करेले की खेती (Bitter Gourd Farming): साल भर करें करेले की खेती, कमायें कम लागत में बढ़िया मुनाफ़ा

करेला की ऐसी किस्में मौजूद हैं जिन्हें कहीं भी और किसी भी मौसम में उगाया जा सकता है। करेले की खेती में लागत के मुकाबले बढ़िया भाव मिलता है। करेला की प्रति एकड़ लागत 20-25 हज़ार रुपये होती है। इससे 50-60 क्विंटल तक उपज मिल जाती है। इसका बाज़ार में करीब 2 लाख रुपये का भाव मिल जाता है। इस तरह करेला की खेती से किसानों को अच्छा फ़ायदा मिलता है।

करेले की खेती bitter gourd farming

करेले की खेती (Bitter Gourd Farming): औषधीय गुणों की वजह से देश भर के बाज़ारों में करेला की माँग हमेशा रहती है। आज करेला की ऐसी किस्में मौजूद हैं जिन्हें कहीं भी और किसी भी मौसम में उगाया जा सकता है। करेले की खेती में लागत के मुकाबले बढ़िया भाव मिलता है। करेला में अनेक खनिज, प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट के अलावा विटामिन ‘ए’ और ‘सी’ भी खूब पाया जाता है।

पाचन, डायबिटीज, ब्लड प्रेशर और गठिया जैसे रोगियों के लिए करेला बहुत लाभकारी है, इसीलिए करेला के बीजों से दवाईयाँ भी बनायी जाती है। करेला से सब्ज़ी के अलावा अचार और जूस भी बनाते हैं।

करेले की खेती साल में दो बार की जा सकती है। सर्दियों वाले करेला की किस्मों की बुआई जनवरी-फरवरी में करके मई-जून में उपज मिलती है तो गर्मियों वाली किस्मों की बुआई बरसात के दौरान जून-जुलाई में करते हैं और दिसम्बर तक इसकी फसल पाते हैं। करेला की प्रति एकड़ लागत 20-25 हज़ार रुपये होती है। इससे 50-60 क्विंटल तक उपज मिल जाती है। इसका बाज़ार में करीब 2 लाख रुपये का भाव मिल जाता है। इस तरह करेले की खेती से किसानों को अच्छा फ़ायदा मिलता है।

करेले की खेती (Bitter Gourd Farming): साल भर करें करेले की खेती, कमायें कम लागत में बढ़िया मुनाफ़ा

करेले की खेती bitter gourd farming
तस्वीर साभार: agriplus

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कैसे करें करेले की खेती?

करेला की देसी और हाईब्रिड, दोनों किस्म के बीज बाज़ार में आसानी से मिल जाते हैं। अलग-अलग किस्मों की उपज और उसके पकने का वक़्त अलग-अलग होना स्वाभाविक है। करेले की खेती में प्रति एकड़ 3 से 4 किलो बीज की ज़रूरत पड़ती है। बुआई से पहले बीजों को एक दिन के लिए पानी में भिगोना चाहिए।

बुआई के लिए खेत की अच्छी जुताई करके करीब दो फ़ीट पर क्यारियाँ बनाकर इसकी ढाल के दोनों और करीब एक से डेढ़ मीटर की दूरी पर बीजों को रोपना चाहिए। हरेक जगह 2-3 बीजों को ज़मीन में एक-डेढ़ इंच नीचे रोपना चाहिए। करेला के पौधों को नर्सरी में भी तैयार करके उसकी रोपाई की जाती है। लेकिन तैयार पौधों को भी बीजों की तरह ही खेत में लगाया जाता है।

फसल के शुरुआती दौर में निराई-गुड़ाई करके खेत को खरपतवारों से मुक्त रखने से करेला की उपज अच्छी मिलती है। करेला को साधारण सिंचाई की ही ज़रूरत होती है। फूल या फल बनने के दौर में खेत में नमी अच्छी रहनी चाहिए। लेकिन खेत को जल भराव से बचाना चाहिए।

करेला का पौधा बेल के रूप में बढ़ता है। इसीलिए इसकी बेलों को सहारा देने के लिए इसे सुतली से बाँधकर बाँस के ढाँचों पर फैलाना चाहिए ताकि बेलों का विकास तेज़ी से होता रहे। वर्ना फसल ख़राब होने का खतरा रहता है। करेला को उस समय तोड़ना चाहिए जब उसके बीज कच्चे हों।

करेले की खेती bitter gourd farming
करेले की खेती (Bitter Gourd Farming) तस्वीर साभार: awesomegyan

खाद और कीटनाशक का इस्तेमाल

करेला की रोपाई से पहले खेत को तैयार करते वक़्त गोबर की खाद या कम्पोस्ट का इस्तेमाल भी करना चाहिए। करेला की फसल जल्द रोगग्रस्त होती है। इसकी जड़ों से लेकर बाक़ी हिस्सों में कीड़े भी लगते हैं। रेड बीटल, माहू रोग और सुंडी रोग से करेला की फसल ज़्यादा प्रभावित होती है। इसे वायरसों के प्रकोप से भी बचाना ज़रूरी है। इसीलिए कृषि विशेषज्ञ की सलाह लेकर ही कीटनाशक या रासायनिक खाद का इस्तेमाल करके फसल का उपचार करते रहना चाहिए।

करेले की उन्नत किस्में

कल्याणपुर बारहमासी, पूसा विशेष, हिसार सलेक्शन, कोयम्बटूर लौंग, अर्का हरित, प्रिया को-1, एस डी यू- 1, कल्याणपुर सोना, पूसा शंकर-1, पूसा हाइब्रिड-2, पूसा औषधि, पूसा दो मौसमी, पंजाब करेला-1, पंजाब-14, सोलन हरा और सोलन सफ़ेद जैसी किस्मों से करेला की अच्छी पैदावार होती है। ये किस्में देश के अलग-अलग इलाकों में प्रचलित हैं।

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