क्या है ज़ीरो बजट खेती? (Zero Budget Natural Farming) पीएम मोदी ने क्यों किया इसका ज़िक्र?

देश के 100 में से 80 किसान छोटे किसान हैं। उनके पास दो हेक्टेयर से भी कम ज़मीन है। इन छोटे किसानों की संख्‍या 10 करोड़ से भी ज़्यादा है। इनके लिए अच्छी किस्म की उर्वरक (फ़र्टिलाइज़र), पैदावार बढ़ाने के लिए दूसरे केमिकल, खाद ओर महंगे बीज खरीदना मुश्किल होता है। ऐसे में ज़ीरो बजट खेती (Zero Budget Natural Farming) ऐसे किसानों के लिए फ़ायदेमंद साबित हो सकती है।

zero budget natural farming ज़ीरो बजट खेती

19 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्र को अपने संबोधन में तीन कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया। अपने इस संबोधन में उन्होंने आखिर-आखिर में ज़ीरो बजट खेती यानी Zero Budget Natural Farming का ज़िक्र किया। आने वाले दिनों में बड़े स्तर पर ज़ीरो बजट खेती को बढ़ावा देने की बात कही। इसके लिए एक कमेटी का गठन करने की घोषणा की। इस कमेटी में केन्द्र सरकार, राज्य सरकारों के प्रतिनिधि होंगे, किसान होंगे, कृषि वैज्ञानिक होंगे, कृषि अर्थशास्त्री (Agricultural Economist) होंगे। इस लेख में आप जानेंगे कि आखिर क्यों ज़ीरो बजट खेती पर इतना ज़ोर दिया जा रहा है।

लागत तो बढ़ रही है, लेकिन आमदनी वहीं की वहीं है

दिन-ब-दिन खेती में टेक्नोलॉजी की भागीदारी बढ़ती जा रही है। महंगे खाद, बीज और महंगी मशीनों ने खेती की लागत को बढ़ा दिया है। इनके इस्तेमाल से किसानों की उपज में बढ़ोतरी तो हुई है, लेकिन लागत का पैसा भी बढ़ा है। किसानों की अक्सर शिकायत रहती है कि लागत का पैसा तो बढ़ता जा रहा है, लेकिन उपज का उचित मूल्य नहीं मिल पाता। लागत में से मुनाफ़े का अनुपात कम ही है।

खेती की नयी तकनीकों और रासायनिक खाद के अंधाधुंध इस्तेमाल से खेत की उपज क्षमता पर भी असर पड़ता है। धीरे-धीरे ज़मीन बंजर होती जाती है। ज़ीरो बजट खेती, किसानों की इन दोनों समस्याओं का हल है। इससे किसानों की उत्पादन लागत कम होगी। कम लागत में ज़्यादा और अच्छी गुणवत्ता की पैदावार मिलेगी। इस वजह से उपज को बाज़ार में अच्छा दाम भी मिलेगा।

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तस्वीर साभार: theprint

क्या है ज़ीरो बजट खेती? (Zero Budget Natural Farming) पीएम मोदी ने क्यों किया इसका ज़िक्र?क्या है ज़ीरो बजट खेती या प्राकृतिक खेती? Zero Budget Natural Farming

ज़ीरो बजट खेती, प्राकृतिक खेती करने का एक ऐसा तरीका है, जिसमें बिना किसी लागत के खेती की जाती है। इसमें किसान को बाहर से कुछ खरीदना नहीं पड़ता। फसल के लिए ज़रूरी पोषक चीजें आसपास ही मिल जाती हैं। जीरो बजट का मतलब ये नहीं है कि किसान को कुछ भी खर्च नहीं करना होता। ज़ीरो बजट खेती का मतलब है कि किसान जो भी फसल उगाएं उसमें फ़र्टिलाइज़र, कीटनाशकों का इस्तेमाल न हो। इसे उसकी लागत का एक बड़ा हिस्सा बचेगा।

ज़ीरो बजट खेती में हाइब्रिड बीज का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। देसी बीज यानी कि यहीं पाई जाने वाले उन्नत बीजों का इस्तेमाल खेती में किया जाता है। ज़ीरो बजट खेती में किसान को बाज़ार से खाद, उर्वरक, कीटनाशक और बीज खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती। इसमें किसी एक फसल पर निर्भर न होकर, कई तरह की फसलों की खेती पर ज़ोर दिया जाता है।

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तस्वीर साभार: Indiagardening

 

ज़ीरो बजट खेती में गौपालन की बड़ी भूमिका

ज़ीरो बजट खेती में देसी गाय के गोबर एवं गौमूत्र का इस्तेमाल किया जाता है। रासायनिक खाद के स्थान पर मवेशियों के गोबर से खाद बनाई जाती है। गोबर और गोमूत्र से जीवामृत, घन जीवामृत, जामन बीजामृत बनाया जाता है। इनका खेत में इस्तेमाल करने से मिट्टी की पोषक तत्व में सुधार होता है। वह रासायनिक कीटनाशकों के स्थान पर नीम और गौमूत्र का इस्तेमाल करते हैं। इससे फसल में रोग नहीं लगता है।

भारत में ज्यादातर छोटे किसान हैं, जिनके लिए हाई क्वालिटी फर्टिलाइजर, पैदावार बढ़ाने के लिए दूसरे केमिकल, खाद ओर महंगे बीज खरीदना मुश्किल है। यही वजह है कि किसान क़र्ज़  में फंस जाता है।  ऐसे किसानों के लिए ज़ीरो बजट खेती फ़ायदेमंद साबित हो सकती है।

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तस्वीर साभार: ICAR

 

आंध्र प्रदेश में ज़्यादातर किसानों ने अपनाया ज़ीरो बजट खेती का मॉडल

आंध्र प्रदेश में बड़े पैमाने पर ज़ीरो बजट खेती होती है। 2015 में राज्य में पायलट प्रोजक्ट के तहत कुछ गांव में ज़ीरो बजट खेती की शुरुआत की गई थी। आज राज्य के करीबन 5 लाख किसान ज़ीरो बजट खेती कर रहे हैं। साल 2024 तक राज्य सरकार ने सभी गाँवों तक ज़ीरो बजट खेती को पहुंचाने का लक्ष्य रखा है।

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