राजस्थान का पाली ज़िला वैसे तो मेहंदी की खेती और इससे जुड़े कृषि आधारित उद्योगों का गढ़ है, लेकिन मेहंदी एक ऐसी बहुवर्षीय सूखारोधी झाड़ है जो देश के ऐसे कई अन्य इलाकों के किसानों की ज़िन्दगी में भी ख़ुशहाली लाने की क्षमता रखती है। ख़ासकर, जिनकी ज़मीन कंकरीली, पथरीली, हल्की, भारी, लवणीय और क्षारीय है। इसके अलावा, जिनके पास सिंचाई के साधन नहीं हैं और जो बार-बार नयी फसलें लगाने के झंझट से बचना चाहते हैं। मेहंदी को गर्म तथा शुष्क जलवायु वाले इलाकों में बेहद आसानी से उगाकर अच्छी कमाई की जा सकती है।
परती और बंजर ज़मीन के लिए भी मेहंदी की खेती एक शानदार विकल्प है। मेहंदी का इस्तेमाल सौन्दर्य प्रसाधन और औषधि के रूम में होता है। इसीलिए इसे व्यावसायिक फसल का दर्ज़ा हासिल है। लेकिन इससे भी बढ़कर मेहंदी की ख़ूबी ये है कि इसे अनुपजाऊ और बारानी यानी वर्षा आधारित तथा असिंचित खेतों में उगाया जा सकता है। मेहंदी की खेती को रासायनिक कीटनाशकों की ज़रूरत नहीं पड़ती और खेती की लागत कम आती है। व्यावसायिक उपयोग की वजह से मेहंदी की उपज बाज़ार में आसानी से बिकती है। मेहंदी से मिट्टी की नमी का संरक्षण होता है। सालाना पैदावार की निश्चिचता रहती है क्योंकि इसकी झाड़ियों पर बाढ़-सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाओं का ख़ास असर नहीं पड़ता है।
पूरे भारत में पनपता है ईरानी पौधा
मेहंदी को ‘हिना’ भी कहते हैं। हिना का मतलब ख़ुशबू होता है। ये मूलतः ईरानी पौधा है, लेकिन कई अरब देशों के अलावा मिस्र और अफ्रीका में भी पाया जाता है। ये पूरे भारत में मिलता है। कई जगह इन्हें खेतों-बाग़ीचों की बाड़बन्दी के लिए भी लगाते हैं। इसके फूलों की ख़ुशबू मनभावन होती है। मेहंदी की खेती मुख्यतः इसकी पत्तियों के लिए की जाती है, जो रंगाई के लिए सबसे ज़्यादा इस्तेमाल होती है।
मेहंदी एक झाड़ीदार छोटा वृक्ष है। इसकी शाखाएँ काँटेदार, पत्तियाँ गहरे हरे रंग वाली और नुकीली होती हैं। इसके सफ़ेद फूल गुच्छों में खिलते हैं और उनके कई बीज होते हैं। एक बार मेहंदी लगाने के बाद कई साल तक इसकी फसल मिलती है।
मेहंदी की इस्तेमाल
मेहंदी के पत्तों, छाल, फल और बीजों का उपयोग अनेक दवाईयों में होता है। ये कफ़ और पित्तनाशक होती है। इसके फलों से नींद, बुखार, दस्त और रक़्त प्रवाह से जुड़ी दवाईयाँ बनती हैं तो पत्तियों और फूलों से तैयार लेप का कुष्ठ रोग में इस्तेमाल होता है। सिरदर्द और पीलिया के मामले में भी मेहंदी की पत्तियों का रस इस्तेमाल होता है। मेहंदी में लासोन 2-हाइड्रॉक्सी, 1-4 नाप्य विनोन, रेजिन, टेनिन गौलिक एसिड, ग्लूकोज, वसा, म्यूसीलेज और क्विनोन आदि तत्व पाये जाते हैं।
मेहंदी की खेती में नहीं करें सिंचाई
ICAR-KAZRI (Central Arid Zone Research Institute) से जुड़े कृषि विज्ञान केन्द्र, पाली के विशेषज्ञों के अनुसार, सिर्फ़ मेहंदी की बुआई के वक़्त ही मिट्टी को अच्छी तरह से गीला होना चाहिए। इसके बाद मेहंदी की खेती में सिंचाई नहीं करनी चाहिए। इससे पत्तों के रंजक (रंगने वाले) तत्वों में कमी आ जाती है।
हालाँकि, अत्यधिक सूखे की दशा में मेहंदी की खेती को पानी देना पड़ सकता है। मेहंदी की खेती को सीधे बुआई और नर्सरी में क़लम तैयार पौधों की रोपाई के रूप में भी किया जा सकता है। छायादार नर्सरी में बीज से पौधे तैयार करने के लिए मार्च-अप्रैल में बीजों को छिड़ककर पौधों को विकसित करना चाहिए और फिर इन्हें मॉनसून आने के बाद जुलाई में खेत में रोपना चाहिए।
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मेहंदी के लिए खेत की तैयारी
मेहंदी वाले खेत में मॉनसून की पहली बरसात के साथ 2-3 बार मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करके पाटा लगाएँ। ताकि मिट्टी के हानिकारक कीटाणु नष्ट हो जाएँ। अधिक पैदावार पाने के लिए 8-10 टन प्रति हेक्टेयर सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट डालना भी बहुत फ़ायदेमन्द होगा। दीमक नियंत्रण के लिए मिथाइल पाराथियॉन का 10 प्रतिशत वाला चूर्ण भी मिट्टी में मिलाना चाहिए।
मेहंदी का बीजोपचार और बीज–दर
सीधे खेत में छिड़काव करके मेहंदी की खेती करने के लिए प्रति एक हेक्टेयर के लिए 20 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है। नर्सरी में बुआई से पहले 10-15 दिनों तक लगातार मेहंदी के बीजों के पानी में भिगोकर रखा जाता है। इसके पानी को रोज़ाना बदलना चाहिए और फिर हल्की छाया में सुखाना चाहिए। मेहंदी की बुआई फरवरी-मार्च में करते हैं। पौधों की रोपाई का सही वक़्त जुलाई-अगस्त का है।
बुआई–निराई और खाद
उपचारित बीज में रेत को बराबर मिलाकर क्यारियों या खेत में छिड़ककर बुआई करते हैं। इसके बाद हल्का झाडू फेरकर बीजों पर बारीक़ सड़ा गोबर छिड़ककर ढक देते हैं। बुआई के दो से तीन हफ़्तों बाद बीज अंकुरित होते हैं। नर्सरी के पौधे जब 40-50 सेंटीमीटर ऊँचे हो जाएँ तो उन्हें खेत में सीधी लाइन में 50 सेंटीमीटर की दूरी पर रोपना चाहिए। रोपाई के महीने भर बाद निराई करके खरपतवार को निकालना चाहिए। मेहंदी की उचित बढ़वार के लिए हर साल पहली निराई-गुड़ाई के वक़्त प्रति हेक्टेयर 40 किलोग्राम की दर से पौधों की कतारों के दोनों तरफ नाइट्रोजन डालना चाहिए। अच्छी बरसात की दशा में दूसरी निराई-गुड़ाई के समय भी इतना ही नाइट्रोजन देना चाहिए।

साफ़ मौसम में ही करें मेहंदी की कटाई
पैदावार के लिहाज़ से मेहंदी की कटाई के वक़्त मौसम साफ़ और खुला होना चाहिए। पहली कटाई मार्च-अप्रैल और दूसरी कटाई अक्टूबर-नवम्बर में ज़मीन से लगभग 2-3 इंच ऊपर से करनी चाहिए। इसकी शाखाओं के निचले हिस्से की पत्तियों को पीला पड़ने और झड़ने से पहले काट लेना चाहिए, क्योंकि मेहंदी की पत्तियों की आधी पैदावार पौधों के निचले एक चौथाई हिस्से से ही मिलता है।
काटी गयी पत्तियों को तीन-चार दिन तक सुखाना चाहिए। इस दौरान उपज पर कतई पानी नहीं पड़ना चाहिए, क्योंकि एक भी बौछार मेहंदी की क्वालिटी बिगाड़ सकती है। सूखी पत्तियों को बोरियों में भरकर सूखी जगह पर ही रखना चाहिए।
मेहंदी की खेती से पैदावार और कमाई
मेहंदी की बारानी फसल से औसतन 1200 से 1600 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर सूखी पत्तियाँ प्राप्त होती हैं। हालाँकि, शुरुआती तीन साल में पैदावार 500 से 700 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक भी रह सकती है। मेहंदी का बाग़ान 20 से 30 साल तक ख़ूब उपजाऊ और लाभप्रद रहता है। हालाँकि, कहते तो ये भी हैं कि इसे एक बार बोने के बाद मेहंदी की पैदावार सौ साल तक मिल सकती है। इसकी खेती में पहले साल करीब 20 हज़ार रुपये का खर्च आता है। लेकिन दूसरे साल से ये आधा रह जाता है। मंडी में मेहंदी की सूखी पत्ती 25 से 30 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बिकती हैं।
क्यों बेजोड़ है राजस्थानी मेहंदी?
राजस्थान, मेहंदी का प्रमुख उत्पादक राज्य है। पश्चिमी राजस्थान और मारवाड़ की तेज़ धूप और शुष्क गर्मी वाली जलवायु मेहंदी की पत्तियों में शानदार रंग भरती है। इसीलिए प्रदेश के पाली ज़िले की 40,000 हेक्टेयर ज़मीन की मेहंदी मुख्य फसल है। पाली का सोजत कस्बा मेहंदी का प्रमुख व्यापारिक केन्द्र है। ये मेहंदी की सबसे प्रमुख मंडी है, इसीलिए ‘मेहंदी मंडी’ भी कहलाती है। सोजत में मेहंदी की सफ़ाई करने और इसका पाउडर बनाने वाले 50-60 कारखाने हैं। इनसे करीब 5000 लोगों की रोज़ी-रोटी चलती है। इनके उत्पाद 125 से ज़्यादा ब्रॉन्ड के नाम से भारत समेत दुनिया भर में बिकते हैं।
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