इंजीनियरिंग छोड़ युवा बना ऑर्गेनिक फार्मर, लाखों रुपया कमा किसानों को दिखाई राह

परमेश्वरन अपने तीन एकड़ खेत में मूंगफली की खेती करते हैं और बाकी 3 एकड़ में देसी टमाटर, मिर्च, क्लोव बींस, विंग्ड बींस, स्वॉर्ड बींस, भिंडी, लौकी, बैंगन करेला जैसी सब्जियों की खेती करते हैं। इस तरह वे दूसरे किसानों की तुलना में बहुत मोटा मुनाफा भी कमा रहे हैं। इनकी मेहनत और उसके असर को देख तमिलनाडु के दूसरे किसान भी उनकी देखादेखी ऑर्गेनिक खेती करना आंरभ कर रहे हैं।

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इंजीनियरिंग छोड़ युवा बना ऑर्गेनिक फार्मर: एक ओर जहां किसान खेतीबाड़ी छोड़कर नौकरी करने के लिए दूसरे राज्यों का रुख कर रहे हैं। ऐसे में करीब 30 साल के युवा ने एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग के चौथे साल की पढ़ाई छोड़कर खेती करने और सब्जियों की लुप्त हो रही प्रजातियों को बचाने का बीड़ा उठाया है।

हर परिवार की तरह उन्हें भी पहले अपने घर वालों के विरोध का सामना करना पड़ा, क्योंकि पढ़ाई छोड़ खेतों में खटने का विचार किसी के समझ में नहीं आया, लेकिन उन्होंने अपनी लगन से परिवार का भरोसा कायम किया और आज 300 से ज्यादा किस्म की सब्जियों की खेती कर रहे हैं।

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पानी की कमी के बावजूद अधियागई परमेश्वरन ऑर्गेनिक खेती कर कमा रहे मोटा मुनाफा

हम बात कर रहे हैं के तमिलनाडु में डिंडिगुल जिले के कुटियागौंडनपुडुर गांव के युवा अधियागई परमेश्वरन की। ओडनचत्रम क्षेत्र में पडऩे वाले इस गांव में खेतों की सिंचाई के लिए पानी की बहुत कमी है। ऐसे में उन्होंने देसी किस्मों की उन फसलों को उगाने का निर्णय लिया, जिनकी पैदावार सूखे की स्थिति में भी हो जाए।

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परमेश्वरन ने 2014 में 6 एकड़ जमीन पर जैविक खेती करना शुरू किया। इसके लिए पहले वे करूर के वनगम में एक वर्कशॉप पहुंचे। वहां उन्होंने विशेषज्ञों से कई चीजें सीखीं। इसके बाद उन्होंने देसी बीजों को एकत्र करना शुरू किया। इस बीच वे राज्य के कई गांवों में जाकर किसानों और विशेषज्ञों से मिलकर ऑर्गेनिक फार्मिंग के बारे में जानकारी जुटाते रहे।

300 से अधिक देसी फलों और सब्जियों का बनाया बीज बैंक

इसके बाद उन्होंने रसायन मुक्त फसलों को उगाने के साथ ही अधियागई (तमिल में इसका अर्थ पहली बहार) नाम से बीजों का बैंक बनाया। इसमें 300 से ज्यादा देसी फलों और सब्जियों की प्रजातियों के बीज हैं। पिछले छह साल से वह इन्हें एकत्र कर रहे हैं और लुप्त हो रही प्रजातियों को बचाने के लिए अब उन्होंने बीज को तमिलनाडु के किसानों में बांटना शुरू कर दिया है।

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परमेश्वरन के मुताबिक तमिलनाडु में सिर्फ बैंगन की ही 500 से ज्यादा प्रजातियां मौजूद हैं। इसी तरह भिंडी और बाकी सब्जियों की भी कई प्रजातियां हैं। कोंगू क्षेत्र में गुलाबी रंग की भिंडी होती है, लेकिन खेती से लोगों के मोहभंग होने से इनमें से ज्यादातर प्रजातियां गायब हो रही हैं। इसलिए मैंने इन्हें संजोने के बारे में सोचा।

परमेश्वरन के सीड बैंक में 13 प्रजातियों के भिंडी के बीज, 30-30 प्रजातियों के बैंगन और लौकी, 10 प्रजातियों का मक्का और क्लोव बींस, विंग्ड बींस, स्वॉर्ड बींस जैसी कई अनजानी प्रजातियों के बीज हैं।

सिर्फ छह एकड़ में खेती कर कमा रहे हैं लाखों

परमेश्वरन अपने तीन एकड़ खेत में मूंगफली की खेती करते हैं और बाकी 3 एकड़ में देसी टमाटर, मिर्च, क्लोव बींस, विंग्ड बींस, स्वॉर्ड बींस, भिंडी, लौकी, बैंगन करेला जैसी सब्जियों की खेती करते हैं।

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देसी सब्जियों को उगाने के लिए खाद की भी आवश्यकता नहीं होती। देसी बीजों में इतनी क्षमता होती है कि वे खुद को बीमारियों और कीड़ों से बचा सके। कभी-कभी थोड़े पानी के छिड़काव से अच्छी फसल पैदा होती है। परमेश्वरन कहते हैं कि सिर्फ एक फसल उगाने के बजाय कई फसल उगाते है, जिससे फसलों पर कीड़े लगने का खतरा कम हो जाता है और पैदावार अच्छी होती है। इस तरह वे दूसरे किसानों की तुलना में बहुत मोटा मुनाफा भी कमा रहे हैं। इनकी मेहनत और उसके असर को देख तमिलनाडु के दूसरे किसान भी उनकी देखादेखी ऑर्गेनिक खेती करना आंरभ कर रहे हैं।

परमेश्वरन चेन्नई और मदुरै जैसे शहरों और गांवों में लोगों को बगीचा लगाने के लिए प्रेरित करते हैं। हम लोगों को बीज मुहैया कराते हैं और फिर उसी फसल के बीज फिर सीड बैंक में जमा कर लेते हैं।

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