Integrated Nutrition Management in Broccoli: जानिये मिज़ोरम के एक कृषि विज्ञान केंद्र ने तकनीक का इस्तेमाल करके कैसे बढ़ाई ब्रोकली की उपज और बनाया उसे ज़्यादा पोषक

एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन में गुरुत्वाकर्षण आधारित मिनी स्प्रिंकलर सिस्टम से ब्रोकली की खेती करने में किसानों को मिल रही मदद। 

ब्रोकली की खेती में सिंचाई के लिए तकनीक

ब्रोकली की खेती (Broccoli Farming) विकसित देशों में तो बहुत लोकप्रिय है ही, लेकिन हाल के कुछ वर्षों में दुनिया के बाकी देशों में भी इसकी मांग बढ़ी है। भारत में भी जहां पहले लोग हरी फूलगोभी देखकर समझ नहीं पाते थे, वहां इसके पोषक तत्वों को देखते हुए अब ख़ासी खरीदारी कर रहे हैं।  पिछले कुछ साल से उत्तर पूर्वी मिजोरम राज्य में तो ब्रोकली की खेती अपने पोषक तत्वों और औषधीय गुणों के कारण ब्रॉकली  की खेती काफ़ी पसंद की जा रही है। हालांकि अभी भी राज्य में फूलगोभी और ब्रोकोली की औसत उत्पादकता केवल 7.65 मिलियन टन प्रति हेक्टेयर है जबकि राष्ट्रीय औसत 17.34 मिलियन हेक्टेयर है, लेकिन नयी तकनीकों के इस्तेमाल से इसमें लगातार सुधार आ रहा है।

एकीकृत पोषक प्रबंधन की क्यों जरूरत पड़ी?

तकनीकी जानकारी की कमी, उपयुक्त किस्म की उपलब्धता और इसको लगाने की कम जानकारी होने के कारण मिज़ोरम में ब्रोकली की खेती नहीं हो पा रही थी। पौधों में पोषक तत्वों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा देने के लिए उच्च उपज देने वाली किस्म और एकीकृत पोषक प्रबंधन (Integration Nutrition Management) प्रणाली को अपनाने की भी जरूरत थी। करीब चार साल पहले इसकी शुरुआत हुई।

कृषि विज्ञान केंद्र की तकनीक से मिली मदद 

कृषि विज्ञान केंद्र, आइजोल ने 2018-20 के दौरान थीम के तौर पर ब्रोकली को चुना और किसानों को साथ लेकर  क्लस्टर फ्रंट लाइन प्रदर्शन (Cluster Front Line Demonstartion) का आयोजन किया।  इसमें गुरुत्वाकर्षण आधारित मिनी स्प्रिंकलर (gravity-based mini sprinkler) सिस्टम तकनीक का इस्तेमाल किया गया । इसमें 120 किसानों ने हिस्सेदारी की और कुल 40 हेक्टेयर क्षेत्र कवर किया गया।

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Integrated Nutrition Management in Broccoli: जानिये मिज़ोरम के एक कृषि विज्ञान केंद्र ने तकनीक का इस्तेमाल करके कैसे बढ़ाई ब्रोकली की उपज और बनाया उसे ज़्यादा पोषक
तस्वीर साभार: ICAR

ब्रोकली की खेती के लिए नर्सरी

नर्सरी को किसानों की मिली जुली मेहनत यानी सामुदायिक  भागीदारी  से तैयार किया गया था। तैयार बीज 1/3 के पैटर्न में विज्ञान केंद्र  द्वारा उपयोग किए गए और शेष समूह के सदस्यों के बीच वितरित किए गए। वर्मीकम्पोस्ट को  लगभग 4 से 5 किलोग्राम प्रति वर्ग मीटर में मिलाकर नर्सरी बेड को अच्छी तरह से तैयार किया गया। बेड की चौड़ाई 75 से 100 सेंटीमीटर के बीच रखी गई।

इसमें लगने वाली बीमारी को नियंत्रित करने के लिए डाइथेन एम-45 (Dithane M-45) को  दो ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर बेड पर उसका छिड़काव किया गया । ब्रोकली की बुवाई 6 से 8 सेंटीमीटर की पंक्तियों में 800 से 850 बीज प्रति वर्ग मीटर की दर से की गई थी। क्यारियों की सतह को रेत, मिट्टी और वर्मीकम्पोस्ट के मिश्रण की एक पतली परत के साथ कवर किया गया।

ब्रॉकली में लगने वाले कीट-रोग से नियंत्रण 

गोभी तितली लार्वा (Cabbage Butterfly Larvae) को नियंत्रित करने के लिए, क्लोरोपाइरीफोस या रोगोर (Chloropyrifos or Rogor ) का  तीन मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर  छिड़काव किया गया था। पौध की रोपाई 26 दिनों के बाद 45×50 सेंटीमीटर के अंतर को बनाए रखते हुए की गयी। रोपण के तुरंत बाद एक हल्की सिंचाई की गई और मिनी स्प्रिंकलर का उपयोग करके आवश्यकता के अनुसार बाद में सिंचाई की गई। खेत को खरपतवार मुक्त बनाने के लिए रोपाई के 20 और 40 दिन बाद दो बार हाथ से निराई-गुड़ाई की जाती है।

एकीकृत पोषक प्रबंधन में एनपीके (NPK) की मात्रा 75:38:30 किग्रा/हेक्टेयर + कुक्कुट खाद (Poultry Manure) की मात्रा 2.5 टन प्रति हेक्टेयर + वीसी (VC) की मात्रा 2.5 टन प्रति हेक्टेयर की खुराक के साथ 2 टनप्रति हेक्टेयर बुझा हुआ चूना लगाया गया। रोपाई से पहले फॉस्फोरस, पोटैशियम और नाइट्रोजन की 1/3 खुराक डाली गई। सड़ी हुई कुक्कुट खाद और वर्मीकम्पोस्ट को मिट्टी की ऊपरी परत में अच्छी तरह मिला दिया गया। नाइट्रोजन की बची हुई मात्रा को दो बराबर भागों में 15 से 20 दिन और रोपाई के 30 से 35 दिनों के बाद इस्तेमाल किया गया।

मिनी स्प्रिंकलर तकनीक से कैसे मिला फ़ायदा?

सिंचाई के लिए सूक्ष्म जल संचयन तालाब यानी जलकुंड में  गुरुत्वाकर्षण आधारित मिनी स्प्रिंकलर का उपयोग एक परियोजना के तहत किया गया था। मिज़ोरम  क्षेत्र के कठिन पहाड़ी इलाकों को देखते हुए सूक्ष्म स्तरीय जल संरक्षण तकनीक फसलों की उचित सिंचाई सुनिश्चित करने के लिए बहुत उपयोगी बनकर सामने आई। अक्टूबर से जनवरी के दौरान कुल  27,000 लीटर पानी का भंडारण जलकुंड में किया गया। इसके बाद ज़रुरत पड़ने पर इसका उपयोग सिंचाई के लिए किया गया।

मिनी स्प्रिंकलर सिस्टम को 16 मिलीमीटर डाईमीटर के लेटरल का उपयोग करके डिजाइन किया गया था, और इसे लेटरल और टी जॉइन से जोड़ा गया था। लेटरल को हम पाइप या ट्यूब भी कहते हैं  और ये ऑन/ऑफ स्विच और स्प्रिंकलर हेड्स के बीच स्थित होते हैं। 32 मिलीमीटर मुख्य लाइन से जैन स्क्रीन फ़िल्टर (Jain’s Screen Filter) का इस्तेमाल कर इसे जोड़ा गया था।

स्प्रिंकलर स्टेक (Sprinkler Stake) को स्थानीय रूप से उपलब्ध अच्छी गुणवत्ता वाले बांस का उपयोग करके 1 से 1.5 मीटर की ऊंचाई पर उठाया गया। स्प्रिंकलर का डिस्चार्ज 50 लीटर प्रति घंटा था। ब्रॉकली  की खेती में सिंचाई सप्ताह में दो बार निर्धारित की गई थी।

इस तकनीक का इस्तेमाल करके उपज में वृद्धि हुई। सामान्य प्लॉट में होने वाली 164 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज के मुक़ाबले प्रदर्शन प्लॉट की उपज 243 क्विंटल प्रति हेक्टेयर थी। प्रदर्शन प्लॉट में खेती की कुल लागत लगभग 1 लाख 25 हज़ार रुपये प्रति हेक्टेयर आई जबकि लोकल चेक प्लॉट में ये 96,000 रुपए प्रति हेक्टेयर आई।

इस तकनीक को लागू करने के लिए नयी तकनीकों को लेकर जागरूकता महत्वपूर्ण थी। अनुशंसित पोषक तत्व प्रबंधन को अपनाने से, किसान ब्रॉकली  की खेती करके अच्छी आय प्राप्त करने में सक्षम रहे हैं। इस तकनीक को पड़ोसी गांवों और 64 किसानों द्वारा अपनाया गया है।

स्रोत: कृषि विज्ञान केंद्र, केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, मिजोरम

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