पीएम मोदी ने किया IFFCO नैनो तरल यूरिया प्लांट का उद्घाटन, एक बोरी यूरिया की ताकत एक बोतल में समाई

आमतौर पर यूरिया की 45 किलोग्राम की एक बोरी का इस्तेमाल एक एकड़ की फसल के लिए किया जाता है। जबकि यही काम नैनो तरल यूरिया की 500 मिलीलीटर की बोतल से दोगुनी कुशलता से हो जाता है। यूरिया की बोरी का दाम 267 रुपये है तो नैनो लिक्विड यूरिया की आधा लीटर की बोतल की कीमत 240 रुपये है। नैनो तरल यूरिया की सिर्फ़ 2 मिलीलीटर मात्रा का एक लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना होता है और पूरी फसल के दौरान नैनो तरल यूरिया का सिर्फ़ दो बार छिड़काव करने की ज़रूरत पड़ती है।

नैनो तरल यूरिया (Nano liquid Urea)

दो दिन के गुजरात दौरे पर गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इफको के कलोल स्थित नैनो यूरिया (तरल) प्लांट का उद्घाटन किया। इफको नैना यूरिया (तरल) प्लांट को लेकर पीएम ने कहा की आज आत्मनिर्भर कृषि के लिए देश पहले नैनो यूरिया लिक्विड प्लांट का उद्घाटन करते हुए उन्हें बेहद खुशी हो रही है। उन्होंने कहा एक बोरी यूरिया की ताकत अब एक बोतल में समा गई है। नैनो यूरिया की करीब आधा लीटर बोतल, किसान की एक बोरी यूरिया की ज़रूरत को पूरा करेगी।

पीएम मोदी ने आगे कहा कि 7-8 साल पहले तक हमारे यहां ज़्यादातर यूरिया खेत में जाने के बजाय, कालाबाजारी का शिकार हो जाता था और किसान अपनी ज़रूरत के लिए लाठियां खाने को मजबूर होता था। कई बड़ी फैक्ट्रियां तकनीक के अभाव में बंद हो गई। पीएम मोदी ने जानकारी दी कि यूपी, बिहार, झारखंड, ओडिशा और तेलंगाना में 5 बंद पड़े खाद कारखानों को फिर चालू करने का काम शुरु किया गया। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार ने यूरिया की शत-प्रतिशत नीम कोटिंग का काम किया। इससे देश के हर किसान को पर्याप्त मात्रा में यूरिया मिलना सुनिश्चित हो सका।

क्या है नैनो तरल यूरिया?

यदि आप ऐसे किसान हैं जो अब भी यूरिया की बोरी ख़रीदते हैं तो जान लीजिए कि आप अपना और अपने खेत, फसल और पर्यावरण, सभी का नुकसान कर रहे हैं, क्योंकि बीते डेढ़ साल से भारत में यूरिया की बोरियों का बेजोड़ विकल्प मौजूद है। इसका नाम है नैनो तरल यूरिया। इसे इफ़को यानी इंडियन फार्मर्स फ़र्टिलाइजर कोआपरेटिव लिमिटेड ने तैयार किया है। ये यूरिया का ऐसा उन्नत रूप है जो आधा लीटर की बोतल में मिलता है और इसकी इतनी सी मात्रा ही 45 किलोग्राम वाली यूरिया की परम्परागत बोरी से भी ढाई से तीन गुना ज़्यादा फ़ायदा देती है। यूरिया की बोरी का दाम 267 रुपये है तो नैनो लिक्विड यूरिया की आधा लीटर की बोतल की कीमत 240 रुपये है।

दूसरे शब्दों में कहें तो यदि आप ऐसे किसान हैं जो रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल करते हैं और आपको यूरिया की बोरियाँ खरीदनी पड़ती हैं तो आपको अपनी कमाई बढ़ाने के लिए फ़ौरन यूरिया की बोरियों को छोड़ इफ़को का नैनो तरल यूरिया ख़रीदना चाहिए और अपनी फसल और खेतों में इसका ही घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। क्योंकि नैनो तरल यूरिया को ऐसी तकनीक से बनाया गया है जिससे इसकी सारी ताक़त सीधे फसल के पौधों को मिलती है और इसके उस अंश की बर्बादी नहीं होती जो अनुपयोगी रहकर या तो हवा में घुल जाता है या फिर सिंचाई के पानी के साथ ज़मीन की उस सतह तक जा पहुँचता है, जहाँ तक पौधों की जड़ें नहीं पहुँचती हैं।

नैनो तरल यूरिया (Nano liquid Urea)

 

नैनो तरल यूरिया के उपयोग में सावधानियाँ

नाइट्रोजन की कम ज़रूरत वाली फसलों के लिए जहाँ प्रति लीटर पानी में 2 मिलीलीटर नैनो तरल यूरिया मिलाकर बनाये गये घोल का छिड़काव करना चाहिए, वहीं ज़्यादा नाइट्रोजन की अपेक्षा रखने वाली फसलों के लिए उर्वरक की मात्रा को दो से बढ़ाकर चार मिलीलीटर कर लेना चाहिए। नैनो तरल यूरिया का पहला छिड़काव अंकुरण/रोपाई के 30-35 दिनों बाद तथा दूसरा छिड़काव फूल आने के पहले करना चाहिए। अच्छे नतीज़ों के लिए नैनो यूरिया का उपयोग उसके निर्माण की तारीख़ से दो साल के भीतर कर लेना चाहिए। नैनो तरल यूरिया का भूजल पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता, क्योंकि ये पूरी तरह से विषरहित होता है। फिर भी इसका छिड़काव करते वक़्त चेहरे पर मास्क और हाथों में दस्ताने पहनना चाहिए। नैनो यूरिया को बच्चों और पालतू पशुओं से दूर तथा ठंडी और सूखी जगह पर रखना चाहिए।

नैनो तरल यूरिया से आया युगान्तरकारी बदलाव

नैनो तरल यूरिया की खोज भारत में हुई। सहकारी संस्था इफ़को के वैज्ञानिक डॉक्टर रमेश रालिया ने इसे विकसित किया। वो गुजरात के गाँधीनगर के कलोल में स्थित ‘नैनो जैव प्रौद्योगिकी अनुसन्धान केन्द्र’ के रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेंटर के जनरल मैनेज़र हैं। डॉक्टर रालिया दुनिया के पहले ऐसे वैज्ञानिक हैं जिन्होंने नैनो तरल यूरिया को विकसित किया। नैनो टेक्नॉलोजी के महारथी डॉक्टर रालिया के पास फ़िलहाल कम से कम 15 अनुसन्धानों के पेटेंट हैं।

नैनो तरल यूरिया एक ऐसी वैज्ञानिक खोज है जिससे खेती में युगान्तरकारी बदलाव आना तय है। किसी भी फसल के लिए सबसे अहम पोषक तत्व नाइट्रोजन है और इसका सबसे बड़ा स्रोत यूरिया है। लेकिन दिक्कत ये है कि अभी यूरिया की बोरियों में जो सफ़ेद दानेदार यूरिया मिलता है उसकी जितनी मात्रा का खेतों में इस्तेमाल होता है, उसका बमुश्किल 30 से 40 फ़ीसदी अंश ही पौधों के काम आता है। बाक़ी यूरिया हवा में घुल जाता है या फिर मिट्टी में घुलकर पानी के साथ पसीजकर निचली सतह में पहुँच जाता है।

दानेदार यूरिया की ख़ामियों को समाधान

हवा में जा पहुँचने वाला यूरिया जहाँ पर्यावरण के लिए हानिकारक ग्रीनहाउस गैसों में तब्दील हो जाता है, वहीं मिट्टी में समाने वाला यूरिया उसकी अम्लीयता का बढ़ा देता है और इसका जो अंश मिट्टी में और नीचे तक जाता है वो भूजल को प्रदूषित करता है। परम्परागत दानेदार यूरिया की इन सभी ख़ामियों या विकृतियों का बेजोड़ इलाज़ है इफ़को का नैनो तरल यूरिया, क्योंकि ये ऐसी सभी ख़ामियों को काफ़ी हद्द
तक दूर रखता है।

नैनो तरल यूरिया का दाम
तस्वीर साभार: IFFCO Bazaar

वैज्ञानिक शोध और अनुसन्धान से ये साबित हुआ है कि नैनो तरल यूरिया की 80 फ़ीसदी मात्रा का उपयोग पौधे सफलतापूर्वक कर लेते हैं। यानी, नैनो तरल यूरिया के इस्तेमाल से यूरिया की बर्बादी पर नकेल कसी जा सकती है। यही इसकी सबसे बड़ी और अद्भुत विशेषता है। आमतौर पर यूरिया की 45 किलोग्राम की एक बोरी का इस्तेमाल एक एकड़ की फसल के लिए किया जाता है। जबकि यही काम नैनो तरल यूरिया की 500 मिलीलीटर की बोतल से दोगुनी कुशलता से हो जाता है। बाज़ार में  500 मिलीलीटर की बोतल का दाम 240 रुपये है। नैनो तरल यूरिया की सिर्फ़ 2 मिलीलीटर मात्रा का एक लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना होता है और आमतौर पर पूरी फसल के दौरान नैनो तरल यूरिया का सिर्फ़ दो बार छिड़काव करने की ज़रूरत पड़ती है।

2 साल चला नैनो तरल यूरिया का परीक्षण

नैनो तरल यूरिया की खोज तो डॉक्टर रमेश रालिया ने 2019 में ही कर ली थी लेकिन 31 मई 2020 को इसे किसानों को समर्पित करने से पहले 2 साल तक इसका परीक्षण किया गया। इसे देश के 30 एग्रो क्लाइमेटिक जोन यानी कृषि जलवायु क्षेत्र में मौजूद 11 हज़ार से ज़्यादा किसानों ने परखा। किसानों ने 94 तरह की फसलों पर इसे आज़माकर देखा। भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद (ICAR) के 20 से ज़्यादा संस्थानों और कृषि विश्वविद्यालयों में इसका परीक्षण किया गया और जब सभी से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली तो जून 2020 से इफ़को ने नैनो तरल यूरिया को व्यावसायिक स्तर पर बाज़ार में उतारा।

कैसे काम करता है नैनो तरल यूरिया?

नैनो तरल यूरिया और साधारण यूरिया के बीच के अन्तर के बारे में डॉक्टर रालिया बताते हैं कि परम्परागत दानेदार यूरिया को जब खेत में डालते हैं तो इसकी शक्ति को पौधे सूक्ष्म ऑयन (ion) के रूप में ग्रहण करते हैं। जबकि नैनो तरल यूरिया अपने सम्पूर्ण कण या पार्टिकल के रूप में पौधों तक पहुँचता है। ये पार्टिकल या कण, असंख्या ऑयनों (ions) का समूह होते हैं। इलेक्ट्रॉन और प्रोट्रॉन बुनियादी ऑयन हैं। दो पदार्थों के लिए बीच जो भी रासायनिक प्रतिक्रिया होती है वो आयन के ज़रिये ही होती है। इसीलिए आयन बेहद गतिशील होते हैं, जबकि पार्टिकल या कण उसी पदार्थ की एक अपेक्षाकृत स्थिर या stable अवस्था होती है।

अपने स्थिर स्वरूप की वजह से दानेदार यूरिया के कण हाइड्रोलाइज होकर या गलकर पौधों के भीतर पहुँचते हैं। इसके बाद ही पौधे इसके आयन का इस्तेमाल करके नाइट्रोजन ग्रहण कर पाते हैं, जबकि नैनो तरल यूरिया के ज़रिये पौधों को सीधे आयन ही मुहैया करवाया जाता है। इससे ग्रहण करने में पौधों को ज़्यादा आसानी होती है और उन्हें कण में मौजूद अन्य तत्वों से निपटने की ज़रूरत नहीं पड़ती।

नैनो तरल यूरिया में मौजूद आयन ऐसे नैनो पार्टिकल हैं जिसका आकार एक मीटर के एक अरबवें हिस्से के बराबर होता है। ऐसी लघुतम आकृति की वजह से आयन आसानी से पौधों में पहुँच जाते हैं। बोरियों में पाये जाने वाले दानेदार यूरिया का बड़ा हिस्सा हवा से प्रतिक्रिया करके नाइट्रस ऑक्साइड के रूप में बदल जाता है जो एक ग्रीनहाउस गैस है। नैनो तरल यूरिया हमें ऐसी स्थिति से बचा लेता है। दानेदार यूरिया के असंतुलित इस्तेमाल से मिट्टी में pH मान बिगड़ जाता है और वो अम्लीय बनने लगती है, क्योंकि इससे अमोनिया उत्सर्जित होकर ज़मीन में मिल जाती है।

पीएम मोदी ने किया IFFCO नैनो तरल यूरिया प्लांट का उद्घाटन, एक बोरी यूरिया की ताकत एक बोतल में समाई
तस्वीर साभार: Twitter @Dr.Rameshraliya

कौन हैं नैनो तरल यूरिया के आविष्कारक?

डॉ रमेश रालिया, नैनो साइंसेंस के एक जाने-माने वैज्ञानिक हैं। जोधपुर ज़िले के गाँव खारिया खंगार के मूल निवासी डॉ. रालिया के माता-पिता, भंवरी देवी और पारसराम, किसान हैं और गाँव में ही रहते हैं। जोधपुर स्थित ICAR-केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसन्धान संस्थान (काज़री) में विश्व बैंक की ओर से प्रायोजित कृषि नैनो टेक्नोलॉजी के पहले प्रोजेक्ट में रिसर्च एसोसिएट के रूप में उनका चयन हुआ था। पीएचडी के दौरान उन्हें अमेरिका की वाशिंगटन यूनिवर्सिटी से बुलावा आ गया, क्योंकि पीएचडी के दौरान ही यूनिवर्सिटी के विभागाध्यक्ष ने काज़री की प्रयोगशाला का दौरा किया और इनके रिसर्च वर्क को करीब से देखा। अमेरिका जाकर डॉक्टर रालिया ने 60 से ज़्यादा देशों के वैज्ञानिकों के साथ नैनो तकनीक पर शोध किये। अमेरिका से लौटने के बाद डॉ रालिया इफ़को से जुड़ गये।

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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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