परवल भारत की लोकप्रिय सब्ज़ियों में से एक है, जिसकी खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, असम, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, मध्य प्रदेश, मद्रास, महाराष्ट्र, गुजरात, केरल और तामिलनाडु में की जाती है। सब्ज़ी के साथ ही परवल से अचार और मिठाई भी बनाई जाती है। ये सेहत के लिए भी यह बहुत फ़ायदेमंद मानी जाती है। परवल में विटामिन, कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन की भरपूर मात्रा होती है।
मिट्टी और जलवायु
वैसे तो परवल की खेती हर तरह की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन भारी मिट्टी में इसकी खेती अच्छी नहीं होती। दोमट व बलुई दोमट मिट्टी इसके लिए अधिक उपयुक्त मानी जाती है। साथ ही खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए क्योंकि पानी के संपर्क में आने से इसकी लताएं खराब हो जाती हैं। इसके लिए गर्म जलवायु अच्छी होती है।
बुवाई की तैयारी
परवल की बुवाई के लिए खेत तैयार करने का समय मई-जून होता है। इस समय एक बार खेत की जुताई करके खुला छोड़ दें ताकि कीड़े-मकोड़े मर जाएं और खरपतवार यदि है तो वह सूख जाए। बुवाई के करीब एक महीने पहले मिट्टी में गोबर की सड़ी खाद या प्रति हेक्टेयर 200-250 क्विंटल के हिसाब से कम्पोस्ट मिलाएं। बोते समय खेत को 3-4 बार देसी हल से जुताई करके और पाटा चलाकर मिट्टी को समतल बना लें।
बुवाई का तरीका
परवल की बुवाई कई तरीकों से की जा सकती है, जिसमें बीज, जड़ों की कलम और लत्ताओं की लच्छी प्रमुख तरीके हैं।
बीज- इसके लिए पके हुए परवल से बीज निकालकर नर्सरी में क्यारियों में बोया जाता है। 2-3 महीने बाद पौधे खेत में लगाने के लिए तैयार हो जाते हैं। इस तकनीक से नर पौधों की संख्या अधिक और मादा पौधों की संख्या कम हो जाती है। इससे कम उपज प्राप्त होती है, इसलिए यह तरीका बहुत लोकप्रिय नहीं है।
जड़ों की कलम- इस तरीके में जड़ के साथ तने का 1 या 2 इंच भाग जिस पर 5-6 गांठें हों, उन्हें बोया जाता है। इस विधि में पौधे जल्द बढ़ते हैं और फल वक़्त से पहले आने लगते हैं।
लत्ताओं की लच्छी- इसमें सालभर पुरानी 120-150 सेंटीमीटर तक लंबी लताओं की लच्छी बनाकर बुवाई की जाती है। उत्तरप्रदेश और बिहार में इस तकनीक से परवल की व्यावसायिक खेती बड़े पैमाने पर की जाती है।
परवल की उन्नत किस्में
अगर आप भी परवल की खेती से अधिक मुनाफ़ा कमाना चाहते हैं तो इसकी कुछ उन्नत किस्मों का उत्पादन कर सकते हैं।
काशी अलंकार- अधिक उपज देने वाली परवल की इस किस्म के फलों का रंग हल्का हरा होता है और इसके बीज भी नरम होते हैं। इससे प्रति हेक्टेयर 200 क्विंटल के करीब फसल प्राप्त हो जाती है।
स्वर्ण अलौकिक- इस किस्म के परवल का आकार अंडे की तरह होता है और छिलके का रंग हल्का हरा होता है। इसमें बीज कम होते हैं। इसलिए मिठाई बनाने के लिए इसका अधिक इस्तेमाल होता है। इससे प्रति हेक्टेयर 200 से 250 क्विंटल फसल प्राप्त की जा सकती है।
स्वर्ण रेखा- इस किस्म के परवल का रंग गहरा हरा होता है और उसपर सफेद धारियां होती हैं। इसके पौधे की हर गांठ पर फल लगते हैं। प्रति हेक्टेयर उत्पादन करीब 200 क्विंटल होता है।
काशी सुफल– हल्के हरे रंग और सफेद धारियों वाले इस परवल का इस्तेमाल भी मिठाई बनाने में अधिक किया जाता है। इनका स्वाद अच्छा होता है। इसका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 200 से 250 क्विंटल तक है।
नर और मादा पौधों का सही अनुपात है ज़रूरी
अधिक उपज प्राप्त करने के लिए नर और मादा पौधों को सही अनुपात में लगाना ज़रूरी है। इसका अनुपात 1:19 होना चाहिए। रोपाई के समय खेत में एक कतार से दूसरे कतार की दूरी 2.5 मीटर और एक पौधे से दूसरे पौधे की दूरी 1.5 मीटर होनी ज़रूरी है।
चूंकि परवल एक बेल की तरह फैलती है इसलिए यदि मचान बनाकर इसकी खेती की जाए तो फलों के खराब होने का डर नहीं रहता और उपज भी अधिक प्राप्त होती है। इसे अन्य फसलों के साथ भी उगाया जा सकता है। उत्तर प्रदेश में पान के साथ परवल की खेती की जाती है, जिससे मुनाफ़ा अधिक होता है। पालक, मूली, मेथी, फूलगोभी, प्याज, पत्तागोभी के साथ भी परवल की खेती की जा सकती है।
परवल की तुड़ाई
मार्च महीने के मध्य में फल लगना शुरू हो जाते हैं। फल लगने के 10 से 12 दिनों बाद फल तोड़ने लायक हो जाते हैं। इस तरह मार्च और अप्रैल महीने में प्रति सप्ताह फलों की तुड़ाई एक बार और मई में प्रति सप्ताह दो बार करनी चाहिए। फलों की तोड़ाई सूर्योदय से पहले करनी चाहिए। इससे फल अधिक समय तक ताजे रहते हैं। उन्नत किस्मों से परवल की अच्छी पैदावार ली जा सकती है। बाज़ार में परवल का भाव 3800 रुपये से लाकर 4500 रुपये प्रति क्विंटल के बीच चल रहा है।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।
ये भी पढ़ें:
- Fish Farming RAS Technique: मछली पालन की RAS तकनीक कैसे काम करती है? 30 गुना बढ़ सकता है उत्पादन!Fish Farming RAS Technique: बड़े स्तर पर अगर कोई मछली पालन करने की सोच रहा है तो मछली पालन की RAS तकनीक का इस्तेमाल कर सकते हैं। बशर्ते इसकी पूरी जानकारी हो। जानिए RAS तकनीक में कितना खर्चा लगता है और क्या हैं इससे जुड़े अहम फ़ैक्टर्स।
- Lady Finger Varieties: भिंडी की 10 उन्नत किस्में, जिसे लगाकर किसान कर सकते हैं लाखों की कमाईभिंडी की खेती हर मिट्टी और मौसम में होती है लेकिन दोमट मिट्टी जिसका पीएच मान 6 से 6.8 हो, और गर्म जलवायु हो तो सबसे अच्छी पैदावार होती है।
- Greenhouse Farming Techniques: ग्रीनहाउस खेती क्या है? सब्सिडी से लेकर प्रशिक्षण तक जानें सब कुछइतिहास की किताबों के अनुसार, रोमन किंग टाइबेरियस ककड़ी जैसी दिखने वाली सब्जी रोज़ खाते थे, रोमन किसान सालभर इसे उगाते थे, जिससे वो सब्जी उनकी खाने की प्लेट में हमेशा रहे। ये सब्जी ग्रीनहाउस तकनीक के ज़रिये ही उगाई जाती थी।
- Modern Farming Methods: खेती की आधुनिक तकनीकें जिसे अपनाकर किसान कर सकते हैं सफ़ल खेतीआज के इस मॉर्डन युग में तकनीक का इस्तेमाल हर क्षेत्र में बढ़ा है, ऐसे में भला कृषि कैसे इससे पीछे रह सकती है। आधुनिक तकनीकों से लेकर उपकरणों तक के इस्तेमाल ने किसानों के लिए खेती को न सिर्फ आसान बना दिया है, बल्कि इसे अधिक मुनाफे का सौदा बना दिया है।
- Rice Bran Oil vs Sunflower Oil: जानिए राइस ब्रान ऑयल-सनफ्लॉवर ऑयल में अंतर और ख़ूबियों के साथ इसका बाज़ारराइस ब्रान ऑयल को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार नेफेड के फोर्टिफाइड ब्रैन राइस ऑयल को ई-लॉन्च किया है।राइस ब्रैन ऑयल की मार्केटिंग सभी नेफेड स्टोर्स और ऑनलाइन प्लेटफार्म पर हो रही है।वहीं साल 2024-2032 के दौरान इंडियन सनफ्लावर ऑयल मार्केट 7 फीसदी की CAGR प्रदर्शित करेगा।
- Lemongrass: जानिए लेमनग्रास की खेती में जुड़ी अहम बातें प्रोफ़ेसर डॉ. पंकज लवानिया से, उत्पादन से लेकर प्रोसेसिंग तकबुंदेलखंड जैसे इलाके में जहां पानी की समस्या है और बड़ी मात्रा में ज़मीन बंजर पड़ी रहती है, लेमनग्रास की खेती यहां के किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है। इसकी खेती कम पानी में भी आसानी से की जा सकती है।
- Eucalyptus Farming: सफेदा की क्लोनल किस्मों से किसान कर सकते हैं बढ़िया कमाई, जानिए खेती की तकनीकसफेदा की खेती लकड़ी के लिए की जाती है। इसकी लकड़ी का उपयोग बड़े सामान की लदाई करने वाली पेटियां बनाने के साथ ही ईंधन, फर्नीचर, हार्डबोर्ड और पार्टिकल बोर्ड बनाने में किया जाता है। इसकी मांग हमेशा ही रहती है।
- कैसे औषधीय पौधों की खेती पर किसानों की मदद करता है ये कृषि विश्वविद्यालय, प्रोफ़ेसर विनोद कुमार से बातचीतबुंदेलखंड के किसानों को पारंपरिक खेती के अलावा औषधीय पौधों की खेती के लिए प्रेरित करने के मकसद से झांसी के रानी लक्ष्मीबाई कृषि विश्वविद्यालय में औषधीय पौधों का उद्यान बनाया गया है।
- Aeroponic Technique से बंद कमरे में केसर की खेती, हिमाचल के गौरव ने इंटरनेट से सीख कर शुरू किया केसर उत्पादनगौरव Aeroponic Technique से केसर की खेती करते हैं। इस तकनीक में बंद कमरे में केसर को उगाते हैं। बंद कमरे में कश्मीर के वातावरण को बनाने की कोशिश करते हैं। ये तकनीक मिट्टी रहित होती है।
- Soil Health Management: मिट्टी की जांच से जुड़ी ये बातें जानते हैं आप? मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन कितना ज़रूरी?आपने वो कहावत तो सुनी ही होगी कि नींव मज़बूत होगी, तभी तो मज़ूबत इमारत बनेगी। ठीक इसी तरह मिट्टी की सेहत अच्छी रहेगी, तभी तो अधिक उपज प्राप्त होगी। रसायनों के बढ़ते इस्तेमाल से मिट्टी की उपजाऊ शक्ति लगातार घट रही है, ऐसे में इसकी सेहत बनाए रखने के लिए मृदा प्रबंधन बहुत ज़रूरी… Read more: Soil Health Management: मिट्टी की जांच से जुड़ी ये बातें जानते हैं आप? मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन कितना ज़रूरी?
- Crop Rotation Strategies: खेती में फसल चक्र की कितनी अहम भूमिका? डॉ. राजीव कुमार सिंह ने दिया IFS Model का उदाहरणखेती से अधिक मुनाफा कमाने के लिए किसानों को इसकी कुछ बुनियादी नियमों के बारे में पता होना चाहिए। जैसे कि फसल चक्र। ये मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार और उत्पादन बढ़ाने के लिए बहुत ज़रूरी है, मगर बहुत से किसान इस नियम को भूलकर लगातार एक ही फसल उगा रहे हैं जिससे उन्हें नुकसान उठाना पड़ रहा है।
- क्या हैं Urban Farming Trends? कैसे शहरी खेती बन रही कमाई का ज़रिया?जब शहरों में लोग अपने शौक से थोड़ा आगे बढ़कर घर की छत, बालकनी, कम्यूनिटी गार्डन और घर के नीचे की जगह या घर के अंदर की खाली जगह में वर्टिकल गार्डन बनाकर खेती करने लगते हैं, तो इसे ही शहरी खेती कहा जाता है।
- Integrated Pest Management: क्यों एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM तकनीक) फसलों के लिए है ज़रूरी? जानिए विशेषज्ञ सेखेती की लागत को कम करने और इसे ज़्यादा लाभदायक बनाने के लिए प्रमाणित व उपचारित बीजों का इस्तेमाल, सही मात्रा में उर्वरकों के उपयोग और सिंचाई की उचित व्यवस्था के साथ ही एकीकृत कीट प्रबंधन यानि Integrated Pest Management भी ज़रूरी है।
- Agriculture Equipment : Bed Maker Machine किसानों के लिए है कितनी उपयोगी और मिलेगी कितनी Subsidy?मल्टी पर्पस Bed Maker Machine किसानों के समय की बचत करने के साथ-साथ उनकी आमदनी बढ़ाने में मदद करती है।
- Fish Farming Business: मछली पालन व्यवसाय से जुड़ी अहम जानकारी, जानिए क्या है विशेषज्ञों और अनुभवी मछली पालकों की राय?मछली पालन उद्योग का असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा है। देश के मछुआरों और मछली पालन उद्योग एक बड़े सेक्टर के रूप में उभर कर आया है। भारतीय मत्स्य पालन की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 1980 के दशक में जो मछली उत्पादन 36 फ़ीसदी था, वो बढ़कर आज के वक्त में 70 फ़ीसदी पर पहुंच गया है। जानिए मछली पालन से जुड़े अहम बिंदुओं के बारे में।
- Ragi Crop: रागी की फसल से क्या-क्या तैयार किया जा सकता है? रागी की खेती से जुड़ी अहम जानकारीरागी की फसल (Ragi Crop) मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में सबसे ज़्यादा खेती होती है। केरल, कर्नाटक राज्यों में इसे मुख्य भोजन के रूप में खाया जाता है।
- Sindoor Plant: सिंदूर की खेती कैसे होती है? सिंदूर के पौधे से क्या-क्या बनता है और कहां से लें ट्रेनिंग?आपने अभी तक कई चीज़ों की खेती के बारे में सुना होगा, लेकिन क्या कभी सिंदूर की खेती के बारे में सुना है? कम ही लोग जानते हैं कि सिंदूर का पौधा भी होता है, जिससे ऑर्गेनिक लाल रंग का सिंदूर बनता है। साथ ही और कई उत्पाद बनाए जाते हैं। जानिए सिंदूर का पौधा कैसे उगाया जाता है और सिंदूर की खेती से जुड़ी अहम जानकारियां सीधा एक्सपर्ट से।
- Agriculture Drone क्या है? कृषि ड्रोन में सब्सिडी के लिए कौन सी योजनाएं चलाई जा रही हैं?Agriculture Drone की खरीद के लिए महिला समूह को ड्रोन की कीमत का 80 प्रतिशत या अधिकतम 8 लाख रुपये तक की मदद दी जा रही है। योजना के तहत SC-ST, छोटे व सीमांत, महिलाओं और पूर्वोत्तर राज्यों के किसानों को ड्रोन का 50 प्रतिशत या अधिकतम 5 लाख रुपये अनुदान दिया जा रहा है।
- कैसे महुआ के उत्पाद बनाकर महिलाओं के इस समूह ने कमाल किया है? Bastar Foods आज बना ब्रांडमहुआ एक तरह का फूल है जिसमें बहुत ही तेज़ महक होती है, आमतौर पर इसे शराब बनाने के लिए जाना जाता है, लेकिन अब इससे कई तरह की स्वादिष्ट और हेल्दी चीज़ें बनाई जा रही हैं। जानिए कैसे महुआ के उत्पाद (Mahua Products) बनाकर बस्तर की गुलेश्वरी ठाकुर और उनकी टीम ने इससे लाखों का बिज़नेस खड़ा कर दिया है।
- अगरवुड पेड़ की खेती (Agarwood Farming): सोने-हीरे से भी ज़्यादा महंगी अगरवुड की लकड़ी!अगरवुड पेड़ की खेती में एक एकड़ में 400 से 450 पौधे लग सकते हैं। 12 फ़ीट चौड़ाई और 10 फ़ीट लंबाई की दूरी पर पौधे को रोपना चाहिए। अगरवुड प्लांट की कीमत 200 रुपए होती है।