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देशभर में किसानों को रसायनों से दूर ले जाकर प्राकृतिक खेती अपनाने की दिशा में केंद्र सरकार ने बड़ा कदम उठाया है। इसी क्रम में उत्तर प्रदेश के एटा जिले में पहली बार राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन लागू किया गया है। इस योजना का उद्देश्य है कि खेती पूरी तरह से प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित हो और मिट्टी को रसायनों के प्रभाव से बचाया जा सके।
एटा में इस मिशन के तहत कुल 21 क्लस्टर बनाए गए हैं। हर क्लस्टर में 50 हेक्टेयर भूमि और 125 किसान शामिल हैं। यानी क़रीब 1050 हेक्टेयर ज़मीन पर प्राकृतिक खेती की शुरुआत हो चुकी है और इसमें 2650 किसान सक्रिय रूप से जुड़ चुके हैं।
प्राकृतिक खेती कैसे होती है?
प्राकृतिक खेती का सीधा अर्थ है कि खेती में किसी भी तरह के रासायनिक खाद और कीटनाशकों का प्रयोग न किया जाए। इसके बजाय किसान केवल प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करें। उदाहरण के तौर पर खाद की जगह ‘घन जीवामृत’ और कीट नियंत्रण के लिए ‘दशपर्णी अर्क’ का छिड़काव किया जाता है।
इस तरीके से गेहूं, धान, दलहन, तिलहन, फल, सब्ज़ियां और मोटे अनाज तक उगाए जा रहे हैं। राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इससे उत्पादन लागत घटती है, पर्यावरण सुरक्षित रहता है और मिट्टी की उर्वरता भी लंबे समय तक बनी रहती है।
महिला सशक्तिकरण में अहम भूमिका
इस मिशन की एक बड़ी ख़ासियत यह है कि इसमें ग्रामीण महिलाओं को भी जोड़ा गया है। सरकार ने महिलाओं को कृषि सखी के रूप में नियुक्त किया है। ये कृषि सखी किसानों को प्राकृतिक खाद और कीटनाशक तैयार करना सिखाती हैं। उन्हें कृषि विज्ञान केंद्र से विशेष प्रशिक्षण दिया गया है और इसके बदले प्रत्येक महिला को 5 हजार रुपये मासिक मानदेय भी प्रदान किया जा रहा है। यह प्रयास महिलाओं के लिए न केवल रोजगार का अवसर है, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में भी बड़ा कदम है। अब गांव की महिलाएं राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन की अहम साथी बनकर किसानों को नई तकनीक सिखा रही हैं।
किसानों के लिए फ़ायदे
किसानों का कहना है कि इस मिशन से उन्हें दोहरा लाभ मिल रहा है। एक तरफ खेती की लागत कम हो रही है और दूसरी तरफ बाजार में प्राकृतिक उपज की मांग भी तेज़ी से बढ़ रही है।
- प्राकृतिक खाद और कीटनाशक तैयार करने का तरीक़ा अब किसान खुद सीख चुके हैं।
- फ़सलें बिना रसायन के तैयार हो रही हैं, जिससे स्वास्थ्यवर्धक अनाज और सब्ज़ियां मिल रही हैं।
- खेती में लगने वाला ख़र्च घटने से किसानों की आमदनी बढ़ रही है।
- राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन से जुड़ने वाले किसानों को प्रशिक्षण और संसाधन दोनों उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
कृषि सखी की भूमिका
गांव-गांव जाकर किसानों को जागरूक करना, उन्हें प्राकृतिक खाद बनाने का तरीक़ा सिखाना और फ़सल की सुरक्षा से जुड़ी जानकारी देना कृषि सखियों का मुख्य काम है।
- ये महिलाएं किसानों को ‘घन जीवामृत’ और ‘दशपर्णी अर्क’ तैयार करना सिखाती हैं।
- गर्भवती पशुओं की देखभाल और पोषण से जुड़ी जानकारी भी साझा करती हैं।
- किचन गार्डन और पोषण आहार के बारे में ग्रामीणों को जागरूक करती हैं।
इससे महिलाएं न केवल कमाई कर रही हैं बल्कि गांव की ‘कृषि डॉक्टर’ बन चुकी हैं। उनकी सलाह को किसान सम्मान के साथ मानते हैं।
यूपी में फैल रहा मिशन
एटा जिले से शुरू हुआ यह अभियान अब उत्तर प्रदेश के अन्य जिलों में भी तेज़ी से लागू किया जा रहा है। पहले चरण में एटा में 10 हजार हेक्टेयर क्षेत्र पर खेती की शुरुआत की गई है। जल्द ही हर जिले में इसी तरह क्लस्टर बनाकर किसानों को जोड़ा जाएगा। विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले वर्षों में राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन किसानों के लिए वरदान साबित होगा। इससे कृषि पर बढ़ते ख़र्च, मिट्टी की घटती गुणवत्ता और पर्यावरण प्रदूषण जैसी समस्याओं का समाधान मिलेगा।
भविष्य की संभावनाएं
केंद्र सरकार का लक्ष्य है कि देशभर में लाखों किसान राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन से जुड़ें और रसायन मुक्त खेती को बढ़ावा दें। इससे एक ओर किसानों की आय दोगुनी करने का सपना पूरा होगा, वहीं दूसरी ओर उपभोक्ताओं को भी शुद्ध और स्वास्थ्यवर्धक खाद्य सामग्री मिलेगी। महिलाओं को कृषि सखी के रूप में जोड़ना इस मिशन का अनूठा कदम है, जिसने ग्रामीण भारत की तस्वीर बदलनी शुरू कर दी है। गांव की महिलाएं अब केवल गृहस्थी तक सीमित नहीं, बल्कि किसानों को प्रशिक्षित कर समाज में नई पहचान बना रही हैं।
निष्कर्ष
एटा जिले में लागू हुआ राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन आने वाले समय में पूरे उत्तर प्रदेश और फिर देश के लिए प्रेरणा बनेगा। यह केवल खेती की पद्धति बदलने का अभियान नहीं है, बल्कि किसानों और महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में भी बड़ा कदम है। प्राकृतिक खेती से जहां मिट्टी और पर्यावरण सुरक्षित रहेंगे, वहीं कृषि सखी के सहयोग से किसान स्वस्थ और टिकाऊ खेती कर सकेंगे।
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