भेड़ पालन के लिए कैसे और कितनी मिलती है सरकारी मदद?
खेती-किसानी से जुड़े तमाम व्यवसायों की तरह भेड़ पालकों के लिए भी सरकारी सहायता पायी जा सकती है
भेड़ पालन के लिए सरकार कर्ज़ या मदद पाने की दो मुख्य योजनाएँ हैं। इसमें बैंक से मिले कर्ज़ की आधी रकम पर कोई ब्याज़ नहीं चुकाना पड़ता। पहली योजना के तहत एक लाख रुपये तक का कर्ज़ लिया जा सकता है। दूसरी योजना के तहत भेड़ पालक एक लाख रुपये से ज़्यादा का कर्ज़ भी ले सकते हैं। लेकिन इसमें ब्याज़ रहित राशि की सीमा 50 हज़ार रुपये तक ही होती है।
भेड़ पालन दुनिया के सबसे प्राचीन पेशों में से एक है। दुनिया में भारत तीसरे नम्बर का भेड़ पालक देश है। ज़ाहिर है देश के लाखों पशुपालकों की रोज़ी-रोटी का ज़रिया या तो भेड़ पालन है या इससे सम्बन्धित कारोबारों पर निर्भर है। इसीलिए, केन्द्र और राज्यों की सरकारें भी भेड़ पालकों के प्रोत्साहन और मदद के लिए कई योजनाएँ चलाती हैं।
भेड़ पालन के चार उत्पाद
भेड़ पालन मुख्य रूप से तीन उत्पादों के लिए किया जाता है –ऊन, माँस और भेड़ों का दूध पाना। आम तौर पर भेड़ पालन का काम पशुपालक पुश्तैनी पेशों की तरह ही करते हैं। इसके लिए वो पहाड़ों, जंगलों या कुदरती चारागाहों में सालों-साल घूमते रहते हैं। लेकिन बदलते दौर के साथ ये विदेशी तर्ज़ पर कुछ लोग परती पड़ी ज़मीनों पर बड़े-बड़े चारागाह बनाकर भी भेड़ पालन करते हैं। ऐसे भेड़ पालकों को अपनी भेड़ों के बाड़े में जैविक खाद बनाकर चौथा उत्पाद पैदा करने का भी मौका मिलता है।
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कम खर्चीला है भेड़ पालन
भेड़ हर तरह की भौगोलिक परिस्थितियों में रह सकती हैं। फिर चाहे वो ज़्यादा ठंडक वाले पहाड़ी इलाके हों या गर्म और शुष्क तापमान वाला राजस्थान। अलबत्ता, ज़्यादा सर्दी या गर्मी में भेड़ों की मृत्यु दर बढ़ सकती है। सामान्य खेती-किसानी के साथ भेड़ पालन करने का खर्च ज़्यादा नहीं होता क्योंकि भेड़ें जंगली घास या खरपतवार खाकर ही विकसित होती रहती हैं। फिर भी व्यावसायिक स्तर पर भेड़ पालन का काम अपनाने वालों को इस पेशे की बारीकियाँ अवश्य सीख-समझ लेनी चाहिए।
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कैसे लें सरकारी मदद?
खेती-किसानी से जुड़े तमाम व्यवसायों की तरह भेड़ पालकों के लिए भी सरकारी सहायता पायी जा सकती है। इसका सबसे सीधा और आसान तरीक़ा है अपने बैंक से सम्पर्क करना या फिर कृषि विकास केन्द्र की मदद लेना। सरकारी मदद उन भेड़पालकों के लिए बहुत उपयोगी साबित हो सकती है जो नयी भेड़ें खरीदकर अपनी भेड़ों की संख्या को बढ़ाना चाहते हैं।
सरकारी कर्ज़ की दो मुख्य योजनाएँ
भेड़ पालन के लिए सरकार कर्ज़ या मदद पाने की दो मुख्य योजनाएँ हैं। पहली योजना के तहत एक लाख रुपये तक का कर्ज़ लिया जा सकता है। इसमें भेड़ पालक को 10 प्रतिशत रक़म ख़ुद जुटानी पड़ती है। बैंक 90 फ़ीसदी कर्ज़ देते हैं। लेकिन बैंक से मिली कुल राशि में से आधे पर भेड़ पालक को कोई ब्याज़ नहीं चुकाना पड़ता। यानी, यदि किसान ने 90 हज़ार रुपये कर्ज़ लिया तो उसे किस्तें तो इसी रकम की भरनी पड़ेंगी, लेकिन किस्तों में ब्याज़ सिर्फ़ 45 हज़ार रुपये की रकम पर ही लिया जाएगा।
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दूसरी योजना के तहत भेड़ पालक एक लाख रुपये से ज़्यादा का कर्ज़ भी ले सकते हैं। लेकिन इसमें ब्याज़ रहित राशि की सीमा 50 हज़ार रुपये तक ही होती है। यानी, यदि भेड़ पालक तीन लाख रुपये का कर्ज़ ले तो उसे ब्याज़ सिर्फ़ ढाई लाख रुपये पर भी चुकाना होगा। बाक़ी किस्तों की अदायगी तो मूल धन के मुताबिक ही होगी।
कर्ज़ की अवधि
भेड़ पालन से जुड़े कर्ज़ को चुकाने की अधिकतम मियाद 9 साल की होती है। साधारणतया, भेड़ पालन के लिए ख़रीदी जाने वाली एक भेड़ की कीमत 6 से 8 हज़ार रुपये के आसपास होती है। इसका मतलब ये हुआ कि एक लाख रुपये में भेड़ पालक 12-15 भेड़े ख़रीद सकते हैं।