Climate Crisis: भारत का किसान प्रकृति के प्रकोप के सामने क्यों हार रहा? बाढ़, सूखा और बादल फटना बना नई ख़तरनाक ‘सामान्य’ स्थिति

उत्तराखंड में बादल फटने से (Climate Crisis) तबाही मच जाती है, तो केरल और असम में बाढ़ ने लाखों लोगों को बेघर कर दिया है। यह कोई सामान्य मौसमी उथल-पुथल नहीं, बल्कि जलवायु परिवर्तन (Climate Change) का स्पष्ट और डरावना चेहरा है, जो सीधे हमारे किसानों और हमारे फसलों पर हमला कर रहा है। 

Climate Crisis: भारत का किसान प्रकृति के प्रकोप के सामने क्यों हार रहा? बाढ़, सूखा और बादल फटना बना नई ख़तरनाक 'सामान्य' स्थिति

एक तरफ पंजाब और हरियाणा के खेत पानी के (Climate Crisis) नीचे दबे हैं, सोने जैसी फसलें सड़कर कीचड़ में तब्दील हो रही हैं। दूसरी तरफ, बुंदेलखंड और विदर्भ की ज़मीनें सूखे की मार से फट रही हैं, किसान की आशाएं धूल में मिल रही हैं। उत्तराखंड में बादल फटने से तबाही मच जाती है, तो केरल और असम में बाढ़ ने लाखों लोगों को बेघर कर दिया है। यह कोई सामान्य मौसमी उथल-पुथल नहीं, बल्कि जलवायु परिवर्तन (Climate Change) का स्पष्ट और डरावना चेहरा है, जो सीधे हमारे किसानों और हमारे फसलों पर हमला कर रहा है। 

बाढ़, सूखा और बादल फटना: नई, खतरनाक ‘सामान्य’ स्थिति

पारंपरिक रूप से, भारतीय किसान मानसून की एक निश्चित लय पर निर्भर था। कब बोना है, कब काटना है, ये पहले से पता होता था । लेकिन जलवायु परिवर्तन (Climate Crisis) ने उस पुराने पैटर्न को तोड़ दिया है।

विज्ञान क्या कहता है?

ग्लोबल वार्मिंग के कारण वातावरण गर्म हुआ है। एक साधारण सिद्धांत है: गर्म हवा में ठंडी हवा की तुलना में ज़्यादा नमी सोखने की क्षमता होती है। जब ये गर्म, नमी से लबालब हवा अचानक ठंडी होती है, तो ये सारी नमी बेकाबू होकर, अत्यधिक वर्षा (Extreme Rainfall Event) के रूप में नीचे गिरती है। इसे ही हम ‘बादल फटना’ कहते हैं।

इसकी एक बड़ी वजह अरब सागर और बंगाल की खाड़ी का बढ़ता तापमान (Rising temperatures in the Arabian Sea and the Bay of Bengal) है। गर्म समुद्र मानसून को और अधिक शक्तिशाली, लेकिन अत्यधिक अप्रत्याशित बना रहे हैं। नतीजा ये है कि जहां कभी ‘सदी की सबसे भयानक बाढ़’ जैसी घटनाएं 100 साल में एक बार होती थीं, वे अब हर कुछ साल में दोहराई जाने लगी हैं। ये हमारी नई, खतरनाक ‘सामान्य’ स्थिति है।

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आंकड़े बोलते हैं: एक गहन शोध का निचोड़

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) की स्टडी के अनुसार, Climate change के कारण 2050 तक गेहूं की पैदावार में 19-25 फीसदी और चावल की पैदावार में 4-6 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले दो दशकों में भारत में 600 से अधिक किसानों की आत्महत्या (Farmers’ suicide) का सीधा संबंध climate-related disasters  (सूखा, बाढ़) से जोड़ा गया है। यह सिर्फ आंकड़े नहीं, बल्कि हमारे देश के भविष्य के लिए एक गंभीर चेतावनी है।

किसान: इस संकट के सबसे बड़े शिकार

भारतीय किसान, जो पहले से ही असंख्य चुनौतियों का सामना कर रहा है, इस नए खतरे के सामने सबसे ज्यादा असहाय है।

फसलों का सर्वनाश 

खड़ी फसलों पर अचानक आई भारी बारिश या बाढ़ पल भर में साल भर की मेहनत को डुबो देती है। धान, सोयाबीन, दलहन जैसी नाजुक फसलें पानी में डूबने से सड़ जाती हैं। इससे न केवल किसान को भारी आर्थिक नुकसान होता है, बल्कि पूरे देश में खाद्यान्न की कमी और महंगाई का खतरा (Food shortages and the threat of inflation) पैदा हो जाता है।

मिट्टी का कटाव 

तेज बहाव वाला पानी खेतों की उपजाऊ मिट्टी की ऊपरी परत (Topsoil) को बहा ले जाता है। यह परत पोषक तत्वों से भरपूर होती है। इसके बह जाने से जमीन लंबे समय के लिए बंजर हो जाती है, जिससे भविष्य में फसल उत्पादन पर गहरा असर पड़ता है।

सूखे का ख़तरनाक चक्र 

विडंबना ये है कि एक ही मानसून सीजन में कुछ इलाके बाढ़ से तबाह होते हैं, तो कुछ सूखे की चपेट में होते हैं। अनियमित और केंद्रित वर्षा के कारण जल संसाधनों का नैचुरल रिचार्ज (Recharge) नहीं हो पाता। नतीजतन, देश का भूजल स्तर लगातार गिर रहा है, और सूखे की स्थिति और विकराल होती जा रही है।

एक छुपा हुआ ख़तरा: महामारियों का नया अड्डा

जलवायु परिवर्तन सिर्फ फसलों को नुकसान पहुंचाकर ही नहीं रुकता; यह मानव और पशु स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर संकट पैदा कर रहा है।

जलजनित रोग: बाढ़ के बाद जमा हुआ पानी हैजा, टाइफाइड, हेपेटाइटिस-ए और दस्त (Cholera, typhoid, hepatitis A and diarrhoea) जैसी घातक बीमारियों के फैलने का प्रमुख कारण बनता है। स्वच्छ पेयजल की कमी इन्हें और फैलाती है।

मच्छरजनित रोग: स्थिर पानी मच्छरों के प्रजनन के लिए एक आदर्श प्रजनन स्थल है। इससे डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया और अन्य वेक्टर-जनित बीमारियों (Dengue, malaria, chikungunya and other vector-borne diseases) के मामलों में भारी बढ़ोत्तरी देखी जा रही है, जो बाढ़ के बाद के इलाकों में दोहरी मार बनकर आती हैं।

पशुधन में बीमारी: बाढ़ और अत्यधिक गर्मी के कारण पशुओं में भी नई और पुरानी बीमारियां तेजी से फैल रही हैं। पशुधन किसानों की आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, और इन बीमारियों के कारण उनकी आजीविका पर दोहरा आघात पड़ता है।

नई तरह की बीमारियों का जन्म: देश में कई नई तरह की बीमारियां भी देखने को मिल रही हैं जिसका नाम भी पहले नहीं होता है। बदलते मौसम की वजह से जीवाणुओं की शक्तियां बढ़ी हैं, जिसकी वजह से जो बुखार 3 दिन में उतर जाता था अब उसमें सही होने में हफ्तों लग जाते हैं। कभी गर्मी और और कभी बारिश के मौसम के कारण लोग जल्दी-जल्दी बीमार हो रहे हैं। अस्पताल में रोगियों की लाइन लगी है। हाल ही में केरल में दिमाग खाने वाले कीड़े के कारण कई लोगों की मौत हुई है, जो पानी में पाया जाता है। इसके साथ लोगों में निमानिया की शिकायतें भी बढ़ी है, ये सब असमय मौसम में बादलाव के कारण हो रहा है।

जलवायु परिवर्तन को रोकना एक वैश्विक चुनौती

ये संकट केवल किसानों का नहीं, बल्कि पूरे देश का है। हमारा भोजन, हमारा स्वास्थ्य और हमारी अर्थव्यवस्था सीधे तौर पर कृषि पर निर्भर है। जलवायु परिवर्तन को रोकना एक वैश्विक चुनौती है, लेकिन इसके प्रभावों के अनुकूल होने की तैयारी हमें स्थानीय स्तर पर ही करनी होगी। वरना प्रकृति का ये प्रकोप और भयावह रूप ले सकता है। वक्त है जागने और काम करने का, before it’s too late.

 

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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