सरकार और किसान यूनियनों की मीटिंग रही बेनतीजा, अगली मीटिंग 5 दिसंबर को

किसान यूनियनों के प्रतिनिधियों ने जोर देकर कहा कि संसद के एक विशेष सत्र में एमएसपी पर एक नया कानून बनाया जाए। उन्होंने यह भी मांग की कि उन्हें एमएसपी की गारंटी दी जानी चाहिए, न केवल अब बल्कि भविष्य में भी यह गारंटी होनी चाहिए।

किसान यूनियनों और केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों के बीच गुरुवार को सात घंटे तक चली लंबी बातचीत बिना किसी समाधान के समाप्त हो गई है। अब अगले दौर की वार्ता पांच दिसंबर को निर्धारित की गई है। सूत्रों के अनुसार, किसानों ने सरकार को लिखित में अपने सुझाव दिए हैं।

इससे पहले दिन में 34 से अधिक किसान नेताओं के एक समूह ने केंद्र सरकार के साथ वार्ता के दौरान पांच-सूत्री मांगें रखीं, जो न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर एक विशिष्ट कानून की रूपरेखा तैयार करती हैं और चौथे दौर के दौरान पराली जलाने पर सजा के प्रावधान को समाप्त करती हैं।

मांगों के लिखित पांच-बिंदु सेट में प्रमुख मांगों में से एक संसद के मानसून सत्र के दौरान सितंबर में पारित तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त करना है। इसमें आगामी बिजली (संशोधन) अधिनियम, 2020 के बारे में भी आपत्तियां उठाई गई हैं।

किसानों ने इस बात पर जोर दिया कि पराली जलाने के लिए मामला दर्ज करने का प्रावधान समाप्त किया जाना चाहिए। इसके अलावा किसानों ने सवाल उठाया कि सरकार आखिर क्यों एमएसपी पर उन्हें लिखित आश्वासन देने के लिए तैयार नहीं है, जबकि उसने पहले कहा था कि एमएसपी हमेशा जारी रहेगा।

किसान यूनियनों के प्रतिनिधियों ने जोर देकर कहा कि संसद के एक विशेष सत्र में एमएसपी पर एक नया कानून बनाया जाए। उन्होंने यह भी मांग की कि उन्हें एमएसपी की गारंटी दी जानी चाहिए, न केवल अब बल्कि भविष्य में भी यह गारंटी होनी चाहिए। किसान नेताओं ने चिंता जताते हुए कहा, “मान लें कि एमएसपी जारी रहे, लेकिन खरीद बंद हो जाए। तब तो एमएसपी का कोई मतलब ही नहीं रह जाएगा।”

किसान यूनियनों के प्रतिनिधियों ने कहा कि सरकार ने कहा है कि तीन कृषि कानून किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए लाए गए हैं। हालांकि उन्होंने कभी इन पर ध्यान नहीं दिया। किसानों को लगता है कि बड़े व्यवसाइयों और कॉर्पोरेट घरानों को लाभ पहुंचाने के लिए कृषि कानूनों को पारित किया गया है।

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