कैसे बकरी बैंक ने लिखी कामयाबी की कहानी?

उनके बकरी बैंक की दो ही शर्तें हैं। पहला, बैंक से यदि गर्भवती बकरी लेनी है तो 1200 रुपये देने होंगे और दूसरा ये कि बकरी लेने वाले को बैंक को भरोसा देना होगा कि वो 40 महीने में बकरी और उसके चार मेमनों को वापस बैंक में लौटाएगा।

कैसे बकरी बैंक ने लिखी कामयाबी की कहानी?

ये कहानी है उस अनोखे बकरी बैंक की, जिसे महाराष्ट्र के अकोला ज़िले के सांघवी मोहाली गाँव के निवासी नरेश देशमुख ने 2018 में शुरू किया। उन्होंने इसका नाम रखा ‘गोट बैंक ऑफ़ करखेड़ा’ (Goat Bank of Karkheda). इस बैंक में रुपयों का नहीं बल्कि बकरी का लेन-देन होता है। इस बकरी बैंक ने सबसे ज़्यादा प्रसिद्धि अपने इस नारे से बटोरी कि ‘कर्ज़ में बकरियाँ लो और किस्तें में मेमने लौटाओ

नरेश देशमुख 52 वर्षीय किसान हैं। उन्होंने अपने बकरी बैंक के ऐसी नीति बनायी जिससे बैंकिंग की तमाम लिखी-पढ़ी चुटकियों में खत्म हो गयीं। उनके बकरी बैंक की दो ही शर्तें हैं। पहला, बैंक से यदि गर्भवती बकरी लेनी है तो 1200 रुपये देने होंगे और दूसरा ये कि बकरी लेने वाले को बैंक को भरोसा देना होगा कि वो 40 महीने में बकरी और उसके चार मेमनों को वापस बैंक में लौटाएगा।

कैसे आया बकरी बैंक का आइडिया?

बात 2018 से पहले की है। जब नरेश देशमुख देखा करते थे कि उनके गाँव के किसान बहन-भाईयों को खेती से गुज़ारा करने में काफ़ी मुश्किलों को सामना करना पड़ रहा है। खेती में मेहनत और लागत के हिसाब से मुनाफ़ा नहीं हो रहा। इसीलिए काफ़ी लोगों ने गाय-भैंस या बकरी पालन अपना लिया। नरेश देशमुख ने पाया कि बकरी पालन से जुड़ी महिलाओं की आर्थिक दशा तो और भी ख़राब है। उन्हें अपने बच्चों को पढ़ने और गृहस्थी चलाने में बहुत दिक्कतें होती थीं।

यही देखकर नरेश देशमुख को लगा कि यदि गाँव की इन बकरी पालक महिलाओं के पास बकरियों  की संख्या में इजाफ़ा हो जाए तो इनकी आमदनी बढ़ सकती है, जीवन स्तर बेहतर हो सकता है। यहीं से बकरी बैंक वाले स्टार्टअप की बुनियाद पड़ी। जल्द ही नरेश देशमुख ने बकरी बैंक के लिए अपना प्लान तैयार कर लिया।

ये भी पढ़ें: पशु पालन में कैसे बढ़ेगी आमदनी?

क्या है बकरी बैंक का बिज़नेस मॉडल?

नरेश देशमुख जानते थे कि एक बकरी से सात-आठ महीने में दो या तीन मेमनों को जन्म देती है। यदि इन मेमनों का पालन ठीक से हो तो वो भी साल भर बाद और मेमने पैदा करने लायक हो जाते हैं। इस तरह नरेश देशमुख ने हिसाब लगाकर बकरी बैंक का बिज़नेस मॉडल तैयार कर लिया।

फिर नरेश देशमुख ने बैंक से 40 लाख रुपये का कर्ज़ लेकर 340 बकरियाँ खरीदीं और गाँव के ज़्यादातर बकरी पालक परिवारों को 1,100 रुपये प्रति बकरी के दाम पर इन्हें बाँट दिया। बकरी बैंक की शर्तों के मुताबिक, अगले दो साल में नरेश देशमुख के पास करीब 1,000 मेमने कर्ज़ वापसी की किस्तों के रूप में आ गये। इन्हें वो अपने बैंक से जुड़े एक खास फ़ार्म हाउस में बड़ा कर रहे हैं, ताकि इन्हें भी बकरी बनने के बाद अगले कर्ज़दारों को दिया जा सके।

ये भी पढ़ें: भेड़ पालन के लिए कैसे और कितनी मिलती है सरकारी मदद?

1,000 बकरी बैंक खोलने का सपना

अब नरेश देशमुख की कोशिश है कि महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि बाक़ी राज्यों में भी अपने बकरी बैंक की शाखाएँ खोलें। बकरी पालन को आजीविका बनाने के इच्छुक लोगों को नरेश देशमुख ट्रेनिंग भी देते हैं। नरेश देशमुख का सपना है कि अपने बकरी बैंक को एक हज़ार शाखाओं वाला संगठन बनाकर दिखाएँ।

नरेश देशमुख की कहानी, उनकी कोशिश और उन्हें मिली कामयाबी की तारीफ़ हर वो व्यक्ति करता है जो उनके स्टार्टअप की कहानी सुनता है। यही वजह है कि बकरी बैंक वाले स्टार्टअप के लिए वो कई बार सम्मानित भी किया गया है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top