ख़रीदार मिल जाएं तो ब्रोकली की खेती में है ज़बरदस्त मुनाफ़े की गारंटी, Broccoli का दाम फूल गोभी से कई गुना महंगा

ब्रोकली काफ़ी हद्द तक फूल गोभी की तरह ही है। लेकिन सीज़न में जहाँ फूल गोभी का दाम कौड़ियों के भाव हो जाता है, वहीं ब्रोकली की कीमत 30 से 50 रुपये प्रति किलोग्राम तक मिल जाती है। अलबत्ता, ये कीमतें तभी आकर्षिक लगेंगी जब बाज़ार में ब्रोकली को खरीदार मिल जाएँ। इसीलिए ब्रोकली की खेती में हाथ आज़माने से पहले बाज़ार की नब्ज़ पर परखना बहुत ज़रूरी है।

ब्रोकली की खेती Broccoli farming

सब्ज़ियों से बढ़िया कमाई करने वाले किसानों के लिए ब्रोकली (broccoli) की खेती और शानदार मुनाफ़ा कमाने का ज़रिया बन सकती है बशर्ते उन्हें तैयार फसल के खरीदार मिल जाने का इत्मिनान हो। यही शर्त जैविक खेती से जुड़े उन लोगों पर भी लागू है जिनके उत्पाद निर्यात क्षेत्र से जुड़े हैं। भारत में मूलतः इटालियन नस्ल की सब्ज़ी ब्रोकली की खेती (Broccoli Farming) करना मुश्किल नहीं है, लेकिन फ़िलहाल, इस बेहद पौष्टिक सब्ज़ी के ज़्यादातर खरीदार सिर्फ़ बड़े शहरों और महँगे होटलों तक ही सीमित हैं। विदेश में ब्रोकली के चहेतों की भरमार है। लेकिन देश के छोटे शहरों और गाँवों-कस्बों में अभी ब्रोकली उतनी लोकप्रिय नहीं हुई है, जितना ये गुणकारी है।

भारत में ब्रोकली की खेती का इतिहास ख़ासा नया है। वैसे ब्रोकली के गुणों की वजह से लोगों की इसमें रुचि बढ़ रही है। लिहाज़ा, वो दिन दूर नहीं जब सब्ज़ियों की दुनिया में इसकी लोकप्रियता बुलन्दियों पर होगी। ब्रोकली की खेती, इसका बीज और पौधा भारतीय फूल गोभी से बहुत मिलता-जुलता है, लेकिन ब्रोकली सफ़ेद के अलावा हरे और बैंगनी रंग की भी होती है। ब्रोकली दो तरह की होती हैं- स्प्राउटिंग और हेडिंग। इसमें से स्प्राउटिंग ब्रोकली अधिक प्रचलित है।

ब्रोकली की खेती Broccoli farming
तस्वीर साभार: agrifarming

फूल गोभी के कई गुना महँगी है ब्रोकली

किसानों के लिहाज़ से देखें तो फूल गोभी के एक पेड़ से जहाँ एक ही फूल मिलता है, वहीं ब्रोकली से मुख्य फूल के अलावा कई अतिरिक्त फूल भी मिलते हैं, जो अतिरिक्त आमदनी का ज़रिया बनते हैं। ब्रोकली के फ़ायदे का दूसरा पक्ष ये है कि सीज़न में जहाँ फूल गोभी का दाम कौड़ियों के भाव हो जाता है, वहीं ब्रोकली की कीमत 30 से 50 रुपये प्रति किलोग्राम तक मिल जाती है। अलबत्ता, ये कीमतें तभी आकर्षिक लगेंगी जब बाज़ार में ब्रोकली को खरीदार मिल जाएँ। इसीलिए ब्रोकली की खेती में हाथ आज़माने से पहले बाज़ार की नब्ज़ पर परखना बहुत ज़रूरी है।

वैसे फूल गोभी की ही तरह ब्रोकली भी सर्दियों के मौसम की फसल है। ज़ाहिर है कि उत्तर भारत के मैदानी इलाकों की जलवायु ब्रोकली के लिए अनुकूल है। ब्रोकली का खाया जाने वाला हिस्सा छोटे-छोटे ढेरों हरी कलियों का गुच्छा होता है। कलियों के फूल बनते ही इन्हें पौधों से काट लेते हैं और सब्ज़ी की तरह पकाकर या फिर सलाद वग़ैरह में कच्चा भी खा सकते हैं। ब्रोकली का मुख्य गुच्छा पौधे से काटने के बाद उसकी कुछेक अन्य शाखाओं पर निकली कलियों के गुच्छों को कुछेक दिनों के बाद काटा, बेचा और खाया जाता है।

पौष्टिक और औषधीय गुणों से धन्य है ब्रोकली

ब्रोकली को सलाद, सूप और सब्ज़ी के रूप में खाते हैं। इसे उबालकर खाना ज़्यादा फ़ायदेमन्द है। ये आयरन, प्रोटीन, कैल्शियम, कार्बोहाइड्रेट, क्रोमियम, विटामिन ‘ए’ और ‘सी’ से भरपूर है। इसके फाइटोकेमिकल, ब्रेस्ट कैंसर और प्रोस्टेट कैंसर का खतरा कम करते हैं। वजन घटाने और रोग प्रतिरोधकता बढ़ाने में भी ब्रोकरी उपयोगी है। इसका क्रोमियम, इंसुलिन के उत्पादन को नियंत्रित करके मधुमेह में राहत देता है तो बीटा-कैरोटीन की वजह से मोतियाबिन्द और आँखों के मस्कुलर डीजेनरेशन पर लगाम लगती है।

ब्रोकली के सल्फोरापेन की वजह से अल्ट्रा वायलेट रेडियेशन से त्वचा को होने वाले नुकसान और सूजन को घटाने में फ़ायदा होता है। ब्रोकली का कैल्शियम, फास्फोरस, मैग्नीशियम और जिंक, हड्डियों को शानदार पोषण देकर ऑस्टियोपोरोसिस से बचाव करता है। इसीलिए ब्रोकली, बुज़ुर्गों और गर्भवती महिलाओं के लिए मुफ़ीद है। इसका आयरन और फोलेट, शरीर को एनीमिया और एल्जाइमर से बचाता है।

ब्रोकली का नियमित सेवन गर्भवती महिलाओं की सेहत और कोख में पले रहे शिशु के विकास के लिए फ़ायदेमन्द होते हैं और इन्हें संक्रमण से बचाते हैं। ब्रोकली का कैरोटीनॉयड ल्यूटिन, दिल की धमनियों में कोलेस्ट्रॉल को जमा नहीं होने देता। इसीलिए ये दिल के मरीज़ों के लिए उत्तम है। ब्रोकली में मौजूद फोलेट से डिप्रेशन कम होता है।

Kaise Karein Broccoli Ki Kheti? - Kisan of India
ब्रोकली की खेती

ब्रोकली की खेती

ब्रोकली की खेती बिल्कुल उन्हीं तौर-तरीकों से होती है जैसे किसान फूल गोभी की पैदावार करते हैं। फिर चाहे बात मिट्टी की हो, मौसम की, जलवायु की, खेत को तैयार करने की या नर्सरी में पौधों को तैयार करने की या फिर खाद, रोपाई और निराई-गुराई की। लिहाज़ा, इसके विस्तार में जाने की ज़रूरत नहीं। किसान जितना कुछ फूल गोभी की खेती के बारे में जानते हैं वो ब्रोकली की खेती के लिए भी पर्याप्त है। चुनौती सिर्फ़ ब्रोकली के क़द्रदानों तक इसे पहुँचाने की है।

ब्रोकली की खेती Broccoli farming
तस्वीर साभार: niphm

ख़रीदार मिल जाएं तो ब्रोकली की खेती में है ज़बरदस्त मुनाफ़े की गारंटी, Broccoli का दाम फूल गोभी से कई गुना महंगा

ब्रोकली की किस्में और बीज

आमतौर सफ़ेद और बैंगनी रंग की ब्रोकली के मुकाबले हरे रंग की गठी हुई ब्रोकली को ज़्यादा पसन्द किया जाता है। इनकी लगभग सभी क़िस्में विदेशी हैं जैसे नाइन स्टार, पेरिनियल, इटैलियन ग्रीन स्प्राउटिंग, केलेब्रस, बाथम-29, ग्रीन हेड, प्रीमियम क्रॉप, टोपर, ग्रीन कोमट और क्राईटेरीयन आदि। ब्रोकली की संकर किस्मों में मुख्य हैं – क्लीपर, क्रुसेर, स्टिक, पाईरेट पेक में, प्रिमिय क्राप और ग्रीन सर्फ़। इनमें से कई संकर नस्लों के बीज बाज़ार में मिलते हैं। भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान की ओर से विकसित पूसा ब्रोकली-1 और KTS-9 क़िस्म भी किसानों के लिए सुलभ हैं। ब्रोकली की अन्य देसी किस्में हैं- पालक समृद्धि, NS- 50, ब्रोकली संकर-1 और TDC-6.

वैसे फूल गोभी की ही तरह ही ब्रोकली के बीज भी बहुत छोटे होते हैं। इसकी नर्सरी में पौध तैयार करने के लिए प्रति हेक्टेयर करीब 400 ग्राम बीज पर्याप्त होते हैं। नर्सरी में कीटों से बचाव के लिए नीम का काढ़ा या गोमूत्र का छिड़काव करना चाहिए। इसके करीब चार सप्ताह की उम्र वाले पौधों को फूल गोभी की तरह ही रोपाई और हल्की सिंचाई करनी चाहिए। फसल में जैविक या रासायनिक खाद का इस्तेमाल मिट्टी की परीक्षण रिपोर्ट के अनुसार ही करना चाहिए। फसल में कीटनाशक का इस्तेमाल भी कृषि विशेषज्ञ की राय लेकर करना चाहिए।

ब्रोकली की खेती Broccoli farming
तस्वीर साभार: ICAR-CISH

ब्रोकली की कटाई और उपज

पौधों की रोपाई के बाद करीब दो-ढाई महीने बाद ब्रोकली की कलियाँ हरे रंग के घने गुच्छों यानी Main Head (मुख्य सिरा) में तब्दील होकर ये बताती हैं कि फसल अब कटने के लिए तैयार है। अब इसे 12 से 15 सेंटीमीटर लम्बे डंठल के साथ तेज़ चाकू या दराँती से कटाना चाहिए। मुख्य सिरा काटने के बाद पौधों के तनों से दूसरी छोटी-छोटी कलियाँ निकलती हैं जो जल्द ही उप सिरा यानी ‘सब हैड’ के रूप में तैयार हो जाती हैं।

मुख्य गच्छा काटने के चन्द दिनों के बाद ही ब्रोकली के छोटे गुच्छे भी काटकर बाज़ार में बेचने लायक बन जाएँगे। इन्हें भी 8 से 10 सेंटीमीटर लम्बे डंठल सहित कलियों के खिलने से पहले काट लेना चाहिए। कटाई में देरी होने पर गुच्छा ढीला पड़कर बिखरने लगेगा और इसकी रंगत पीलापन लेने लगेगी। ब्रोकली की साधारण किस्मों से 75 से 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा संकर किस्मों से 120 से 180 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार मिल सकती है।

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