सस्ते में मिलेगा पराली जलाने से छुटकारा, प्रदूषण होगा नियंत्रित

पराली जलाने की समस्या से छुटकारा पाने के लिए पूसा में भारतीय कृषि अनुसंधान ने कम लागत में कैप्सूल तैयार किए हैं। इन्हें पूसा डीकंपोजर कैप्सूल भी कहा जाता है।

देश की राजधानी दिल्ली में हर साल प्रदूषण के स्तर में बढ़ोतरी देखी जाती है। इसके कई कारण हो सकते हैं, जिनमें से एक है दिल्ली के पड़ौसी राज्यों पंजाब और हरियाणा में किसानों द्वारा पराली जलाना।

जब किसान कटी हुई फसलों के बचे हुए हिस्सों को जलाते हैं, उसे पराली कहते हैं। ये हिस्से इसलिए जलाए जाते हैं, ताकि नई फसल के लिए खेत को तैयार किया जा सके। जब सर्दियों के मौसम में पराली जलाई जाती है, तो इसका प्रभाव आस-पास के राज्यों के साथ दिल्ली पर भी पड़ता है। वहां रहने वाले लोगों का दम घुटने लगता है।

इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए पूसा में भारतीय कृषि अनुसंधान ने कम लागत में कैप्सूल तैयार किए हैं। इन्हें पूसा डीकंपोजर कैप्सूल भी कहा जाता है।

कैसे करें कैप्सूल का उपयोग

डीकंपोजर कैप्सूल 8 माइक्रोब्स के रूप में होते हैं, जो अगली फसल बुआई से पहले खेत को तैयार करने में मदद करेंगे। अब तक किसानों को कटी फसल के बाद बचे हिस्सों को जलाना पड़ता था, लेकिन डीकंपोजर कैप्सूल की मदद से पराली जलाने की समस्या से छुटकारा मिलेगा। एक पाउच में 4 कैप्सूल आते हैं, जिनकी कीमत मात्र 20 रूपये है। इन कैप्सूल्स से 25 लीटर तक घोल तैयार किया जा सकता है जिसे करीब 2.5 एकड़ से लेकर 1 हैक्टेयर खेत तक इस्तेमाल किया जा सकता है।

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लाल और हरे रंग के ये कैप्सूल पराली से निकलने वाले धुएं से दिल्ली व आस-पास के राज्यों को प्रदूषित होने से भी बचाऐंगे। पूसा डीकंपोजर कैप्सूल से धान के पुआल को डीकंपोज करने में बहुत कम समय लगेगा। इतना ही नहीं कैप्सूल के प्रयोग से मिट्टी की गुणवत्ता पर किसी प्रकार का गलत प्रभाव नहीं पड़ेगा। मिट्टी जैसी उपजाऊ थी, वैसी ही बनी रहेगी।

डीकंपोज कैप्सूल के इस्तेमाल पर जोर

दिल्ली में प्रदूषण की समस्या को देखते हुए वहां के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई शुरू कर दी है। उन्होंने आस-पास के राज्यों में यह अपील की है कि सभी किसान पराली को जलाएं नहीं, बल्कि पूसा डिकंपोज कैप्सूल का प्रयोग करें। इसका उपयोग करना जितना जरूरी है, उतना आसान भी है।

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सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फोरकास्टिंग एंड रिसर्च के अनुसार, पिछले साल पंजाब और हरियाणा में जलने वाली पराली से एनसीआर दिल्ली में होने वाले प्रदूषण में करीब 44 प्रतिशत तक वृद्धि देखी गई थी। चिकित्सकों और पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार यदि दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रित नहीं किया गया, तो कोरोना वायरस की स्थिति में और भी इजाफा हो सकता है।

पराली जलाना हो सकता है घातक

पराली जलाने की घटनाओं में जिस तरह से इजाफा हो रहा है उसे देखते हुए नासा ने भी चेतावनी दी है। आपको बता दें कि नासा ने एक सेटेलाइट इमेज शेयर की है, जिसमें दिल्ली के ऊपर धुएं का एक गुबार देखा गया है। यह इस बात की ओर इशारा है कि आने वाले दिनों में दिल्ली की हवा की गुणवत्ता खराब हो सकती है।

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प्रदूषण में होने वाली बढ़ोतरी का एक मुख्य कारण पराली जलाना भी माना जा रहा है। पर्यावरण प्रदूषण रोकथाम और नियंत्रण प्राधिकरण ने भी चिंता जताई है कि यदि पंजाब व हरियाण में इसी तरह से पराली जलाई जाती रही, तो सर्दियों में प्रदूषण बहुत बढ़ जाएगा। इसे कंट्रोल करना अति आवश्यक है। यदि पराली इसी तरह जलती रही तो, जब दिल्ली में हवा की रफ्तार धीमी होगी, तब दिक्कत ज्यादा होने लगेगी।

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दिल्ली सरकार के आंकड़ों के अनुसार, पंजाब में पिछले साल लगभग 9 मिलियन टन और हरियाणा में करीब 7 मिलियन टन पराली जलाई गई थी। इन हालातों को देखते हुए सरकार चाहती है कि सभी किसान डिकंपोज कैप्सूल का ही प्रयोग करें, ताकि भविष्य में बढ़ने वाले प्रदूषण और उसके दुष्प्रभावों को रोका जा सके।

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।
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