एलोवेरा की खेती (Aloevera Farming): जानिए कैसे करें , इन बातों का रखेंगे ध्यान तो होगी बढ़िया आमदनी

एलोवेरा की खेती के लिए खाद और कीटनाशक की कोई विशेष आवश्यकता नहीं होती। ऐसे ही कई कारण हैं कि एलोवेरा की खेती की ओर किसानों का रुझान लगातार बढ़ रहा है।

एलोवेरा की खेती aloevera farming

उपजाऊ, अनुपजाऊ, बंजर, सूखाग्रस्त या दलदली – कैसी भी ज़मीन हो, किसानों के लिए धरती के दामन में सबके लिए कुछ न कुछ ज़रूर है। किसान में यदि जतन और लगन हो तो खेती से खुशहाली पैदा कर ही लेता है। इन्हीं बातों को ध्यान में रख यदि एलोवेरा की खेती (Aloevera Farming) यानी घृतकुमारी या ग्वारपाठा या क्वारगंदल  की जाए तो अच्छा मुनाफ़ा कमाने की गारंटी है। एलोवेरा को ज़्यादा सिंचाई, खाद और कीटनाशक की ज़रूरत नहीं पड़ती। गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान में इसका व्यावसायिक स्तर पर उत्पादन होता है। यही कारण है कि एलोवेरा की खेती की ओर किसानों का ध्यान आकर्षित हो रहा है।

एलोवेरा एक आकर्षक और सज़ावटी, तना-विहीन, गूदेदार पत्तियों वाला रसीला पौधा होता है। इसकी पत्तियाँ ही इसका तना और फल हैं। इसकी पत्तियाँ भाले की आकार वाली, मोटी और माँसल होती हैं। एलोवेरा के जूस का स्वाद कड़वा सा होता है। इसका रंग हरा या हरा-स्लेटी होता है। कुछ किस्मों में पत्ती की सतह पर सफ़ेद धब्बे भी होते हैं। पत्ती के किनारों पर  छोटे-छोटे काँटे भी उगते हैं। गर्मी में इन पर पीले रंग के फूल भी आते हैं। एलोवेरा की पत्तियों से कई सौन्दर्य (Cosmetic Products) और अनेक आयुर्वेदिक उत्पाद बनते हैं।

एलोवेरा की खेती aloevera farming
तस्वीर साभार: simplify gardening

एलोवेरा की खेती के लिए अनुकूल जलवायु

एलोवेरा को गर्म और शुष्क जलवायु पसन्द है। ठंडे इलाकों में इसे ग्रीनहाउस में ही पैदा किया जाता है। एलोवेरा को ज़्यादा सिंचाई या जलभराव से बचाना चाहिए। ज़्यादा सर्दी के दिनों को छोड़, एलोवेरा की खेती कभी भी शुरू की जा सकती है। जुलाई-अगस्त वाले बारिश के दिनों में एलोवेरा को सिंचाई की ज़रूरत नहीं पड़ती। 

कैसे करें एलोवेरा की खेती?

गहरी जुताई करके तैयार हुए खेत में मेड़ बनाकर करीब डेढ फ़ीट की दूरी पर पौधे लगाने चाहिए। एलोवेरा को ज़मीन से उखाड़ने के महीनों बाद भी लगाया जा सकता है। इसके तने के एक टुकड़े का छोटा हिस्सा ज़मीन में गाड़ दिया जाए तो कुछेक हफ़्ते में वो पौधा बन जाता है। इसीलिए व्यावसायिक खेती में एलोवेरा के कन्द को काटकर इससे बोने के बजाय पौधे तैयार करके इसकी रोपाई की जाती है, क्योंकि इससे एलोवेरा तेज़ी से बढ़ता है और तीन-चार महीने में ही उपज देने लगता है।

रोपाई वाले पौधे यदि 4-5 पत्तियों वाले, करीब 4 महीने पुराने और 20-25 सेंटीमीटर ऊँचे हों तो इनकी पत्तियाँ जल्दी काटने लायक हो जाती हैं और आमदनी देने लगती हैं। वैसे एलोवेरा का पौधा दो-तीन फ़ीट ऊँचा हो सकता है और पत्तियों को नियमित अन्तराल पर काटते रहने से नयी पत्तियाँ तेज़ी से विकसित होती रहती हैं।

एलोवेरा की खेती aloevera farming
तस्वीर साभार: mongabay

एलोवेरा की खेती (Aloevera Farming): जानिए कैसे करें , इन बातों का रखेंगे ध्यान तो होगी बढ़िया आमदनी

ऐलोवेरा की सिंचाई और तोड़ाई

बुआई या रोपाई के वक़्त हल्की सिंचाई के अलावा एलोवेरा को पानी सिर्फ़ आवश्यकता अनुसार ही देना चाहिए। ज़्यादा पानी से इसका विकास धीमा पड़ जाता है। लेकिन कटाई के बाद एलोवेरा को एक बार पानी ज़रूर मिलना चाहिए। उपजाऊ मिट्टी में एलोवेरा की उपज जहाँ करीब 8 महीने में मिलने लगती हैं, वहीं अनुपजाऊ खेत 10-12 महीने में कटाई के लिए तैयार होते हैं। आमतौर पर दो तोड़ाई के बीच दो महीने का अन्तर रखना चाहिए। पूरी तरह विकसित पत्तियों को ही तोड़ा जाना चाहिए और छोटी तथा विकसित हो रही पत्तियों को छोड़ देना चाहिए।

एलोवेरा की खेती aloevera farming
तस्वीर साभार: patrika

ये भी पढ़ें: OKRA For Home Garden: घर पर ही आसानी से उगाएं ताज़ी भिंडी, बस कुछ बातों का ध्यान रखें

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

मंडी भाव की जानकारी
 

ये भी पढ़ें:

 

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top