कोरोना की ताज़ा लहर ने किसानों की भी मुश्किलें बढ़ाई

कृषि मंडियों के बन्द होने से भारी घाटे पर उपज बेचने को मज़बूर हुए किसान

छत्तीसगढ़ के रबी, बिहार में गेहूँ, महाराष्ट्र में अंगूर और राजस्थान में जीरा के किसानों पर कोरोना की ताज़ा लहर की वजह से दोहरी मार पड़ रही है। बिचौलियों की पौ-बारह हो रही है।

कोरोना की ताज़ा लहर ने किसानों के लिए भारी संकट पैदा कर दिया है। छत्तीसगढ़, बिहार, महाराष्ट्र और राजस्थान से किसानों के लिए बहुत दुःखद सूचनाएँ मिल रही हैं। कर्फ़्यू और लॉकलाइन जैसे हालात ने पूरे मंडी तंत्र को ठप कर दिया है। इसकी वजह से कहीं किसानों को बिचौलियों का शोषण झेलना पड़ रहा है तो कहीं परिवहन सुविधाओं के टोटा है।

आम लोगों की तरह किसानों पर भी कोरोना से ख़ुद को बचाने का दबाव है, लेकिन इससे भी बढ़कर उन्हें अपनी उपज को बचाने या सही दाम पाने की चिन्ता बहुत सता रही है।

छत्तीसगढ़ के MSP से नीचे बिका धान

छत्तीसगढ़ के किसानों पर कोरोना महामारी की मार लगातार दूसरे साल पड़ रही है। राज्य में रबी के धान की फसल पककर तैयार है। लेकिन कोरोना को लेकर राज्य में लागू कर्फ़्यू और लॉकडाउन जैसी परिस्थितियों की वजह से कृषि उपज मंडियाँ बन्द पड़ी हैं। इसकी वजह से धान का 1868 रुपये प्रति क्विंटल के मुकाबले बमुश्किल 1450 रुपये का दाम मिल पा रहा है। कृषि उपज मंडी के बन्द हो जाने की वजह से धमतरी जैसे इलाकों के उन छोटे किसानों को बहुत मुश्किलें हो रही हैं, जिनके पास घर में उपज रखने का इन्तज़ाम नहीं है।

मौसम का बदलता मिजाज़ भी ऐसे किसानों को औने-पौने दाम पर उपज बेचने के लिए मज़बूर कर रहा है, क्योंकि मंडियों के खुलने के इन्तज़ार में खेतों में धान ज़्यादा दिनों तक सुखाते ही रहने का जोख़िम लेना इनके लिए सम्भव नहीं है। कुलमिलाकर, आर्थिक रूप से कमज़ोर किसानों पर दोहरी मार पड़ रही है, क्योंकि उन्हें भारी घाटा उठाकर अपने धान को बेचना पड़ रहा है। मौके का नाजायज़ फ़ायदा उठाकर ‘कोचिये’ यानी बिचौलिये, किसानों का वाज़िब हक़ मार रहे हैं।

बिहार में गेहूं खरीद में देरी से किसान बेहाल, बिचौलियों ने घटाए दाम

बिहार में कोरोना की ताज़ा लहर की वजह से गेहूँ की सरकारी खरीद की शुरुआत को 15 अप्रैल से बढ़ाकर 20 अप्रैल किया गया। लेकिन हालात अब भी ऐसे हैं कि शायद ही खरीद केन्द्रों पर लटके ताले जल्दी खुल पाएँ। बिहार में करीब 8450 पैक्स और 500 व्यापार मंडल हैं। ये दोनों किसानों से उपज खरीदती हैं क्योंकि राज्य में साल 2006 में APMC अधिनियम खत्म कर दिया गया था। इसके सरकारी मंडियों की जगह पैक्स और व्यापार मंडल ही अनाज की खरीद और मार्केटिंग का काम करते हैं।

बिहार सरकार ने इस साल एक लाख मीट्रिक टन गेहूँ खरीदने का लक्ष्य रखा है। वहाँ किसानों को और ये भरोसा भी दिया है कि अगर ज़्यादा आवक हुई तो उसकी भी खरीदारी सुनिश्चित की जाएगी। दूसरी ओर किसानों में खरीद में देरी को लेकर चिन्ता बढ़ रही है। किसान नहीं जानते है कि खरीद कब से शुरू होगी, कब उन्हें पैसे मिलेंगे और कब वो अगली फसल के लिए तैयारी चालू कर पाएँगे? किसानों की इसी मनोदशा का बिचौलिये खूब फ़ायदा उठा रहे हैं।

बिचौलिये महज 1500 से 1600 रुपये प्रति क्विटंल के भाव पर गेहूँ खरीद कर रहे हैं। जबकि गेहूँ का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1975 रुपये प्रति क्विंटल है। इस तरह फ़ौरन उपज की दाम पाने की चाहत की वजह से बिहार के किसानों को चार-पाँच सौ रुपये क्विंटल का घाटा सहना पड़ रहा है। किसानों में सबसे बड़ा डर ये है कि जिस तरह इस बार गाँवों में भी कोरोना का असर दिख रहा है, उससे कहीं हालात और बदतर ना हो जाएँ क्योंकि यदि आने वाले दिनों में बिचौलिये भी नहीं मिले तो उपज का दाम और भी गिरने की नौबत आ सकती है।

महाराष्ट्र के प्याज और अंगूर किसानों की कमाई पर भी कोरोना की मार

कोरोना की वजह से महाराष्ट्र कृषि मंडियों पर भी ग्रहण लगा हुआ है। नासिक की मंडी में सुस्ती का आलम ऐसा है कि प्याज़ का दाम 1100 रुपये क्विंटल पर आ गया है। हालाँकि, किसानों को औसत भाव बमुश्किल 500-600 रुपये प्रति क्विंटल का ही मिल पा रहा है। कोरोना की तीब्रता की वजह से किसानों को मंडियों तक प्याज़ पहुँचाने में परिवहन की भी दिक्कतें झेलनी पड़ रही है।

महाराष्ट्र के अंगूर उत्पादक किसान भी कोई कम बदहाल नहीं हैं। राज्य में देश का 80 फ़ीसदी अंगूर पैदा होता है। गर्मियों में बाज़ार में अंगूर की आवक काफ़ी घट जाती है और कीमतें बढ़ जाती हैं। इसकी वजह से अंगूर की करीब 20 फ़ीसदी फसल को अच्छा दाम मिल जाता है। लेकिन कोरोना की वजह से बाज़ार में न तो माँग है और ना ही दाम। इसीलिए अंगूर उत्पादक भी बेहाल हैं। राज्य की ज़्यादातर मंडियाँ बन्द पड़ी हैं।

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राजस्थान में कृषि मंडियां आवश्यक सेवा में शामिल

राजस्थान सरकार ने अपनी कृषि उपज मंडियों को अनिवार्य सेवाओं में शामिल करके उन्हें खोले रखने का फ़ैसला लिया है। राजस्थान खाद्य पदार्थ व्यापार संघ ने इसकी माँग की थी। हालाँकि देश की सबसे बड़ी जीरा मंडी, ऊंझा को व्यापारियों ने 6 दिनों तक बन्द करने की घोषणा की है। बाड़मेर ज़िले में  किसान जीरा का खूब उत्पादन करते हैं। लेकिन कोरोना की वजह से मंडी के बन्द हो जाने से किसानों में काफ़ी निराशा है।

शादियों के सीज़न में जीरे की माँग बढ़ती है। पिछले साल का शादी सीज़न भी कोरोना की भेंट चढ़ गया था। इस बार जीरा उत्पादकों ने काफ़ी उम्मीदें लगा रखी थीं कि शायद इस बार पिछले साल के नुकसान की भरपाई हो जाए। लेकिन कोरोना ने सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया।

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