कैसे कुल्थी की खेती बन सकती है किसानों के लिए अच्छी आमदनी का ज़रिया, जानिए इसके बारे में सब कुछ

कुल्थी की खेती के लिए हल्की गर्म और शुष्क जलवायु उपयुक्त होती है। इसके पौधों का विकास 20-30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान में अच्छा होता है। इसकी खेती हर तरह की मिट्टी में की जा सकती है।

कुल्थी की खेती kulthi ki kheti

भारत की दलहनी फसलों में कुल्थी भी प्रमुख फसल है। इसकी खेती कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में मुख्य रूप से जाती है। ये रोज़गार के अवसर पैदा करने और किसानों की आय में बढ़ोतरी करने का अच्छा ज़रिया बन सकता हैा। चूंकि कुल्थी की खेती शुष्क इलाकों में भी की जा सकती है, इसलिए ज़्यादा पानी की भी ज़रूरत नहीं पड़ती। कुल्थी के बीज का दाल के रूप में सेवन करने के साथ ही इसे हरे चारे के रूप में पशुओं को भी खिलाया जाता है। कुल्थी को हॉर्सग्राम भी कहा जाता है। कुल्थी की खेती मिश्रित फसल के रूप में भी की जा सकती है। इसे ज्वार, बाजरा, मक्का और अरहर के साथ उगाया जा सकता है। कुल्थी सेहत के लिए भी फ़ायदेमंद है और कई बीमारियों की रोकथाम में कारगर है।

जलवायु और मिट्टी

कुल्थी की खेती के लिए हल्की गर्म और शुष्क जलवायु उपयुक्त होती है। इसके पौधों का विकास 20-30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान में अच्छा होता है। इसकी खेती हर तरह की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन बलुई दोमट मिट्टी इसके लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है और मिट्टी का पी.एच.मान सामान्य होना चाहिए।

कैसे कुल्थी की खेती बन सकती है किसानों के लिए अच्छी आमदनी का ज़रिया, जानिए इसके बारे में सब कुछ
तस्वीर साभार- agrifarming

 

कैसे कुल्थी की खेती बन सकती है किसानों के लिए अच्छी आमदनी का ज़रिया, जानिए इसके बारे में सब कुछ

बुवाई का समय

कुल्थी की बुवाई जुलाई के आखिर से लेकर अगस्त तक की जा सकती है। अगर चारे के लिए बुवाई कर रहे हैं तो जून से अगस्त के बीज बुवाई की जा सकती है। पश्चिम बंगाल में इसकी बुवाई अक्टूबर-नवंबर में की जाती है। इसे रबी और खरीफ़ दोनों ही मौसम में उगाया जा सकता है। खरीफ़ सीज़न में बुवाई करते समय कतार से कतार की दूरी 40-45 सेंटीमीटर और रबी फसल की बुवाई के समय कतार से कतार की दूरी 25-30 सेंटीमीटर रखें, जबकि पौधों के बीच 5 सेंटीमीटर की दूरी रखें। बुवाई से पहले बीजों को कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम/किलोग्राम की मात्रा के हिसाब से उपचारित कर लें।

उर्वरक और सिंचाई की ज़रूरत

कुल्थी की खेती में बुवाई के समय 20 किलो नाइट्रोजन और 30 किलो फॉस्फोरस प्रति हेक्टेयर की दर से डालें। उर्वरक बीज डालने से पहले डालें। फसल में फूल आने से पहले और फली में दाना बनने से पहले सिंचाई ज़रूर करें। साथ ही बुवाई के 20-25 दिन बाद निराई-गुड़ाई करें।

कब करें कटाई

जब फसल की फलियां ऊपर से पीली हो जाएं तब इसकी कटाई कर लेनी चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि इस अवस्था तक नीचे और मध्य भाग की फलियां पूरी तरह से पक जाती हैं। अगर इस समय कटाई नहीं की जाती है, तो नीचे की फलियां चटकने लगती हैं और दाना बर्बाद हो जाता है, जिससे उत्पादन कम होता है। कटाई के बाद दाने को 3-4 दिन तक धूप में सुखा लेना चाहिए फिर ही इसका भंडारण करें। कीटों से बचाने के लिए प्रति क्विंटल 2 किलो सूखी नीम की पत्तियां मिलाएं।

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कितना होता है मुनाफ़ा?

वैज्ञानिक विधि से कुल्थी की खेती से किसान मुनाफ़ा कमा सकते हैं। लागत प्रति हेक्टेयर लगभग 17,200 रुपये आती है और उत्पादन प्रति हेक्टेयर 6-10 क्विंटल तक हो सकता है। बाज़ारमें किसान फसल को 50 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेच सकते हैं। इस तरह से प्रति हेक्टेयर लगभग 22,800 रुपये तक का शुद्ध लाभ प्राप्त कर सकते हैं। झारखंड के जनजातीय किसान इसकी खेती में दिलचस्पी दिखा रहे हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हो रहा है।

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