Soil Health Card Scheme: मिट्टी की जाँच (Soil Testing) करवाकर खेती करने से 5-6 फ़ीसदी बढ़ी पैदावार

सरकारी लैब में मिट्टी की जाँच मुफ़्त होती है और Soil Health Card दिया जाता है। इसे फ़सल बुआई के वक़्त ही करवाना ज़रूरी नहीं है, बल्कि किसी भी वक़्त करवा सकते हैं। आमतौर पर तीन-चार साल के अन्तराल पर मिट्टी की जाँच करवाकर विशेषज्ञों की राय के मुताबिक़ मिट्टी का उपचार ज़रूर करना चाहिए।

Soil Health Card

केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने 10 दिसम्बर 2021 को राज्यसभा को बताया कि ‘राष्ट्रीय उत्पादन परिषद (National Productivity Council) ने साल 2017 में अपने अध्ययन में पाया कि देश में मिट्टी की जाँच करके और SHC (Soil Health Card) की सिफ़ारिशें अपनाकर फ़सलों की पैदावार में औसतन 5 से 6 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हासिल की गयी है।’ फ़सलों की पैदावार की मात्रा खेत की मिट्टी के उपजाऊपन के अलावा बीजों की क्वालिटी, खाद का सन्तुलित इस्तेमाल और सिंचाई के साधनों की उपलब्धता पर भी बहुत ज़्यादा निर्भर करती है।

मिट्टी की सेहत के प्रति बेहद संवेदनशीलता दिखाते हुए नरेन्द्र मोदी सरकार ने साल 2015-16 से राष्ट्रीय पैमाने पर मृदा स्वास्थ्य कार्ड (Soil Health Card, SHC) योजना लागू की। इस योजना के तहत, अब तक क़रीब 11 करोड़ किसानों को मुफ़्त Soil Health Card दिये गये हैं। इस योजना में किसानों को मिट्टी की जाँच की सुविधा मुफ़्त मिलती है। उन्हें सिर्फ़ अपने खेत की मिट्टी की नमूना सही ढंग से इक्कठा करके जाँच करने वाली प्रयोगशाला में भेजना होता है। यहीं से मृदा स्वास्थ्य कार्ड के रूप में जाँच रिपोर्ट मिलती है।

मिट्टी की जाँच (Soil Testing)
तस्वीर साभार: lokkhabar

Soil Health Card Scheme: मिट्टी की जाँच (Soil Testing) करवाकर खेती करने से 5-6 फ़ीसदी बढ़ी पैदावार

मिट्टी की जाँच के मापदंड

भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद (ICAR) ने मिट्टी की सेहत को परखने के लिए 12 मापदंड बनाये हैं। ये हैं – pH यानी मिट्टी की अम्लीयता या क्षारीयता का मापक, विद्युत चालकता (Electro Conductivity), मिट्टी में मौजूदा कार्बनिक तत्व, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम और सल्फर (N, P, K, S) की मात्रा तथा ज़िंक, कैडमियम, लौह तत्व, मैग्नीशियम और बेरियम (Zn, Cu, Fe, Mn & B) जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों की मात्रा। इन सभी मापदंडों का ब्यौरा मृदा स्वास्थ्य कार्ड (Soil Health Card) में मौजूद रहता है। मिट्टी की जाँच करने वाली सभी स्थायी या मोबाइल प्रयोगशालाओं (लैब) में निर्धारित वैज्ञानिक प्रक्रिया का पालन करके ही रिपोर्ट तैयार की जाती है।  मिट्टी की तेज़ी से जाँच करने के लिए ICAR ने दो डिजिटल किट विकसित की हैं। इन्हीं किट्स की बदौलत मोबाइल लैब की रिपोर्ट किसानों को उनके घर तक पहुँचकर सुलभ करवायी जाती है।

देश में हैं 10 हज़ार लैब

मिट्टी की सेहत और उसकी उर्वरा शक्ति की जाँच करके किसानों को उपयुक्त सलाह देने के लिए केन्द्र और राज्य सरकारों की ओर से देश भर में 10,052 प्रयोगशालाएँ चलायी जा रही हैं। ये प्रयोगशालाएँ (Soil Testing Labs) कई तरह की हैं। मसलन, देश में स्थायी लैब की संख्या 1,315 है तो 8,164 लैब को मिनी लैब कहा जाता है। इनके अलावा, 171 मोबाइल लैब हैं तो 402 लैब गाँव-स्तरीय हैं। इस कार्ड के ज़रिये किसानों को ये वैज्ञानिक जानकारी दी जाती है कि जाँची गयी मिट्टी की उत्तम सेहत को बनाये रखने के लिए किस तरह की खाद की कितनी मात्रा का और कैसे इस्तेमाल होना चाहिए? ताकि जाँची गयी मिट्टी में उपजायी जाने वाली फ़सल की पैदावार बढ़ सके और मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों का भी संतुलन बना रहे।

राज्यवार मिट्टी के जाँच केन्द्रों (लैब) का ब्यौरा:

क्रमांक राज्य/केन्द्र शासित प्रदेश मिट्टी के लैब की किस्म और संख्या
स्थायी मोबाइल मिनी गाँव-स्तरीय कुल
1 अंडमान और निकोबार 1 0 0 0 1
2 आन्ध्र प्रदेश 47 13 1,328 5 1,393
3 अरुणाचल प्रदेश 5 3 0 0 8
4 असम 10 0 216 0 226
5 बिहार 38 9 1 23 71
6 छत्तीसगढ़ 33 0 111 5 149
7 दादरा नागर हवेली 0 0 0 0 0
8 गोवा 2 0 0 0 2
9 गुजरात 81 0 230 30 341
10 हरियाणा 35 0 0 34 69
11 हिमाचल प्रदेश 11 9 69 0 89
12 जम्मू-कश्मीर 20 12 0 0 32
13 झारखंड 47 0 3,164 0 3,211
14 कर्नाटक 96 1 6 281 384
15 केरल 22 12 0 0 34
16 लद्दाख 2 0 0 0 2
17 मध्य प्रदेश 78 7 503 1 589
18 महाराष्ट्र 209 26 48 0 283
19 मणिपुर 1 0 16 2 19
20 मेघालय 3 3 8 0 14
21 मिज़ोरम 5 0 0 0 5
22 नगालैंड 11 0 0 0 11
23 उड़ीसा 30 30 314 0 374
24 पुडुचेरी 2 0 0 0 2
25 पंजाब 69 4 0 0 73
26 राजस्थान 101 12 0 0 113
27 सिक्कम 3 0 0 14 17
28 तमिलनाडु 36 16 0 0 52
29 तेलंगाना 22 4 2,050 0 2,076
30 त्रिपुरा 2 2 100 0 104
31 उत्तर प्रदेश 254 0 0 6 260
32 उत्तराखंड 13 0 0 1 14
33 पश्चिम बंगाल 26 8 0 0 34
कुल 1315 171 8164 402 10052

 

11 राज्यों में नहीं जाँचा गया एक भी नमूना

कृषि मंत्री तोमर की ओर से दिये गये सरकारी आँकड़े बताते हैं कि मिट्टी की जाँच करके खेती-किसानी की उत्पादकता को बढ़ाने के प्रति किसानों को दिलचस्पी बीते दो वर्षों में बहुत घट गयी है। साल 2018-19 में जहाँ देश के किसानों ने अपने खेतों की मिट्टी के 5.27 करोड़ नमूनों की जाँच करवायी, वहीं 2019-20 में 28.8 लाख नमूनों की ही जाँच हुई और इसके अगले साल यानी 2020-21 में तो जाँच के लिए देश भर की प्रयोगशालाओं में भेजे गये नमूनों की संख्या महज 11.5 लाख रह गयी। इतना ही नहीं साल 2020-21 में आन्ध्र प्रदेश, असम, दादरा और नागर हवेली, गुजरात, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, महाराष्ट्र, मिज़ोरम, नगालैंड, सिक्किम और पश्चिम बंगाल जैसे 11 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में मिट्टी के एक भी नमूनों की जाँच नहीं करवायी गयी।

बीते तीन साल में किसानों को जारी हुए मृदा स्वास्थ्य कार्ड (SHC):

क्रमांक राज्य/केन्द्र शासित प्रदेश 2018-19 2019-20 2020-21
1 अंडमान और निकोबार 3,894 1,007 3,000
2 आन्ध्र प्रदेश 34,62,629 2,26,487 0
3 अरुणाचल प्रदेश 10,266 5,432 53
4 असम 11,57,702 67,493 0
5 बिहार 41,51,316 1,23,866 3,05,223
6 छत्तीसगढ़ 28,11,066 65,341 387
7 दादरा नागर हवेली 2,838 0 0
8 गोवा 6,066 9,281 6,556
9 गुजरात 43,72,845 63,591 0
10 हरियाणा 24,97,185 30,261 18,972
11 हिमाचल प्रदेश 56,433 19,613 5,168
12 जम्मू-कश्मीर 5,46,930 56,357 1,59,890
13 झारखंड 3,20,914 14,572 0
14 कर्नाटक 38,538 73,221 40,104
15 केरल 7,73,204 1,71,207 1,18,022
16 लद्दाख 16,500 2,103 0
17 मध्य प्रदेश 53,88,000 1,27,000 1,33,000
18 महाराष्ट्र 27,92,042 2,01,837 0
19 मणिपुर 10,357 10,357 10,010
20 मेघालय 1,39,741 45,286 8,531
21 मिज़ोरम 11,986 2,119 0
22 नगालैंड 12,000 27,304 0
23 उड़ीसा 9,25,635 4,31,418 52,056
24 पुडुचेरी 53 32 64
25 पंजाब 5,80,000 5,80,568 19,196
26 राजस्थान 73,660 23,104 33,347
27 सिक्कम 3,300 2,936 0
28 तमिलनाडु 35,33,971 1,01,144 32,750
29 तेलंगाना 4,72,987 1,10,664 1,65,527
30 त्रिपुरा 18,034 15,614 6,467
31 उत्तर प्रदेश 1,74,72,000 2,55,517 20,000
32 उत्तराखंड 4,45,556 13,645 6,700
33 पश्चिम बंगाल 6,12,500 4,520 0
कुल 5,27,20,148 28,82,897 11,45,023

 

नोट – 2020-21 में उत्तर प्रदेश को छोड़ सभी राज्यों में प्रादेशिक कार्यक्रम के तहत मिट्टी की जाँच हुई।

उपरोक्त आँकड़े बताते हैं कि या तो कोरोना काल में किसानों ने मिट्टी की जाँच करवाकर खेती-बाड़ी के सही नुस्ख़ों को अपनाने में कोताही  दिखायी, या फिर उनमें ये  ग़लतफ़हमी बरकरार है कि मिट्टी की जाँच करवाकर खेती करने से कोई ख़ास फ़ायदा नहीं है, क्योंकि वो अपने खेतों के बारे में जो कुछ भी जानते हैं वही पर्याप्त है। दूसरा पहलू ये भी हो सकता है कि ज़्यादातर किसानों को मिट्टी की जाँच करने वाली  प्रयोगशालाओं तक जाना बहुत पेंचीदा और ख़र्चीला लगता हो। सच जो भी हो, लेकिन मिट्टी की जाँच के प्रति किसानों के तेज़ी से घटते रुझान का अध्ययन और इसे लगातार लोकप्रिय बनाये रखने की कोशिशें ज़रूर होनी चाहिए।

कैसे कराएँ मिट्टी की जाँच?

जिस खेत की मिट्टी की जाँच करवानी हो, उसका आकार एक एकड़ से कम या ज़्यादा हो सकता है। मिट्टी का नमूना लेने से पहले खेत को फ़सल और जल निकासी की सुविधा के हिसाब से देखना बहुत उपयोगी होता है। नमूना लेने के लिए कुदाल या खुरपी से ‘V’ आकार का करीब 6 इंच गहरा गड्ढा खोदें। फिर किसी एक ओर से, ऊपर से नीचे तक करीब एक-डेढ़ इंच की मिट्टी का एकसार टुकड़ा निकालें। यही प्रक्रिया खेत में 10-12 अलग स्थानों पर अपनाकर सारी मिट्टी को किसी बर्तन में या साफ़ कपड़े में रख लें। यदि खड़ी फ़सल वाले खेत से नमूना लेना हो तो इसे पौधों की कतारों के बीच वाली जगह से लें। जिन स्थानों पर पुरानी बाड़, सड़क, या गोबर की खाद का पहले ढेर लगा हो वहाँ की मिट्टी नहीं लेनी चाहिए। नमूने की मिट्टी को छाया में सुखा लें। फिर इसे अच्छी तरह मिलाकर  जो मिट्टी प्राप्त हो, उसकी क़रीब आधा किलोग्राम मात्रा की एक थैली बना लें।

हरेक नमूने की थैली के लिए काग़ज़ की ऐसी तीन पर्चियाँ तैयार करें जिस पर अपना नाम, पता, नमूना लेने की तिथि, खेत की पहचान, खेत के लिए प्रस्तावित फसल, ज़मीन सिंचित है या बरानी तथा उसे लेकर क्या समस्या है इसका ब्यौरा लिखा होना चाहिए। एक पर्ची को थैली में डालें, दूसरी को उसके साथ चिपका दें या नत्थी करें तथा तीसरी को अपने पास रिकॉर्ड के लिए ज़रूर रखें। फिर इस नमूने को मिट्टी की जाँच करने वाली  नज़दीकी लैब तक ले जाएँ । नमूना जमा करने के बाद, रिपोर्ट हासिल करने के लिए जब बुलाया जाए तो जाकर रिपोर्ट या मृदा स्वास्थ्य कार्ड प्राप्त करें। मिट्टी की जाँच फ़सल बुआई के वक़्त ही करवाना ज़रूरी नहीं है। इसे किसी भी वक़्त करवा सकते हैं। आमतौर पर तीन-चार साल के अन्तराल पर मिट्टी की जाँच करवाकर, विशेषज्ञों की राय के मुताबिक़ मिट्टी का उपचार ज़रूर करना चाहिए।

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