Turmeric Cultivation: हल्दी की खेती में इस महिला ने अपनाई ऐसी तकनीक, बढ़ा उत्पादन और दूर हुई नमी की समस्या

नमी कम होने के कारण हल्दी की फसल (Turmeric Cultivation) को नुकसान न पहुंचे इसके लिए झारखंड की सरोज लकड़ा ने हल्दी की खेती के लिए नई तकनीक ईज़ाद की। इससे हल्दी की फसल में 10 फ़ीसदी तक की बढ़ोतरी हुई।

हल्दी की खेती turmeric farming

हल्दी की खेती में किस तरह से उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल करके एक महिला ने फसल उत्पादन में बढ़ोतरी की, साथ ही कैसे एक बड़ी समस्या का हल भी निकाला, हम आपको इस लेख में बताएंगे। हल्दी को अगर सर्वगुण संपन्न मसाला कहें तो गलत नहीं होगा, क्योंकि खाने की रंगत निखारने के साथ ही यह त्वचा की रंगत निखारने और कई बीमारियों में औषधि के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है।

आयुर्वेद में तो इसे बेहतरीन औषधि माना गया है, इसलिए भोजन में हल्दी के इस्तेमाल की सिफारिश की गई है। यह एक ऐसा मसाला है जिसकी मांग कभी कम नहीं होती। कोरोना में तो इसकी मांग और भी कई ज़्यादा बढ़ गई। हमारे देश में सबसे ज़्यादा हल्दी का उत्पादन आंध्र प्रदेश में होता है। इसके बाद ओडिशा, तमिलनाडू और महाराष्ट्र का नंबर आता है। हल्दी की खेती (Turmeric Cultivation) में मिट्टी में नमी का होना बहुत ज़रूरी है। नमी न होने पर अच्छी फसल नहीं होती है। ऐसे में झारखंड के छत्र ज़िले के मर्दनपुर गांव की सरोज लकड़ा ने कम नमी की समस्या को दूर करने के लिए Moisture Retention Technique (नमी को बनाए रखने की तकनीक) ईज़ाद की है।

jharkhand woman turmeric cultivation हल्दी की खेती
सरोज लकड़ा के खेत में लगे हुए हल्दी के पौधे (तस्वीर साभार: agricoop)

हल्दी की खेती में ध्यान रखें ये बातें 

हल्दी की खेती आमतौर पर मई-जून के बीच की जाती है। इसके अलावा, जिन इलाकों में सिंचाई की अच्छी सुविधा नहीं होती, वहां मॉनसून की शुरुआत यानी जुलाई में भी इसकी खेती की जा सकती है। एक बात का ध्यान रहे कि हल्दी की खेती के लिए खेत में जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होना ज़रूरी है, वरना फसल खराब हो जाएगी। हल्दी की खेती के लिए ज़मीन का नम होना ज़रूरी है, ऐसे में खुले खेत में खेती करने पर सिंचाई की ज़रूरत पड़ती है, लेकिन यदि इसकी मिश्रित खेती की जाती है यानी किसी अन्य फसल के बीच में अगर हल्दी बोई जाती है तो पेड़ की छाया के कारण मिट्टी की नमी बनी रहती हैं, जिससे कम सिंचाई करने की आवश्यकता पड़ती है।

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सांकेतिक तस्वीर (तस्वीर साभार: farmingindia)

Turmeric Cultivation: हल्दी की खेती में इस महिला ने अपनाई ऐसी तकनीक, बढ़ा उत्पादन और दूर हुई नमी की समस्याबुवाई का तरीका

हल्दी के बीज छोटे-छोटे दाने नहीं होते, बल्कि हल्दी के अंकुरित टुकड़ों को ही बोया हो जाता है, जिसे प्रकंद या राइजोम कहते हैं। बीज के रूप में मदर राइजोम का ही इस्तेमाल करना चाहिए। वैसे तो हल्दी की खेती सभी तरह की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन दोमट, जलोढ़, लैटेराइट मिट्टी, जिसमें जीवांश की मात्रा अधिक हो, वह इसकी खेती के लिए बहुत अच्छी मानी जाती है।

हल्दी की किस्में

हल्दी की कुछ उन्नत किस्मों की खेती करके किसान अधिक मुनाफ़ा कमा सकते हैं। इसमें शामिल हैं सी.एल. 326 माइडुकुर, सी.एल. 327 ठेकुरपेन्ट, कस्तूरी, पीतांबरा, रोमा, सोनाली, सूरमा, प्रतिभा, प्रभा, सुगुना, सुदर्शन, सुवर्णा, आई.आई.एस.आर. प्रगति आदि।

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सांकेतिक तस्वीर (तस्वीर साभार: pinterest)

Turmeric Cultivation: हल्दी की खेती में इस महिला ने अपनाई ऐसी तकनीक, बढ़ा उत्पादन और दूर हुई नमी की समस्याक्या है Moisture Retention Technique?

झारखड़ की रहने वाली 40 वर्षीय सरोज लकड़ा एक अभिनव किसान हैं यानी वह खेती में नए प्रयोग करती रहती हैं। उनके पास 4 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि हैं। सरोज को हल्दी की खेती के दौरान हमेशा नमी की कमी की समस्या का सामना करना पड़ता था, जिसे दूर करने के लिए उन्होंने एक नई तकनीक Moisture Retention Technique (नमी को बनाए रखने की तकनीक) का विकास किया। 

सरोज ने जो तकनीक ईज़ाद की उसमें एक किलो गाय के गोबर को 5 लीटर पानी में घोला जाता है और इसमें मदर राइजोम का 6 घंटे के लिए भिगोया जाता है। राइजोम को वर्मी कंपोस्ट के ऊपर एक खांचे में रखा जाता है। इसके बाद राइजोम की बुवाई की जाती है। इस संशोधित विधि के इस्तेमाल से अंकुरण का प्रतिशत बढ़ गया। साथ ही यह तकनीक फसल को जड़ सड़न रोग से भी बचाती है और पौधे स्वस्थ रहते हैं। इसमें मौजूद वर्मी कंपोस्ट, मिट्टी की नमी को लंबे समय तक बनाए रखने में मदद करता है। इस विधि से हल्दी की खेती करने से उसके रंग और गुणवत्ता में भी सुधार देखा गया। उनका फसल उत्पादन पारंपरिक विधि की तुलना में करीब 10 प्रतिशत बढ़ गया।

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तकनीक से बेहतर हुआ पौधों का विकास (तस्वीर साभार: agricoop)

हल्दी की खेती में सरोज को इतना हुआ मुनाफ़ा

सरोज को हल्दी उत्पादन की कुल लागत प्रति हेक्टेयर में करीब 55 हज़ार रुपये पड़ी। इससे उन्हें प्रति हेक्टेयर एक लाख 85 हज़ार रुपये की आमदनी हुई यानी कि उन्हें एक लाख 30 हज़ार रुपये का सीधा मुनाफ़ा हुआ। सरोज द्वारा ईज़ाद की गई इस तकनीक को छत्र ज़िले के करीबन 460 हल्दी उत्पादक किसान अपनाकर लाभ प्राप्त कर रहे हैं।

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सांकेतिक तस्वीर (तस्वीर साभार: timesofindia)

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