रेशम कीट पालन एक ऐसा उद्योग है जिसमें मुनाफ़ा काफ़ी अच्छा है। यदि इसकी सही जानकारी हो और सही तरीके से रेशम कीट पालन और शहतूत की खेती की जाए तो ये किसानों के लिए फ़ायदेमंद है। रेशम की मांग दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है और रेशम के कपड़े भी बहुत महंगे बिकते हैं। रेशम कीट पालन का व्यवसाय करते समय किन बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है, यह जानने के लिए किसान ऑफ़ इंडिया की टीम पहुंची कर्नाटक। जहां हमारे संवाददाता निशित मल्होत्रा ने बात की रेशम कीट पालन कर रहे सतीश और योगेश नाम के दो किसानों से।
कोकून की खेती
सबसे पहले तो यह जान लीजिए कि कोकून आखिर होता क्या है और रेशम का धागा कैसे बनता है। यह तो आप जानते ही हैं कि रेशम एक कीड़े से निकलता है, लेकिन क्या आपको यह पता है कि यह कीट केवल 2 से 3 दिनों तक ही जिंदा रहता है। इतने कम समय में ही मादा कीट शहतूत की पत्तियों पर 300 से 400 अंडों का अंडारोपण कर देती है। प्रत्येक अंडे से करीब 10 दिन में एक छोटा मादा कीट लार्वा निकलता है, जो 30 से 40 दिनों तक बढ़ता है। फिर सुस्त होकर गोल मटोल हो जाता है। यह 3 दिनों तक ऐसे ही रहता है और सिर को इधर-उधर हिलाकर अपने चारों ओर अपनी लार ग्रंथियों से एक पदार्थ निकालकर लंबे धागे का घोल बनाता है, इसे ही कोकून कहते हैं। हवा लगते ही यह धागा सूखकर रेशमी धागा बन जाता है और इसकी लंबाई करीब 1000 मीटर तक होती है। कर्नाटक के रामनगर के किसान सतीश कोकून की खेती करते हैं, जिसके लिए वह शहतूत की पत्तियों का इस्तेमाल करते हैं। अपनी 4 एकड़ भूमि पर वह नारियल के साथ ही शहतूत की भी खेती कर रहे हैं, क्योंकि रेशम के कीड़े शहतूत की पत्तियां ही खाते हैं और इससे अच्छी क्वालिटी का रेशम प्राप्त होता है।
कितने दिनों में तैयार होता है धागा
अच्छी गुणवत्ता वाला रेशम प्राप्त करने के लिए कोकून की सही देखभाल ज़रूरी है। सतीश बताते हैं कि रेशम कीट को दिन में 3 बार पत्ते डालना ज़रूरी होता है। पौधे बहुत बड़े हो जाने पर उनकी कटिंग करनी चाहिए, तभी पत्ते अच्छे आते हैं। उनके मुताबिक, 30 दिनों में सिल्क बाज़ार में बेचने के लिए तैयार हो जाता है। सतीश उसे रामनगर सिल्क मार्केट में बेचते हैं। यह मार्केट एशिया का सबसे बड़ा सिल्क मार्केट है। सतीश ने अपने खेत में मदद के लिए 4 से 5 लोग रखे हैं।
अच्छा होता है मुनाफ़ा
सतीश कहते हैं कि 100 अंडे से 100 किलो रेशम का उत्पादन होता है। ये करीबन 1040 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिकता है। वो बचपन से ही यह काम कर रहे हैं। काम में मेहनत है, लेकिन आमदनी अच्छी होती है।
शहतूत के पत्ते हैं बहुत ख़ास
तुमकुर ज़िले के किसान योगेश शहतूत की खेती करते हैं, जो कि रेशम के कीड़ों का भोजन है।इनके बिना रेशम कीट पालन की कल्पना मुश्किल है। मशहूर मैसूर सिल्क जिन कीड़ों से बनता है, वह भी शहतूत के पत्ते ही खाते हैं। योगेश कहते हैं कि यही पत्ते खाने पर रेशम कीट सिल्क छोड़ता है। शहतूत की खेती के लिए उनकी टहनियों की रोपाई की जाती है, जिस पर 6 महीने में पत्ते आते हैं। जब यह पत्ते थोड़े बड़े हो जाते हैं तो इन्हें काटकर इन्हीं पर रेशम कीटों का पालन किया जाता है। किसान योगेश कहते हैं कि रेशम कीट पालन में आपको अपनी निगरानी में कीट पालन करना होता है। इसमें मेहनत है पर आमदनी का ये अच्छा स्रोत है। बाज़ार में रेशम के धागों की बहुत मांग है।
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