नए कृषि कानूनों और किसान उत्पादक संगठनों (FPO) से बदलेगी किसान और सहकारी क्षेत्र की तकदीर

सहकारी विभाग सरकार का सबसे महत्वपूर्ण विभाग होता है। सहकारी प्रणाली के तहत राज्य में शीर्ष स्तर पर एक अपेक्स बैंक होता है और गांवों में जमीनी स्तर पर प्राथमिक कृषि सहकारी समितियां (पीएसीएस) होती हैं।

मध्य प्रदेश में ऐसी 4,523 समितियों का बेहद विस्तृत नेटवर्क है, जो किसानों को रोजमर्रा की खेती, उर्वरकों के वितरण और कृषि उपकरणों की आपूर्ति के साथ-साथ गेहूं, धान व दूसरे कृषि उत्पादों की खरीद जैसी कृषक समुदाय की जरुरतों को पूरा करने के लिए ऋण वितरित करती हैं।

सहकारी क्षेत्र प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से किसानों को प्रभावित कर रहा है और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देने का प्रयास कर रहा है। साथ ही, किसान भी अपनी आर्थिक गतिविधियों के लिए ज्यादातर सहकारी क्षेत्र पर ही निर्भर हैं।

कई राज्यों में किसान सहकारी क्षेत्र का हिस्सा बनकर आर्थिक रुप से मजबूत हुए हैं। उदाहरण के लिए महाराष्ट्र राज्य चीनी सहकारी समिति ने मराठा समुदाय का आर्थिक कायापलट कर दिया है। महाराष्ट्र में तो सहकारी क्षेत्र का इतना दबदबा है कि उसकी शर्तों से राज्य की राजनीति तक प्रभावित होती है। दुग्ध सहकारी समिति गुजरात आनंद दुग्ध उपयोगकर्ता संघ (ANAND) भी इसी तरह देश की सहकारी समितियों के लिए एक रोल मॉडल के रूप में उभरी थी।

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सहकारी क्षेत्र त्रि-स्तरीय प्रणाली के तहत काम करती है। प्रथम स्तर पर प्राथमिक कृषि सहकारी समितियां (पीएसीएस) होती हैं, दूसरे पर जिला सहकारी केंद्रीय बैंक (डीसीसीबी) होते हैं और तीसरे यानी राज्य स्तर पर अपेक्स बैंक होता है। प्राथमिक कृषि सहकारी समितियां इस प्रणाली की मजबूत स्तंभ हैं, जो सहकारी क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। जब प्राथमिक कृषि सहकारी समितियां मजबूत होती हैं, तो सहकारी क्षेत्र भी मजबूत होता है।

लेकिन कुछ राज्यों में, प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों के प्रभावी ढंग से काम नहीं करने, उनका निजी स्वार्थ के लिए उपयोग होने और बैंकों को घाटे में चलने के लिए मजबूर करने से वहां सहकारी क्षेत्र अपनी जड़ें जमाने से पहले ही ध्वस्त हो गया। जहां भी बैंक कर्ज के कारण घाटे में चले गए, वहां प्राथमिक कृषि सहकारी समितियां सामान्य तौर पर कामकाज नहीं कर पाई और सहकारी क्षेत्र अस्थिरता का शिकार हो गया।

देश में 3,500 किसान उत्पादक संगठन

किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) आने वाले समय में ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों की तुलना में यह संगठन ज्यादा आधुनिक होंगे। केंद्र सरकार ने अगले तीन वर्षों में 3,500 एफपीओ बनाने का लक्ष्य तय किया है। सहकारी क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के साथ ही यह एफपीओ कई सुधारों की बुनियाद रखने का काम भी करेंगे। सहकारी क्षेत्र में अगर कुछ विसंगतियां हैं, तो एफपीओ उन्हें भी दूर करेंगे।

एफपीओ का उत्साहवर्धन करने के लिए केंद्र सरकार ने कई आकर्षक पैकेज तय किए हैं। इसके तहत, किसान एफपीओ के माध्यम से अपनी फसल बेच सकते हैं और निजी व कॉरपोरेट सेक्टर के साथ व्यापार कर उपज के अच्छे दाम प्राप्त कर सकते हैं। मौजूदा वर्ष में मध्यप्रदेश में गेहूं खरीद के लिए इन एफपीओ को एजेंसी बनाया गया। इसी तरह, कृषि अधोसंरचना को अपग्रेड करने के लिए सरकार ने कृषि अधोसंरचना निधि (एआईएफ) को माध्यम बनाया।

एआईएफ के तहत ही नरेंद्र मोदी सरकार ने प्राथमिक कृषि सहकारी समितियां, किसान उत्पादक संगठन, कृषि उद्यमी, स्टार्ट-अप जैसे फार्म-गेट व एग्रीगेशन पॉइंट्स पर कृषि अधोसंरचना से जुड़ी परियोजनाओं के लिए दस लाख करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता देने का निर्णय लिया। राज्य सरकारों ने भी केंद्र की इसी मंशा के अनुरूप एआईएफ को प्रोत्साहित करना शुरु किया।

सहकारी क्षेत्र लोकतंत्र के मिनी-मॉडल के समान हैं। लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए सहकारी क्षेत्र को भी मजबूत बनाना आवश्यक है। केंद्र की मोदी सरकार ने इसी उद्देश्य से नए कृषि कानून लागू किए हैं। सरकारी तंत्र को सहकारी क्षेत्रों के साथ समन्वय बनाकर मजबूत किया जा सकता है। सहकारी क्षेत्रों को सभी राज्यों में कार्यात्मक बनाए जाने की जरुरत है।

स्व सहायता समूहों (एसएचजी) व एफपीओ के माध्यम से देश की सहकारी प्रणाली को यकीनन फिर से मजबूत बनाया जा सकता है। सहकारी क्षेत्र में व्यक्ति के बजाय सामूहिक मत को महत्व दिया जाता है। व्यक्तियों के माध्यम से किसी भी प्रणाली को शत-प्रतिशत संदेह-मुक्त नहीं किया जा सकता। लेकिन सहकारी आंदोलन तय किए गए लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है। किसी भी प्रणाली के लिए व्यक्तिगत निर्णयों के बजाय लोगों के समूह द्वारा लिए गए सामूहिक निर्णय अधिक महत्वपूर्ण होते हैं।

ऐसी कई मिसालें हैं, जहां गांव, शहर और जिले के लोगों के सामूहिक फैसलों से समाज में आश्चर्यजनक सुधार हुए हैं। सहकारी समितियों में लिए गए फैसलों का उद्देश्य भी समूचे समाज की भलाई ही होता है।

इस बात की कोई गारंटी नहीं कि किसी एक व्यक्ति के फैसले समाज के लिए पूरी तरह मददगार होंगे और लंबे समय तक टिकेंगे। वहीं, सहकारी समितियों में लिए गए सामूहिक निर्णय समाज को हमेशा भलाई की दिशा में ले जाएंगे और मील के पत्थर साबित होंगे। कृषि कानून बनाने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का निर्णय निश्चित ही कृषि क्षेत्र में नया इतिहास बनाएगा।

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P Narhari IAS Managing Director Madhya Pradesh State Cooperative Marketing Federationयह लेख पी. नरहरि, आईएएस ने Kisanofindia.com के लिए लिखा है। वो मध्य प्रदेश स्टेट कॉआपरेटिव मार्केटिंग फैडरेशन के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं।

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