Gorakhmundi: गोरखमुंडी की खेती से कैसे किसानों को होगा फ़ायदा? जानिए इस फसल के बारे में सब कुछ

कई रोगों के उपचार में किया जाता है इस्तेमाल

गोरखमुंडी (Gorakhmundi) एक औषधीय गुणों वाला पौधा है। इस जड़ी-बूटी की खेती किसानों के लिए फ़ायदेमंद हो सकती है।

हमारे देश में कई ऐसी आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां हैं, जिनके बारे में लोगों को जानकारी नहीं हैं।  यही वजह है कि वो उसका फ़ायदा नहीं उठा पाते। ऐसी ही एक जड़ी-बूटी है गोरखमुंडी (Gorakhmundi)। इसका वैज्ञानिक नाम स्‍पैरेंथस इंडिकस (Sphaeranthus Indicus) है। बैंगनी रंग के फूलों वाला ये पौधा औषधीय गुणों से भरपूर होता है। आयुर्वेद में प्राचीन काल से ही कई रोगों के उपचार के लिए इसकी छाल, फूल और पत्तियों का इस्तेमाल होता आया है।

गोरखमुंडी के पत्ते, फूल का स्वाद कड़वा और तीखा होता है। इस पौधे में एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-फंगल गुण पाए जाते हैं। इसके पौधे में ख़ास तरह की गंध होती है। 30 से 60 सेंटीमीटर ऊंचाई तक बढ़ने वाला इसका पौधा ज़मीन पर फैला होता है। ठंड के मौसम में इसमें फूल और फल लगते हैं। इसके फूल गोल घुंडियों वाले होते हैं, जिसे मुण्डी कहा जाता है। इसके जड़, फूल और पत्तियों का इस्तेमाल कई बीमारियों के उपचार में किया जाता है। इसकी ख़ासियत ये है कि ये पूरे भारत में उगता है। गोरखमुंडी की खेती से किसान अच्छा मुनाफ़ा कमा सकते हैं, क्योंकि आयुर्वेदिक दवा बनाने वाली कंपनियों में इसकी मांग हमेशा रहती है। जानकारी के अभाव में किसान इस अनमोल जड़ी-बूटी का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं।

तस्वीर साभार:medicinalplants

जलवायु और मिट्टी

गोरखमुंडी का पौधा वैसे तो धान के खेतों में खरपतवार के रूप में उग आता है, लेकिन किसान गोरखमुंडी की खेती भी कर सकते हैं। ये पौधा मध्यम चिकनी मिट्टी में धान की कटाई के बाद अच्छी तरह से पनपता है। यानी चिकनी मिट्टी में गोरखमुंडी की खेती की जा सकती है। इसे धान के साथ अंतरफसल के रूप में भी उगाया जा सकता है।

नर्सरी तैयार करना

गोरखमुंडी के पौधों को बीजों से तैयार किया जाता है। बीजों को अगस्त महीने में अच्छी तरह से तैयार नर्सरी में बोया जाता है। 10-12 दिन में बीज अंकुरित होने लगते हैं। जब पौधे 5-6 सेंटीमीटर तक बढ़ जाते हैं तो इन्हें नर्सरी से निकालकर सीधे खेत में लगाया जाता है। पौधों की रोपाई से पहले खेत की अच्छी जुताई करनी ज़रूरी है। लगभग 5-10 टन गोबर की खाद N:P:K 20:30:30 किग्रा/हेक्टेयर के अनुपात में मिलाएं। बाकी बची नाइट्रोजन रोपाई के 30 से 70 दिनों के बाद डालें। रोपाई के बाद तुरंत पौधों की सिंचाई करें। रोपाई के 20-45 दिनों के बाद दो निराई-गुड़ाई की जाती हैं। रोग व कीटों से बचाव के लिए जैव कीटनाशक का छिड़काव किया जा सकता है।

तस्वीर साभार:thailandweeds

ICAR के मुताबिक कई रोगों के उपचार में मददगार गोरखमुंडी

  • सिर के रोगों के इलाज के लिए 3-5 मिलीलीटर गोरखमुंडी के रस में 500 मिलीग्राम कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम पीने से आराम मिलता है।
  • आंखों के रोग के उपचार के लिए 1-2 ग्राम गोरखमुंडी पंचांग चूर्ण में बराबर मात्रा में मिश्री डालें और इसे 200 मि.ली. दूध में मिलाकर सुबह-शाम पीएं। इससे आंखों के कई तरह के रोग ठीक होते हैं।
  • ये थायराइड में भी फ़ायदेमंद हैं। मुंडी पंचांग को पीसकर गले में लगाने से थायराइड ग्लैंड की सूजन कम होती है। गोरखमुंडी की जड़ के 1-2 ग्राम चूर्ण में शहद मिलाकर खाने से खांसी से आराम मिलता है।
  • 10-20 मिलीलीटर गोरखमुंडी जड़ के काढ़े का सेवन करने से सीने के दर्द और चुभन से छुटकारा मिलता है।
  • डायबिटीज़ के मरीज़ो के लिए भी फायदेमंद है। गाय के दूध के साथ 1-2 ग्राम मुंडी चूर्ण का सेवन डायबिटीज़ के मरीज़ो के लिए फ़ायदेमंद होता है।

ये भी पढ़ें- Guggul Farming: जानिए औषधीय पौधे गुग्गल की खेती का उन्नत तरीका, कितना दाम और क्या है पैदावार

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

You might also like
Leave A Reply

Your email address will not be published.