26 मई को देश भर में किसानों का विरोध दिवस, 12 विपक्षी दलों का समर्थन

संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सम्बोधित पत्र में कहा गया है कि यदि 25 मई तक सरकार की ओर से बातचीत को बहाल करने के लिए सकारात्मक जवाब नहीं मिला तो 26 मई को किसान देश भर में विरोध दिवस मनाएँगे।

26 may will be farmer's protest movement day - Kisan Of India

तीनों विवादित नये कृषि क़ानूनों को वापस लेने की माँग को लेकर चल रहा किसान आन्दोलन 26 मई को अपने छह महीने पूरे करने वाला है। इसे देखते हुए संयुक्त किसान मोर्चा (Samyukta Kisan Morcha, SKM) ने 26 मई को देश भर में प्रदर्शन करने की जो घोषणा की थी, उसे अब मोदी सरकार के विपक्ष में खड़ी 12 पार्टियों का समर्थन मिला है।

विपक्षी पार्टियों का समर्थन

किसान आन्दोलन के समर्थन में विपक्षी दलों की ओर से जारी संयुक्त समर्थन पत्र पर सोनिया गाँधी (काँग्रेस), एचडी देवेगौड़ा (जेडीएस), शरद पवार (एनसीपी), ममता बनर्जी (टीएमसी), उद्धव ठाकरे (शिव सेना), एमके स्टालिन (डीएमके), हेमन्त सोरेन (झामुमो), फ़ारूक़ अब्दुल्ला (पीपुल्‍स कॉन्फ्रेंस), अखिलेश यादव (समाजवादी पार्टी), तेजस्वी यादव (आरजेडी), डी राजा (सीपीआई), सीताराम येचुरी (सीपीएम) और अरविन्द केजरीवाल (आम आदमी पार्टी) के दस्तख़त हैं।

12 opposition parties extend their support to Samyukta Kisan Morcha - Kisan Of India

किसानों की चिट्ठी

इस बीच, संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सम्बोधित एक पत्र में कहा गया है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का मुखिया होने के नाते बातचीत को बहाल करने की ज़िम्मेदारी आप पर है। यदि सरकार बातचीत करके हमारी समस्याओं का समाधान करे तो किसान अपने घर चले जाएँगे। पत्र में लिखा गया है कि यदि 25 मई तक सरकार की ओर से संयुक्त किसान मोर्चा को सकारात्मक जवाब नहीं मिला तो 26 मई को किसान देश भर में विरोध दिवस मनाएँगे।

12 दौर की बातचीत रही बेनतीज़ा

किसान नेताओं ने ये चेतावनी भी दी है कि भले ही केन्द्र सरकार और किसान संगठनों के बीच अब तक 12 दौर की बातचीत हो चुकी है लेकिन कृषि क़ानूनों को लेकर पनपा असन्तोष खत्‍म नहीं हुआ है। किसान क़ानून रद्द करने की ज़िद पर अड़े हैं जबकि केन्द्र सरकार अपने क़दम पीछे खींचने को तैयार नहीं है, क्योंकि उसे लगता है कि विवादित क़ानूनों के प्रावधान खेती-किसानी के लिए क्रान्तिकारी साबित होंगे।

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कोई टस से मस होने को राज़ी नहीं

रही बात किसानों से बातचीत के बहाल होने की, तो इसके बारे में केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर कई बार कह चुके हैं कि जब तक किसानों की ओर लचीला रवैया दिखाने की पेशकश नहीं होती, तब तक बातचीत के अगले दौर की सोचने का कोई फ़ायदा नहीं हो सकता। मतलब साफ़ है कि किसान और सरकार, दोनों में कोई भी अपनी स्थिति से टस से मस होने को तैयार नहीं दिख जाएगा। अब जिस ढंग से विपक्षी पार्टियों से किसानों की माँग को नया समर्थन मिला है, उससे लगता नहीं कि किसान आन्दोलन का निकट भविष्य में समाधान हो पाएगा।

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