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जैविक खेती: गुजरात के अतुल रमेश मंडियों में नहीं बेचते अपनी उपज, जानिए कैसे तैयार की खुद की मार्केट

जैविक खेती को अपनाया, बंजर पड़ी ज़मीन पर उगाए पेड़

गुजरात के अमरेली ज़िले के रहने वाले अतुल रमेश किसान परिवार से ही ताल्लुक रखते हैं। खेती से बचपन से ही उनका नाता रहा है। उन्होंने 2014 से जैविक खेती का रूख किया और फिर अपने क्षेत्र में इसके प्रचार-प्रसार में लग गए।

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देश में इस वक्त जैविक खेती/प्राकृतिक खेती (Organic Farming/Natural Farming) का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है। देश के अलग-अलग राज्यों के किसान जन आंदोलन की तरह जैविक खेती और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रहे हैं। हाल के वर्षों में किसान पारंपरिक फसलों और खेती के पारंपरिक तरीकों के बजाय नए-नए प्रयोग कर रहे हैं। इसमें उन्हें सफलता मिली है।

एक ऐसे ही किसान हैं, गुजरात के रहने वाले अतुल रमेश भाई कनानी, जो अपने क्षेत्र के किसानों को जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। साथ ही उन्होंने बंजर पड़ी ज़मीन में हरियाली की फसल भी बोई है। कैसे हुई जैविक खेती की शुरुआत? कैसे बनाई मार्केट? कहां बेचते हैं अपनी उपज? इन सब बिंदुओं पर किसान ऑफ़ इंडिया ने अतुल रमेश से ख़ास बातचीत की। 

अनुपजाऊ बंजर पड़ी ज़मीन को किया हरा-भरा

गुजरात के अमरेली ज़िले के रहने वाले अतुल रमेश किसान परिवार से ही ताल्लुक रखते हैं। खेती से बचपन से ही उनका नाता रहा है। जब पढ़ाई की बात आई तो कृषि क्षेत्र को ही उन्होंने चुना। अतुल रमेश ने एग्रीकल्चर विषय में बीएससी डिग्री ली हुई है। उन्होंने 2014 में जैविक तरीके से खेती की शुरुआत की। उन्होंने अपने क्षेत्र और अन्य गाँवों की अनुपजाऊ बंजर पड़ी ज़मीन को फिर से हरा-भरा करने के मकसद से वहाँ नीम और मोरिंगा जैसे पेड़ लगाए। साथ ही कम पानी और कम बारिश की समस्या को ड्रिप इरिगेशन जैसी उन्नत तकनीकों के इस्तेमाल से हल किया। अतुल रमेश बागवानी फसलों को लेकर किसानों को कंसल्टेंसी भी देते हैं।

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वैल्यू एडिशन पर देते हैं जोर

अतुल रमेश करीबन 13 एकड़ में जैविक खेती कर रहे हैं। इसमें वो देसी नींबू, प्याज, गेहूं, मूंगफली, कपास, तिल और चने जैसी फसलों की खेती करते हैं। उन्हें देसी नींबू का बाज़ार में अच्छा मूल्य मिलता है। बाज़ार में दाम कम होने पर वो नींबू को कोल्ड स्टोरेज में रख देते हैं। फिर दाम बढ़ने पर इन्हें बेचते हैं। 

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अतुल रमेश बताते हैं कि वो किसानों को एक ही फसल बड़े क्षेत्र में लगाने की सलाह नहीं देते। किसान अलग-अलग फसलें लगाएं। सीज़न के हिसाब से फसलों का चुनाव करें। इससे सालभर आय का स्रोत बना रहता है। अतुल रमेश कहते हैं कि किसानों को अपनी उपज को वैल्यू एडिशन या प्रोसेस करना चाहिए। साथ ही आज के वक़्त की मांग जैविक खेती है। जैविक खेती के प्रॉडक्ट्स को बाज़ार में अच्छा दाम भी मिलता है। जैविक खेती अपनाएंगे तो स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों स्वस्थ रहेंगे। 

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सीधा ग्राहकों तक पहुंचाते हैं उत्पाद

अतुल रमेश ने बताया कि वो अपनी उपज को मंडियों में नहीं, बल्कि उसमें वैल्यू एडिशन करके सीधा ग्राहक को बेचते हैं। इससे उन्हें अच्छा दाम मिलता है। अतुल रमेश कहते हैं कि मुनाफ़े का प्रतिशत सीज़न पर निर्भर करता है। आमदनी में से लागत हटाने पर उन्हें महीने का 60 फ़ीसदी तक मुनाफ़ा होता है। 

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अतुल कहते हैं कि खेती संयम मांगती है। आप कुछ महीनों या सालभर में मुनाफ़े की उम्मीद नहीं कर सकते। लेकिन जब खेती मुनाफ़ा देती है तो पिछला भी चुकता कर देती है। बस इसमें धैर्य और संकल्प की ज़रूरत है। 

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