कुट्टू की उन्नत खेती (Kuttu Farming): पहाड़ी इलाकों के लिए बेहद उपयोगी फसल

कुट्टू की फसल पर कीटों और बीमारियों का हमला नहीं होता और किसान पर कीटनाशक का बोझ नहीं पड़ता

धान, गेहूँ और अन्य मोटे अनाजों की तुलना में कुट्टू में पोषक तत्वों की मात्रा ख़ासी ज़्यादा होती है। लेकिन कुट्टू की देश में पैदावार ज़्यादा नहीं है। इसीलिए इसका आटा, गेहूँ के मुकाबले दो-तीन गुना महँगा बिकता है। इसीलिए कुट्टू की खेती में किसानों के लिए कमाई की काफ़ी सम्भावनाएँ मौजूद हैं।

कुट्टू की उन्नत खेती (Kuttu Farming): समुद्र तल से 1800 मीटर ऊँचाई वाले पहाड़ी इलाकों में कुट्टू की खेती बहुत फ़ायदेमन्द साबित होती है। क्योंकि कुट्टू एक बहुद्देशीय फसल है। इसके बीज से जहाँ महँगा आटा बनता है, वहीं इसके तने का उपयोग सब्ज़ी बनाने, फूल और पत्तियों के रस के निष्कर्षण (extraction) से दवाईयाँ बनाने वाले ग्लूकोसाइड का उत्पादन होता है। कुट्टू के फूलों से बनने वाले शहद की क्वालिटी भी बहुत अच्छी मानी जाती है। इसके बीज का इस्तेमाल नूडल, सूप, चाय, ग्लूटिन फ्री-बीयर वग़ैरह के उत्पादन में होता है। यह हरी खाद के रूप में भी बेहद उपयोगी होती है।

कुट्टू को टाऊ, ओगला, ब्रेश, फाफड़, पदयात, बक व्हीट आदि अनेक नामों से जाना जाता है। इसका उत्पत्ति का मूल स्थान उत्तरी चीन और साइबेरिया को माना गया है। लेकिन रूस में इसकी खेती व्यापक पैमाने पर होती है। कुट्टू की जंगली प्रजाति यूनान में भी पायी जाती है। धान, गेहूँ और अन्य मोटे अनाजों की तुलना में कुट्टू में पोषक तत्वों की मात्रा ख़ासी ज़्यादा होती है। लेकिन कुट्टू की देश में पैदावार ज़्यादा नहीं है। इसीलिए इसका आटा, गेहूँ के मुकाबले दो-तीन गुना महँगा बिकता है। इसीलिए कुट्टू की खेती में किसानों के लिए कमाई की काफ़ी सम्भावनाएँ मौजूद हैं।

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कुट्टू में प्रमुख पोषक तत्वों की सूची और मात्रा
क्रमांक पोषक तत्व मात्रा प्रति 100 ग्राम
1 कार्बोहाइड्रेट 65-75
2 प्रोटीन 12-13
3 वसा 6-7
4 विटामिन बी3 7 मिग्रा
5 फॉस्फोरस 282 मिग्रा
6 मैग्नेशियम 231 मिग्रा
7 कैल्शियम 114 मिग्रा
8 आयरन 13.2 मिग्रा

कुट्टू के व्यंजन

कुट्टू के व्यंजन

कुट्टू का आटा मुख्य रूप से फलहार में इस्तेमाल किया जाता है। व्रत-उपवास में कुट्टू के आटे से स्वादिष्ट पूड़ियाँ और फलहारी पकोड़े जैसे व्यंजन बनाये जाते हैं। इसके अलावा गेहूँ के साथ इसे मिलाकर बिस्किट, नान खटाई, सेवइयाँ और  चावल के साथ मिलाकर पापड़, फूलबड़ी आदि बनाये जाते हैं। काशा की रोटी सेहतमन्द होती है। इसका स्वाद केक जैसा होता है। इसे छाछ, मलाई और नट्स के साथ काशा या रोस्टेड टाऊ को मिलाकर बनाते हैं। काशा की रोटी भी एक स्वादिष्ट विकल्प है। पेनकेक्स स्वादिष्ट नाश्ता है, जिसे आसानी से कम समय में तैयार किया जा सकता है। यह रेसिपी कुट्टू के आटे के साथ बनायी जाती है। कुट्टू के आटे और कोलोकैसिया से कुरकुरा डोसा भी बनाते हैं।

कुट्टू की उन्नत खेती कैसे करें?

कुट्टू की खेती के लिए उस ज़मीन को उम्दा माना जाता है जो रबी के मौसम में देरी से सूखती है या फिर जहाँ लम्बे अरसे की बाद खेती करनी हो। देश में कुट्टू की खेती छिटपुट इलाकों में ही होती है। इसीलिए इसकी खेती के कुल क्षेत्रफल का आँकड़ा उपलब्ध नहीं है। लेकिन पहाड़ी आबादी में कुट्टू की खेती की परम्परा है, इसीलिए छत्तीसगढ़ के सरगुजा सम्भाग में बसे तिब्बती शरणार्थियों की कुट्टू मुख्य फसल है। वहाँ मेनपाट इलाके में करीब 10 हेक्टेयर में कुट्टू की खेती होती है।

कुट्टू की उन्नत खेती (Kuttu Farming) के लिए बुआई का सही वक़्त रबी मौसम में 15 सितम्बर से 15 अक्टूबर के बीच का होता है। यदि बात हो कुट्टू की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी तो राज मोहिनी देवी कृषि महाविधालय और अनुसन्धान केन्द्र, अम्बिकापुर, छत्तीसगढ़ के विशेषज्ञों के अनुसार, इसे सभी किस्म की मिट्टी में उगाया जा सकता है। लेकिन ज़्यादा लवणीय और  सोडिक भूमि में इसकी पैदावार अच्छी नहीं मिलती, इसीलिए इसे अनुपयुक्त बताया जाता है।

कुट्टू की किस्म खेती का उपयुक्त इलाका किस्म की विशेषताएँ पैदावार

(क्विंटल/ हेक्टयर)

हिमप्रिया हिमाचल प्रदेश और  उत्तराखंड अधिक पैदावार और  मध्यम अवधि 12
हिमगिरी हिमाचल प्रदेश के सूखे क्षेत्र और  जम्मू-कश्मीर जल्दी पकने वाली (81-95 दिन) 11
संगला B1 हिमाचल प्रदेश और  उत्तराखंड मध्यम अवधि (104-108 दिन), अधिक पैदावार 12.6

 

कुट्टू की उन्नत खेती (Kuttu Farming) के लिए मिट्टी का pH मान 6.5 से 7.5 हो तो इसे बेहतर माना जाता है। खेत को कल्टीवेटर से जुताई करके तैयार किया जाता है। बीज की मात्रा कुट्टू की किस्म पर निर्भर करती है। स्कूलेन्टम के लिए जहाँ 75-80 किग्रा प्रति हेक्टेयर बीज की ज़रूरत पड़ेगी वहीं टाटारीकम प्रजाति के लिए 40-50 किगा प्रति हेक्टेयर की मात्रा पर्याप्त होगी। कुट्टू के बीजों को छिड़काव विधि से बोते हैं और बुआई के बाद हल पाटा चलाकर बीजों को ढक देते हैं।  बुआई के वक़्त पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखी जाती है।

कुट्टू की खेती की देखरेख: कुट्टू की फसल में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश को 40:20:20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डालने से पैदावार अच्छी मिलती है। बुआई के वक़्त ही फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी तथा नाइट्रोजन की आधी मात्रा डालनी चाहिए। बाक़ी नाइट्रोजन को उस वक़्त डालना चाहिए जबकि कुट्टू के पौधों से बालियाँ निकलने लगें।

बुआई के बाद यदि सिंचाई की सुविधा हो तो 5-6 बार हल्की सिंचाई करनी चाहिए। खरपतवार के नियंत्रण के लिहाज़ से संकरी पत्ती के लिए 3.3 लीटर पेन्डीमेथिलीन का 800-1000 लीटर पानी में घोल बनाकर बुआई के 30-35 दिनों बाद छिड़काव करना चाहिए। कुट्टू की फसल में कीटों और बीमारियों का कोई प्रकोप नहीं देखा गया है। इसीलिए इसकी खेती में किसानों पर कीटनाशक का बोझ नहीं पड़ता।

कटाई और पैदावार: कुट्टू की फसल एक साथ नहीं पकती। इसीलिए इसे 70-80 प्रतिशत पकने पर काट लिया जाता है। इसकी दूसरी वजह से भी है कि कुट्टू की फसल में बीजों के झड़ने की समस्या ज़्यादा होती है। कटाई के बाद फसल का गट्ठर बनाकर, इसे सुखाने के बाद गहाई करनी चाहिए। कुट्टू की औसत पैदावार 11-13 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।

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