रक्षा भूमि अधिग्रहण हुआ आसान, सरकार ने दी नए नियमों को मंजूरी

रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने यह स्पष्ट करते हुए कहा कि प्रमुख सार्वजनिक परियोजनाओं-जैसे मेट्रो, सड़क, रेलवे और फ्लाईओवर के निर्माण के लिए रक्षा भूमि की आवश्यकता है। इसे समान मूल्य की भूमि के लिए या बाजार मूल्य का भुगतान के बाद बदला जा सकता है।

रक्षा भूमि अधिग्रहण new rules passed on army land acquisition

केंद्र की मोदी सरकार ने काफी लंबे समय से अटकी कई सार्वजनिक परियोजनाओं का मार्ग प्रशस्त करने और रक्षा भूमि अधिग्रहण को आसान बनाने के लिए नए नियमों को मंजूरी दे दी है। ये नियम सशस्त्र बलों द्वारा खरीदी गई भूमि के बदले समान मूल्य के बुनियादी ढांचे (EVI) के विकास की अनुमति देते हैं।

नए नियम ऐसे समय सामने आए हैं, जब सरकार रक्षा भूमि सुधारों पर विचार कर रही है। एक कंटोनमेंट बिल (छावनी विधेयक) 2020 को अंतिम रूप देने के लिए भी काम किया जा रहा है, जिसका उद्देश्य छावनी क्षेत्रों का विकास करना है।

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जमीन के बदले जमीन या बाजार भाव से पैसा मिलेगा

रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने यह स्पष्ट करते हुए कहा कि प्रमुख सार्वजनिक परियोजनाओं-जैसे मेट्रो, सड़क, रेलवे और फ्लाईओवर के निर्माण के लिए रक्षा भूमि की आवश्यकता है। इसे समान मूल्य की भूमि के लिए या बाजार मूल्य का भुगतान के बाद बदला जा सकता है।

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नए नियमों के तहत भवन और सड़क निर्माण समेत आठ समान मूल्य के बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं की पहचान की गई है। इन परियोजनाओं को धरातल पर लाने के लिए पार्टी संबंधित सेवा के साथ मिलकर बुनियादी ढांचा प्रदान कर सकती है।

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छावनी क्षेत्रों के तहत आने वाले मामलों में स्थानीय सैन्य प्राधिकरण की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा भूमि का मूल्य निर्धारित किया जाएगा। वहीं छावनी के बाहर की जमीन के मूल्य का फैसला जिला मजिस्ट्रेट करेगा।

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अगर किसी भी मामले में ईवीआई जमीन की लागत से कम है, तो शेष राशि रक्षा मंत्रालय को हस्तांतरित कर दी जाएगी। इसके अलावा, सशस्त्र बल निर्माण की गुणवत्ता के लिए जिम्मेदार होंगे और किसी भी परियोजना में देरी और समय के साथ बढ़ती लागत उनके द्वारा वहन की जाएगी।

रक्षा भूमि पर भी हो रहा है अतिक्रमण

सूत्रों के मुताबिक भूमि पर अतिक्रमण एक प्रमुख मुद्दा है और पिछले तीन वर्षों में रक्षा भूमि पर अतिक्रमण या अनधिकृत निर्माण से घिरी 56.48 एकड़ जमीन का पता चला है। 1990 के दशक में रक्षा भूमि 17.95 लाख एकड़ से अधिक होने का अनुमान लगाया गया था, लेकिन इस लंबे अंतराल में कई कारणों से काफी भूमि हाथ से निकल गई।

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एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक वास्तव में यह एक अच्छी पहल है। यह एक सुधार था जो लंबे समय से लंबित था। भूमि का एक समान मूल्य प्राप्त करना मुश्किल था और इसके कारण कई सार्वजनिक परियोजनाएं परवान नहीं चढ़ सकीं। नए नियमों से विकास का मार्ग प्रशस्त होगा।

इससे पहले 24 अक्टूबर को, रक्षा सचिव अजय कुमार ने ट्वीट किया था, एनएचएआई, मेट्रो राज्य सरकारें उनके द्वारा दी गई आवश्यक रक्षा भूमि के बदले में समान मूल्य के बुनियादी ढांचे की पेशकश कर सकती हैं।

रक्षा मंत्रालय देश का सबसे बड़ा भूमि-स्वामी है। रक्षा संपदा महानिदेशालय के अनुसारमंत्रालय के पास लगभग 17.95 लाख एकड़ भूमि है, जिसमें से लगभग 16.35 लाख एकड़ देश में 62 छावनियों से बाहर हैं।

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