन मटेरियल तैयार किया है। प्राचीन भारत में भी यह टेक्नोलॉजी प्रयोग की जाती थी । एलोरा की गुफाओं में भी इसका उपयोग देखने को मिलता है।”

इस स्टार्टअप में नम्रता के साथ उनके पति आर्किटेक्ट गौरव दीक्षित साथ दे रहे हैं। काफी शोध के बाद दोनों ने पहाड़ पर बहुतायत में उगने वाले भांग के पौधों को सकारात्मक रूप से रोजगार का जरिया बनाने का सोचा। उनका मानना है कि इससे न सिर्फ भांग के प्रति लोगों का नजरिया बदलेगा, बल्कि पहाड़ के गांवों से होने वाले पलायन पर भी रोक लग सकेगी।

नम्रता का मानना है कि उत्तराखंड हेम्प की फसल के वेस्ट से भवन निर्माण सामग्री बनाकर, दूसरे राज्यों पर अपनी निर्भरता कम कर सकता है। इस बिल्डिंग मटेरियल के खासियत में उन्होंने बताया कि यह इनोवेटिव मटेरियल हल्का है, कमरे को गर्मी में ठंडा और ठंड में गरम रखता है। चूने के उपयोग से यह अग्नि रोधक है और एंटीबैक्टीरियल व एन्टीफंगल भी है।

भांग से बना मटेरियल मॉइस्चर रेगुलेटर होता है। इससे इसमें सीलन जैसी समस्या कम आती है। इसकी सबसे खास बात है कि चूने के उपयोग से इसकी उम्र सैकड़ो साल हो जाती है। सीमेंट टेक्नोलॉजी से उलट इससे बनाई गई इमारतें समय के साथ कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित कर मज़बूत होती जाती हैं। इससे भवन के अंदर की एयर क्वालिटी भी बेहतर बनी रहती है।

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