Vermicompost: नरेन्द्र सिंह मेहरा से जानिए वर्मीकम्पोस्ट खाद बनाने की टिप्स, उत्तराखंड के ही उनके दो शिष्यों ने UPSC की तैयारी छोड़कर जैविक खेती को चुना

जानिए कैसे वर्मीकम्पोस्ट बढ़ाएगा मिट्टी की उर्वरता

नरेंद्र सिंह मेहरा के मार्गदर्शन पर चलते हुए राहुल पांडे और अजय भट्ट न सिर्फ़ जैविक खेती कर रहे हैं, बल्कि जैविक खेती को बढ़ावा भी दे रहे हैं। उत्तराखंड में वर्मीकम्पोस्ट खाद की कमी को दूर करने के मकसद से अपने व्यवसाय को पहाड़ी क्षेत्रों तक पहुंचाया।

नरेंद्र सिंह मेहरा जैविक खेती को बढ़ावा देने के मिशन में जुटे हैं। खेती में नए-नए प्रयोग करना उनकी पहचान बन चुकी है। गेहूं की किस्म ‘नरेंद्र 09’ ईज़ाद करने का श्रेय भी उन्हें ही जाता है। साथ ही गन्ने की उन्नत पैदावार की तकनीकों पर भी वो काम कर रहे हैं। युवकों को कृषि के गुर सीखा चुके हैं। ये सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है। पंतनगर किसान मेले में किसान ऑफ़ इंडिया की टीम की मुलाकात नरेंद्र सिंह मेहरा और उनके दो शिष्यों राहुल पांडे और अजय भट्ट से हुई। हमने उनसे वर्मीकम्पोस्ट के फ़ायदों और इस्तेमाल के बारे में जाना।

वर्मीकम्पोस्ट खाद vermicompost uttarakhand

कैसे हुई वर्मिकम्पोस्ट व्यवसाय की शुरुआत?

नरेंद्र सिंह मेहरा के मार्गदर्शन पर चलते हुए राहुल पांडे और अजय भट्ट न सिर्फ़ जैविक खेती कर रहे हैं, बल्कि जैविक खेती को बढ़ावा भी दे रहे हैं। राहुल पांडे और अजय भट्ट दिल्ली में यूपीएससी की परीक्षा की तैयारी कर रहे थे। साथ ही गाज़ियाबाद में वर्मिकम्पोस्ट की यूनिट भी लगाई हुई थी। राहुल पांडे और अजय भट्ट दोनों ही हल्द्वानी, उत्तराखंड से ताल्लुक रखते हैं। लिहाज़ा दोनों ने कुछ ऐसा करने की सोची, जिससे उत्तराखंड में जैविक खेती को बढ़ावा मिले। अजय भट्ट स्कूल के दिनों से नरेन्द्र सिंह मेहरा के कामों से प्रभावित थे। पौड़ी गढ़वाल से बी.टेक बायोटेक्नोलॉजी और फिर जॉब करने के बाद अजय भट्ट ने कृषि क्षेत्र का रूख किया।

अपने प्रयोगों, तकनीकों और उन्नत किस्मों की पैदावार के लिए जाने जानेवाले नरेन्द्र सिंह मेहरा अपने क्षेत्र के किसानों की समस्याओं से अच्छे से वाकिफ़ थे। उन्होंने अजय भट्ट और राहुल पांडे को अपने जैविक खेती के मिशन के साथ जोड़ा। अजय भट्ट ने बताया कि नरेन्द्र सिंह मेहरा ने प्रदेश में जैविक खाद की कमी को लेकर चिंता जताई। इसके समाधान के लिए गाज़ियाबाद यूनिट से वर्मीकम्पोस्ट खाद उत्तराखंड भेजी जाती थी, लेकिन इससे ट्रांसपोर्टेशन की वजह से किसानों पर पैसे का अतिरिक्त भार पड़ता था। गाज़ियाबाद से वर्मीकम्पोस्ट खाद उत्तराखंड भेजना कोई स्थाई उपाय नहीं था। फिर उत्तराखंड में ही वर्मीकम्पोस्ट यूनिट खोलने का निर्णय लिया। हल्द्वानी के गौलापार में प्रभु ऑर्गॅनिक्स  के नाम से वर्मीकम्पोस्ट की यूनिट खोल दी।

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जैविक खेती में वर्मीकम्पोस्ट के फ़ायदे

नरेन्द्र सिंह बताते हैं कि कृषि अपशिष्ट (Agriculture Waste) यानी की खेती से निकलने वाले कचरे को अवसर के रूप में देखे जाने की ज़रूरत है। मवेशियों के गोबर को एक जगह ढेर करके, केंचुओं के ज़रिए उसे खाद के रूप में तब्दील कर सकते हैं। वर्मीकम्पोस्ट के फ़ायदों का जिक्र करते हुए नरेन्द्र सिंह मेहरा बताते हैं कि अगर किसान रासीयनिक खादों की जगह वर्मीकम्पोस्ट खाद का इस्तेमाल करते हैं तो उससे उत्पादित अनाज, फल-सब्जियां स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक होती हैं। साथ ही यूरिया और केमिकल उर्वरकों के अंधाधुंध इस्तेमाल से ज़मीन में घुल रहे जहर को कम करने में भी ये अहम भूमिका निभाता है।

वर्मीकम्पोस्ट में कौन कौन से तत्व?

वर्मीकम्पोस्ट के महत्वपूर्ण तत्वों को लेकर नरेन्द्र सिंह ने कहा कि वर्मीकम्पोस्ट में नाइट्रोजन की पूर्ति के लिए नाइट्रोजन के जीवाणुओं को विकसित किया जाता है। हरी वनस्पति की पत्तियों के अर्क को वर्मीकम्पोस्ट में मिलाने से उर्वरक की पूर्ति होती है। बेल के अर्क को वर्मीकम्पोस्ट में मिलाने से पानी को सोखने की क्षमता अच्छी होती है। यानि खेत को लंबे समय के लिए पानी की ज़रूरत नहीं पड़ती। अगर वर्मीकम्पोस्ट में चने के भूसे के अर्क को मिला देते हैं तो नाइट्रोजन की कमी दूर हो जाती है। इस तरह से केंचुआ खाद के लगातार इस्तेमाल से मिट्टी के भौतक, रासायनिक एवं जैविक गुणों में भी सुधार होता है और उसमें मौजूद सूक्ष्म जीवाणुओं के अनुपात को बेहतर बनाता है।

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केंचुए की कौन सी किस्म?

अजय भट्ट ने बताया कि ऑस्ट्रेलियन ब्रीड Eisenia Fetida की नस्ल के केंचुएं उनके पास हैं। सामान्य केंचुएं जहां ज़मीन में घुसकर मिट्टी भुरभुरी करते हैं, वहीं Eisenia Fetida नस्ल का केंचुआ सिर्फ़ गोबर खाता है। इससे उच्च गुणवत्ता का वर्मीकम्पोस्ट तैयार होता है। ये केंचुआ दिखने में लाल रंग का होता है। इसलिए इसे रेड वॉर्म भी कहा जाता है। ये केंचुआ शून्य से लेकर 50 डिग्री तक के तापमान में रह सकता है। ये 24 घंटे अपने काम में लगा रहता है।

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कैसे करते हैं मार्केटिंग?

राहुल पांडे ने अपनी मार्केटिंग स्ट्रैटिजी को लेकर बताया। वो कहते हैं कि मार्केटिंग में सोशल मीडिया की अहम भूमिका है। उन्होंने इंस्टाग्राम पर Prabhu Organics के नाम से पेज बनाया हुआ है। इससे कई ग्राहक जुड़ते हैं। साथ ही वो Save Soil (मिट्टी बचाओ) पहल के साथ भी जुड़े हुए हैं।

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6 रुपये प्रति किलो के हिसाब से वर्मीकम्पोस्ट

निर्यात के लिए वर्मीकम्पोस्ट के एक किलो की पैकिंग से लेकर पाँच किलो की पैकिंग है। इनकी कीमत 25 रुपये (एक किलो) से लेकर 240 रुपये (पाँच किलो) के आसपास है, जो नर्सरी और सीडहाउस में जाती हैं।

इसके अलावा, नरेंद्र सिंह मेहरा द्वारा तैयार की गई वर्मीकम्पोस्ट Narendra Organics के पाँच किलो के बैग की कीमत 120 रुपये है। इसमें कुछ अतिरिक्त तत्वों के साथ अच्छी गुणवत्ता भी है। कोई भी किसान अगर गौलापार स्थित इनकी वर्मीकम्पोस्ट यूनिट में आता है, तो उसे 6 रुपये प्रति किलो के हिसाब से वर्मीकम्पोस्ट खाद उपलब्ध कराई जाती है।

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वर्मीकम्पोस्ट व्यवसाय- स्वरोज़गार  का ज़रिया

नरेन्द्र सिंह मेहरा कहते हैं कि वर्मीकम्पोस्ट व्यवसाय में बहुत संभावनाएं हैं। युवा और महिलाएं इस व्यवसाय को अपनाकर अपनी आय बढ़ा सकते हैं। नरेन्द्र सिंह मेहरा कहते हैं कि पर्वतीय क्षेत्र की महिलाएं 18-18 घंटे काम करती हैं, लेकिन उनके  श्रम का उचित मूल्य और मान उन्हें कभी नहीं मिलता। आज जहां ग्रामीण युवा ही गोबर से दूर भाग रहा है, वहीं आज भी ग्रामीण महिलाएं सिर में कच्चे गोबर का ढेर लिए खेत में जाती हैं। कच्चे गोबर को खेत में फैलाने से कुरमुला दीमक लगने का खतरा रहता है। इसको लेकर जानकारी का अभाव है। ग्रामीण महिलाएं स्वयं सहायता समूहों (Self Help Groups, SHGs) के माध्यम से वर्मीकम्पोस्ट व्यवसाय को अपनाकर खुद के पैरों पर खड़ी हो सकती हैं। इस तरह से महिलाएं सशक्त और मजबूत होंगी।

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पशुओं की सुरक्षा को लेकर भी कर रहे जागरूक

नरेन्द्र सिंह मेहरा ने आगे कहा कि दुधारू पशुओं की दूध देने की  क्षमता कम या खत्म हो जाने के बाद उन्हें सड़कों पर दर-दर की ठोकरें खाने के लिए छोड़ दिया जाता है। ऐसे में उनका उद्देश्य लोगों को इस बात के लिए भी जागरूक करना है कि दुधारू पशुओं के गोबर के इस्तेमाल से आप कम लागत में वर्मीकम्पोस्ट तैयार कर सकते हैं और इससे भी आर्थिक लाभ कमा सकते हैं।

पलायन की समस्या कैसे होगी दूर?

राहुल पांडे कहते हैं कि वो कई देश घूम चुके हैं। विदेशों की सुपेरमार्केट्स में ऑर्गेनिक प्रॉडक्ट्स काफी महंगे दामों पर बिकते हैं। आदमी मुंह मांगी कीमत देने को तैयार हैं। राहुल कहते हैं कि भारत में ऑर्गेनिक प्रॉडक्ट्स का बाज़ार तेजी से उभर रहा है। ऐसे में भारत के ऑर्गेनिक प्रॉडक्ट्स अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार में स्थापित होने का माद्दा रखते हैं। इससे ग्रामीण क्षेत्रों के पलायन को रोका जा सकेगा।

पलायन की समस्या पर अजय भट्ट कहते हैं कि 90 फ़ीसदी ऐसे युवा हैं, जो सरकारी नौकरी या प्राइवेट नौकरी के पीछे भाग रहे हैं। इस स्थिति से निपटने के लिए अजय भट्ट युवाओं से स्वरोजगार अपनाने की अपील करते हैं। उन्होंने कहा कि सरकार मछली पालन और बकरी पालन जैसी कृषि क्षेत्रों  से जुड़ी कई गतिविधियों पर सब्सिडी देती है। इनका लाभ लें और खुद का व्यवसाय करें। अपने साथ-साथ 10 लोगों को और रोज़गार दें ताकि उनका पलायन भी रुक सके।

क्या है जैविक खेती का महत्व?

नरेन्द्र सिंह मेहरा जैविक खेती को अपना जीवन समर्पित कर चुके हैं। किसान ऑफ़ इंडिया से बातचीत में वो कहते हैं कि आज का अनाज जहरीला और मिट्टी अनुपजाऊ होती जा रही है। अगर वक़्त रहते इस त्रासदी को दूर नहीं किया गया, तो आने वाले समय में देश को इसका भारी नुकसान झेलना पड़ सकता है। नरेन्द्र सिंह कहते हैं कि इस त्रासदी को रोकने में आज का युवा अहम भूमिका निभा सकता है। इसलिए वो युवाओं को अपने इस मिशन के साथ जोड़ने का भी काम कर रहे हैं। किसानों को अनाज और ज़मीन के जहर को खत्म करने के लिए एकजुट होकर काम करने की ज़रूरत है। आज सतर्क नहीं हुए तो आने वाली पीढ़ी पर खतरा रहेगा। खेती ज़रूर करें लेकिन जैविक खेती करें।

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जैविक खाद तैयार करने की ट्रेनिंग देते हुए नरेन्द्र सिंह मेहरा

राहुल पांडे कहते हैं कि हमारी मिट्टी सिर्फ़ 40 साल के लिए बची है। उसके बाद यूरिया, DAP, हानिकारक उर्वरकों और कीटनाशकों के इस्तेमाल से ज़मीन बंजर हो जानी है। इसे रोकने के लिए जैविक खेती एकमात्र रास्ता है। हमारी मिट्टी आने वाले 20 सालों में फिर से नयी और उपजाऊ हो सकती है।  

ये भी पढ़ें: खेती-बाड़ी में कमाई बढ़ाने के लिए अपनाएँ केंचुआ खाद (वर्मीकम्पोस्ट), जानिए उत्पादन तकनीक और विधि

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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