न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अब तक 17% ज़्यादा गेहूँ की खरीदारी हुई

मार्केटिंग सीज़न में सरकारी खरीद का कोटा इसलिए निर्धारित किया जाता है ताकि यदि किसी भी वजह से बिक्री सीज़न के दौरान बाज़ार में दलहन-तिलहन या खोपरा का दाम इसके MSP से नीचे जाने लगे तो केन्द्र और राज्य सरकार की ख़रीद मूल्य समर्थन योजना (PSS) के तहत पंजीकृत किसानों से सीधे खरीदारी कर सके।

High Buying of Wheat on MSP - Kisan of India

रबी सीज़न के तहत 20 मई तक 382.35 लाख मीट्रिक टन गेहूँ की सरकारी खरीद हो चुकी है। पिछले साल इसी अवधि तक 324.81 लाख मीट्रिक टन गेहूँ की खरीदारी हुई थी। इस तरह, अभी तक 17% ज़्यादा गेहूँ खरीदा गया है। सरकारी आँकड़ों के अनुसार, 39.55 लाख किसानों को मौजूदा न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर की गयी गेहूँ की खरीद का लाभ मिला है और उन्हें 75.5 हज़ार करोड़ रुपये का भुगतान किया जा चुका है।

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धान की खरीदारी

इस बीच, खरीदारी का काम अब भी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में जारी है। उधर, 20 मई तक ही धान की कुल खरीदारी भी 760.06 लाख मीट्रिक टन हो चुकी है। इसमें मौजूदा रबी के धान का हिस्सा 54.45 लाख मीट्रिक टन है। बाक़ी धान खरीफ सीज़न का है। दोनों सीज़न मिलाकर 1.13 करोड़ किसानों को MSP पर धान बेचने के लिए 1.43 लाख करोड़ रुपये का भुगतान हो चुका है।

दलहन-तिलहन की खरीदारी

MSP के तहत ही तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना, गुजरात, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान और आन्ध्र प्रदेश जैसे राज्यों से खरीफ़-2020 और रबी-2021 में 107.37 लाख मीट्रिक टन दलहन और तिलहन की खरीदारी को भी राज्यों से मिले प्रस्ताव के आधार पर मंज़ूरी दी गयी। 20 मई 2021 तक सरकारी एजेंसियों ने 6.76 लाख मीट्रिक टन मूँग, उड़द, अरहर, चना, मसूर, मूँगफली की फली, सरसों के बीज और सोयाबीन की खरीदारी की। इसके बदले 4.04 लाख किसानों को 3.5 हज़ार करोड़ रुपये का भुगतान किया गया।

खोपरा की खरीदारी

MSP के तहत ही, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल को 1.74 लाख मीट्रिक टन खोपरा (बारहमासी फसल) को खरीदारी का कोटा दिया गया। जबकि 20 मई तक 5.1 हज़ार मीट्रिक टन खोपरा की खरीदारी की गयी। इससे बदले करीब 4 हज़ार किसानों को 52.4 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया।

मार्केटिंग सीज़न में सरकारी खरीद का ये कोटा इसलिए निर्धारित किया जाता है ताकि यदि किसी भी वजह से बिक्री सीज़न के दौरान बाज़ार में दलहन-तिलहन या खोपरा का दाम इसके MSP से नीचे जाने लगे तो केन्द्र और राज्य सरकार की ख़रीद मूल्य समर्थन योजना (PSS) के तहत पंजीकृत किसानों से सीधे खरीदारी कर सके।

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MSP, PSS और MIS क्या हैं, कैसे काम करते हैं? (What are MSP, PSS and MIS? Who they function?)

MSP की घोषणा और समीक्षा केन्द्र सरकार आमतौर पर रबी और खरीफ सीज़न से पहले करती है। जबति मूल्य समर्थन योजना यानी PSS तब लागू की जाती है, जब दलहन, तिलहन और खोपरा की कीमतें अपने न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी MSP से नीचे चली जातीं हैं। इसके तहत होने वाली खरीदारी में हुए नुकसान की 25 प्रतिशत भरपायी केन्द्र सरकार और 75 फ़ीसदी राज्य सरकारें करती हैं। जबकि बाज़ार हस्तक्षेप योजना यानी MIS को जल्द खराब होने वाले फल-सब्ज़ी तथा बाग़वानी वाली फसलों की खरीद के लिए उस समय लागू किया जाता है जब पिछले साल की तुलना में इनका दाम 10 प्रतिशत तक गिर जाता है। ऐसी खरीदारी में केन्द्र और राज्य नुकसान की भरपायी आधा-आधा करते हैं।

MSP की व्यवस्था को जहाँ कृषि उपज मंडियों में भारतीय खाद्य निगम (FCI) से सहारा मिलता है, वहीं PSS और MIS के तहत होने वाली खरीदारी के लिए राज्य सरकारों की ओर से केन्द्रीय सहकारी संस्था नाफेड (National Agricultural Cooperative Marketing Federation of India, NAFED) के हस्तक्षेप की माँग की जाती है। कोरोना को देखते हुए पिछले साल रबी फसलों के लिए PSS के तहत खरीद की दैनिक सीमा 25 से बढ़ाकर 40 क्विंटल प्रति व्यक्ति करके नाफेड से मंडी में उपज की आवक के बाद 90 दिनों तक खरीदारी करने के लिए कहा गया था। इस साल भी राज्यों से कहा गया है कि यदि कीमतों में गिरावट नज़र आये तो वो जल्द खराब होने वाली उपज की MIS के तहत खरीदारी के लिए अपने प्रस्ताव भेजें।

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