Geranium Cultivation: जानिए किन किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है जिरेनियम की खेती

4 महीने में तैयार हो जाती है जिरेनियम की फसल

CSIR-CIMAP के वैज्ञानिक पानी की कमी वाले इलाकों में मेंथा की जगह जिरेनियम की खेती करने की सलाह देते हैं। जानिए कैसे इसकी खेती किसानों को लाभ दे सकती है।

जिरेनियम तेल के मामले में देश को आत्मनिर्भर बनाने को लेकर किसानों और कृषि आधारित उद्योगों के पास अपार सम्भावनाएं हैं। तभी देश के कृषि वैज्ञानिक जिरेनियम की खेती को बढ़ावा दे रहे हैं। किसानों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से CSIR-CIMAP ने इसकी अनेक प्रजातियां विकसित की हैं। CSIR-CIMAP की ओर से जिरेनियम की खेती और इसके तेल के उत्पादन से जुड़े हरेक पहलू के बारे में किसानों या अन्य इच्छुक लोगों को ट्रेनिंग दी जाती है। इस लेख में हम आपको बता रहे हैं कि किन किसानों के लिए जिरेनियम की खेती करना फ़ायदेमंद साबित हो सकता है।

कैसे बनता है जिरेनियम का तेल?

जिरेनियम का तेल बेहद सुगन्धित और उच्च गुणवत्ता का होता है, इसीलिए इसके मामूली से अंश को अन्य तेलों (essential oils) या उत्पादों में डालकर इस्तेमाल करते हैं। जिरेनियम के ताज़ा शाक को अप्रैल-मई में काटा जाता है और फिर जल-आसवन (Hydro Distillation) विधि से इसका तेल प्राप्त किया जाता है। जिरेनियम की खेती से जुड़ने वाले किसानों को ये जानकारी ज़रूर रखनी चाहिए कि उन्हें उनकी उपज का दाम कैसे, कहाँ और कितना मिल सकता है?

मेंथा बनाम जिरेनियम

मेंथाल या मिंट या पिपरमिंट की खेती करने वालों को तो फ़ौरन जिरेनियम की खेती में भी अपना हाथ आज़माना चाहिए, क्योंकि दोनों की खेती में काफ़ी समानता है। दोनों ही सुगन्धियों वाली उपज हैं। मेंथाल को जहाँ बहुत अधिक सिंचाई की ज़रूरत होती है, वहीं जिरेनियम को कम सिंचाई की ज़रूरत पड़ती है। इसे बरसात से बचाना पड़ता है। लेकिन दोनों तेल को जल-आसवन (Hydro Distillation) विधि से ही हासिल किया जाता है। इसके बावजूद, मेंथाल का भारत जहाँ अग्रणी उत्पादक है, वहीं जिरेनियम के तेल के लिहाज़ से हम पीछे हैं।

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जिरेनियम की खेती geranium farming
तस्वीर साभार: hgtvhome

करीब 4 महीने में तैयार हो जाती है जिरेनियम की फसल

मेंथाल की फसल करीब 90 दिन में तैयार होती है। इस दौरान फसल को 8 से 11 बार तक सिंचाई देनी पड़ती है और निराई-गुड़ाई की काफ़ी ज़रुरत पड़ती है। जबकि बाज़ार में मेंथाल के तेल का दाम 900 से लेकर 1000 रुपये प्रति किलो का ही मिलता है। पानी की ज़्यादा खपत को लेकर भी मेंथाल की खेती पर सवाल उठते हैं। इसीलिए CSIR-CIMAP के वैज्ञानिक पानी की कमी वाले इलाकों में मेंथा की जगह जिरेनियम की खेती करने की सलाह देते हैं। फसल तैयार होने में करीब 4 महीने लगते हैं। एक एकड़ की उपज से 8 से 10 लीटर जिरेनियम का तेल निकलता है। इसका दाम 80 से 90 हज़ार रुपये मिल जाता है।

लागत कम, मुनाफ़ा ज़्यादा

CSIR-CIMAP के जिरेनियम विशेषज्ञ डॉ सौदान सिंह बताते हैं कि मेंथा की अपेक्षा जिरेनियम में लागत कम और मुनाफ़ा ज़्यादा है क्योंकि जिरेनियम को कम सिंचाई की ज़रूरत पड़ती है। यदि मेंथाल के मौसम यानी फरवरी-मार्च में जिरेनियम की खेती करें तो किसानों को मेंथाल से ज़्यादा फ़ायदा होगा, क्योंकि जिरेनियम की खेती में करीब 30 फ़ीसदी तक पानी कम लगता है। इसके पौधे भी ख़ूब तेज़ी से बढ़ते हैं। जिरेनियम की नर्सरी 20-25 दिनों में तैयार हो जाती है। इसे पशु भी नुकसान नहीं पहुँचाते। मेंथाल की खेती में जहाँ प्रति एकड़ 60-70 हज़ार रुपये की आमदनी होती है, वहीं जिरेनियम की पैदावार में एक लाख रुपये तक की शुद्ध बचत हो जाती है।

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