तुलसी की खेती (Basil Farming): कई गुणों की खान है तुलसी, इसके करोबार से कर सकते हैं अच्छी कमाई भी

तुलसी की खेती पूरे देश में हो सकती है। तीन महीने बाद इससे उपज मिलने लगती है। लागत निकालकर इससे प्रति हेक्टेयर एक लाख रुपये से ज़्यादा की कमाई हो सकती है। सिंचित जगहों के लिए तुलसी की अगेती खेती उपयुक्त है। इसके लिए फ़रवरी के आख़िर तक नर्सरी में तुलसी के बीजों की बुआई करनी चाहिए।

तुलसी की खेती कैसे करें

घर-घर में मिलने वाली तुलसी यानी Basil की महिमा से शायद ही कोई अन्जान हो। तुलसी (Basil) एक औषधीय पौधा (Medicinal Plants) है। इसकी ऊँचाई चार फीट तक होती है। तुलसी के सभी भागों जैसे जड़, पत्ती, तना, फूल और बीज का इस्तेमाल किसी न किसी रूप में किया जाता है। तुलसी का इस्तेमाल बुखार, सर्दी-खाँसी, दाँतों और साँस सम्बन्धी रोगों में भी लाभदायक होता है। तुलसी में विषाणुओं और जीवाणुओं से लड़ने की क्षमता होती है इसीलिए इसे हर घर में रखते हैं ताकि आसपास का वातावरण साफ़ रहे।

तुलसी पूजन दिवस, हर साल 25 दिसंबर को मनाया जाता है। तुलसी केवल एक पौधा नहीं बल्कि धरा के लिए वरदान है और इसी वजह से पूज्यनीय माना जाती है। आयुर्वेद में तुलसी को अमृत कहा गया है क्योंकि ये औषधि भी है और इसका नियमित उपयोग आपको उत्साहित, खुश और शांत रखता है। हिंदू धर्म के लोग तुलसी को माता का रूप मानकर उसकी पूरे विधि-विधान से पूजा करते हैं। भगवान विष्णु की कोई भी पूजा बिना तुलसी के पूर्ण नहीं मानी जाती। ऐसी मान्यता है कि जहां तुलसी फलती है, उस घर में रहने वालों को कोई संकट नहीं आते।

पूजा-पाठ, मंदिर, आयुर्वेदिक और यूनानी दवाओं और कॉस्मेटिक उद्योग में तुलसी की खूब माँग रहती है। इसीलिए तुलसी की व्यावसायिक खेती करके भी बढ़िया कमाई की जा सकती है। तुलसी की खेती की लागत ज़्यादा नहीं होती। इसके पौधे बहुत कम वक़्त में कमाई शुरू करवा देते हैं। इसमें अच्छा मुनाफ़ा क्योंकि बाज़ार में तुलसी की उत्पादों का बहुत अच्छा दाम मिलता है। देश की तमाम प्रमुख आयुर्वेदिक कम्पनियाँ तुलसी की नियमित सप्लाई को सुनिश्चित करने के लिए किसानों से कॉन्ट्रैक्ट फ़ॉर्मिंग भी करवाती हैं। इसके तहत तुलसी के उत्पादों को कम्पनियाँ किसानों से सीधे ख़रीद लेती हैं।

एक बार लगाने के बाद तुलसी का पौधा करीब तीन साल तक पैदावार दे सकता है। तुलसी के बीजों को खेतों में सीधे नहीं उगाया जाता। नर्सरी में कोकोपिट ट्रे या छोटी क्यारियों में इसके बीजों को दो-तीन सेंटीमीटर की दूरी पर लगाकर पौधे तैयार करते हैं। बीज लगाने के बाद हल्की सिंचाई करके इन्हें अंकुरित होने तक पुआल या सूखी घास से ढक देते हैं। महीने भर बाद तैयार हुए पौधों को उखाड़कर खेतों में दोबारा रोपाई की जाती है। एक एकड़ के लिए 120 ग्राम बीज पर्याप्त होता है। नर्सरी में तुलसी के बीजों को डालने से पहले मिट्टी में गोबर की खाद मिलाकर उसे तैयार करना चाहिए। फिर बीज को ‘मैनकोजेब’ या गोमूत्र से उपचारित करके उसे क्यारियों में डालना चाहिए।

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तुलसी के लिए जलवायु

तुलसी के पौधों को किसी ख़ास तापमान की ज़रूरत नहीं होती। मौटे तौर पर तुलसी को उष्ण कटिबंधीय जलवायु पसन्द है। लेकिन इसकी अलग-अलग किस्में अलग-अलग जलवायु वाले इलाकों में बेहद उत्पादन देती हैं। तुलसी क्षारीय मिट्टी में नहीं पनपती। इसके लिए उचित जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी सबसे बेहतरीन है। इसकी अम्लीयता 5.5 से 7 के बीच होनी चाहिए। इसे ज़्यादा बारिश या सिंचाई भी नहीं चाहिए। बंगाल, बिहार और मध्य प्रदेश में तुलसी की खेती ज़्यादा होती है, क्योंकि वहाँ की मिट्टी और जलवायु सबसे उपयुक्त है। सर्दियों में तुलसी के फूल अधिक मिलते हैं और अच्छे से खिलते हैं। लेकिन सर्दियों का पाला इसके नाज़ुक पौधों को नुकसान पहुँचाता है।

पैदावार और खेती का तरीका

तुलसी का पौधा तीन महीने में उपज देने के लिए तैयार हो जाता है। इससे प्रति हेक्टेयर 20 से 25 टन तक पैदावार होती है और लागत निकालकर एक लाख रुपये से ज़्यादा की कमाई हो सकती है। तुलसी के पौधों को समतल और मेड़ दोनों पर लगा सकते है। मेड़ पर तुलसी लगाने के लिए उनके बीच चारों ओर एक-सवा फ़ीट की दूरी होनी चाहिए। समतल में रोपाई के लिए क्यारी की पंक्तियों और पौधों के बीच की दूरी डेढ़-दो फ़ीट होनी चाहिए।

तुलसी की खेती (Basil Farming): कई गुणों की खान है तुलसी, इसके करोबार से कर सकते हैं अच्छी कमाई भी
तुलसी की खेती का तरीका

तुलसी की खेती (Basil Farming): कई गुणों की खान है तुलसी, इसके करोबार से कर सकते हैं अच्छी कमाई भी

सिंचित जगहों के लिए तुलसी की अगेती खेती उपयुक्त होती है। इसके लिए फ़रवरी के आख़िर तक नर्सरी में बीजों की बुआई करनी चाहिए। ताकि अप्रैल माह की शुरुआत में पौधे तैयार हो जाएँ। यदि बारिश में तुलसी की खेती (Basil Farming) करनी हो तो नर्सरी में अप्रैल से मई के दौरान बीजे बोने चाहिए। ताकि बारिश तक पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाएँ।

तुलसी के औषधीय प्रयोग के देखते हुए इसमें गोबर की खाद या कम्पोस्ट का ही इस्तेमाल करें। रासायनिक खाद से परहेज़ करना चाहिए। यहाँ तक कि खरपतवार नियंत्रण के लिए भी कभी रासायनिक तरीका नहीं अपनाना चाहिए। इस काम को निराई-गुड़ाई से ही सम्भालना चाहिए। यदि रासायनिक खाद का इस्तेमाल करना मज़बूरी हो तो इसके लिए कृषि विकास केन्द्र के विशेषज्ञ से मशविरा ज़रूर करना चाहिए। अलबत्ता, पौधों के अंकुरण के बाद और खेत में रोपाई से पहले 20 किलो नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डाल सकते हैं। किसानों को ध्यान रखना चाहिए कि तुलसी की खेती में ज़्यादा उर्वरक भी नुकसानदायक होता है। इससे पौधे जल जाते हैं।

तुलसी के पौधों पर जब फूल पूरी तरह से आ जाएँ और पत्तियाँ पीली पड़कर सूखने लगें तब इसकी कटाई कर लेनी चाहिए। रोपाई के लगभग तीन महीने बाद तुलसी का पौधा कटाई के लिए तैयार हो जाता है। तुसली का तेल निकालने के लिए कटाई की जाती है। इसके शाकीय भागों की कटाई ज़मीन से कुछ ऊँचाई को छोड़कर 20 से 25 सेंटीमीटर तक ही करनी चाहिए, ताकि ये फिर से नयी फसल दे सके।

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तुलसी की खेती (Basil Farming): कई गुणों की खान है तुलसी, इसके करोबार से कर सकते हैं अच्छी कमाई भी
तुलसी की किस्में

तुलसी की खेती (Basil Farming): कई गुणों की खान है तुलसी, इसके करोबार से कर सकते हैं अच्छी कमाई भी

तुलसी की किस्में

  1. अमृता तुलसी – ये किस्म पूरे भारत में मिलती है। इसके पत्तों का रंग गहरा जामुनी होता है। इसके पौधे अधिक शाखाओं वाले होते हैं। तुलसी की इस किस्म का इस्तेमाल कैंसर, डायबिटीज, पागलपन, दिल की बीमारी और गठिया सम्बन्धी रोगों में अधिक होता है।
  2. रामा तुलसी – गर्म मौसम वाली इस किस्म को दक्षिण भारतीय राज्यों में ज़्यादा उगाते हैं। इसके पौधे दो से तीन फ़ीट ऊँचे होते हैं। पत्तियों का रंग हल्का हरा और फूलों का रंग सफ़ेद होता है। इसमें ख़ुशबू कम होती है। ये औषधियों में ज़्यादा काम आती है।
  3. काली तुलसी – इसकी पत्तियों और तने का रंग हल्का जामुनी होता है और फूलों का रंग हलका बैंगनी। ऊँचाई तीन फ़ीट तक होती है। इसे सर्दी-ख़ाँसी के बेहतर माना जाता है।
  4. बाबई तुलसी – ये सब्जियों को ख़ुशबूदार बनाने वाली किस्म है। इसकी पत्तियाँ लम्बी और नुकीली होती हैं। पौधों की ऊँचाई करीब 2 फ़ीट होती है। इसे ज़्यादातर बंगाल और बिहार में उगाते हैं।
  5. कर्पूर तुलसी – ये अमेरिकी किस्म है। इसे चाय को ख़ुशबूदार बनाने और कपूर उत्पादन में इस्तेमाल करते हैं। इसका पौधा करीब 3 फ़ीट ऊँचा होता और पत्तियाँ हरी और बैंगनी-भूरे रंग के फूल होते हैं।

तुलसी के रोग

  1. झुलसा रोग – गर्मियों में तुलसी पर झुलसा रोग का असर पड़ सकता है। इससे पत्तियाँ विकृत होने लगती हैं। पत्तियों पर जलने वाले धब्बे उभर आते हैं। फाइटो सैनिटरी विधि से इसकी रोकथाम करना चाहिए।
  2. जड़ गलन – जल भराव से तुलसी की जड़े गलने लगती हैं और वो मुरझाने लगते हैं। पत्तियाँ पीली होकर झड़ने लगती हैं। ऐसा होने पर तुसली की जड़ों में बाविस्टिन के घोल का छिड़काव करना चाहिए।
  3. कीट रोग – तुलसी के कीट पत्तियों का रस चूसकर उन्हें उनका विकास रोक देते हैं। कीट के पेशाब से पत्तियाँ पीली पड़कर मुरझाने लगती हैं। इसकी रोकथाम के लिए पौधे पर एजाडिरेक्टिन का छिड़काव कर सकते हैं।

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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